अभाविप के शिल्पकार यशवंत राव केलकर जी के पुण्यतिथि पर विशेष
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है । अभाविप, अनेक प्रकार के रचनात्मक, संघटनात्मक, आदोंलनात्मक, उपक्रमात्मक आयामों द्वारा बहुमुखी विकास किया हुआ छात्र संगठन है । अभाविप के वृद्धि – विकास में अनेकों का योगदान रहा है परंतु केलकर जी का योगदान विशेष महत्त्व का रहा है । अभाविप यानी केलकर जी, यही सिद्ध हुआ है । अभाविप की सही पहचान संगठन की वृन्द (Team) कार्यपद्धति के विशेष रूप से है । Team Sprit, Team Work, Planning in Advance, Planning in Detail आदि शब्द प्रयोग सर्व दूर परिचित है । शायद अभाविप पहचान की तुलना में (स्व.) केलकर जी की पहचान कम है । यह उनका ही (पद्धति) यश है । व्यक्ति नहीं, विचार यह महत्त्व की बात है ।
स्व. यशवंत राव का जन्म सोलापुर जिले के पंढरपुर तीर्थ क्षेत्र में हुआ । यहां के विद्यालय, माध्य विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की । लोकमान्य विद्यालय से एसएससी, उत्तम श्रेणी में सफल हो गये । आगे स. प. महाविद्यालय पुणे से बीए उत्तम श्रेणी से सफल हो गये, अंग्रेजी की विषय था । बीए पास होने के पश्चात रा. स्व. संघ के प्रचारक बने । बचपन से ही स्वयंसेवक तो थे ही ।
सोलापुर एवं नासिक में कुछ वर्ष प्रचारक करके विशेष कार्य किया । समाज जीवन में अच्छी तरह से संपर्क रहता था वापिस आए और उत्तम श्रेणी से एम.ए. अंग्रेजी किया । उन्हें 1 वर्ष संघ योजना से भारतीय जनसंघ का कार्यालय प्रांत प्रमुख करके दायित्व संघ योजना से दिया गया था ।
अत्यंत उपयुक्त दीर्घ दृष्टि से कार्यालय रचना, व्यवस्था क्रियान्वयन किया । उनके पश्चात (कै) श्री बाज अत्रे प्रांत कार्यालय प्रमुख बने थे । वह कहते थे कि ‘केलकर जी की योजना हमें भविष्य में अनेक वर्ष आदर्श रही ।’
अपने प्राचीन संगठन सूत्रों का सम्यक चिंतन, मनन एवं क्रियान्वयन केलकर जी करते थे
“सहना ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै ।
इस सूत्रों पर सहज व्यवहार से अभाविप कार्यपद्धति खड़ी हुई । उनका प्रा. सौ. शशीकला जी से विवाह हुआ । वह भी अंग्रेजी की प्राध्यापक रही । केलकर दंपत्ति की 3 सुपुत्र रहे । तीनों उत्तम विद्या से विभूषित है । केलकर जी ने एक दृष्टि से अपना जीवन उद्देश्य अभाविप रखा था । अत्यंत बुद्धिमान होते हुए भी अभाविप से कार्यमग्नता के कारण उन्होंने पीएचडी नहीं की । “कार्यमग्नता जीवन हो, मृत्यु यही विश्रांति यह उनके बारे में सच है ।”
(स्व.) प. पू. देवरस जी ने उनके बारे में कहा था ।
“केलकर जी प. पू. हेडगेवार कुलोत्पन्न है, इतना कहना ही उनके लिए पर्याप्त है ।” इससे स्व. केलकर जी का बड़प्पन ध्यान में आता है । 1958 में उन्हें अभाविप का कार्य संघ द्वारा दिया गया । तब वह मुंबई के महाविद्यालयों में प्राध्यापक थे । अत्यंत उत्तम अध्यापन शैली, विद्यार्थी वांचन चिंतन यह प्राध्यापक करके विशेषता रही ।
अत्यंत आवश्यक हो तो ही छुट्टी लेते थे । संघ या अभाविप के महत्त्व के काम/बैठक के लिए छुट्टी लेते थे । प्रत्यक्ष जीवन व्यवहार में सादगी का दर्शन होता था एवं नागरिकता का (नीति नियम) पालन दिखाई देता था ।
