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Home लेख

वरदान साबित होता अभाविप का ऋतुमति अभियान

अजीत कुमार सिंह by वेलेंटिना ब्रह्मा
March 8, 2021
in लेख

मासिक धर्म से जुड़े हुए चुनौतियों के साथ कई तरीके की मिथक धारणाएं भी जुड़ी हुई हैं। परंतु भारत में वैदिक काल से ही रजस्वला स्त्री से संबंधित कई ऐसी रीतियां हैं जो रज महिलाओं के मान सम्मान और समाज में उनके महत्व को दर्शाता है जैसे ओड़िशा प्रांत में मनाया जाने वाला रज पर्व या मिथुना संक्रान्ति एवं असम में मनाया जाने वाला तोलनि बिया या शांति बिया। असम प्रांत में हर साल अंबुवाची मेला के समय कामाख्या देवी के मंदिर का द्वार बंद रहता है इसी मान्यता के चलते कि उस समय धरती मां रज की अवस्था में होती है। किन्तु समकालीन भारत में रूढ़िवादी भ्रांतियों के कारण महिलाए खुल कर इन विषयों पर चर्चा नहीं करती जिसका प्रभाव आज महिलाओं के स्वास्थ्य पर हो रहा है।

आज हमारे देश में 62 प्रतिशत महिलाएं हैं जो अपने माहवारी के वक्त कपड़े का इस्तेमाल करती है और मात्र 48 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो सेनेटरी नैपकिन के प्रयोग से परिचित है । ऐसे में भारत के एक बृहत घरेलू परिवेश में कपड़े के इस्तेमाल, कपड़े का सही प्रयोग एवं स्वच्छता सम्बन्धित समस्याएं महिलाओं के स्वास्थ्य के लिये घातक है। इसी के साथ संकुचित घरेलू परिवेश के कारण भी महिलाओं को अपने मासिक धर्म के समय अनेक समस्याएं झेलनी पड़ती है ।
इन्हीं समस्याओं को चोट करते हुई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पहल हैं ‘ऋतुमति’ । ऋतुमति अभियान के माध्यम से मासिक धर्म विषय पर चर्चा एवं जागरुकता फैलाने का काम विद्यार्थी परिषद कर रही है । मासिक धर्म जैसे मुद्दे को हम खुले मंच पर सम्वाद करने, सामाजिक निषेध (टेबू) को खत्म करने के उद्देश्य से ग्रामीण, शहरी, झुग्गी आदि परिवेशों में जाकर मासिक धर्म के समय स्वच्छता एवं उसके महत्त्व से सम्बन्धित चर्चा स्थापित कर रहे हैं ।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा जब पहला मासिक धर्म स्वच्छता जागरुकता अभियान ऋतुमति दिल्ली प्रदेश में प्रारम्भ किया गया तब ये पता लगा कि छात्राओं व युवतियों को स्कूल तथा आंगनवाड़ी में जो सेनेटरी नेपकिन मिलता है उसका उपयोग तो वह करती है लेकिन मात्र तब जब वह घर के बाहर जा रही हो, घर पर तो वह कपड़े का ही प्रयोग करती है । ऐसे में निश्चित है कि सेनेटरी नेपकिन के प्रति उनकी जागरुकता व जानकारी तो है , या यूं कहे एक्सेसिविलिटि है पर अफौर्डेविलिटी नहीं है ।
सामर्थ्य (अफौर्डेविलिटी) की समस्या को समझते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अफोर्डेबल मूल्य पर सेनेटरी पेड उपलब्ध कराने की मुहिम चला रही है । अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छात्राओं को विभिन्न क्षेत्र में आगे बढ़ाने व सशक्त बनाने, उनकी पढ़ाई लिखाई में आने वाली बाधाओं को समाप्त करने के लिए संकल्परत है । ऐसे में लोकल स्तर पर किसी एक छात्रा/युवती को जिम्मेदारी के साथ अपने आस पास के परिवेश में अफौर्डेबल मूल्य में सेनेटरी नेपकिन उपलब्ध करवाने तथा उसमें कमाए हुए पैसे के माध्यम से स्वयं की शिक्षा को सुनिश्चित करने एवं आत्मनिर्भर बनने का अभियान है ।
साथ ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कॉलेज व यूनिवर्सिटी लेवल पर सेनेटरी पेड डोनेशन ड्राइव भी चला कर झुग्गी बस्तियों में पेड डिस्ट्रिब्यूशन का कार्य भी कर रहा है ताकि मासिक धर्म के समय कोई भी महिला अस्वच्छ कपड़ों आदि का प्रयोग करने को मजबूर न हो । सभी के पास सेनेटरी नेपकिन पहुंचे, अतः ‘ऋतुमति’ का मूल लक्ष्य समाज में मासिक धर्म के प्रति जागरुकता लाना व महिलाओं को स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति सजग बनाना है ।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली की शोध छात्रा हैं एवं ये उनका निजी विचार है।)

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