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Home संपादकीय

छात्रशक्ति सितंबर 2023

अजीत कुमार सिंह by
September 21, 2023
in संपादकीय

सितंबर 2023

अदभुत्, अविश्वसनीय।  दुनिया सांस थाम कर बैठी थी। चंद्रयान ने चंद्रमा के धरातल को छुआ और इसरो के नियंत्रण कक्ष में भारतमाता की जय और वन्दे मातरम के नारे गूंज उठे। भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सुरक्षित रूप से चंद्रयान को उतार कर एक इतिहास रच दिया था।

इसके अगले सप्ताह ही सूर्य का अध्ययन करने के लिये आदित्य उपग्रह अपने गंतव्य के लिये रवाना हो गया। अनेक कक्षाओं को पार कर आदित्य चार माह में अपने गंतव्य तक पहुंचेगा। अपने वैज्ञानिकों के माध्यम से भारत ने अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन किया है। देश ने अपनी आंखों के सामने इतिहास घटित होते देखा है और जिसने इस रोमांच का साक्षात्कार किया है उसके लिये यह जीवन भर के लिये स्मृति पर अंकित हो गयी घटना है।

अपने ब्रह्मांड को जानने की जिज्ञासा धरती पर उत्पन्न प्रत्येक समाज में सदैव से रही है। भारत के मनीषियों ने इसका अध्ययन न केवल उनके विषय में जानने के उपक्रम के रूप में किया अपितु मानवजीवन, प्रकृति और अन्य ग्रहों पर पड़ने वाले सूक्ष्म प्रभावों का अध्ययन भी गहनता से किया। भारतीय ज्ञान परम्परा में खगोल विज्ञान और ज्योतिष आदि इसके प्रमाण हैं। सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाओं का विवरण और ग्रहों की स्थिति का सटीक वर्णन रामायण, महाभारत और परवर्ती साहित्य में प्रचुरता से मिलता है।

भारत में ज्ञान की परम्परा है जो निरंतर प्रवाहमान है। सहस्रों वर्षों की इस यात्रा में अनेक काल कठिनाई भरे रहे हैं, विशेष रूप से पिछली कुछ शताब्दियां, जब अपने अस्तित्व को बचाये रखने का संघर्ष ही महत्वपूर्ण हो गया था, तब भी समाज ने इस ज्ञान परंपरा को संजोये रखा। यह इसी का परिणाम है कि आज चंद्र और सूर्य, दोनों के अभियान से जुड़े वैज्ञानिकों में एक बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है जो कथित पिछड़े इलाकों से, संसाधनों के अभाव से जूझते हुए, सरकारी विद्यालयों अथवा सरस्वती शिशु मंदिर जैसे मातृभाषा में शिक्षा देने वाले विद्यालयों से निकलकर इस स्थान तक पहुंचे हैं।

भारत की इस ज्ञान परम्परा को कोसने, उसे पिछड़ा बताने, अंग्रेजी भाषा ज्ञान के अभाव में आधुनिक शोध प्रवृत्तियों से अपरिचित होने का आरोप मढ़ने वाले लोगों के लिये यह एक सबक है कि यदि भाषा के बंधन न थोपे जायें और प्रतिभा को निखारने का अनुकूल अवसर प्राप्त हो तो भारतीय मेधा अपने आप को साबित करने में सक्षम है। यही कारण है कि परिस्थिति से जूझ कर जो लोग इन गांवों-कस्बों से निकल कर इसरो तक पहुंचे हैं उन्होंने आज भारत को यह गौरवपूर्ण इतिहास को बनते देखने का अवसर दिया है।

यह प्रसन्नता का विषय है कि नयी शिक्षा नीति में इस बात के लिये पर्याप्त अवसर है कि सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले बाल-तरुण अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर समाजजीवन के विविध आयामों में अपने लिये अवसर खोज सकते हैं। भाषा अब उनके लिये बंधन नहीं बल्कि माध्यम के रूप में सहयोगी भूमिका में है। यह विश्वास दिलाती है कि आने वाले समय में हम प्रतिभाओं को और आगे बढ़ते हुए और राष्ट्र पुनर्निर्माण में अपना योगदान देते हुए देखेंगे।

भारतीय भाषाओं के महत्व को रेखांकित करने और अंग्रेजी के व्यामोह से उबरने के प्रतीक के रूप में 14 सितम्बर को मनाये जाने वाले हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित,

आपका

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