e-Magazine

अप्रैल 2015

संपादकीय

महात्मा गांधी ने भारत में आंदोलन का एक व्याकरण गढ़ा है। सत्याग्रह, धरना, प्रदर्शन आदि इसके चरण हैं। इसका प्रभाव इतना गहरा है कि घुर दक्षिण से धुर वाम तक अपनी भाषा को व्याकरण के इसी खांचे में कसने के लिये विवश रहे हैं। देश के छात्र आन्दोलन भी इसी मार्ग को अपनाते रहे। अभाविप भी इसमें अपवाद नहीं है।

लगभग दो दशक पहले कर्मयोगी स्व. नानाजी देशमुख परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में पधारे थे। उपस्थित कार्यकर्ता प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए उन्होंने एक अलग विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अपने गांव जाते समय यदि मार्ग में नदी आ गयी तो स्वाभाविक है कि हमें नाव से पर करनी होगी। लेकिन नदी पार करने के बाद हमें यात्रा का दूसरा साधन अपनाना होगा। आगे सड़क पर भी हम नाव से ही जाने की चेष्टा करेंगे तो समय और श्रम तो व्यय होगा किन्तु यात्रा पूरी नहीं होगी। धरना-प्रदर्शन अंग्रेजों के विरुद्ध हमने किये क्योंकि तब यह आवश्यक था। स्वतंत्रता के तट पर पहुंच कर भी उन्हीं साधनों के भरोसे आगे बढ़ने की नीति दूर तक साथ नहीं देगी। हमें विकास और पुनर्निर्माण की दिशा में बढ़ना है तो उसके अनुकूल ही साधन खोजने होंगे।

परिषद के तत्कालीन कार्यकर्ताओं ने इस संदेश को हृदयंगम किया। संघर्ष का मार्ग छोड़ा नहीं बल्कि संघर्ष के साथ-साथ विकासोन्मुख नवरचना की दिशा में देश के छात्र-युवाओं के समय और श्रम के नियोजन की रूप-रेखा बननी प्रारंभहुई। इसके व्यावहारिक प्रयोग प्रारंभ हुए और आज देश में अनेक स्थानों पर विद्यार्थियों द्वारा प्रौद्योगिकी का उपयोग कर नयी-नयी परिकल्पनाओं पर आधारित उपकरणों के निर्माण, उनके प्रदर्शन और प्रतियोगिता के आयोजन की एक श्रृंखला ही विकसित हो गयी है। महाराष्ट्र में प्रारंभ होने वाला पहला उपक्रम डिपेक्स गत वर्ष अपने आयोजन के 25 सफल वर्ष पूरे कर चुका है। इस अंक में देश के विभिन्न भागों में आपके समक्ष ऐसे ही अनेक आयोजनों की जानकारी मिलेगी।

महामना मदनमोहन मालवीय तथा श्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारतरत्न से सम्मानित किया गया है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना कर पराधीन भारत में शिक्षा और राष्ट्रवादी चेतना के केन्द्र का सृजन महामना ने किया। यहां से निकलने वाले युवाओं ने जहां स्वतंत्रता के लिये संघर्ष किया वहीं स्वतंत्रता के पश्चात के भारत के निर्माण में भी उनकी महत्वूर्ण भूमिका है। गंगा की पवित्रता और अविरलता के लिये आंदोलन चलाने वाले स्व. मालवीयजी ने समाज को साथ लेकर अंग्रेजों को झुकने झुकने के लिये विवश किया। भारतरत्न से उनका सम्मान वस्तुतः उनके कृतकार्यों को देश का कृतज्ञता ज्ञापन है।

भारतीय राजनीति के शिखरपुरुष पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारतरत्न भी इसी श्रृंखला की कड़ी है। राष्ट्रीय राजनीति में उनका योगदान अविस्मरणीय है। विशेष रूप से जिस राष्ट्रीय विचार को दशकों तक पीछे धकेलने के राजनैतिक प्रयास होते रहे, उसे ही सारे अवरोधों को किनारे कर मुख्य भूमिका में लाने का भगीरथ कार्य उनके नेतृत्व में हुआ।

विद्यार्थी परिषद जैसे छात्र संगठन के लिये यह विशेष प्रसन्नता का अवसर है क्योंकि महामना का सम्मान जहां शिक्षा क्षेत्र में राष्ट्रीय विचारों की स्थापना, जिसके लिये अभाविप सदैव प्रयत्नशील है, की पुष्टि है, वहीं परिषद् के प्रारंभिक दिनों में ही चलाये गये ‘भारतीयकरण उद्योग के उत्तर प्रदेश के संयोजक के रूप में छात्र-नेता अटल बिहारी वाजपेयी का अभाविप के जन्मकाल से ही संबंध है।

अभाविप के शिल्पकार स्व. यशवंतराव केलकर के साथ संगठन गढ़ने के काम में अपनी ऊर्जा लगाने वाली पीढ़ी के वयोवृद्ध सदस्य श्री नारायण भाई भंडारी (नाना) अपने बीच नहीं रहे। 90 वर्ष की आयु में भी जीवन को पूरी प्रफुल्लता से जीने वाले नाना ने स्वस्थ मन-मस्तिष्क के साथ दिव्य यात्रा के लिये प्रस्थान किया। जीवन का भारतीय दर्शन के अनुकूल समग्र चिंतन और आध्यात्मिक अभिनिवेश ही व्यक्ति को चेतना के इस उच्च स्तर तक पहुंचाता है। नारायण भाई का जीवन ही नहीं बल्कि उनकी विदाई भी परिषद कार्यकर्ताओं के लिये प्रेरणा का स्रोत है। छात्रशक्ति की ओर से अपने प्रिय नाना को हार्दिक श्रद्धांजलि।

कुछ समय के विराम के पश्चात् छात्रशक्ति का यह अंक आपके समक्ष प्रस्तुत है। अभाविप जैसे छात्र संगठनों की कार्ययोजना में इस प्रकार के विराम भी आते रहे हैं। लेकिन हर बार नयी ऊर्जा के साथ पुनः कार्य में जुट जाने की प्रवृत्ति ने ही आगे बढ़ते रहने का सम्बल दिया है। यह विराम भी छात्रशक्ति को पहले से बेहतर प्रस्तुति का संतोष आपको प्रदान करेगा ऐसी आशा है।

आपका

संपादक

×