संपादकीय
लोकतंत्र, अर्थात संविधान का शासन। एक संहिता, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के नागरिकों के सामाजिक जीवन तथा व्यक्तिगत आचरण को नियंत्रित करती है, राष्ट्रीय आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करती है, दार्शनिक अधिष्ठान को प्रतिबिम्बित करती है।
स्वतंत्र भारत की संविधान रचना का कार्य 26 नवम्बर 1949 को पूरा हुआ। राष्ट्र ने यह संविधान स्वयं को आत्मार्पित किया। यह उसके विश्वासों का दर्पण था, दस्तावेज था। इसलिये स्वाभाविक ही भारतीयता को प्रतिबिम्बित करने वाले प्रतीकों का उपयोग इसमें किया गया। विभिन्न अध्यायों के प्रारंभ में एक-एक सांस्कृतिक प्रसंग को चित्रित किया गया। इसी श्रंखला में एक चित्र है भगवान राम, माँ जानकी और प्रभु राम के अनुज लक्ष्मण का, जो लंका विजय कर पुष्पक विमान में आरूढ़ होकर अयोध्या की ओर आ रहे हैं।
अयोध्या ने अपने युवराज के 14 वर्षों के वनवास के बाद लौटने पर हर्ष व्यक्त करने के लिये पूरे नगर को दीपमालिका से सजाया। प्रकाश का यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाने लगा और दीपावली के आयोजन की परम्परा ही बन गयी।
काल की गति विलक्षण है। कालान्तर में अयोध्या पर बारम्बार आक्रमण हुए। श्रीराम जन्मस्थान पर बार-बार मंदिर बना, बर्बर आक्रांताओं द्वारा बार-बार उसे ढ़हाया गया। गत 450 वर्षों में रामजन्मभूमि की रक्षा के लिये 62 युद्ध हुए, लाखों लोगों ने अपने इस मानबिन्दु की रक्षार्थ बलिदान दिये। स्वतंत्र भारत में भी बलिदान का पर्व आया और सैकड़ों कारसेवकों ने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया। यह उनके बलिदानों की ही फलश्रुति है कि श्रीरामजन्मभूमि पर शीघ्र ही एक भव्य मंदिर आकार लेने जा रहा है।
यह सुखद अवसर था जब इस वर्ष दीपावली के अवसर पर दीपों से सज्जित अयोध्या ने एकसाथ सर्वाधिक दीप जलाने का विश्व कीर्तिमान बनाते हुए लोकआस्था को नया आयाम दिया। उसकी आभा वैसे ही आलोकित हो रही थी जैसी कभी रामराज्य में रहा करती होगी।
अयोध्या का आलोक पूरे विश्व को जगमगा रहा है, यह एक अनोखी आत्मिक शांति से भर रहा है। स्मरण आता है 1998 में मुंबई में सम्पन्न राष्ट्रीय अधिवेशन में स्वीकृत स्वर्ण संकल्प का, जिसमें भारत को विश्वमालिका में यथायोग्य स्थान प्राप्ति हेतु प्रयास करने के लिये परिषद कार्यकर्ता संकल्पबद्ध हुए थे। 1949 में परिषद की स्थापना के समय राष्ट्र ने अपने संविधान में राम-जानकी को स्थान देकर देश का आध्यात्मिक संकल्प प्रकट किया था वही आज साकार होता दिख रहा है। इस संकल्प के साकार होने के मध्य है 75 वर्षों की सतत साधना जिसका साक्षी यह राष्ट्र भी है और अभाविप भी।
75 वर्षों की इस यात्रा के साथ ही शताब्दी के नये संकल्पों का मंथन देश भी कर रहा है और अभाविप भी। दीपावलि की दीप्ति हमारा पथ आलोकित करे और नये लक्ष्यों की ओर बढ़ते देश की इस यात्रा में हम सब अपना विनम्र योगदान दे सकें इसका सामर्थ्य प्रदान करे।
।।तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु।।
आपका
संपादक