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Home आयाम विशेष

लाचित बोरफूकन की याद में थिंक इंडिया द्वारा कार्यक्रम का आयोजन

Chhatrashakti Desk by
November 28, 2019
in आयाम विशेष
think india remember ahom kingdom hero Lachit barphukan

गुवाहाटी ।पूर्वोत्तर के महान वीर अहोम सेनापति लाचित फरफूकन की स्मृति में अभाविप के आयाम थिंक इंडिया और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और ज्योडिशियल एकेडमी (NLUJAA), असम के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को कार्यक्रम आयोजित कर उनकी वीरता को याद किया । NLUJAA के कुलपति जेएस पाटिल ने मेहमानों का स्वागत किया और लाचित बोरफूकन की वीरता पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि लाचित, अहोम के सिर्फ सेनापति नहीं बल्कि अहोम राज्य की वीरता प्रतीक हैं । उन्होंने सारिघाट की लड़ाई 1671 में मुगलों के खिलाफ लड़ी। कुलपति ने एनएलयूजेएए को देश भर में एक अग्रणी विश्वविद्यालय बनाने बात की और असम सरकार और गौहाटी उच्च न्यायालय से निरंतर समर्थन की मांग की । राज्य के सिंचाई मंत्री भाबेश कालिता, जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, ने देश भर के छात्रों को लाने और उन्हें असम के नायकों के बारे में बताने के लिए NLUJAA की सराहना की। अतिरिक्त महाधिवक्ता दिलीप मोजुमदार ने छात्रों के जीवन में लाचित बरफुकन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। बता दें असम सहित देश के अधिकांश भागों में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले लाचित बोरफूकन की याद में प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को लाचित दिवस के रुप में मनाया जाता है । विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा, NLUJAA ने लछित बोरफुकन मेमोरियल डिबेट की भी मेजबानी की, जहां असम के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों ने भाग लिया।

कौन थे लाचित बोरफूकन

लाचित बोड़फुकन ‘अहोम साम्राज्य’ के सेनापति थे. उनको 1671 में हुई सराईघाट की लड़ाई में नेतृत्व-क्षमता के लिए जाना जाता है।औरंगज़ेब चाहता था कि उसका साम्राज्य पूरे भारत पर हो । लेकिन भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से तक वह नहीं पहुँच पा रहा था। औरंगज़ेब ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए  विशाल सेना असम पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी. औरंगजेब ने हमले के लिए एक राजपूत राजा को भेजा था। उस समय असम का नाम अहोम था. राजा राम सिंह अहोम को जीतने के लिए विशाल सेना लेकर निकल चुका था।

अहोम राज के सेनापति का नाम था लाचित बोरफूकन था। इस नाम से उस समय लगभग सभी लोग वाकिफ थे. पहले भी कई बार लोगों ने अहोम पर हमले किये थे, जिसे इसी सेनापति ने नाकाम कर दिए थे. जब लाचित को मुग़ल सेना आने की खबर हुई तो उसने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास एक खड़ा कर दिया।

कुछ इतिहासकार अपनी पुस्तकों में लिखते हैं कि लाचित बोरफूकन (बरफुकन-बोरपूकन, नाम को लेकर आज भी थोड़ा रहस्य है) अपने इलाके को अच्छी तरह से जानता था। वह ब्रह्मपुत्र नदी को अपनी माँ मानता था। असल में अहोम पर हमला करने के लिए सभी को इस नदी से होकर आना पड़ता था और एक तरफ (जिस तरफ लाचित सेना होती थी) का भाग ऊंचाई पर था और जब तक दुश्मन की सेना नदी पार करती थी, तब तक उसके आधे सैनिक मारे जा चुके होते थे। यही कारण था कि कोई भी अहोम पर कब्जा नहीं कर पा रहा था.। सरायघाट का भीषण युद्ध, सरायघाट के नाम से जाना जाता है। लाचित बोरफूकन की सेना के पास बहुत ही कम और सीमित संसाधन थे। सामने से लाखों लोगों की सेना आ रही थी, किन्तु लाचित बोरफूकन की सेना का मनोबल सातवें आसमान पर था। कहा जाता है कि जैसे ही सेना आई तो लाचित के एक सैनिक ने कई सौ औरंगजेब के सैनिकों को मारा था। जब सामने वालों ने लाचित बोरफूकन के सैनिकों का मनोबल देखा तो सभी में भगदड़ मच गयी थी।

इस युद्ध के बाद फिर कभी उत्तर-पूर्वी भारत पर किसी ने हमला करने का सपने में भी नहीं सोचा. खासकर औरंगजेब को लाचित बोरफूकन की ताकत का अंदाजा हो गया था। मुगल सेना की भारी पराजय हुई. फिर भी वहां से लौटते हुए रामसिंह ने लाचित बरफुकन की भूरि-भूरि प्रशंसा की. लाचित ने युद्ध तो जीत लिया पर अपनी बीमारी को मात नहीं दे सके। आखिर सन् 1672 में उनका देहांत हो गया। भारतीय इतिहास लिखने वालों ने इस वीर की भले ही उपेक्षा की हो, पर असम के इतिहास और लोकगीतों में यह चरित्र मराठा वीर शिवाजी की तरह अमर है।

 

Tags: abvp north eastassomlachit barphukanNLUJAAthink india
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