अभाविप का राष्ट्रीय अधिवेशन अर्थात लघु भारत का दर्शन। भारत की संस्कृति में रचे-पगे विविध भाषा – विविध वेश वाले युवाओं का वन्देमातरम् की लय पर झूमना आह्लादित कर जाता है।
स्थापना के अमृत महोत्सवी वर्ष में राष्ट्रीय अधिवेशन के आयोजन का अवसर मिला है देश की राजधानी दिल्ली को। इससे पहले भी अनेक बार यह सुयोग बना है, जब दिल्ली को राष्ट्रीय अधिवेशन की अगवानी करने का अवसर मिला। 1985 में अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष के अवसर पर भी दिल्ली में राजघाट पर राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन हुआ था, जो तब तक का सबसे बड़ा अधिवेशन था जिसमें लगभग 11 हजार कार्यकर्ता उपस्थित थे। इससे पूर्व अभाविप की स्थापना एवं पंजीयन भी दिल्ली में ही हुआ था।पंजीयन से समय उपस्थित 16 कार्यकर्ताओं से प्रारंभ यात्रा ने आज विश्व के सबसे बड़े छात्र संगठन का रूप धारण कर लिया है। परिषद की विकास यात्रा स्वतंत्र भारत की यात्रा के साथ चली है। यह ऐतिहासिक यात्रा है। ऐतिहासिक इस संदर्भ में कि किसी भी संस्थागत संरचना को सुचारु रूप से इतने लंबे समय तक चलाए रखना सहज नहीं है। विशेष रूप से तब, जब हर दो-तीन वर्षों में कार्यकर्ताओं की पूरी पीढ़ी बदल जाती हो। इसलिए प्रवाहमान छात्रों के स्थाई संगठन के रूप में परिषद का निरंतर बढ़ते जाना ऐतिहासिक है और अनूठा भी।
इस यात्रा के मध्य अभाविप ने शिक्षा जगत को उल्लेखनीय योगदान दिया है। चिंतन के स्तर पर भी और व्यावहारिक धरातल पर भी। सबसे महत्वपूर्ण अवदान है छात्र संगठन का दर्शन विकसित करना और उसे विचार के रूप में स्थापित करने का। छात्रशक्ति को राष्ट्रशक्ति के रूप में निरूपित करने, आज के छात्र को आज का नागरिक कह कर संबोधित करने, उसे वर्तमान के सरोकारों से जोड़ने तथा रचनात्मक दृष्टिकोण के साथ शिक्षा परिवार की अनूठी संकल्पना प्रस्तुत करने का काम परिषद ने किया है। संगठन के कार्य में संख्यात्मक के साथ गुणात्मक वृद्धि भी हुई है। तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में परिषद ने अपना व्याप बनाया है। केन्द्रीय विश्वविद्यालय हों या निजी विश्वविद्यालय अथवा राष्ट्रीय महत्व के संस्थान, सभी जगह परिषद की इकाइयां सक्रिय हैं। विकासार्थ विद्यार्थी, राष्ट्रीय कलामंच, थिंक इंडिया आदि आयामों के माध्यम से संगठन कार्य को सर्वस्पर्शी और सर्वव्यापी बनाने की संकल्पना की सभी दिशाओं में प्रगति हुई है। छात्राओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों के विद्यार्थियों के बीच संगठन पहुंचा है। देश के सुदूर भागों, लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल, मणिपुर नागालैंड के साथ ही दमन-दीव, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे विषम स्थानों पर परिषद का ध्वज थामे कार्यकर्ता सन्नद्ध हैं।
अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में राजधानी दिल्ली के वर्तमान और पूर्व कार्यकर्ता, देश भर के प्रतिनिधियों के स्वागत को उत्सुक हैं।
शुभकामना सहित,
आपका
संपादक