निर्भया के दरिंदों को आज फांसी दी गई। फांसी देने के बाद लोगों के चेहरे पर सुकून का भाव है लेकिन इसके लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने लंबी लड़ाई लड़ी। पिछले सात वर्षों से लगातार परिषद के कार्यकर्ता निर्भया के न्याय के लिए लड़ाई लड़ती रही। 7 वर्ष सुनने में तो बहुत कम लगता है। परन्तु जब एक – एक पल पीड़ा से होकर गुजरता है तो यह युग सा लगता है। आज जब निर्भया के गुनहगारों को उनके मानवता को शर्मसार करने वाले कृत्य की सजा मिली तो निश्चित तौर पर इस आंदोलन से जुड़े हर विचार, संगठन और व्यक्ति को सुकून का अहसास हो रहा है और न्यायपालिका पर भी विश्वास बढा है। हमने इस पूरे संघर्ष के कालखण्ड में निर्भया की माँ श्रीमती आशा देवी जी एवम श्री बदरीनाथ जी को बहुत नजदीक से देखा है। सामान्यतया ऐसे घटनाक्रम में किसी भी छात्रा के परिजन अपने को छुपा लेते है। परन्तु निर्भया की माँ ने जिस प्रकार से योद्धा के रूप में अपनी बेटी के लिये न्याय की लड़ाई को लड़ा यह न केवल पीड़ित लोगों अपितु सभी के लिये प्रेरणादायक है। आज भी जब हम 16 दिसम्बर 2012 की उस घटना को याद करते है तो शरीर सिहर जाता है। घटना के बाद मानो पूरा देश ही सड़को पर उतर आया था।
स्वयंस्फूर्त एक आंदोलन देशभर में खड़ा हो गया। हर दिन दिल्ली की सड़को में हजारों युवक व युवतियां निर्भया को न्याय और दोषियों को फांसी की मांग को लेकर इंडिया गेट पर एकत्रित होते थे। पहली बार न्याय का आंदोलन देश के राष्ट्रपति भवन के दरवाजे तक भी पहुँचा।
केंद्र की सरकार ने आश्वासन भी दिए, फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट भी बना व निर्भया फण्ड की भी स्थापना की गई। परन्तु कुछ समय के बाद यह आंदोलन जिस आवेग के साथ उत्पन्न हुआ था, उसी गति से समाप्त भी हो गया। बहुत सारे विचार के लोंगो ने अपने स्वार्थ भी साधे, राजनीतिक लोगो ने अपनी- अपनी राजनीति रोटियां भी सेकी। और धीरे-धीरे सब लोग इस आंदोलन की परिणीति के बिना ही किनारा कर गए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पहले दिन से ही इस आंदोलन का हिस्सा रही । न केवल दिल्ली अपितु देशभर में परिषद कार्यकर्ता सड़को पर निकले । मुझे याद है जब यह घटनाक्रम हुआ तब परिषद की राष्ट्रीय बैठक चल रही थी।और उसके बाद राष्ट्रीय छात्रा सम्मेलन भी था जिसमें निर्भया के गुनहगारों को फांसी देने का प्रस्ताव भी पारित हुआ। उसी दिन एक बहुत बड़ी रैली परिषद ने निकाली।
पिछले 7 वर्षों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लगातार निर्भया की माँ की लड़ाई में जुड़ी रही। साथ ही महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिये निरन्तर महाविद्यालय परिसरों से लेकर अपने अधिवेशनों में इस अभियान को चलाया है। न केवल हर साल 16 दिसम्बर अपितु वर्ष भर की गतिविधियों में महिला विषय पर कार्य किया। निर्भया के घटना के समय बहुत लोग इस आंदोलन से जुड़े परन्तु समय के साथ वह कम होते गए लेकिन परिषद हमेशा न्याय की इस लड़ाई का हिस्सा रही।
