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#UnsungFreedomfighter : भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में श्यामजी कृष्ण वर्मा का योगदान

निखिल कुमार

स्वराज पखवाड़ा : इतिहासों में  गुम क्रांतिकारियों की वीरगाथा

महान स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, वकील और पत्रकार श्यामजी कृष्ण वर्मा जी का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के मांडवी में हुआ था. यह वही वर्ष था जिस समय भारत में 1857 की क्रांति हो रही थी. इनकी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में हुई बाद में उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन गए. वहां ऑक्सफोर्ड से 1879 में (M.A)करने वाले वे पहले भारतीय बने. तथा बाद में वही पर संस्कृत के प्राध्यापक नियुक्त हुए.

बी. ए. की पढ़ाई के बाद श्यामजी कृष्ण वर्मा 1885 में भारत लौट आये, और वकालत करने लगे. यहाँ पर रतलाम के राजा ने उनको दीवान का काम करने के लिए कहा फिर श्यामजी वहां दीवान का काम करने लगे. पर ख़राब सेहत की वजह से उन्होंने दीवान का काम छोड़ दिया. बाद में मुंबई में कुछ वक़्त बिताने के बाद वो अजमेर में बस गए. अजमेर के ब्रिटिश कोर्ट में अपनी वकालत जारी रखी. इसके बाद उन्होंने उदयपुर के राजा के यहाँ 1893 से 1895 तक काम किया और फिर जूनागढ़ राज्य में भी दीवान के तौर पर काम किया लेकिन सन 1897 में एक ब्रिटिश अधिकारी से विवाद के बाद ब्रिटिश राज से उनका विश्वास उठ गया और उन्होंने दीवान की नौकरी छोड़ दी.

श्याम जी कृष्ण जी, दयानंद सरस्वती के सांस्क्रतिक राष्ट्रवाद से काफी प्रभावित थे. और उनके आग्रह पर पूरे भारत का प्रवास भी किया. वर्मा तिलक और विवेकानंद के सामाजिक और राष्ट्रवाद के विचारो से काफी प्रभावित थे. उन्होंने1905 में  स्वदेशी आन्दोलन का समर्थन किया  और बंगाल विभाजन का विरोध भी किया था.

श्यामजी ने विदेश में रहकर भारत के स्वाधीनता संग्राम की क्रांति को जारी रखा. वहाँ पर अध्ययन के साथ साथ वे स्वतंत्रता आन्दोलन में भी वैचारिक योगदान दे रहे थे. इंग्लैंड में उन्होंने भारतीय छात्रों के रहने के लिए 1905 में मकान खरीदा और उसका नाम इण्डिया हाउसरखा. इसका उद्देश्य क्रांतिकारी या भारतीय विद्यार्थियों को एक प्लेटफार्म देना था ताकि वे विचार विमर्श कर सके और देश में देश की स्वतंत्रता आंदोलन में अपना विकास दे सके. बाद में यही हाउस क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गया. उनका घर भारत के सभी राजनीतिक नेताओं के लिए एक आधार बन गया। यह श्याम जी कृष्ण जी वर्मा ही थे जिन्होंने आधुनिक भारत के कई क्रांतिकारियों को तैयार किया. लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, गोपाल कृष्ण गोखले, गांधी, आदि सभी ने उनसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर चर्चा की। यह घर चर्चा का प्रमुख केंद्र था तथा वे यहाँ पर तर्कवादियों, मुक्त विचारकों, राष्ट्रीय और सामाजिक कार्यकर्ताओ आदि के संपर्क में रहे।

1905 में ही इन्होने इंडियन होम रूल सोसाइटी की स्थापना की जिसका उदेश्य भारत में स्वराज की स्थापना करना था. इसमें दादा भाई नौरोजी, भिकाजी कामा, एस आर राना जेसे स्वतंत्रता सेनानी भी शामिल थे.

इन्होने इंडियन सोशियोलॉजिस्ट समाचार पत्र निकाला जो प्रतिमाह प्रकाशित होता था इसका उद्देश्य जनमानस में राष्ट्रवादी विचारो को फैलाना था.

उन्होंने छात्रों की शिक्षा के लिए कई छात्रवृत्तियों की शुरुआत भी की जिससे एक नई पीढ़ी के सेनानियों का जन्म हुआ. इसमें मैडम भीकाजी कामा, लाला हरदयाल, मदन लाल ढींगरा और वीर सावरकर प्रमुख थे. बाद में इन्ही ने आधुनिक भारत की नीव रखी. भारत का पहला राष्ट्र धवज भी मैडम भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में फहराया था.1909 में मदनलाल धींगरा ने कर्जन वयाली की हत्या की  जिसने न सिर्फ भारतीयों बल्कि आयरिश स्वतंत्रता सेनानियों को भी प्रेरित किया, वे  विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा से प्रभावित थे. मदनलाल धींगड़ा इण्डिया हाउस में रहते थे जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था. तथा इससे पहले सावरकर की बनाई हुई  अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था के सदस्य भी थे. कई स्रोतों में यह भी उद्धृत मिलता है कि वीर सावरकर ने अपनी किताब 1857: भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संघर्ष, का अधिकतम हिस्सा इंडिया हाउस में ही रहकर लिखी थी। कई बार अंग्रेजों को भारतीय वीरों की गतिविधियों के बारे में शंका होने पर, श्यामजी बड़ी चपलता से वीरों को इंडिया हाउस में ठहरने की व्यवस्था कर देते थे।

श्यामजी कृष्ण वर्मा के ब्रिटिशो के विरुद्ध उग्रवादी विचारो के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनको परेशान करना आरम्भ कर दिया और 1905 में क़ानूनी अभ्यास करने से रोका गया इसके बाद वे 1907 में लन्दन छोड़कर पेरिस चले गये और यही से कार्य करना आरम्भ कर दिया. उसके बाद वे जिनेवा चले गये और यही पर 30 मार्च 1930 में इनकी मृत्यु हुई. हालांकि उनकी अंतिम इच्छा थी की वे अपने प्राण भारत की मिटटी में ही न्योछावर करे, लेकिन ऐसा नही हो सका. बाद में उनकी इस इच्छा को उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन 2003 में पूरा किया जब वे जिनेवा गये और  उनकी अस्थियो को भारत में लाने का महान कार्य किया.

2003 में सरकार ने जनता की मांग पर भुज की कच्छ यूनिवर्सिटी का नाम भी  श्याम कृष्ण वर्मा विश्वविद्यालय के नाम पर रखा. इसके पश्चात भारत में गुजरात सरकार ने सन 2010 में श्याम जी किशन जी वर्मा ट्रस्ट का निर्माण किया जिसका उद्देश्य श्याम जी के विचारों को जनता के सामने लाना और स्वतन्त्रता के लिए किए गए संघर्ष एवं परिणामों को याद करना है ताकि भारत की भविष्य पीढ़ी उनके बलिदान को याद कर सके और प्रेरणा ले सके. सरकार के इन प्रयासों के बाद भी श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसी विभूति अभी मुख्य धारा विमर्श का हिस्सा नहीं बन सकी है। इसलिए यह आज की युवा पीढ़ी का दायित्व है की वह देश के इन सूरमाओं को फिर- फिर याद करता रहे व उनके योगदान को नमन करता रहे।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं एवं ये उनके निजी विचार हैं।)

 

 

 

 

 

 

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