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छात्रशक्ति दिसम्बर 2019

अयोध्या मामले पर आये ऐतिहासिक फैसले के बाद देश में समन्वय और सौहार्द्र का नया अध्याय प्रारंभ हुआ। 491 वर्ष पुराने संघर्ष और 1949 से जारी संवैधानिक वाद और उसके चलते बार-बार उठने वाले साम्प्रदायिक वैमनस्य पर भी अब पूर्णविराम लग जाना चाहिये।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने इस ऐतिहासिक अवसर पर शांति बनाये रखने और विवाद से बचने का आग्रह किया। हर्ष का विषय है कि समाज ने इस चिंतन के साथ न केवल वाणी से अपितु व्यवहार से भी अपना समर्थन व्यक्त किया।

प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम महत्वपूर्ण व्यक्तियों और मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी ऐसी ही अपील की है। विवादित ढ़ांचे के ढ़हने के बाद से अब तक प्रतिरोध के अनेक पड़ावों को पार करते हुए हिन्दू और मुस्लिम नेतृत्व ने परिपक्वता की ओर कदम बढ़ाये हैं। 40 दिन तक निरंतर चली सुनवाई के दौरान और उसके बाद भी अराजक तत्वों को अवसर नहीं मिला यह इसका प्रमाण है।

यह तथ्य समाज की स्मृति से कभी नहीं गया कि श्रीराम भारत की अस्मिता के प्रतीक हैं और उनकी जन्मभूमि पर बने मंदिर का ध्वंस कर उसके ही मलवे से एक कथित मस्जिद का निर्माण किया गया। दुनियां भर में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जहाँ विजेताओं ने पराजित राष्ट्र को अपमानित करने के लिये उनके मानबिन्दुओं को तोड़ा, अपमानित किया। भारतीय भूमि पर विजय के प्रतीक के रूप में रामजन्मभूमि सहित अनेक ऐसे मानबिन्दुओं के ध्वंसावशेष इसके साक्षी हैं।

बाबर हमलावर था, यह स्वीकार करने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये। केवल मुस्लिम होने के कारण उसके बर्बर कृत्यों का समर्थन साम्प्रदायिक दुराग्रह से अधिक कुछ नहीं। किन्तु इस स्थिति से भी देश को गुजरना पड़ा इस सत्य को भी स्वीकार करना होगा। इसी के चलते न कभी निर्वाचित सरकारों ने इस पर निर्णय लेने का साहस दिखाया और न ही न्यायपालिका ने समाधान के लिये इतना निर्णायक कदम उठाया। आज दशकों के अनुभव और परिपक्वता का स्तर प्राप्त करने के बाद देश का बुद्धिजीवी वर्ग इन दुराग्रहों से ऊपर उठ कर समन्वय के प्रयास में है, यह स्वागत योग्य है।

जफरयाब जिलानी आदि कुछ विघ्नसंतोषी लोग सौहार्द्र की इस स्थिति को बिगाड़ने की कोशिश में हैं। वे सर्वोच्च न्यायालय के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के साथ ही समाज के एक हिस्से में तनाव उत्तपन्न करने की कोशिश कर रहे हैं। यह संतोषपूर्ण है कि उन्हीं के समाज में से अनेक लोग उनके इस विचार के विरुद्ध खुल कर असहमति व्यक्त कर रहे हैं। ऐसा ही वातावरण तब देखने में आया जब संसद ने अनुच्छेद 370 को संशोधित कर जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान लागू किया। शांति की समर्थक इन शक्तियों का समाज के विभिन्न वर्गों में उठ खड़ा होना सुखद भविष्य की आशा जगाता है। अंततः यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय एकात्मता की पुष्टि करेगी।

राष्ट्रीय एकात्मता ही वह प्रस्थान बिंदु था जिसे लेकर देश की राष्ट्रवादी शक्तियों ने श्री राम को भारतीय अस्मिता के प्रतीक के रूप में आगे रख कर मंदिर निर्माण का संकल्प किया था। अभाविप इस अभियान में पूरी शक्ति से भागीदार बनी थी। आज अपने इस संकल्प का एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार करने के अवसर पर वे समस्त कार्यकर्ता, जिन्होंने इस यज्ञ में अपनी आहुति दी, स्वाभाविक ही कृतार्थता का अनुभव कर रहे हैं।

राष्ट्रीय अधिवेशन, युवा दिवस, लोहड़ी और मकर संक्रांति की हार्दिक मंगलकामनाओं सहित,

आपका

संपादक

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