भारत के सनातन सत्य को पुनः देख कर आज पूरा विश्व विस्मित है। मानव सभ्यता के उन्नति और पतन के तो कई सन्दर्भ मिलते है। परंतु शाश्वत मूल्यों पर निरन्तर अजर व अमर भारत चिरस्थाई राष्ट्र के रूप में अडिग खड़ा है। भारत का शाब्दिक अर्थ ही है कि ज्ञान की खोज में लगा हुआ वह राष्ट्र जिसके दर्शन में ही यह निहित है कि पूरा विश्व हमारा परिवार है अर्थात वसुधैव कटुम्बकम। भारत का विचार हमेशा समस्त प्राणियों के कल्याण करते हुय तमस को हरने के लिये साधना करते रहना है। हमारे यहां यह कहा गया है, तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। 5 अप्रैल को रात्रि 9 बजे 9 मिनट के लिये दीप जलाना इसी मन्त्र की साधना है।
लोगो को लगता है कि कोरोना जैसी महामारी में क्या कुछ दीप जलाने से ठीक हो जाएगा ? एक दीपक की रोशनी बीमारी का इलाज है या नही यह बहस का विषय हो सकता है।परन्तु हम दीपक से अंधकार में सूर्य के बिना जलकर अंधेरे से लड़ने की जो संकल्प की पराकाष्ठा है उससे प्रेरणा तो ले सकते हैं।
विश्व के मानस पटल पर भारत का स्थान विश्व गुरु के रूप में ऐसे ही नहीं बना है। हमारे यहां कहा गया है कि एक दीप से जले दूसरा अर्थात आत्मदीपो भवः । रविवार को जब पूरा देश एक साथ – एक भाव, एक राष्ट्र – एक जन के साथ सामूहिक दीप जला रहा था तो यह सामूहिक शक्ति एक संकल्प में परिवर्तित हो रही थी। और यह सर्वविदित है कि जब समाज सामूहिक प्रयास करता है संकल्प सिद्धि में बदल जाता है। भारत के तत्व में हमेशा ही आशा को प्रमुख स्थान दिया गया है। यही कारण है कि हम विषम परिस्थितियों में भी सकारात्मक समाधान निकाल कर नई आशाओं के साथ आगे बढ़ते हैं। आज जब समस्त मानवता के सामने कोरोना विषाणु जन्य महामारी एक संकट के रूप में विकराल समस्या बनकर खड़ी है, पूरी दुनियां भयाक्रांत है। ऐसे में भारत का यह धर्म बनता है कि वह अपने सर्वे भवन्तु सुखिनः के दर्शन अनुसार समाधान निकाले। इसलिए सर्वप्रथम यह आवश्यक हो जाता है कि भारत पहले स्वयं निराशा से उभरते हुए एक विजयी शालिनी तेजस्वी ऊर्जा का संचय करे। करोड़ों लोगो ने एक साथ दीप जलाकर इसी ऊर्जा का संचय करने का अनूठा कार्य किया है।
आपदाओं से लड़ना और लड़कर मार्ग निकाल आगे बढ़ना भारत की नियति है। जब देश का नेतृत्व राष्ट्रीय भाव से ओतप्रोत होता है तो समस्त राष्ट्रीय जीवन में एक विशेष उत्साह का संचार होता है। नेतृत्वकर्ता जब दूरद्रष्टा एवं निजी स्वार्थ से निर्लिप्त हो तो देश उनके साथ एकजुटता से खड़ा हो जाता है। गत वर्षों में हमने इस भाव को अनेक बार प्रकट होते देखा है। कोरोना महामारी से लड़ते समय भी देश ने जनता कर्फ्यू को मन से स्वीकार किया। पूरा देश मानो ताली और थाली की ताल पर ऊर्जामय हो गया। ठीक इसी तरह दीप जलाने के आह्वान को भी देश ने मनःपूर्वक स्वीकार किया और कल जब दीपोत्सव हुआ तो भारत तेजोमय हो गया। देश का दीपों से सुसज्जित चित्र अद्भुत,ऐतिहासक,अनुपम व सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
