भारत की पुण्यभूमि पर 14 अप्रैल 1891 महु मध्यप्रदेश में जन्मे भीमराव राम जी सामाजिक कुरूतियो से जूझते हुए वो भीमराव राम जी से डॉ भीम राव राम जी अम्बेडकर बने, मैं उनके लम्बे संघर्ष पर चर्चा नही करूँगा उनके संघर्ष को हम सभी भलीभाँति जानते है। वैसे तो बाबासाहब ने सम्पूर्ण समाज के लिए काम किया लेकिन कुछ लोगों ने या यूं कहें पुरानी सरकारों ने उन्हें केवल दलित समाज का नेता ही माना, या ज्यादा से ज्यादा संविधान निर्माता के रूप में। उन्हें सदैव हिंदू विरोधी भी दिखाने का एक षड्यंत्र लम्बे समय से चलता रहा है वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अम्बेडकर के संबंधो को लेकर भी समाज में अनर्गल आलप होता ही रहता है। बाबा साहब अम्बेडकर और संघ के विचार कार्यपद्धति भिन्न थी अथवा उनके विचार आपस मे एक- दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। मैं मानता हूं पूज्ये बाबा साहब और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ही बात कहा रहे थे । दोनो के कार्य का अभिष्ट भी एक ही था। अगर मैं ये कह रहा हूँ तो मेरे अपने निजी अनुभव और भारतीय दर्शन के प्रति रुचि और संघ से बाल्यकाल से जुड़ा होना एक प्रमुख कारण हैं, अम्बेडकर ने अपने पूरे जीवन काल मे भारतीय दर्शन के विचार सामाजिक समरसता के लिए कार्य किया ये ही तत्व तो भारत के चिंतन के मूल मे समाहित हैं, बाबा साहब अम्बेडकर ने सम्पूर्ण जीवन इसी दर्शन को प्राप्त करने मे लगाया। इस प्रकार से भारत के दर्शन में ही समाज के समरस होने का विचार व्यक्त किया गया हैं। वही बात वर्तमान संघ प्रमुख मोहनराव जी भागवत ने अपने उदबोधन में कही जिस “समरसता तत्व” की बात उन्होंने कई बार की वह समरसता ही तो भारत का मौलिक चिंतन हैं वही तो हिन्दू दर्शन हैं । बाबा साहब अम्बेडकर और संघ ने भी इसी उद्देश्य को लेकर काम किया। डॉ अम्बेडकर ने भी समाज के विभाजन में ही भारत की अवनति को देखा था। समाज में व्याप्त असमानता के भाव का परिणाम है की भारत वर्षो से गुलाम बनता रहा, बाबा साहब और डॉ हेड्गेवार दोनों ने इस समस्या को समझा और इसके समाधान के लिए कार्य किया। हेडगेवार हिन्दू समाज के भीतर व्याप्त सामाजिक दोषों, खंडित एवं सामंती मानसिकता को सामाजिक एवं राष्ट्रीय अवनति का मूल कारण मानते हैं। इसी विचार को अम्बेडकर ने भी माना तभी तो वो जाति को राष्ट्र के विरूद्ध मानते हैं। डॉ हेडगेवार कहते हैं “ हिन्दूओं में सामाजिकता के भाव का अभाव है, इसी समाजिकता के अभाव ने एक रक्त, मास के बने शरीर को एक – दूसरे से भिन्न कर दिया”। इसीलिए संघ की शाखा पर आने वाले सभी स्वयंसेवक केवल हिन्दू हैं न कि किसी जाति अथवा वर्ण के हैं , सभी हिंदू होना ही उनकी अपनी एक सामूहिक पहचान हैं । हिन्दू भारत की एक राष्ट्रीय पहचान हैं, संघ इसको ही मानता हैं। डॉ हेडगेवार मानते हैं की हिन्दू भारत की राष्ट्रीय अस्मिता हैं। इसी प्रकार बाबा साहब ने भारतीयता को अपनी राष्ट्रीय पहचान माना हैं , जो अपनी हिन्दू मान्यताओं जो सनातन काल से भारत में चलायमान हैं उस पर ही आधारित है। अम्बेडकर की मांग वास्तव में