‘राशन’ के दिनों में कानून से अमान्य ऐसा अनाज का बड़ा थैला एक कार्यकर्ता अन्य जिले से लेकर आया था । केलकर जी को देने की इच्छा थी । केलकर जी ने तो इन्कार किया और कार्यकर्ता करके अपना व्यवहार कैसा हो, यह भी योग्य शब्दों में कहा ।
एक अभाविप कार्यकर्ता करके व्यक्ति जीवन में भी उनका सम्यक विधि निषेध के आग्रह रहते थे ।
एक देश/समाज हितैषी जीवन दृष्टी का आग्रह रहता था । यशवंत राव कार्यकर्ता, प्राध्यापक या पूर्णकालिक (संगठन मंत्री ) आदि के लिए विशेष प्रकार के जीवन व्यवहार की अपेक्षा करते थे । सभी प्रकार के साथ रहकर भी एक समाज हितैषी पहचान स्वाभाविक रूप से ध्यान आ जाए ।
सकारात्मक दृष्टिकोण यह उनकी विशेषता रही । किसी बात के लिए किसी पर दबाव नहीं रहता था परंतु उनका छोटी – छोटी बातों का व्यवहार देखकर की, कोई भी व्यक्ति आदर्श अपेक्षा की कल्पना कर सकता है । हर कार्यक्रम, प्रकल्प, अपना काम, कार्यकर्ता इनके कार्य की वार्षिक सम्यक समीक्षा का आग्रह रहता था । अर्थात कार्यक्रम की समीक्षा यथासंभव जल्द हो, यह अपेक्षा रहती थी । व्यक्ति यानी कार्यकर्ता निर्माण, पूर्णकालिक कार्यकर्ता अपेक्षाकृति शिक्षण, प्रशिक्षण के साथ निकले भूमिका ध्यान में लेकर काम करे, पू. का. की योग्य दिनचर्या रहे आदि उनके आग्रह रहते थे ।
प्राध्यापक भी कार्यकर्ता है, उनका यथासंभव छात्र संपर्क बातचीत संगठनात्मक उपयोगी कार्यकर्ता घर संपर्क, बहुमुखी वाचन आदि का आग्रह रहता था । अभाविप कार्य करते करते अभाविप और कार्यकर्ता का भी व्यक्तित्व विकास अपेक्षित रहे, इसमें प्राध्यापक कार्यकर्ता का योगदान महत्त्व का रहता है, यह उनका विचार था ।
ऐसे प्राध्यापक कार्यकर्ताओं से पालक (अभिभावक) कार्यकर्ता खड़ा हो जाता है । वर स्थायी है जिनके कारण अभाविप का छात्र प्रवाही संगठन चलता रहता है । केलकर जी इसी प्रकार की कार्यपद्धति के अनेक अनुभव सभी के लिए उपयुक्त एवं आवश्यक है, यह सोचकर (स्व.) दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अनेक अनुभव शब्द बद्ध करने का आग्रह किया इससे “पूर्णांक की ओर” (माणस नामनुकाम ) यह पुस्तक प्रकाशित हो गया ।
केलकर जी ने अभाविप कार्य अ. भा. स्तर पर करना है यह तय किया । स्वाभाविक रूप से संघ एवं संबंधितों से बातचीत की गयी । विचार विमर्श करने यशवंतराव ने खुद अभाविप का कार्य शुरू किया । पहले प्रांतशः स्वभाव धर्म के अनुसार अभाविप का काम, कार्यक्रम चलाते थे । एक मंच जैसा अभाविप स्वरूप था । वह प्रारंभ में स्वाभाविपक था । केलकर जी आग्रह प्रथम मनुष्य ढ़ूंढना, कार्यकर्ता करके खंड होने मं सहाय्यभूत होना । कार्यकर्ताओं के लिए विविध प्रकार के आकर्षक कार्यक्रम ढ़ूंढे। मुंबई पर ध्यान केन्द्रित किया । इसलिए प्रथम संघ का सहकार्य देना ।
मुंबई में श्री पद्नाभजी आचार्य, बाल आप्टे, मदन जी, वैशंपायन, दिलीप परांजपे आदि छात्र कार्यकर्ता खड़े हुए । उन्हें फिर माह में दो – तीन बार महाराष्ट्र के विद्यापीठ केन्द्र और दो बड़े बडे स्थानों पर भेजते रहना । प्रवासी कार्यकर्ता यह रहे ।
