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प्रस्ताव क्रमांक 1 : वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त व मूल्यों से ओतप्रोत हो भारतीय शिक्षा

26 – 29 मई 2019 चेन्नई (तमिलनाडू) / अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद् बैठक

21 वीं सदी में राष्ट्रों के सर्वांगीण विकास का मानक उस देश में शिक्षा की बेहतर व्यवस्था से हैं । गुणवत्तापूर्ण, कौशलपूर्ण, समाजोन्मुखी मूल्यों, आध्यात्मिक प्रेरणा एवं राष्ट्रीय भाव से परिपूर्ण शिक्षा के द्वारा ही भारतीय शिक्षा पुनः अपने मूल रूप में स्थापित होगी । शिक्षा में भारतीय विचार, पद्धति एवं विभिन्न विधाओं को बढ़ावा देने से भारतीय शिक्षा को ‘आंतरिक शक्ति’ प्राप्त होगी । भारत में शिक्षा की विवेचना राष्ट्रीय तत्वों एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी है । गुरुकुल व्यवस्था राष्ट्रहित एवं समाज के सतत संपर्क से खड़ी रही । आचार्य चाणक्य ने शिक्षा में राष्ट्रीय भाव जगाने को महत्वपूर्ण माना है, वहीं आजादी के पूर्व लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित नेशनल कॉलेज (राष्ट्रीय संस्थान ) भी इसी भाव के पैरोकार है । जहां एक ओर सामाजिक परिवर्तन को मुखरता से रखने का कार्य महात्मा फुले एवं सावित्रीबाई फुले ने किया, वहीं भारत की वैभवशाली नालंदा – तक्षशिला परंपरा को मालवीय जी ने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में बीएचयू के एक उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया है । अतः अभाविप का स्पष्ट मत है भारतीय शिक्षा में इन अपेक्षित बिन्दुओं का समावेश नितांत  आवश्यक है । अभाविप की यह राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद नई शिक्षा नीति में इन बिंदुओं को सुदृढ़ रूप से शामिल करने की मांग करती है ।

विश्वभर में मनौवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर यह स्थापित हो चुका है कि आरंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए, जिसमें विद्यार्थियों में विचारशीलता, बेहतर स्मृति एवं मौलिक चिंतन का विकास होता है । यह न केवल विज्ञान अपितु सभी विषयों को साध्य करने में उपयुक्त होती है । अभाविप की यह बारंबार मांग रही है कि विद्यार्थी को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए तथा स्कूली शिक्षा में स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए ।

राष्ट्र के विकास के विभिन्न मानकों में सकल घरेलू उत्पात, मानव विकास सूचकांक इत्यादि में शिक्षा की महत्वपूर्ण व केन्द्रीय भूमिका रहती है । शिक्षित व गुणवान श्रमशक्ति ही राष्ट्र के वास्तविक संसाधन हैं । यूरोप, पूर्वी एशियाई एवं दक्षिण एशियाई देशों में विकास के पथ पर अग्रसर होने के लिए शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़, कौशल्यपूर्ण, स्थानीय भाषा एवं अपने राष्ट्र के प्रति  सम्मान के भाव से ओतप्रोत हो ऐसी पद्धति का ही विकास किया । कभी गरीबी तथा अशिक्षा से जूझने वाले देशों ने शिक्षा में कौशल विकास वाले पाठ्यक्रम को सम्मिलित कर, रोजगार व उद्यमिता के मार्ग खोलकर तकनीकी ज्ञान में अग्रणी स्थान प्राप्त किया है । अभाविप की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद् भारतीय शिक्षा में गुणवत्ता पूर्ण कौशल युक्त पाठ्यक्रमों को लाने की मांग करती है ताकि आगामी दशकों में भारत न केवल सेवा क्षेत्र अपितु तकनीकी अथवा उत्पादन के सभी क्षेत्रों में तकनीकी के प्रयोग से अग्रणी स्थान पर पहुंचे । कौशल विकास पाठ्यक्रमों के स्थानीय भाषाओं में पठन – पाठन से उत्पादन में विभिन्न प्रवृत्तियों की तकनीकी जानकारी को समाज के बड़े वर्ग तक आसानी से उपलब्ध किया जा सकता है । अनुकूल नीतियां उत्पादन में अवश्य ही सहायक होती है परंतु उच्च तकनीकी क्षेत्र में निपुणता रखने वाली श्रमशक्ति की बहुलता ही विश्व  स्तर पर उत्पादन के केन्द्र के रूप में किसी देश को स्थापित करती है । अतः अभाविप की यह राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद् मानती है कि भारत में तकनीकी प्रणित उत्पादन को विश्व में अग्रणी स्थान में पहुंचने हेतु अपनी भाषाओं में कौशल्य शिक्षण लाभकारी साबित होगा ।

