“जब भी भारत की सीमाओं पर संकट आया है, तब-तब देश के सैनिकों ने अपना लहू बहाकर तिरंगे को झुकने नहीं दिया है।”
कारगिल में हुआ संघर्ष भारत के गौरव, वीरता और एकता की वह अमर गाथा है, जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय राष्ट्र केवल भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि करोड़ों देशवासियों की भावनाओं, संकल्प और साहस से बना है। यह संघर्ष न केवल हथियारों से, बल्कि हृदयों से भी लड़ा गया-जहां सैनिक मोर्चे पर डटे रहे, वहीं जनता, संगठन और सरकार ने संपूर्ण शक्ति के साथ अपने-अपने स्तर से सहयोग किया I
कारगिल विजय ने यह साबित किया कि भारत किसी भी परिस्थिति में अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम है। यह संघर्ष तकनीकी श्रेष्ठता, रणनीतिक दूरदृष्टि और राष्ट्रीय एकता का ऐसा उदाहरण बना, जिसने दुनिया को यह समझा दिया कि भारत केवल एक विकासशील देश नहीं, बल्कि उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति है। कारगिल में भारतीय थल सेना ने कठिनतम पर्वतीय संघर्ष का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। बर्फ़ से ढकी 18,000 फीट ऊंची चोटियों पर चढ़कर दुश्मन को खदेड़ना एक असंभव सी चुनौती थी, जिसे भारतीय सैन्य जवानों ने अदम्य साहस और संकल्प से जीत लिया।
भारतीय वायुसेना का ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ निर्णायक रहा। मिराज-2000 और मिग विमानों की सटीक बमबारी से पाकिस्तान के बंकर ध्वस्त हो गए। इसी तरह भारतीय नौसेना ने ‘ऑपरेशन तलवार’ के तहत अरब सागर में पाकिस्तानी नौसेना की गतिविधियों को सीमित कर उसकी रसद आपूर्ति रोक दी। कारगिल विजय को संभव बनाने वाले अमर बलिदानियों में अनेक नाम हैं, लेकिन जिनके शौर्य के आगे पाकिस्तानियों ने दांतों तले उंगलियां दबा ली ऐसे वीर शहीद थे परमवीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट विक्रम बत्राI ‘यह दिल मांगे मोर !’ का नारा देते हुए उन्होंने प्वाइंट 4875 पर कब्ज़ा किया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह साथियों को बचाने के लिए दुश्मन से लड़ते रहे और लड़ते-लड़ते मां भारती का यह वीर सपूत शहीद हो गया I इसी तरह कैप्टन अनुज नैयर ने टाइगर हिल पर असंभव लगने वाली चढ़ाई को सफल बनाकर दुश्मन के बंकर ध्वस्त कर दिए। गोलियों की बौछार में घायल होने के बावजूद ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव ने दुश्मन के ठिकानों को निशाना बनाया और अपने साथियों के लिए रास्ता साफ किया। कारगिल संघर्ष में मां भारती के 527 सपूत अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो हुए I
कारगिल में हुए संघर्ष के दौरान राष्ट्रवादी संगठनों ने भी अपना योगदान दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में राहत कार्यों और सैनिक परिवारों की सहायता कार्यों में हिस्सा लिया I अनेक स्थानों पर रक्तदान शिविर, अनाज एवं कपड़ों का संग्रह और शहीद परिवारों के लिए आर्थिक सहयोग करने के लिए अभियान चलाए गए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने पूरे देश में देशभक्ति रैलियों और छात्र-समूहों के माध्यम से युवाओं को जागरूक किया। अभाविप कार्यकर्ताओं ने सीमाओं पर तैनात जवानों के लिए हजारों प्रेरक पत्र, राखियां और सहयोग सामग्री पहुंचाई I तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने संघर्ष के साथ-साथ कूटनीति के मोर्चे पर भी विजय हासिल की। भारत ने यह संघर्ष केवल नियंत्रण रेखा के भीतर ही लड़ा, जिससे दुनिया को यह संदेश मिला कि भारत शांतिप्रिय देश है। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस ने भारत की स्थिति को सही ठहराते हुए पाकिस्तान पर दबाव बनाया कि वह अपने सैनिकों को पीछे हटाए। संयुक्त राष्ट्र और विश्व शक्तियों ने भारत की संयमित नीति की सराहना की। वाजपेयी सरकार की विदेश नीति ने यह सुनिश्चित किया कि पाकिस्तान को किसी भी बड़े राष्ट्र का समर्थन नहीं मिले और फिर पाकिस्तान की धोखेबाज़ी का पर्दाफाश अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो गया।
कारगिल संघर्ष में भारत की आम जनता का योगदान अद्वितीय था। देश के कोने-कोने से लोग सहायता के लिए आगे आए। स्कूलों के बच्चे सैनिकों के नाम संदेश एवं कविताएं भेजते थे। व्यापारी, किसान और आम नागरिक आर्थिक सहयोग के लिए भारत कोष में योगदान कर रहे थे। मीडिया ने राष्ट्रवाद की भावना को चरम पर पहुंचाया, जिससे शहीद सैनिकों की वीर गाथा से हर देशवासी अवगत हुआ I कारगिल विजय ने भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर ऊंचाई दी। साथ ही यह भी सिद्ध हुआ कि भारत न केवल एक सशक्त लोकतंत्र है, बल्कि एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति भी है, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करते हुए अपनी संप्रभुता की रक्षा करता है। कारगिल में हुआ संघर्ष केवल सीमा पर लड़ी गई लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह भारत की जनशक्ति, सैन्य शौर्य और कूटनीतिक दक्षता की एकजुट गाथा है। यह विजय सिखाती है कि जब देश पर संकट आता है, तो सैनिक, जनता और नेतृत्व मिलकर भारत को विजयी बनाते हैं।