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संस्कार युक्त युवा – नशा मुक्त युवा – विक्रांत खंडेलवाल

राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष

किसी भी देश का वर्तमान एवं भविष्य, युवाओं के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है । जिस प्रकार विशाल ऊंची इमारत का निर्माण उसके मजबूत नींव पर ही संभव है उसी प्रकार देश की प्रगति और विकास,  संस्कारवान और कर्मठ युवा वर्ग पर निर्भर करता है। युवाओं का दिमाग उपजाऊ जमीन की तरह होता है। उन्नत सुसंस्कारित विचारों का जो बीज बो दें तो वही उग आता है। एथेंस के शासकों को सुकरात का इसलिए भय था क्योंकि वह युवाओं के दिमाग में अच्छे विचारों के बीज बोने की क्षमता रखता था। आज की युवा पीढ़ी में कुशाग्र दिमागों की कमी नहीं है लेकिन उनके मन – मस्तिष्क में विचारों के बीज पल्लवित कराने वाले स्वामी विवेकानंद और सुकरात जैसे लोग दिनोंदिन घटते जा रहे हैं। इन स्थितियों के बावजूद युवाओं को एक उन्नत एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर करना वर्तमान परिदृश्य में सबसे बड़ी जरूरत है। युवा सपनों को आकार देने का अर्थ है सम्पूर्ण मानव जाति के उन्नत भविष्य का निर्माण।

जीवन का सबसे ऊर्जावान अवस्था, युवावस्था है । यौवन को प्राप्त करना जीवन का सौभाग्य है युवावस्था प्रारंभ होते ही शारीरिक परिवर्तन की तरह मानसिक परिवर्तन भी होते हैं । इस काल में अनेकों भाव एवं विचारों का प्रवाह होता है । अंतर्द्वंद्व से गुजरने वाली इस अवस्था में शक्ति के प्रबल ज्वार उठते और विलीन होते हैं । जीने की तीन अवस्थाएं बचपन, युवावस्था एवं बुढ़ापा हैं, सभी युवावस्था के दौर से गुजरते हैं, लेकिन जिनमें कर्मठता नहीं होता, उनका यौवन व्यर्थ है।  संवेदनहीन विचार, लक्ष्यविहीन जिंदगीं, चेतना – शून्य उच्छ्वास एवं निराशावादी सोच मात्र ही उस यौवन की साक्षी बनते हैं, जिसके कारण न तो वे अपने लिए कुछ कर पाते हैं और न  समाज एवं देश को ही कुछ दे पाते हैं । वे इतना आत्मकुंठित होकर जीते हैं कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं  में ही उलझ कर अपने स्वर्णिम समय को व्यर्थ गंवा देते हैं । उनका यौवन कार्यकारी तो होता ही नहीं, खतरनाक प्रमाणित हो जाता है। युवाशक्ति जितनी विराट और उपयोगी है, उतनी ही खतरनाक भी है। इस परिप्रेक्ष्य में युवाशक्ति का रचनात्मक एवं सृजनात्मक उपयोग करने की जरूरत है। आज के युवा सही मार्गदर्शन के अभाव में अनेक विकारों के जाल में फंस रहा है । उसमें नशा एक प्रमुख विषय है क्षणिक आनंद के लिए युवा बहुत ही जल्दी नशे की और आकर्षित हो जाता है एक आंकड़े के मुताबिक हमारे देश में केवल एक दिन में ग्यारह करोड़ सिगरेट फूंके जाते हैं, यानी एक वर्ष में 50 अरब रूपये धुआं में उड़ जाते हैं । आज के दौर में नशा एक फैशन भी होता जा रहा है प्रति वर्ष लोगों को नशे से छुटकारा दिलवाने के लिए 30 जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प और शपथ दिवस, 31 मई को अंतरराष्ट्रीय ध्रूमपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और 2 से 8 अक्टूबर तक भारत में मद्य निषेध दिवस मनाया जाता है। मगर हकीकत में ये दिवस कागजी साबित हो रहे हैं।

