निधि त्रिपाठी
मंगलवार को India Today द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दिल्ली प्रदेश के मंत्री सिद्धार्थ यादव ने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि छात्र आन्दोलन के नाम पर बसें नही जलाई जाती हैं , पत्थर नही मारे जाते हैं, कृपा करके छात्र आन्दोलन को इन गतिविधियों के द्वारा बदनाम करना बंद कीजिए। इस विचार के गर्भ में ही अभाविप की सम्पूर्ण यात्रा समाहित है।
अभाविप के स्थापनाकाल से पूर्व अमूमन छात्र आंदोलन को दंगा – फ़साद, तोड़फोड़,आगजनी एवं मारपीट आदि से जोड़ा जाता था। कहा भी जाता था कि Student’s power Nuisance Power । अभाविप ने इस उक्ति को अपनी कार्यशैली एवं रचनात्मक दृष्टिकोण के द्वारा गलत साबित किया और Student’s power, Nation’s Power का नारा चरितार्थ किया। इसके बाद चाहे भारत – चीन युद्ध के दौरान सेना की सहायता हो या आपातकाल के दौरान सत्ता के विद्रूप चेहरे के समक्ष निर्भीक सत्याग्रह। घुसपैठ के विरुद्ध अनुशासनपूर्वक लाखों कार्यकर्ताओं की रैली का कुशल संचालन हो, कश्मीर में 370 के विरुद्ध अभियान हो या केरल में वामपंथी हिंसा एवं कम्यूनिस्ट शासन के विरुद्ध विशाल रैली का आयोजन हो। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने हर बार राष्ट्र के एक जागरूक एवं अनुशासित छात्र संगठन का धर्म बख़ूबी निभाया एवं लोकतंत्रात्मक तरीक़े से अपनी आवाज़ को भारतीय मानस के समक्ष प्रकट किया।
लोकतंत्र की यही ख़ूबसूरती भी है कि यहाँ विरोध का भी सम्मान है। बस वह लोकतंत्रात्मक तरीक़े से होना चाहिए। आज देश में नागरिकता संशोधन क़ानून का भी कुछ छात्र विरोध कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में जामिया मिलिया इस्लामिया में विरोध के नाम पर जो तोड़फोड़, आगज़नी, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, वह अत्यंत ही शर्मनाक है। छात्र आंदोलन की आड़ में इस प्रकार की मनमानी कतई स्वीकार नहीं की जा सकती है। हालाँकि जाँच में यह भी सामने आ रहा है कि छात्र आंदोलन को भीड़ द्वारा क़ब्ज़ा दिया गया था लेकिन पुलिस पर पथराव कर जामिया के गेट के भीतर अपने लिए सुरक्षित पनाहगाह पाने वाले शरारती तत्त्वों की पहचान कर निःसंदेह उन पर कड़ी कारवाई होनी चाहिए। छात्र आंदोलन को बदनाम करना असहनीय है। इसी प्रकार जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में भी छात्र आंदोलन के नाम पर कम्यूनिस्टों द्वारा महिला प्रोफ़ेसर के साथ बदसलूकी भी कतई स्वीकार नहीं की जा सकती। ऐसी घटनाएँ छात्र आंदोलन को विकृत रूप प्रदान करती हैं । ऐसा ही एक भयावह दृश्य तब सामने आया था जब जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा केरल में चल रहे धर्मपरिवर्तन पर एक डाक्यूमेंट्री का प्रसारण किया जा रहा था। वामपंथी संगठनों को यह रास नहीं आया और उन्होंने अभाविप कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट प्रारंभ कर दी। यह वामपंथी छात्र संगठनों द्वारा किसी छात्र संगठन की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला था। इसी प्रकार आज ही केरलवर्मा कालेज, त्रिशूर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता को SFI के कार्यकर्ताओं ने केवल इसलिए मारा है, चूँकि वह कार्यकर्ता नागरिकता संशोधन क़ानून का समर्थन कर एक कार्यक्रम आयोजित करना चाहता था। कम्यूनिस्ट छात्र संगठनों के द्वारा किसी छात्र की आवाज़ को दबाने के ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं। एक महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय का परिसर छात्रों द्वारा किसी विषय पर स्वस्थ चर्चा, परिचर्चा के लिए एक सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराने वाला होता है। किंतु जब महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय के परिसर इस प्रकार के दंगाई छात्र संगठनों से आक्रांत हो जाते हैं, तो छात्र-छात्राओं का उस परिसर में अपनी अभिव्यक्ति को स्वयं दबाना आम बात हो जाता है। इस विषय पर आज एक गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। क्योंकि जहाँ-जहाँ वामपंथी छात्र संगठन प्रभावी रहे हैं,वहाँ किसी सामान्य छात्र की आवाज़ को कुचलना एक आम बात रहा है और छात्र आंदोलनों को एक दंगाई के रूप में बदलने की प्रवृत्ति कहीं अधिक।
(लेखक, अभाविप की राष्ट्रीय महामंत्री हैं ।)