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छात्रशक्ति फरवरी 2022

संपादकीय फरवरी 2022

केवल संयोग नहीं है कि देश के अनेक राज्यों में विद्यालयों और महाविद्यालयों में गणवेश को न मानते हुए हिजाब और बुरके पहन कर प्रवेश करने की जिद के चलते शिक्षण कार्य बाधित हो रहा है। यह व्यवस्थागत समस्या है कि मुठ्ठी भर अराजक लोग सैकड़ों विद्यार्थियों को पठन-पाठन से वंचित कर देते हैं। पिछले कुछ वर्ष इस प्रकार की घटनाओं के साक्षी रहे हैं।

दुर्भाग्य है कि जिस छात्रशक्ति को अभाविप राष्ट्रशक्ति की संज्ञा देती है उसके ही एक वर्ग को भारत विरोधी शक्तियों द्वारा अपने जाल में फंसा कर असामाजिक गतिविधियों की ओर प्रवृत्त किया जा रहा है। यह विडंबना ही है कि राजनैतिक अंधविरोध के चलते विपक्ष के दल इन अवांछित गतिविधियों और लोगों का समर्थन करने लगते हैं। वे भूल जाते हैं कि ऐसा कर वे न केवल इन उपद्रवियों का हौंसला बढ़ा रहे हैं अपितु संवैधानिक संस्थाओं की साख पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं।

स्थिति और अधिक चिंतनीय हो गयी है जब इस्लामिक छात्र संगठन सिमी के प्रमुख सफदर नागौरी और उसके साथियों की आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के साथ रिश्तों की न सिर्फ पुष्टि हुई है अपितु विशेष अदालत ने उन्हें मौत की सजा भी सुनाई है। उल्लेखनीय है कि संसद पर हमले के आरोपियों में से कुछ पहले भी विश्वविद्यालय छात्रावास में पनाह लेते रहे थे।

आतंकी नेटवर्क न केवल शिक्षा परिसरों में प्रवेश पाने में सफल हुआ है अपितु बुद्धिजीवियों के एक वर्ग का समर्थन पाने में भी सफल है। आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों में शामिल लोगों को भी मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ देने की मांग इन बुद्धिजीवियों द्वारा की जाती है। इसके विपरीत, ठीक उसी समय इनके द्वारा किये गये अपराधों के पीड़ितों के मानवाधिकारों और निर्दोष नागरिकों की रक्षा करने में अपना जीवन बलिदान करने वाले सुरक्षा बलों के मानवाधिकारों के प्रश्न पर वे चुप्पी साध जाते हैं।

अहमदाबाद बम धमाकों में शामिल अपराधियों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश आदि अनेक राज्यों के लोग शामिल हैं। आजमगढ़ के संजरपुर गाँव से गिरफ्तार आतंकवादियों के घरों पर सहानुभूति प्रकट करने के लिये पहुंचने वाले तमाम राजनेता और उनके दल तब इन्हें निर्दोष बताने की प्रतियोगिता कर रहे थे। न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद भी इन राजनेताओं की प्रतिक्रिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखता। चारा घोटाले के पांचवे और सबसे बड़े मामले में दोषी ठहराये जाने के बाद लालू के समर्थन में प्रियंका गाँधी की टिप्पणी राजनीत पर नहीं बल्कि मूल रूप से न्यायपालिका पर है।

इस परिस्थिति में परिषद की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। परिसरों में राष्ट्रीय सोच विकसित हो और उसे अभिव्यक्त करने में सामान्य विद्यार्थी का मनोबल बना रहे इसके लिये कोरोना के व्यतिक्रम के बाद पुनः खुल रहे परिसरों में अपनी सक्रियता को बढ़ाने की आवश्यकता है।

शुभकामना सहित,

आपका

संपादक

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