जब हम नशा के बारे में सोचते हैं तो मन में दो प्रकार के प्रश्न उठते हैं । पहला – नशा क्यों ? और दूसरा इसके जिम्मेदार कौन ? आमलोग इसके लिए साथी – संगती को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन इसका कारण कुछ ओर है। आखिर क्यों आज कलम पकड़ने वाले युवाओं के हाथों में सिगरेट और शराब की बोतल है ? क्यों देश के बेटे और बेटियां ड्रग्स के गिरफ्त में जा रहे हैं ? क्यों आज देश का समान्य लोग नशे की गिरफ्त में आकर मुंह और फेफड़ों के कैंसर से मर रहे हैं ?  अगर इसकी तह तक जायेगें तो पता चलेगा कि इसका मुख्य कारण आज के युवाओं में संस्कारों का अभाव है । संस्कारविहीन युवा अपने जीवन के साथ – साथ देश एवं समाज के लिए भी हानिकारक है । आज यदि देश में इस नशे रूपी संक्रामक बीमारी  पर रोक लगाना है तो  युवाओ को संस्कार रूपी घुट्टी पिलानी ही होगी । जीवन मे हर किसी के सामने हर पल अच्छे और बुरे , सही और गलत दोनों विकल्प उपलब्ध रहते है किसी शहर में सुबह सुबह पार्क में लोग सैर के लिए जाते है सबकी अलग अलग गति होती है कोई तेज तो कोई धीमा चलता है हर किसी को कंपनी चाहिए अब हमें यह चुनना है कि हमें किसके साथ चलना है अपने से तेज चलने वाले का साथ लेंगे तो जल्दी अपना काम पूर्ण करेंगे और अगर अपने से धीरे चलने वालों के साथ लेंगे तो हमें अपनी गति धीमी करनी होगी ! फैसला हमें खुद को लेना है हमें क्या करना है
अनेक बार किसी शहर में हम गाड़ी में जा रहे होते है FM रेडियो का चैनल 93.7 लगाते है और गाना बजता है ” दुनियां में जो आएं है तो जीना ही पड़ेगा , जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा ” गाना चल रहा है फिर चैनल बदलते है 98.6 लगाते है गाना बज रहा है छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी , नए दौर में लिखेंगे मिल कर नई कहानी , हम हिंदुस्तानी….
देखिये गीत दोनों ही है एक ही समय पर उपलब्ध भी है अब हमें खुद को अपने जीवन का चैनल सैट करना है हमें किसके साथ रहना है विद्यार्थी परिषद आपको यह समझने का विवेक जागरण करने का काम करती है साथ ही हर प्रकार के विकल्प आपके सामने प्रस्तुत करती है
बहुत कुछ करने का वातावरण देती है क्योंकि विचारों के आसमान पर कल्पना के सतरंगी इंद्रधनुष टांगने मात्र से कुछ भी होने वाला नहीं है । समस्याओं को तो सभी गिनाते हैं लेकिन समस्याओं को समाधान तक पहुंचाने की बात बहुत कम ही लोग करते हैं । परिषद समस्या से समाधान तक की बात करती है ।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपने स्थापना काल से ही इस छात्र शक्ति को सुसंस्कारित कर राष्ट्र के विकास हेतु राष्ट्र शक्ति तैयार करने का काम कर रही है । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत को स्वावलंबी ही नहीं अपितु वैश्विक भूमिका के लिए तैयार करने चुनौती जब देश के सामने थी उस समय भी युवाओं की ऊर्जा को नियोजित कर उसे सार्थक दिशा देने का काम अगर किसी ने किया तो वह विद्यार्थी परिषद है ।