गुणवत्तापूर्ण कौशल विकास शिक्षा के साथ ही विद्यार्थियों को मानव मूल्यों, संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना भी शिक्षा का ही लक्ष्य है । एक अच्छे नागरिक के रूप में सामाजिक समझ संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक समाज में स्वस्थ परंपरा को विकसित करती है । अतः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का यह स्पष्ट मत है कि आगामी समय में शिक्षा में इन बुनियादी बिंदुओं का समावेश अपरिहार्य है । जिस प्रकार कोई भी अपनी जड़ो से कटकर खड़ा नहीं रह सकता, उसी प्रकार समाज भी अपनी परंपरा और ज्ञान बिंदुओं से विमुख होकर राष्ट्र की उन्नति नहीं कर सकता । अतः शिक्षा में वांक्षित सुधार लाते हुए देश के महापुरूषों, स्वतंत्रता सैनानियों, जनजाति परंपराओं व वीरों की अमर गाथाओं को पाठ्यक्रमों में समाहित करना चाहिए, जिससे भारत के इतिहास का सत्य चित्रण देश के सामने आये । स्वाधिनोत्तर भारत में सेनाओं व उनके पराक्रम के किस्से भी पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए । राजस्थान की नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार द्वारा महाराणा प्रताप के सम्मान को चोट पहुंचाना तथा वीर सावरकर को पाठ्यक्रमों से हटाना जिसे बाद में उन्हें वापस लेना पड़ा । यह कदम सांप्रदायिक तुष्टीकरण व घृणित मानसिकता से प्रेरित है जिससे शिक्षा अपने लक्ष्य से विमुख होती है । अभाविप की राष्ट्रीय कार्यकारिणी यह मानती है कि इन मान बिंदुओं एवं आदर्शों से युवाओं को उच्च जीवन मूल्यों को जीने की प्रेरणा मिलती है ।

भारत एक कृषि प्रधान देश है व कृषि के माध्यम से भारत कई खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भर बना है । अतः कृषि विज्ञान की शिक्षा पाठ्यक्रमों में समाहित होना चाहिए जिससे कृषि में नई तकनीकों का विकास करते हुए भारत सतत विकास लक्ष्यों की तरफ बढ़ सके । भारत की समृद्ध वैज्ञानिक परंपरा गुरुत्वाकर्षण से सिद्धांत से लेकर अंक गणित, बीजगणित, खगोलशास्त्र, स्थापत्य कला इत्यादि में भारत के ऐतिहासिक विरासत और अग्रणी भूमिका को आज मैनचेस्टर विश्वविद्यालय सहित विभिन्न अंतर – राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा माना गया है । संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के परिष्कृत व्याकरण का आज कृत्रिम बुद्धिमता के विकास में प्रयोग किया जा रहा है । कानून व संविधान की दिशा भी प्राथमिक शिक्षा क्षेत्रीय भाषा में प्रदान करने की ओर होनी चाहिए । अभाविप इस दिशा में संशोधन हेतु सरकार के समक्ष मांग प्रस्तुत करती है । अतैव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद् देश में युवाओं, नीति निर्धारिकों से मांग करती है कि वे भारतीय वांगमयो में अपार ज्ञान भंडार को विश्व कल्याण हेतु शिक्षा में सम्मिलत करें जिससे 21 वीं सदी के महान भारत के निर्माण की नींव भारतीय शिक्षा की संरचना हो सके ।

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