यह सुखद संयोग है कि अभाविप जब अपनी स्थापना का अमृत महोत्सव मना रही है, देश की दो चिर प्रतीक्षित मांगें पूर्ण हो रही हैं। वह हैं श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण और जम्मू-कश्मीर में अलगाव के स्रोत अनुच्छेद-370 के संशोधन पर सर्वोच्च न्यायालय की संस्तुति।
श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर का 1528 ई. में विध्वंस कर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर की सामग्री का ही उपयोग कर एक विवादित ढांचे का निर्माण कर दिया था। इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार यह मस्जिद होने की योग्यता नहीं रखती थी। इसलिए वहां कभी भी नमाज नहीं पढ़ी गयी। इससे पूर्व मंदिर की रक्षा के लिए संघर्ष करते हुए 1 लाख 74 हजार सैनिकों तथा नागरिकों ने वीरगति प्राप्त की। भारतीय समाज के लिये यह मर्म पर प्रहार था।
बलिदानों की यह शृंखला यहीं नहीं रुकी। इसके प्रतिकार के लिए 1528 से 1949 तक की कालावधि में जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिये 76 बार संघर्ष हुए जिसमें लाखों रामभक्तों ने ‘रामकाज’ के लिए अपना जीवन उत्सर्ग किया। 22 दिसम्बर 1949 से वहां अखण्ड कीर्तन चल रहा था, जो आज भी जारी है। 6 दिसम्बर 1992 को आक्रोशित कारसेवकों की भीड़ ने इस विवादित ढ़ांचे को ढ़हा कर एक अस्थायी मंदिर बना दिया। यह वाद न्यायालय तक पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीरामजन्मभूमि न्यास के दावे को सही पाया तथा उक्त स्थान को न्यास को सौंप देने तथा शासन को मस्जिद के निर्माण के लिये वैकल्पिक स्थान देने का आदेश दिया। समूचे विश्व में बसे श्रीराम भक्तों के सहयोग से जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ, जिसका लोकार्पण इस माह 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया जाएगा।
इसी प्रकार अनुच्छेद-370 भी भारतीय संविधान के एक अस्थायी प्रावधान से अधिक कुछ न था किन्तु राजनीतिक दांव-पेचों के चलते यह अलगाव का पर्याय बन गया था। शत्रु देशों और अन्य वैश्विक शक्तियों के हस्तक्षेप के कारण अलगाव आतंक तक पहुंचा और 1990 में लाखों हिन्दुओं को कश्मीर से विस्थापन की अकथनीय पीड़ा भोगनी पड़ी। विस्थापन जम्मू में भी हुआ जहां उन्हें अपने घर-आंगन छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर रहने के लिये विवश होना पड़ा। आतंकवाद के इस दौर में बड़ी संख्या में सैनिक एवं अर्धसैनिक बलों के जवान व निर्दोष नागरिकों को अपना जीवन खोना पड़ा।
5 एवं 6 अगस्त 2019 को भारत की संसद ने एक ऐतिहासिक फैसले में विवाद की जड़ अनुच्छेद-370 में संशोधन कर भारतीय संविधान को समग्रता में लागू कर दिया। इस निर्णय के विरुद्ध अनेक व्यक्ति अथवा समूहों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल की जिन पर विचार के लिये पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया गया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित पीठ ने अपने निर्णय में विधेयकों को संविधान की कसौटी पर ठीक पाया। फलस्वरूप राज्य की शेष देश के साथ संवैधानिक एकात्मता की पुष्टि हो गई वहीं सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक एकात्मता का मार्ग प्रशस्त हो गया।
अनुच्छेद-370 का संशोधन जहां राष्ट्रीय एकात्मता का प्रश्न था वहीं श्रीरामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने दोनों ही मुद्दों के समर्थन में अपना संकल्प व्यक्त किया और सक्रिय सहभाग किया। आज जब यह संकल्प फलीभूत हो रहे हैं तो परिषद का प्रत्येक पूर्व एवं वर्तमान कार्यकर्ता कृतार्थ अनुभव कर रहा है। निरन्तर वर्धमान रहते हुए संगठन के अमृत महोत्सव के अवसर पर यह दोहरी उपलब्धि उल्लास का अवसर है। 22 जनवरी को देश भर में होने वाले दीपोत्सव में भाग लेकर परिषद कार्यकर्ता भी अपना उल्लास प्रकट करेंगे।
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