कुछ आलोचक जब इस आह्वान का मजाक करते हैं या उपहास उड़ाते है वे शायद एक व्यक्ति के विरोध में अविवेकपूर्ण व्यवहार कर रहे है। वास्तव में यह एक दीप एक राष्ट्र के भाव को पुनः परिभाषित करने का अनुपम उदाहरण बनेगा जो पूर्व में भी अपनी महानता के कारण विश्वगुरू रहा है। और निश्चय ही आगामी भवितव्य भी भारत के विश्वगुरु का मार्ग बन रहा है। जब भी सम्पूर्ण राष्ट्र एक संकल्प के लिये कटिबद्ध होता है तो वह अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करता है।
5 अप्रैल को पूरा देश मानो विवेकानंद जी के उन्ही विचारों को उद्घोषित कर रहा हो जिसमें उन्होंने कहा था भारत पुनः उठेगा। भारत माता फिर से अपने दिव्य सिंहासन पर पहले से भी अधिक देदीप्यमान होकर विराजमान होगी। परन्तु यह तब होगा जब गरीब की झोपड़ी से, किसान के खलिहान से, गिरी कंदराओं से, अमीर – गरीब सब जगह से लाखों युवक और युवतियां राष्ट्र कार्य के लिये निकल पडेगें। कल का दृश्य इसी बात को परिभाषित कर रहा था।
आज सम्पूर्ण देश में सभी समाज के लोगो ने एक मजबूत राष्ट्र के भाव को पुष्ट किया है। यह सम्पूर्ण राष्ट्र का संकल्प निश्चित अपनी सिद्धि को प्राप्त करेगा। साथ ही इस महामारी से त्रस्त मानवता को बचाकर दुनिया को भयमुक्त करेगा। निश्चित तौर पर करोड़ो दीपो से संचित सकारात्मक ऊर्जा कोरोना महामारी से लड़ने वाले पीड़ित व्यक्तियों, संक्रमण के विरुद्ध लड़ रहे कोरोना योद्धा चिकित्सक, नर्स, सफाई कर्मचारी, सेना बल, पुलिस जवान, अन्य कर्मचारी एवं सेवा कार्य में लगे सभी संगठनों व उनके कार्यकर्ताओं को शक्ति प्रदान करेगा।साथ ही पूरी दुनिया को यह भी समझाने का अवसर मिलेगा की भारत की सनातन संस्कृति, शाश्वत मूल्यों द्वारा ही हम मानवता का कल्याण कर सकते है।
इतिहास इस दिन को हमेशा याद रखेगा कि जब सारा जगत जब भय से डगमगा रहा था तब हिंदुस्थान प्रकाश से जगमगा रहा था। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा भारत दीपो के प्रकाश से नहा रहा था। शहर से लेकर गांव तक, पूर्वोत्तर की सुदूर क्षेत्रों से लेकर अंडमान निकोबार तक पूरा भारत एक सूत्र में बंधकर उम्मीद की दीयों से राष्ट्र को जगमगा रहा था, जिसमें भारत के सभी धर्मों, पंथों, जातियों वर्गों की सहभागिता थी। जब समाज का आत्मबल मजबूत होता है तो राष्ट्र की शक्ति स्वतः बढ़ जाती है। सभी कृत्रिम बन्धनों से मुक्त समरस भारत का यही वास्तविक स्वरूप है जब महलों से लेकर झोपड़ी तक और राजपथ से फुटपाथ तक एक राष्ट्र का भाव अंगीकार कर सबने अपनी संकल्प शक्ति का दिया जलाया।
आओ मिलकर दिया जलाये,
अंतरतम का तमस मिटाए।
(लेखक अभाविप के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री हैं।)