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Home विविधा

युवाओं को राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का अमृत मन्त्र देने वाले स्वामी विवेकानंद जी

अजीत कुमार सिंह by विशाल रांडवा
January 14, 2024
in विविधा
भारत के पुनरुत्थान में वैश्विक शांति और विकास की कुंजी को देखते थे स्वामी विवेकानंद जी

स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के आदर्श हैं, उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनकी जयंती को युवा दिवस के रूप में मनायी जाती है। स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा 12 जनवरी 1984 को की गई थी।  11 सिंतबर 1893 को विश्व धर्म संसद, शिकागों में उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण से भारत की पहचान को विश्व में स्थापित किया था। स्वामी विवेकानंद को यूं ही युवाओं का आदर्श नहीं कहा जाता है। स्वामी जी के जीवन चरित्र के बारे में जब हम अध्ययन करते हैं तो पाते हैं उनका पूरा जीवन ही राष्ट्र उत्थान के लिए समर्पित था और वे परिवर्तन का माध्यम युवा को मानते थे। उनका मानना था कि युवा वर्ग परिवर्तन के वाहक होते हैं। स्वामी जी ने भारत और भारतीय प्रतिमानों को पूरे विश्व तक पहुंचाने का काम किया था। अखिल विश्व में उन्होंने अपनी प्रज्ञा, बुद्धि, मेधा के माध्यम से सनातन परम्परा का परचम विश्व में लहराने के साथ ही साथ भारत को भी वह गौरव पूर्ण स्थान दिलाया था, जिसका भारत निश्चित रूप से अधिकारी था। आज भारत ही नहीं विश्व भी स्वामी जी की जीवनी और उनके जीवन के विविध प्रसंगों को पढ़कर और चलचित्रों को देखकर अपने जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहा है।

जब हम स्वामी जी की बात करते हैं और उसमें शिकागो धर्म सम्मेलन की बात न हो तो निश्चित ही हमारी बात अधूरी सी प्रतीत होगी। खेतड़ी के राजा अजित सिंह की मदद से स्वामी विवेकानंद जी शिकागो जाते  हैं और वहां आयोजित धर्म संसद में जिस प्रकार अपने भाषण के माध्यम से सनातन परम्पराओं जयघोष करते हैं, उसे देखकर संसद में बैठे सभी मत, पंथ, संप्रदाय के लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं।  स्वामी जी अपने संबोधन की शुरुआत अमेरिका के बहनों और भाईयों से करते हैं, जिसे सुनकर पूरा सभागार मन्त्र मुग्ध हो जाता हैं और तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठता है। स्वामी जी पूरी धर्म संसद में जिस प्रकार से वह अपना विषय रखते हैं। उस विषय प्रकटीकरण के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती हैं कि यदि प्रतिभाओं को उचित अवसर मिले तो निश्चित रूप से वह इतिहास रचेगी। हम बात जब प्रतिभाओं की करते हैं तो उसके पीछे के संघर्षों की बात होना भी लाजमी हो जाती है। स्वामी जी ऐसे ही संघर्षो की जीवंतमूर्ति थे। हम सभी ने इन पंक्तियों को जरुर सुना या पढ़ा होगा संघर्षो के साये में असली आजादी पलती हैं, इतिहास उधर मुड जाता हैं जिस ओर जवानी चलती हैं और उस दौर में जवानी विवेकानंद के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही होती हैं। उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का आशीर्वाद और मां शारदे की कृपा उनके सिर पर थी। एक बार रामकृष्ण परमहंस कहते है मैंने ईश्वर को देखा हैं। उस दौर का नरेंद्र पूछता हैं क्या आपने इन्ही आँखों से देखा अगर जिस ईश्वर को आपने देखा वह कैसा दिखता हैं? नरेंद्र प्रश्न पर प्रश्न किये जा रहे थे तब रामकृष्ण परमहंस उन्हें उस अवस्था के दर्शन कराते है और उस दर्शन के बाद नरेंद्र, सन्यास धारण कर विविदिशानंद बन जाते हैं।