भारतीय समाज के पुरातन मौलिक तत्त्वों को पुन: प्राण प्रतिष्ठा करना ही था। अम्बेडकर इसी विचार को लेकर तो आजीवन कार्य करते रहे, डॉ हेडगेवार ने भी सभी के कल्याण की कामना की, हिन्दू समाज का चिंतन और भारत का चिंतन सभी समरसता के विचार पर ही तो आधारित है। समाज मैं पैदा हुई असमानता के परिणाम स्वरूप भारत का विभिन्न जातियों में विभाजन हुआ जो आज , लगभग 6700 जातिया है ये हिंदू समाज इसी में विभाजित हैं इसी को एक भगवे ध्वज के नीचे लाने का काम संघ 1925 से करता आ रहा हैं। डॉ अंबेडकर और संघ के चिंतन मे बड़ी समानता दिख जाती हैं। संघ ने अपने प्रारम्भ से ही जन्म आधारित वर्ण एवं जाति व्यवस्था को नकारा है, साथ ही इसको कभी भी भारतीय दर्शन का मूल विचार नहीं माना। संघ ने अपने जन्म से ही समाज को समरस बनाने की बात की। 1925 मे डॉ हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का हेतु ( उद्देश्य ) हिन्दू समाज का संगठन करना है ऐसा बताते हैं। इस हिंदू समाज का संगठन होना क्यों ? ये प्रश्न भी अनायास ही मन में आ जाता हैं । डॉ हेडगेवार मानते हैं की वर्षों की विदेशी अक्रांताओ के द्वार हमारी भारत भूमि को अपने अधीन करने के मूल में समाज के आपस में विभाजित रहना ही प्रमुख कारण था, वीर सावरकर भी ये ही बात करते हैं। वही महाऋषि अरविंद भी कुछ ऐसी ही बात कहते हैं वे कहते हैं “जाति की संस्था ने अपने को हिंदुत्व की मूल प्रवृति के ही विपरीत बना लिया हैं कर्तव्य की भावना के स्थान पर श्रेष्ठता की भावना हावी हो गई है और इस परिवर्तन ने राष्ट्र को कमज़ोर किया हैं तथा हमें गिराकर अपनी दशा में ला दिया हैं।” संघ का विचार समाज में भारत के मूल विचार जो “एकात्म भाव” का विचार है इस भाव को भारत के मानस में पुनः जागृत करना है। ये ही हेतु तो डॉ अम्बेडकर का भी था क्या वे इससे भिन्न मत तो नहीं रखते थे, हेतु एक था पद्धति भिन्न हो सकती हैं । इसी लिए संघ की शाखा पर किसी भी प्रकार के भेद को अस्वीकारिय माना गया । शाखा में सभी स्वयंसेवक एक रस होकर देश और समाज के हित मे चिंतन करते हैं। इसीलिए संघ के शिविरो मे महात्मा गांधी ,अम्बेडकर और नेता जी सुभाष चंद्र बोस ऐसे तमाम लोग समय-समय पर जाते रहे हैं। 1938 मे डॉ अम्बेडकर पुना मे संघ के शिविर मे आए और उन्होने माहार स्वयंसेवक के साथ सम्मान और समानता का भाव देखकर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा की मैंने इस तरह से अश्प्र्श्यता समाप्त करने का कार्य पहले कभी नहीं देखा। डॉ अम्बेडकर एवं डॉ हेडगेवार के बीच तुलना करते हुए कुप्पा.सी. सुदर्शन ने लिखा हैं की “ डॉ अम्बेडकर हिंदू समाज की मानसिकता में जो क्रांति चाहते थे वही डॉ हेडगेवर की इच्छा थी , डॉ हेडगेवर ऊँच-नीच , छुआ-छूत आदि की भावनाओ से मुक्त जिस एकरस और संगठित समाज जीवन की रचना चाहते थे , वही डॉ अम्बेडकर का भी अभीष्ट था” ।