बापू के निधन के 72 साल बाद भी उनके विचार और दर्शन आज भी प्रसांगिक है, इसे न केवल भारत के लोगों ने बल्कि विश्वभर के लोगों ने अपनाया है। एक स़च्चे नायक के रूप गांधी जी को न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में हमेशा याद किया जाता है और किया जाता रहेगा। भारत समेत विश्व भर की एक बड़ी आबादी ने बापू को नहीं देखा होगा लेकिन गांधी दर्शन और विचारधारा 21वीं शताब्दी में आज भी प्रासांगिक है। इसे न केवल भारत के लोग बल्कि विश्वभर के देश भी अपना रहें है। गांधी जी ने हमेशा मानव मात्र के कल्याण और विश्व बंधुता की बात की। वर्तमान समय में भी हमें विश्व बंधुता के लिए गांधीवाद की और लौटना होगा। वो कौन सी बातें है जो बापू को महान बनाती है उन्हें एक सच्चे नायक के रूप में स्थापित करती है। गांधीवाद के चार आधारभूत सिद्धांत है-सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव। गांधी जी ने आजीवन इन सिद्धांतों का पालन किया जिससे गांधीवाद का उदय हुआ। बापू सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनका विचार था कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है।
गांधी जी की विचारधारा राष्ट्रीयता और अहिंसा पर टिकी हुई थी । वे स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे, जिसका उदाहरण गांधी जी से जुड़े कई प्रसंगों में मिलता है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्य राष्ट्रीयता के साथ – साथ चलता है । विद्यार्थी परिषद गांधी जी के व्यक्तित्व की न केवल चर्चा करता है अपितु उनके दर्शन का अमल कर राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने का कार्य भी कर रहा है। गांधी जी के सार्धशती को परिषद देश भर में अनूठे तरीके से मना रहा है, जिसकी बानगी हाल में संपन्न अभाविप के राष्ट्रीय अधिवेशन (आगरा) में देखी गई । तकनीय और आधुनिकता को मिलाकर अधिवेशन स्थल पर गांधी 150 के नाम से सेल्फी प्वाइंट बनाया गया था। गांधी जी के विचार और परिषद की प्रवाहमान यात्रा पर अगर आप गौर करेंगे तो पता चलेगा कि परिषद ने आरंभ से ही नकारात्मक शक्तियों का प्रतिकार गांधीवादी तरीके यानी अहिंसा और सत्याग्रह के जरिये किया है।
महात्मा गांधी 20वीं शताब्दी के दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक और आध्यात्मिक नेताओं में से एक माने जाते है। 21वी शताब्दी में भी गांधीवाद की प्रासंगिकता और ज्यादा बढ़ी है आइए जानते है कैसे-
विश्व बंधुता- महात्मा गांधी सदैव विश्व बंधुता के पक्षधर रहें। वर्तमान समय में जिस प्रकार से विश्वभर के देशों ने अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए हमें एक बार फिर से तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर लाकर खडा कर दिया है। आज अमेरिका-ईरान, सीरिया-अफगानिस्तान, भारत-पाकिस्तान, दक्षिण व उतरी कोरिया में जिस प्रकार के हालात बने हुए है वो बेहद ही चिंताजनक है। ऐसे में इन देशों को गांधीवाद की ओर लौटना होगा ताकि विश्वभर में शांति की स्थापना की जा सकें।
अहिंसा के पुजारी– गांधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। चैरा चोरी में हुई हिंसा की घटना के बाद उन्होंने अपना आंदोलन तक स्थगित कर दिया था। उनका मानना था कि हिंसा के रास्ते पर चलकर हम किसी भी चीज का समाधान नहीं निकाल सकते। वर्तमान समय में देशभर में हुए आंदोलनों में हिंसा का सहारा लिया जा रहा है वो कतई ठीक नहीं है। इन आंदोलनों के पथ प्रदर्शकों को गांधी जी से प्रेरणा लेनी चाहिए।