युवा ही परिवर्तन के वाहक हैं, इसलिए परिषद ने छात्र शक्ति को राष्ट्रशक्ति के बनाने के लिए चुना । महादेवी वर्मा ने भी कहा है कि “बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरूणाई सबल होती है” । परिषद के मुताबिक छात्र कल का नहीं अपितु आज का नागरिक है । युवाओं का संस्कारवान होना आवश्यक है । संस्कार जीवन को सार्थकता प्रदान करती है । सामुहिकता, अनौपचारिकता, पारस्परिकता, अनामिकता, अनुशासन, समय पालन, संवेदनशीलता, सामाजिक उत्तरदायित्व एवं सरोकार कर गुणों से युक्त अपनी कार्यपद्धति के साथ परिषद अपने कार्यकर्ताओं को संस्कारित कर  रही है । अभाविप अपने स्थापना काल से ही अपने सतत चलने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से छात्र शक्ति में संस्कारों का बीज अंकुरित करने उसका पोषण करने का काम कर रही है 2030 तक भारत सबसे अधिक युवाओं वाला देश हो जायेगा । युवा शक्ति का सही उपयोग  करने के लिए युवाओं में संस्कारों को जगाना होगा । संस्कार के अभाव में युवाओं की ऊर्जा भटक रही है । आये दिन समाचार पत्र की सुर्खियां नशा पर आधारित रहती है । ‘नशे के गिरफ्त में युवा’ जैसे हेडलाइन टेलीविजन में छाये रहता है । आज की पीढ़ी को भटकाव के बचाने, उचित दिशा निर्देश देने, संस्कारयुक्त – नशामुक्त बनने की प्रेरणा देने, राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका से रूबरू करवाने के लिए अभाविप लगातार प्रयास कर रही है और इसमें सफलता भी हासिल की है । अनेक स्थानों अभाविप द्वारा इस निमित्त जागरूकता शिविर, संगोष्ठी का आयोजन भी किया जा रहा है । कुछ दिन पहले ही विद्यार्थी परिषद द्वारा हिमाचल में ‘संस्कार युक्त युवा – नशा मुक्त युवा’ विषय पर सेमिनार का आयोजन भी किया गया था जिसके मुख्य अतिथि राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय जी थे ।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि  भारत के नव निर्माण के लिए मुझे सौ युवकों की आवश्यकता है । क्योंकि स्वामी जी जानते थे कि यही वह वर्ग है जिसके माध्यम से राष्ट्र का कल्याण हो सकता है । युवा दूरदर्शी होते हैं और उसका विजन भी दूरगामी होता है । स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से प्रेरित होकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद युवाओं की ऊर्जा को नियोजित कर राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित कर रही है । परिषद के मूल में ही छात्रशक्ति – राष्ट्रशक्ति है । परिषद का मानना है कि  युवाओं को सुसंस्कारित किये बिना राष्ट्र का विकास नहीं किया जा सकता है । विद्यार्थी परिषद का उद्देश्य संस्कार युक्त – नशा मुक्त भारत के पुनर्निर्माण का है और विगत 70 वर्षों से परिषद इसी राष्ट्रीय कार्य में लगी हुई है । युवाओं के ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक एवं सृजनात्मक हो, इस ध्येय से युवाओं की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए परिषद सतत रूप से प्रयासरत है । परिषद भिन्न भिन्न विषयों में रुचि रखने वाले युवाओं को उनकी रुचि के अनुसार उनको अलग अलग कार्य , मंच आदि उपलब्ध करवाती है जिससे उनके अंदर छिपी प्रतिभा को निखार कर अपनी उस ऊर्जा का उपयोग अपने व्यक्तित्व विकास के साथ साथ देश हित मे कर कर सके ! आज के इस चुनौती पूर्ण समय मे देश का युवा छात्र परिषद के साथ आकर स्वामी विवेकानंद के विचारों को अपना कर देश भक्त बनेगा और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देगा !

(लेखक, अखिल  भारतीय विद्यार्थी परिषद , उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हैं ।)

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