संपादकीय
स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाते हुए भारत जिस तरह तिरंगामय हो गया वह देश के मूल चरित्र का प्रकटीकरण था। भारत ने अपनी राष्ट्र की पहचान को बनाये रखने के लिये हजार वर्षों से अधिक तक निरंतर आक्रमणों का सामना किया, यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों से चार सौ वर्षों से अधिक तक लोहा लिया और अंततः विजय प्राप्त की।
स्वाधीन भारत में दशकों तक राष्ट्रीयता और भारतीयता की बात करने वालों को वैचारिक रूप से पिछड़ा और भारतीय मूल्यों और संस्क्रति पर चोट करने वालों को प्रगतिशील कहने का चलन चला। लेकिन यह नकारात्मक विमर्श भारतीय मन-मानस के प्रतिकूल होने के कारण दशकों के प्रयास के बाद भी स्थापित न हो सका। इसके विपरीत जब भारत विरोध का अतिरेक संयम की सीमा पार कर गया तो भारत के जनसामान्य ने हुंकार भरी और ऐसी सभी शक्तियाँ न केवल राजनैतिक अपितु सामाजिक रूप से भी नेपथ्य में पहुंच गयीं। आज वे अपने भारत विरोधी विमर्श को क्षण-क्षण छीजते और अप्रासंगिक होते देखने के लिये अभिशप्त हैं।
एक जन, एक राष्ट्र की प्रेरणा से अनुप्राणित भारत का समाज और उसकी ऊर्जावान युवा पीढ़ी राष्ट्रीयता का यही संकल्प लेकर हर गाँव तिरंगा लेकर गयी। नगर हो या गाँव अरण्य हो या सीमान्त, पूरे देश में छाये तिरंगे स्वाधीनता दिवस को उत्सव बना रहे थे।
75 वर्ष पूर्व भारत से अलग होकर पड़ोसी बना पाकिस्तान प्राकृतिक आपदा से तो जूझ ही रहा है, संभवतः उसके पास ऐसा कोई कारण भी नहीं है कि वह इस अवसर को उत्सव की तरह मना सके। यह विडंबना ही है कि अंग्रेजों की कृपा से पाये देश को वह एक रखने में भी सफल नहीं हो सका। जब भारत स्वाधीनता की रजत जयंती मना रहा था तो उसकी सेनाएं ढ़ाका में भारत के सामने आत्मसमर्पण कर रही थीँ। स्वतंत्रता की स्वर्ण जयन्ती के समय वह करगिल में घुसपैठ की तैयारी में व्यस्त था। अमृत महोत्सव के समय वह प्रकृति के कोप से बचने की कोशिश कर रहा है और इसके वावजूद वह अर्शदीप को खालिस्तानी बताने जैसी ओछी हरकतों से दुनियाँ में हास्यास्पद स्थिति को प्राप्त हो रहा है।
वर्ष 2047 में अपने शताब्दी समारोह के समय तक पूरे किये जाने वाले महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को निर्धारित करने में जहआं भारत का नेतृत्व जुटा है और सभी भारतीय इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये कटिबद्ध हैं, वहीं इस बात की संभावना बेहद धूमिल लगती है कि पाकिस्तान अपना शताब्दी समारोह वर्तमान भू-क्षेत्र को बचाये हुए मना भी सकेगा।
कदम-कदम अपने शताब्दी लक्ष्यों की ओर बढ़ते भारत की इस विकास यात्रा में हम सभी अपना व्यक्तिगत और सांगठनिक योगदान सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयत्नशील रहेंगे यह विश्वास है।
भवदीय
संपादक