दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया में BA(Hons) सोशल वर्क के सेमेस्टर 1 की परीक्षा में पूछे गए विवादित प्रश्न पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) कहा है कि दिनांक 22 दिसंबर 2025 को समाज कार्य विभाग के बी.ए. (विशेष) प्रथम सेमेस्टर के “Social Problems in India” विषय की परीक्षा में “भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विरुद्ध अत्याचारों पर उदाहरण सहित चर्चा” जैसा प्रश्न सम्मिलित किया जाना अकादमिक संतुलन, पाठ्यक्रम की भावना और भारतीय समाज की समावेशी प्रकृति के विपरीत है।
यह प्रश्न न केवल समाज को एकपक्षीय दृष्टि से प्रस्तुत करता है, बल्कि छात्रों के मन में पूर्वाग्रह, अविश्वास और वैचारिक ध्रुवीकरण उत्पन्न करने की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा देता है। सामाजिक कार्य जैसे विषय का उद्देश्य समाज को विभाजित करना नहीं, बल्कि उसकी जटिलताओं को समझते हुए सामाजिक समरसता और सशक्तिकरण की दिशा में चिंतन विकसित करना होता है।
अभाविप का मानना है कि प्रश्न में प्रयुक्त शब्दावली अपने आप में एक निश्चित निष्कर्ष को थोपने वाली है। “अत्याचार” जैसे शब्द समाज के व्यापक स्वरूप को संकुचित करके प्रस्तुत करते हैं और छात्रों को एक पूर्वनिर्धारित दृष्टिकोण की ओर ले जाने का कार्य करते हैं। यह अकादमिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि वैचारिक दिशा-निर्देशन का प्रयास प्रतीत होता है।
इसी प्रकार, केवल मुस्लिम अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखकर प्रश्न तैयार किया जाना भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। भारत एक बहुपांथिक, और बहु-अल्पसंख्यक समाज है, जहाँ सिख, जैन, पारसी, बौद्ध सहित अनेक समुदायों ने राष्ट्र के निर्माण में समान सहभागिता निभाई है। ऐसे में समाज की समग्र संरचना को छोड़कर किसी एक समुदाय को विशेष रूप से चयनित करना सामाजिक यथार्थ का अपूर्ण और असंतुलित चित्रण है। आज जब भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदू समाज के विरुद्ध जघन्य हिंसा, आगजनी, अमानवीय कृत्यों और हत्याओं की घटनाएँ सामने आ रही हैं, तब भारतीय समाज को एकतरफा रूप से दोषी ठहराने वाले विमर्श को बढ़ावा देना दुर्भावनापूर्ण और भ्रामक है। भारतीय समाज का इतिहास संवाद, सहिष्णुता और आंतरिक सुधार की परंपरा से निर्मित है, जिसे किसी एक वैचारिक दृष्टि से देखना भारत की अस्मिता के साथ अन्याय है।
अभाविप का मानना है कि देश में सक्रिय वामपंथी एवं विभाजनकारी विचारधाराएँ लंबे समय से शैक्षणिक संस्थानों को माध्यम बनाकर भारतीय समाज की सह-अस्तित्व, पारस्परिक विश्वास और सांस्कृतिक एकता को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं। इस प्रकार के प्रश्न उसी प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिनका उद्देश्य समाज को जोड़ना नहीं, बल्कि उसे संदेह और टकराव की दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करना है।
अतः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय प्रशासन से यह अपेक्षा करती है कि इस पूरे प्रकरण की गंभीर, निष्पक्ष और अकादमिक समीक्षा तत्काल कराई जाए। साथ ही परीक्षा प्रश्नपत्रों के निर्माण और अनुमोदन की प्रक्रिया में स्पष्ट दिशानिर्देश और उत्तरदायित्व तय किए जाएँ और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि अकादमिक मंचों का उपयोग समाज में आक्रोश, अविश्वास और वैचारिक अस्थिरता फैलाने के लिए न किया जाए।
अभाविप दिल्ली प्रदेश मंत्री सार्थक शर्मा ने कहा कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के परीक्षा प्रश्नपत्र में जिस प्रकार समाज को एकतरफा दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, वह केवल अकादमिक चूक नहीं, बल्कि सुनियोजित वैचारिक असंतुलन का परिणाम है।वामपंथी सोच से प्रेरित विभाजनकारी शक्तियाँ लंबे समय से शिक्षा संस्थानों को माध्यम बनाकर समाज को बाँटने, अविश्वास पैदा करने और अराजकता फैलाने का कार्य कर रही हैं। अभाविप यह स्पष्ट करती है कि शिक्षा का उद्देश्य समाज को विभाजित करना नहीं, बल्कि उसे समझना, सशक्त करना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना होना चाहिए। इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष समीक्षा कर ऐसे प्रयासों पर सख्त रोक लगाई जानी अत्यंत आवश्यक है।