संघ ने सदैव समरस समाज की बात की और समरसता के विचार को माना। संघ मानता है समरसता “ स्वतन्त्रता , समानता , बंधुत्व तीनों को व्यक्ति अपने आचरण में आत्मसात करे यही समरसता हैं। “ सामाजिक समरसता बाबा साहब अंबेडकर के विचारो का असल अर्थो मे अनुपालन करना हैं , अंबेडकर जी ने तीन मानव मूल्यो की बात की स्वतन्त्रता , समानता , बंधुत्व ये तीनों तत्व व्यक्ति विकास के लिए अनिवार्य हैं परंतु अंबेडकर बंधुताभाव को समाज में सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। जब व्यक्ति का व्यक्ति के साथ प्रेम हो उसके दुख मे वो दुखी हो और सुख मे खुद भी परम आनंद को महसूस करे ये ही बंधुत्व भाव हैं जिसे समाज में किसी कानून से नहीं लाया जा सकता,ये व्यक्ति के स्वयं के विचार एवं व्यवहार से ही आ सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 94 वर्षों से इस बंधुत्वभाव के जागरण के लिए कटिबद्ध होकर कार्य कर रहा हैं । वर्तमान संघचालक अपने भाषण में इसी बंधुभाव के निर्माण से समाज में एकात्मभाव पैदा होगा ऐसा होने से ही भारत एक दिन दुनिया का सिरमोर बनेगा ऐसा विचार व्यक्त करते हैं। सामाजिक समरसता ये आत्मीयता का भाव पैदा करने का ही काम करता हैं।अम्बेडकर,संघ और भारत का दर्शन ये सभी समरस भारत और समतामूलक समाज की बात कर हैं ।संघ अपने शुरुआती दौर से ही समाज के किसी भी असमानता का विरोध करता हैं , संघ सेवा भारती के माध्यम से समाज के गरीब दलित , दमित वर्ग के लिए तमाम प्रकार के 1,50000 सेवा प्रकल्प चलाता हैं, इसी प्रकार जनजातियों के लिए एकल विद्यालय हजारो की संख्या मे देश मे चलाए जा रहे हैं। संघ ने बाबा साहब अंबेडकर के मर्म को समझ और समाज मे एकात्म भाव लाने हेतु समाज मे संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से 1978 मे समरसता मंच का गठन किया और जो आज भी देश भर मे सक्रियता से काम कर रहा हैं। संघ की मुख्य मांग हैं “ एक मंदिर , एक कुआं , एक शमशान “ जिस विचार को देश भर मे फैलाने का कार्य लाखो संघ के कार्यकर्ता बड़ी तत्परता से कर रहे हैं। संघ अपने को राजनीति से सदैव दूर रखता हैं परंतु अपने वैचारिक संगठनो को सदेव ये आग्रह जरूर करता हैं की वो सामाजिक समरसता को अपने कार्य के मूल मे रखे। संघ का सदैव ही ये मानना रहा हैं की भारत राष्ट्र का विकास , उसका परम वैभव पर पहुचना बिना सम्पूर्ण समाज को साथ लिए नहीं किया जा सकता हैं। इसी लिए संघ ने खुले शब्दो मे आरक्षण का समर्थन किया। 2014 मे संघ के वर्तमान सरसंघचालक भागवत जी ने दिल्ली में डॉ विजय सोनकर शास्त्री द्वारा लिखित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम मे कहा “ आरक्षण 100 सालो तक अभी बना रहना चाहिए और आगे भी जरूरत हुई तो वो समाज ही तय करेगा जिसके लिए ये हैं” इससे पूर्व भी संघ समाज को सम्यक् बनाने हेतु विशेष अवसरों का समर्थन करता रहा । एक तरफ़ देश में वे लोग हैं जो किसी भी अनवांछित घटना पर राजनीति करते हैं वही संघ समाज को रचनात्मक कार्यों से जोड़ने की बात करता हैं ये सब भी सामाजिक संवाद के माध्यम से ही होना चाहिए । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो बाबा साहब अंबेडकर का सपना “भारत एक राष्ट्र ,समरस राष्ट्र बने इसी क्रम मे ही तो कार्य कर रहा हैं |
- लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।