महाराष्ट्र खड़ा हो गया । इतने में नागपुर में संघ के प्रभावी प्रचारक (कै.) दत्ता जी डिंडोलकर वापिस आये थे । अत्यंत विद्वान युवा प्रिय प्राध्यापक । दत्ता जी और यशवंतराव जी जैसे दो समर्थ कंधों पर आगे सारा भारत अभाविप करके खड़ा हुआ । अर्थात उन्हें ऑड़्बाका सो/ आपटे, मदन जी, राजजी, नारायण भाई, कोहली जी, प्रा. शेषगिरीराव, कृष्ण भट्ट जी का आगे वर्षोनिक इनका अमोल सहकार्य रहता था एवं यही आगे के समर्थ अभाविप के विकास अध्वर्यु बने । साथ – साथ गोविंदाचार्य, राम बहादुर राय, महेश जी आदि पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का भी योगदान रहा । केलकर जी सर्वस्पर्शी कार्य, सामाजिक समता का अत्यधिक आग्रह रहता था । राष्ट्रीय पुननिर्माण के संदर्भ में शिक्षा क्षेत्र में कार्य दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय जागरण का कार्य, सामाजिक दंडशक्ति खड़ी करने का प्रयास, रचनात्मक कार्य एवं आवश्यक तो प्रत्यक्ष आंदोलन आदि अभाविप के आग्रह के विचार रहे । अर्थात यह सब साध्य करना है तो व्यक्ति निर्माण आवश्यक है । आज अनेक समस्याएं हैं । परंतु इन में भी गंभीर समस्या “माणूस” है । यह ध्यान में लेकर केलकर जी कार्यकर्ता – प्रशिक्षण – निर्माण पर अधिक बल देते थे । अभाविप का काम विचार, कार्यकर्ता, पैसा आदि सभी दृष्टि से आत्मनिर्भर हो ऐसा केलकर जी का आग्रह रहता था । अपना मूल विचार यानी संघ यानी मूलतः भारतीय विचार चिंतन ही है । परंतु अन्य किसी बात में हम परावलंबी रहे, तो हम उन व्यक्ति या संस्था/संगठन के आश्रित हो जाते हैं । उनका ही कहना मान्य करना पड़ता है । यह ध्यान में लेकर अपना व्यवहार सम्यक रहे ।
अभाविप प्रदेश, राष्ट्रीय अधिवेशन, आगे जिला अधि. शाखा, प्रदेश कार्यकारिणी गठन बैठकें सदस्य नोंदणी, हिसाब सद्सय सम्मेलन आदि का आग्रह रहता ही था। परंतु आगे कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग (शाखा से राष्ट्रीय तक) प्रारंभ किये गये ।
अपने ही कार्य से योग्य पद्धति से, निकषों के साथ पूर्णकालिक कार्यकर्ता निकलें/निकलते रहें ऐसा उनका आग्रह रहता था । पूर्णकालिक पूर्ण समय देता है, ठीक काम करता है, वैसे पूर्ण समय है तो काम बिगाड़ भी सकता है । यह ध्यान में लेकर केलकर जी पूर्णकालिक संस्था के निकष प्रशिक्षण पुछताछ, विकास, दिनचर्या, ज्ञानोपासना, सादगी के संदर्भ में अत्यंत आग्रही रहते थे । प्रारंभ अनेक वर्ष पू. का. की दिन/2दिन की बैठके माह में एक बार स्वयं लेते थे ।
मुंबई में काम कर रहे पू. का. की साप्ना बैठक स्वयं केलकर जी लेते थे । प्रारंभ में अनेक वर्ष मुंबई कार्यालय में हर दिन शाम रहते थे । कार्यालयीन काम में सहभागी होते थे । कै. कार्यालय का काम वह स्वयं अनेक वर्ष अप्रत्यक्ष रिती से करते/चलाते थे । हर विषय में परिपूर्णता का आग्रह रहता था ।
स्त्री – पुरूष एक मनुष्य जैसा विचार करते थे । प्रारंभ से ही मुंबई अभाविप काम में छात्रा सहभाग रहता था । छात्रा मंत्री, महिला अध्यक्ष, नियंत्रक, प्रमुख, विषय प्रस्तोता पूर्णकालिक आदि विषय केलकर जी के ही विचार आग्रह का परिणाम है । मन विचार चिंतन,मनन एवं कृति में एकता का दर्शन मैंने उनेके जीवन में किया । उनके ऐसे जीवन में प्रमुख कारण से सही अर्थ से प. पू. (कै.) देवरस जी ने कहा था ।
“केलकर जी यानी प. पू. हेडगेवार कुलोत्पन्न”
उनके आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि
(लेखक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं पूर्व में आप अभाविप के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री रह चुके हैं )