अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद विश्व का एक जाना-माना छात्र संगठन है जो शिक्षा क्षेत्र में बदलाव लाने के साथ-साथ छात्रों को एक जिम्मेदार नागरिक बनाने का प्रयास करता है। संगठन में छात्र-छात्राएं सभी सम्मिलित होकर कार्य करते हैं। उन्हें मार्गदर्शन करने हेतु अध्यापक भी इस संगठन में कार्यरत होते हैं।
अभाविप यह छात्र संगठन होने के कारण विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना, शिक्षा क्षेत्र का अध्ययन करना, उसमें सुधार लाने हेतु प्रयास करना, समय आने पर आंदोलन खड़ा करना आदि कई प्रकार की गतिविधियां अभाविप के कार्य का अभिन्न हिस्सा है। इन सभी क्रियाकलापों मंे छात्रों के साथ छात्राओं का भी सहभाग प्रारंभ से रहा है।
अभाविप की स्थापना के समय समाज में जो परिस्थितियां थीं उसके देखकर छात्र-छात्राएं एकत्रित काम करना उतना आसान नहीं था। छात्राओं के स्वतंत्र विद्यालय काफी मात्रा में थे जिसके कारण दोनों को साथ काम करने की ना आदत थी, न ही समाज में उसकी मान्यता थी। इसके बावजूद भी अभाविप में छात्राएं कम संख्या में क्यूं न हो कार्य करने लगी। प्रारंभ में उनका सहभाग अधिकतर व्यवस्थात्मक कार्य जैसे मंच व्यवस्था, कार्यक्रम व्यवस्था आदि तक सीमित था। फिर भी भिन्न-भिन्न प्रकार के पदों पर कार्य करते हुए छात्राएं उस समय भी हमें दिखती हैं। इतना ही नहीं छात्रों के जैसे पूरा समय काम करने वाली पूर्णकालिक छात्राएं भी धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी। बहुत पहले से ही केन्द्रीय कार्यकारी परिषद तक छात्राओं की उपस्थिति हमें उस समय भी दिखाई देती है। उस समय छात्र संगठनों में इस प्रकार का छात्राओं का सहभाग तथा उनका सहजता से स्वीकार होना यह समाज में एक अनोखा अनुभव था। इसका परिणाम न केवल छात्राओं का इस प्रकार के कार्य में सहभाग बढ़ने पर हुआ अपितु उनका आत्मविश्वास बढ़ा। साथ ही सामाजिक स्थिति के कारण छात्राओं के अनुभवों का एक सीमित दायरा होता था। उससे वो आगे बढ़कर नये-नये विषयों का ज्ञान उन्हें होने लगा। यह एक प्रकार से महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक नया कदम था।
जिस प्रकार छात्राओं को अभाविप में आने से उनको लाभ हुआ उसी प्रकार अभाविप को भी उसका फायदा मिला। छात्र जगत को सही अर्थों में समझने के लिए समाज के इन दोनों जैसे स्त्री तथा पुरुष का सहभाग होना आवश्यक था। इस प्रकार छात्राओं के सहभाग के कारण समाज के आधे हिस्से के प्रश्नों को भी वह समझ पाये।
जैसा कि प्रारंभिक दौर में छात्राओं का सहभाग गिने-चुने जिम्मेदारियों तक सीमित रहा परन्तु धीरे-धीरे यह चित्र बदलने लगा। वह हर प्रकार की जिम्मेदारी लेने के लिये खुद को सक्षम बनाने में कामयाब हुई। आंदोलन का नेतृत्व करना, उसका आयोजन करना, समय आने पर संघर्ष करना, छात्रसंघ के चुनाव में हर प्रकार का सहभाग देना, लेख लिखना, अध्ययन करना, भाषण देना, नुक्कड़ सभाएं लेना आदि सभी प्रकार के कार्यों में वह बराबरी से सहभागी रही।
जिस प्रकार अभाविप के कार्य के लिए पूर्णकालिक निकलने वाले छात्र थे वैसे ही छात्राएं भी थीं। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद कुछ साल अभाविप का कार्य करने के लिए उन्होंने अपना घर छोड़ा और समाज में रही। यह आज की स्थिति में भी समाज में एक अनोखा प्रयोग है। जहां आज भी लड़कियों को यदि इस प्रकार काम करने के लिए भेजेंगे तो आगे उसकी शादी कैसे होगी यह चिंता मां-बाप को रहती है, ऐसी स्थिति में 32 साल पूर्व से ही अभाविप में पूर्णकालीन कार्यकर्ता इस नाते काम करने वाली छात्राएं दिखती हैं। इतना ही नहीं आजीवन इसी कार्य को समर्पित सुश्री गीता गुंडे जैसी कार्यकर्ता छात्राओं के लिए प्रेरणास्रोत रही हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यह संगठन विभिन्न कारणों से अनोखा माना जाता है। उसमें इस संगठन में जिस प्रकार से छात्राओं का सहभाग रहा है यह एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। आशा नहीं अपितु विश्वास है कि छात्राओं का यह सहभाग दिनोंदिन अधिकाधिक व्यापक तथा अर्थपूर्ण बनेगा और समाज के लिए एक मिसाल बनकर रहेगा।
(लेखिका अभाविप की पूर्णकालिक कार्यकर्ता रही हैं)