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छात्रशक्ति नवंबर 2023

धुंआ, धुंध और धूल ने मिल कर एक बार फिर दिल्ली को दहलाना शुरू कर दिया है। इस बार यह स्थिति अन्य महानगरों में भी देखी जा रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विद्यालय बंद कर दिया गये हैं, जनजीवन ठहर सा गया है। हर बार की तरह राजनीतिक बयानबाजी जारी है। दिल्ली और पंजाब की सरकारें एक ओर अपनी पीठ ठोंक रही हैं, वहीं निकटवर्ती राज्यों हरियाणा व उत्तर प्रदेश को इस परिस्थिति के लिये दोषी ठहरा रही हैं।

न्यायपालिका इसे लेकर क्रोधित मुद्रा में है और सभी सरकारों को इसके लिए समय रहते तैयारी न करने के लिए आड़े हाथों ले रही है। सबकी सहमति इस बात पर है कि दीपावली पर होने वाली आतिशबाजी को रोके बिना काम नहीं चलेगा। पराली जलाने पर रोक पर भी सब सहमत हैं, पर किसान क्या करे? ताकि पराली न जलानी पड़े और उसका खेत खाली हो जाए, इसका उत्तर किसी के पास नहीं। जो सुझाव दिए जा रहे हैं वह भी सैद्धांतिक रूप से ठीक हैं, व्यावहारिक रूप से जटिल। इसके समाधान की पहल कही से होती नहीं दिखती।

वस्तुतः यह स्थिति इस बात की द्योतक है कि स्वतंत्रता के दशकों बाद भी हमने भारत के भूगोल, उसके मानसून चक्र, और यहां के संसाधनों की उपलब्धता तथा उनके संयमित उपभोग  की जो नितांत भारतीय समझ है, उसको अपनाने की सिद्धता प्रदर्शित नहीं की है। हजारों वर्षों से सुजलाम्  सुफलाम् भारत भूमि पर कृषि भी होती रही है और औद्योगिक गतिविधियां भी, किन्तु इस प्रकार की मानवनिर्मित आपदाएं उपस्थित नहीं हुईं। विकास के पश्चिमी मॉडल को अपनाए हुए अभी कुछ ही दशक हुए हैं और हमारी धरती बंजर हो चुकी है और हवा जहरीली। यह इस विकास का अंधेरा पक्ष है जिसके प्रति जितनी जल्दी चेत जाएं उतना अच्छा हो।

यह स्थिति किसानों को जेल भेजने, भवन निर्माण पर रोक लगाने, वाहनों के प्रवेश को सीमित करने जैसे राजनीतिक टोटकों से सुधरने वाली नहीं है। इसके लिये विकास की भारतीय अवधारणा को सामने रख कर मानव श्रम उन्मुख, विकेन्द्रीकृत, पर्यावरण हितैषी विकास योजना पर काम करना होगा। यह चुनौतियां आज उत्पन्न नहीं हुई हैं। दशकों के अनियोजित, अनियन्त्रित विकास का यह प्रतिफल है। इन्हीं चिन्ताओं में से विकासार्थ विद्यार्थी का जन्म हुआ था। सैकड़ों अन्य़ सामाजिक प्रयास भी वास्तव में इस परिस्थिति को आने से रोक नहीं सके, किन्तु इसकी विकराल गति को धीमा करने में अवश्य सफल रहे।

कुछ वर्षों पहले तक इन संगठनों और व्यक्तियों द्वारा ऐसी संभावनाओं के प्रति सचेत किए जाने वाले प्रयासों का उपहास होता था, किन्तु आज वह सामने है। यह समय राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और टीका- टिप्पणी से परे साथ मिल कर इसका सामना करने का है। परिवर्तन के वाहक छात्र-युवा इसे चुनौती के रूप में स्वीकार कर लें, तो कुछ भी असंभव नहीं।

नवम्बर मास अनेक ऐसे महापुरुषों की स्मृतियों को संजोये है जिन्होंने भारत को उसके स्वत्व का स्मरण कराया और अपने संकल्प के बल पर परिवर्तन की गाथा लिखी। अपने सभी ज्ञात-अज्ञात  महान पूर्वजों के कर्तत्व का स्मरण कर हम अपने स्वत्व को पहचानें और भविष्य का भारत गढ़ने में अपना योगदान करें।

परिषद की स्थापना के अमृतवर्ष में राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन राजधानी दिल्ली में होने जा रहा है। आपके स्वागत के लिये व्यवस्था में महीनों से परिश्रमरत सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ ही छात्रशक्ति की टोली आपके स्वागत को तत्पर है।

देवोत्थान और प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,

आपका संपादक

 

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