स्वराज- गांधी जी का मानना था कि भारत गांवों में बस्ता है और उनका स्वराज इन्हीं गांवों में । गांधी जी कहते थे जब तक गावों का संपुर्ण विकास नहीं होगा तब तक भारत के वास्तविक विकास की कल्पना करना बेमानी है। वे गांवों के लघु उद्योगों की दुर्दशा से बेहद चिंतित थे। वो चाहते थे कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो। इसके साथ-साथ वे मजबूत पंचायती राज व्यवस्था भी गांवों में चाहते थे जिसके माध्यम से इस देश के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक सबल व स्वावलंबी बनाया जा सके। आज मजबूत पंचायती राज व्यवस्था की आवश्यकता पूरे देश भर में महसूस की जा रही है और इसके लिए निंरतर प्रयास भी हो रहें है।
स्वदेशी का आग्रह– गांधी जी का देश के लोगों से सदैव स्वदेशी के प्रयोग का आग्रह रहा। वे चाहते थे कि हम भारतीय हमारे देश में बने उत्पादों का अधिक से अधिक प्रयोग करें। उनका मानना था कि हम विदेश वस्तुओं का न्यूनतम प्रयोग करें। स्वदेशी के प्रयोग से जहां हमारी अर्थव्यस्था मजबूत होगी तो वहीं हमारे उद्योगों को भी बढावा मिलेगा। वर्तमान समय में भी स्वदेशी का आग्रह निंरतर बढ रहा है।
स्वच्छता- गांधी जी स्वच्छता के सजग प्रहरी थे। गांधी जी का मानना था कि स्वच्छता ईश्वर भक्ति के बराबर है। जो कोई भी उनके आश्रम में रहने आता था गांधी जी की पहली शर्त होती थी की उन्हें आश्रम में सफाई का कार्य करना होगा। वे चाहते थे कि भारत का प्रत्येक नागरिक देश का स्वच्छ बनाने में अपना योगदान दे। पिछले कुछ समय में हमने देखा है कि स्वच्छता अभियान को हमारे देश के लोगों बडे स्तर पर अपनाया है और इसके परिणाम भी नजर आ रहें है।
अस्पृश्यता- गांधी जी ने अस्पृश्यता को समाज का घातक रोग और कलंक माना। उन्होंने इस रोग को मिटाने के लिए आजीवन संर्घष किया। गांधी जी का कहना था कि अस्पृश्यता के कारण हिंदू समाज पर कई संकट आए है। वो अस्पृश्यता के इस कलंक का जड से मिटा देना चाहते थे। उनके ये प्रयास सफल भी हुए और धीरे धीर समाज से अस्पृश्यता का कलंक भी मिटता चला गया।
शिक्षा- गांधी जी ज्ञान आधारित शिक्षा के साथ- साथ आचरण आधारित शिक्षा भी शिक्षण संस्थानों में चाहते थे। वे चाहते थे कि शिक्षा प्रणाली ऐसे होनी चाहिए जो व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान प्रदान कर उसे नैतिक रूप से सबल बनाए। वर्तमान समय में हमारे समाज में प्रतिदिन घट रही अनैतिक घटनाओं को रोकने के लिए नैतिक शिक्षा की आवश्यकता दिन- प्रतिदिन बढती जा रही है।
धर्म- गांधीवाद को समझने से पहले हमें यह जान लेना जरूरी होगा की गांधीवाद की बुनियाद ही धर्म पर टिकी है। उनके धार्मिक विचार सदैव जीवन में उनके पथ प्रदर्शक बने रहे। गांधी जी के अनुसार धर्म सबसे प्रेम करना सिखाता है, न्याय तथा शांति की स्थापाना के स्वयं के बलिदान की प्रेरणा भी देता है। गांधी जी हमें सर्वधर्म का सम्मान करना सीखाते है।
वर्तमान समय में जिस प्रकार का परिदृश्य हमारे चारों ओर बन रहा है उसमें गांधीवाद और भी ज्यादा प्रासंगिक होता जा रहा है। आज के दौर में उनके सिद्धांत बेहद जरूरी है। धार्मिक उन्माद, कट्टरता, आंदोलनों के नाम पर होने वाली हिंसा आज गांधीवाद की जरूरत महसूस करवा रहीं है। आज न सिर्फ भारत को बल्कि विश्वभर के देशों को गांधी जी के दिखाएं रास्ते पर चलने की आवश्यकता है। 2019 में भारत सहित विश्वभर में बापू की 150वीं जयंती मनाई गई। उनके विचारों पर हर जगह चर्चा भी हुई, वो पहले भी होती रहीं है और हमेशा होती रहेगी। लेकिन उनके विचारों को आत्मसात् किए बिना उनकी जयंती या पुण्यतिथि मनाने की सार्थकता कैसे हो पाएगी। आजकल कई प्रदर्शनों में गांधी जी की तस्वीर के साथ लोग मार्च (हिंसात्मक) करते नजर आते हैं, ये वही लोग हैं जो गांधी पर बात तो बहुत करते हैं लेकिन उनके बताये गये मार्ग का अनुशरण नहीं करते।
(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े हुए हैं।)