Friday, May 9, 2025
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
No Result
View All Result
Home लेख

सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक बिंदु राजेन्द्र बाबू, जिन्होंने एक रूपये देकर अपने पोती को राष्ट्रपति भवन से भेज दिया था

अजीत कुमार सिंह by अजीत कुमार सिंह
December 3, 2020
in लेख
सरलता, सहजता और सौम्यता की मूर्ति डा.राजेंद्र बाबू

भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर विशेष

मेधा के प्रतीक बिंदु यानी राजेन्द्र बाबू के बारे में यूं तो कई कहानियां प्रचलित है उसमें सबसे ज्यादा चर्चा उनकी सादगी पूर्ण जीवन का है। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को अपने जीवन में बचपन से आत्मसात करने वाले राजेन बाबू का जन्म बिहार के जीरादेई नामक गांव में तीन दिसंबर 1884 को श्री महादेव सहाय के घर हुआ। भले ही वो देश के प्रथम राष्ट्रपति बन गये थे लेकिन उनके जीवन में गांव के मिट्टी की सौंधी महक हमेशा महसूस की गई। राष्ट्रपति भवन में रहते हुए राजेन बाबू ने अपनी जिंदगी ऐसी रखी कि कोई गांव का समान्य चरवाहा को भी वे गले लगा सके।

राजेन्द्र प्रसाद  जी गुजर जाने के इतने साल बाद भी गांव के बड़े – बुजुर्ग अपने बच्चों को यह बताते हैं कि पढ़ो तो राजेन्द्र प्रसाद की तरह। भले ही राजेन्द्र प्रसाद की तनख्वाह दस हजार थी लेकिन आधी तनख्वाह तो सरकार के खाते में छोड़ देते थे। वहीं उनके घर वाले बताते हैं कि राजेन्द्र प्रसाद अपनी तनख्वाह की एक चौथाई ही लेते थे।  उन दिनों घर में अगर किसी बेटी की शादी होती थी तो प्रथा के मुताबिक उपहार स्वरूप उन्हें साड़ी दी जाती थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति को यह मंजूर नहीं था कि बेटियों को खरीदा हुआ साड़ी भेंट किया जाय, चूंकि खरीदी हुई साड़ी मंहगी हुआ करती थी। इसलिए वे खुद बुनते थे और अपने से बुनी हुई हुई साड़ी को ससुराल जाती बेटियों को दिया करते थे।

एक बार की बात है उनकी पोती राष्ट्रपति भवन आई हुई थी। उनकी पोती जब राष्ट्रपति भवन से विदा हो रही थी राजेन्द्र बाबू ने उसे एक रुपया दिया। उनकी पत्नी ने जब कहा आप राष्ट्रपति हो और अपनी पोती को एक रुपया….पत्नी के इस बात पर वे मुस्कुराते हुए बोले इस देश के सभी बच्चे मेरे अपने हैं अपनी पूरी तनख्वाह बांट देने पर भी सभी बच्चों को एक रुपया नहीं मिल पायेगा। यही कारण है कि जब उनके पोते – पोतियां उनसे मिलने आते थे तो उनकी पत्नी बताती थीं कि ये तुम्हारे “दादा जी हैं, ना कि देश के राष्ट्रपति”। ऐसा कोई भी प्रसंग नहीं आता है जिसमें उनके या उनके परिवार के द्वारा सार्वजनिक जीवन में किसी सरकारी सुविधा का नाजायज फायदा उठाया गया हो।

जब परीक्षक ने राजेन्द्र बाबू के बारे में कहा ‘द एक्जामिनी इज बेटर दैन एक्जामिनर’

बिहार – झारखंड समेत देश का शायद ही कोई विद्यार्थी हो जिन्होंने देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू की मेधा की कहानी नहीं सुनी हो। जानकार बताते हैं कि राजेन्द्र प्रसाद की मेधा के बारे में परीक्षक ने लिखा था कि – द एक्जामिनी इज बेटर दैन एक्जामिनर (Examinee is better than examiner) यानी परीक्षार्थी, परीक्षक से ज्यादा अच्छा है…यह तमगा शायद ही किसी के जीवन में लगा हो। राजेन्द्र प्रसाद पढ़ाई से लेकर वकालती तक हमेशा प्रथम श्रेणी की पंक्ति में रहे। उनका जीवन का महिमामंडन केवल मेधावी छात्र या वकील के रूप में करना भर नहीं है। कहा जाता है जब वे वकालती करते थे, जिरह के दौरान जब सामने वाला वकील नजीर पेश करने में नाकाम रहते थे तो न्यायाधीश की कुर्सी से कहा जाता था, राजेन्द्र प्रसाद जी ! अब आप ही इनकी तरफ से कोई नजीर पेश कीजिए ! बाद में महात्मा गांधी जी के आह्वान पर अपने चमकेते वकालती पेशे को छोड़कर स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में जुट गये और आजीवन देश की सेवा में लगे रहे।

सरलता और सहजता के प्रतिमूर्ति राजेन्द्र बाबू ने जब राष्ट्रपति भवन के सफाई कर्मी से मांगी माफी