विविदिशानंद से विवेकानंद तक की जो यात्रा हैं वह बहुत ही अद्भुत यात्रा हैं और उस दौरान के सैकडों जीवन प्रसंग है जो अनेक पुस्तकों में दर्ज है, जिन्हें पढ़कर भारत का युवा अपने आप को इस भारत भूमि का वासी होने पर गौरवशाली महसूस कर सकता है। स्वामी जी से जुड़ा एक प्रसंग है जिससे भारत आत्मनिर्भरता की ओर प्रवेश करता है। बात है सन 1893 की जब विवेकानंद अपनी शिकागो यात्रा एक जहाज में कर रहे थे तब उनकी मुलाकात जमशेद जी टाटा से होती है। 30 साल के विवेकानंद और 54 साल के जमशेद जी टाटा ने करीब 20 दिन का सफर साथ में गुजरा था। इस यात्रा के दौरान जमशेद जी ने विवेकानंद को बताया की वो भारत में स्टील इंडस्ट्री लाना चाहते हैं विवेकानन्द ने कहा आप इसमें पैसा तो कमा लेंगे लेकिन इसमें देश का भला नहीं होगा। विवेकांनंद ने उन्हें सुझाव दिया की भारत में उत्पादन की तकनीकी आना चाहिए ताकि भारत दूसरों पर निर्भर न रहे इस बात का उल्लेख टाटा इंडस्ट्री की वेबसाइड पर भी किया गया है। उस दौरान देश में एक शोध संस्थान खोलने को लेकर भी चर्चा हुई थी। जो आगे चलकर 1909 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के रूप में अस्तित्व में आया। जो आने वाले सालों में भारत का एक प्रमुख शिक्षा संस्थान बना लेकिन उस समय तक दोनों महापुरुष ब्रह्मलीन हो चुके थे।

आज के युवाओं को जिस तत्व की सबसे अधिक आवश्यकता हैं वह तत्व हैं साहस। साहस के विषय में हम बचपन से ही ईश्वर से प्रार्थना करते आये हैं साहस शील ह्रदय में भर दे, जीवन त्याग – तपोमय कर दे। साहस, विवेकानंद के जीवन आचरण में समाहित था, यही सन्देश विवेकानंद पूरे विश्व के युवाओं को देना चाहते थे। जीवन में भले कितनी भी कठिनाईयां आये लेकिन उन से भागिए मत उनका सामना करिए। वर्तमान में स्वामी विवेकानंद जी के विचारों को आत्मसात कर और उनके विचारों को युवाओं तक पहुंचाने के लिए देश में विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन सन 1949 से काम कर रहा हैं जो अपना आदर्श स्वामी विवेकानंद को मानता है, वह संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद है। जो अपने स्थापना वर्ष से आज तक ज्ञान- शील-एकता के साथ स्वामी विवेकानंद के विचारों को विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के छात्र- छात्राओं तक पहुंचाने का कार्य करते आ रहा है। विद्यार्थी परिषद ने सन 1971 के अपने अधिवेशन में यह स्पष्ट किया कि छात्र कल का नहीं अपितु आज का नागरिक है। वह केवल शैक्षिक जगत का घटक नहीं अपितु एक सामान्य नागरिक के नाते आज का नागरिक है। विद्यार्थी परिषद ने अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से सभी को आह्वान किया कि छात्रशक्ति को उपद्रवी शक्ति न माने अपितु यह राष्ट्रशक्ति है, जिसे विवेकानंद भी हमेशा कहा करते थे। छात्रों की आवाज को दबाने की जगह उसे सम्मानपूर्वक स्थान देने की आवश्यकता है। जिससे की युवा छात्र भारत के नवनिर्माण व उसके पुनरुत्थान में अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर दुनिया में भारत को गौरवान्वित करे। जिससे कि भारत के पुनः विश्व गुरु बनने के संकल्प को हम अपनी जीवंत आंखों से देख सके। स्वामी जी ने जो भविष्यवाणी की थी अब सिर्फ उसका सत्य सिद्ध होना शेष हैं क्योंकि वर्तमान भारत उस दिशा की ओर तेजी से आगे बढ़ता जा रहा हैं।

(लेखक डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर (म.प्र.) के शोध छोत्र हैं एवं यह उनके स्वयं के विचार हैं।)

 

 

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