सोचिये वह पल कैसा रहा होगा जब एक राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन में काम करने वाले सफाई कर्मी से माफी मांगी होगी, लेकिन यह सच है। एक बार की बात है राष्ट्रपति भवन में काम करने वाली ‘तुलसी’ के हाथ से सफाई के दौरान के कीमती कलम छूट गया और स्याही चारो ओर फैल गया। यह कलम हाथी के दांत से बना हुआ था, जिसे किसी विदेशी मेहमान ने भारत के राष्ट्रपति को उपहार दिया था। राजेन्द्र बाबू ने इस घटना को लेकर तुलसी को फटकार लगाई। सरलता और सहजता के प्रतिमूर्ति राजेन्द्र बाबू को बाद में अहसास हुआ कि तुलसी को नहीं डांटना चाहिए था, फौरन उन्होंने तुलसी को बुलवाया। राजेन्द्र प्रसाद के बुलावे पर तुलसी थरथर कांपने लगी, डर से उसके माथे पर पसीना आ गया। जब तुलसी उनके पास हाजिर हुई तो राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने विनम्रता पूर्वक अपनी गलती को मानते हुए कहा तुलसी मुझसे भूल हो गई। मुझे माफ करना। आज के दौर में जहां एक मुखिया भी अकड़ से बात करता हैं वैसे में राजेन्द्र प्रसाद का जीवन अनुकरणीय है।

सरकारी फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ थे राजेन्द्र बाबू

आज की राजनीति में जहां ग्लेमर हावी है। मामूली सा पार्टी का जिलाध्यक्ष भी अपने शानौ – शौकत में कमी नहीं रखते। विधायक का पूरा परिवार ही विधायकी का रौब छाड़ते दिखते हैं वैसे में राजेन्द्र प्रसाद जी की जीवन शैली और अधिक प्रासंगिक हो जाती है। ये अलग बात है पहले भी हुक्मरान के कपड़े विदेश से धुलवाकर मंगवाए जाते थे और आज भी नेता जी महंगे वाहन, आधुनिक सुख – सुविधा से युक्त विमान से चलने का न केवल शौक रखते हैं बल्कि कुछेक को छोड़कर अधिकांश नेता जमकर सरकारी सुविधा का पूरा खानदान सहित उपभोग करते हैं। हालांकि राजेन्द्र प्रसाद सरकारी फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ थे। बहुत ज्यादा दौरा करने के बाद राजेन्द्र बाबू के जूते घीस गये थे परिणामस्वरूप एक बार कील उनके जूते में घुस गया था, जिस कारण उनका पैर जख्मी हो गया। उन्होंने अपने सचिव से नये जुते मंगवाए। उन्होंने अपने सचिव से जुते के दाम पूछे, सचिव ने बीस रूपये बताया। राष्ट्रपति ने सचिव से कहा जब वे पहले खरीदे थे तो उस समय दस रूपये थे, सीधे दोगुना कैसे हो गया ? सचिव ने कहा यह जुता पहले वाले की तुलना में ज्यादा मुलायम है। इस पर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा इस लौटाकर पहले जैसा ही ला दीजिए, ये ज्यादा मंहगा है। कुछ कठोर भी होगा तो काम चला लेंगे। सचिव जब जुते को वापस करने के लिए जाने लगे तो राष्ट्रपति ने उन्हें मना किया और कहा कि रहने दीजिए आप कार से जुते को वापस करन जाएंगे तो जूते के कीमत से अधिक पेट्रोल खपत हो जाएगी। हम किसी अन्य कर्मचारी को पैदल भेजाकर इसे वापस करवा लेंगे।

देश की हरेक जनता चाहती है कि उन्हें साफ – सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त नेता मिले। अगर विरले में उन्हें मिल भी जाते हैं तो उसका कद्र नहीं करते। उन्हें याद तक नहीं किया जाता, उनकी चर्चा तक नहीं की जाती। इसका जीता  – जागता उदाहरण हैं राजेन्द्र प्रसाद जिन्होंने अपने अंतिम क्षणों में भी सरकारी सुविधा का लाभ लेकर ईलाज कराने के बजाय पटना स्थित सदाकत आश्रम में अंतिम सांस ली। सादा जीवन उच्च विचार के प्रतीक बिंदू को नमन।

(लेखक राष्ट्रीय छात्रशक्ति पत्रिका के स. संपादक हैं)

 

Tags: abvpabvp voiceAjit kumar SinghAjit Singhbiharfirst president of indiajiradeirajendra baburajendra prasadrashtrapati bhavanwinnerajit
No Result
View All Result

Archives

Recent Posts

  • ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारतीय सेना द्वारा आतंकियों के ठिकानों पर हमला सराहनीय व वंदनीय: अभाविप
  • अभाविप ने ‘सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल’ में सहभागिता करने के लिए युवाओं-विद्यार्थियों को किया आह्वान
  • अभाविप नीत डूसू का संघर्ष लाया रंग,दिल्ली विश्वविद्यालय ने छात्रों को चौथे वर्ष में प्रवेश देने का लिया निर्णय
  • Another Suicide of a Nepali Student at KIIT is Deeply Distressing: ABVP
  • ABVP creates history in JNUSU Elections: Landslide victory in Joint Secretary post and secures 24 out of 46 councillor posts

rashtriya chhatrashakti

About ChhatraShakti

  • About Us
  • संपादक मंडल
  • राष्ट्रीय अधिवेशन
  • कवर स्टोरी
  • प्रस्ताव
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

Our Work

  • Girls
  • State University Works
  • Central University Works
  • Private University Work

आयाम

  • Think India
  • WOSY
  • Jignasa
  • SHODH
  • SFS
  • Student Experience Interstate Living (SEIL)
  • FarmVision
  • MediVision
  • Student for Development (SFD)
  • AgriVision

ABVP विशेष

  • आंदोलनात्मक
  • प्रतिनिधित्वात्मक
  • रचनात्मक
  • संगठनात्मक
  • सृजनात्मक

अभाविप सार

  • ABVP
  • ABVP Voice
  • अभाविप
  • DUSU
  • JNU
  • RSS
  • विद्यार्थी परिषद

Privacy Policy | Terms & Conditions

Copyright © 2025 Chhatrashakti. All Rights Reserved.

Connect with us:

Facebook X-twitter Instagram Youtube
No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

© 2025 Chhatra Shakti| All Rights Reserved.