परिषद ने देश भर की छात्राओं की दिल्ली में “छात्रा संसद” रखी जिसमें महिला सुरक्षा, सम्मान, स्वाभिमान, शिक्षा एवम आर्थिक स्वावलंबन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर व्यापक रणनीति एवम भविष्य की रूपरेखा तय की गई थी। इस संसद में निर्भया की माँ श्रीमती आशा देवी ने देशभर की छात्राओं को सम्बोधित करते हुई कहा था कि मैं केवल निर्भया की लड़ाई नही लड़ रही अपितु हर पीड़ित बेटी की लड़ाई लड़ रही हूं। उन्होंने कहा कि मैं न्याय के लिये सब जगह गई बहुत लोगों ने आश्वासन दिए परन्तु कुछ नही हुआ। आज आप सबके बीच आकर मुझे विश्वास हो गया कि यदि परिषद मेरे साथ रहेगी तो मैं यह लड़ाई जरूर जीतूंगी। निर्भया की मां के इन शब्दों ने परिषद कार्यकर्त्ताओ में उत्साह का संचार कर दिया।
निर्भया की माँ से मिलने वाली हर कार्यकर्ता मानो उनको यह कह रही थी कि इस लड़ाई में तुम अकेली नही हो देशभर की हर परिषद की कार्यकर्ता आपकी बेटी है ।निश्चय ही परिषद दायित्व के कारण इस आंदोलन को करने वाले परिषद कार्यकर्ता अब भावनात्मक रूप से भी इस आंदोलन से जुड़ गए। दिल्ली में सभी मंचो पर निर्भया की मां का समर्थन करना , निरन्तर अभियान चलाना । एक समय इस आंदोलन को चलाते- चलते जब आशा देवी भी थक गई थी उनकी उम्मीद टूटने लगी थी। न्यायालय से भी बहुत हतास हो गई थी।
जो लोग बहुत जोर-जोर से समर्थन में बोल रहे थे वो भी छिटक गए थे। तब निर्भया की मां ने पुनः परिषद के लोगो से सम्पर्क किया। और आग्रह किया कि लगता है अब यह आंदोलन समाज का नही रह गया है इसलिये न्यायालय में भी दोषियों के पक्ष वकील बहुत ताकत के साथ लड़ रहे है। और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरिवाल ने एक मुस्लिम नाबालिग दोषी को न केवल छोड़ दिया बल्कि 10000 रुपये एवम सिलाई मशीन तक दे दी। यानि निर्भया के दोषियों को बचाने की मुहिम भी शुरू हो गई।
जब एक माँ की सभी उम्मीदें टूट रही थी तब एक बार फिर छात्र शक्ति यानि परिषद कार्यकर्ताओ ने इस आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया। निर्भया की माँ आशा देवी एवम पिता बद्रीप्रसाद को साथ लेकर हजारो छात्र-छात्राओं को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय में “निर्भया न्याय “रैली निकाली। JNU में निर्भया की माँ को बुलाकर सेमिनार आयोजित की गई। 8 मार्च को विशाल मार्च निकाली गई।
निर्भया के दोषियों को सजा दिलाने के लिए विद्यार्थी परिषद ने देशभर में आंदोलन करते हुए दिल्ली में बड़ा आंदोलन प्रारम्भ किया। इस पूरे आंदोलन में आशा देवी परिषद के साथ रही। धरना,प्रदर्शन, ज्ञापन, घेराव हुए। पुलिस ने कार्यकर्ताओं में भयंकर लाठीचार्ज किया। छात्राओं को बसों में भर-भरकर जंगलो में छोड़ना इन प्रदर्शनों में भी निर्भया की मां परिषद कार्यकर्ताओ के साथ रही। यह कहना अतिश्योक्ति नही की अब ये आंदोलन पूर्णरूप से परिषद लड़ रही थी। आंदोलन का दूसरा भाग भी प्रारम्भ हुआ जिसमें ज्युनैल जस्टिस बिल में संशोधन की मांग परिषद ने उठाई। इसको लेकर परिषद ने निर्भया की माँ के नेतृत्व में सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओ से मुलाकात की।लोकसभा एवं राज्यसभा में बिल की पैरवी की। दुखद यह हुआ कि जो लेफ्ट के लीग न्याय का ढिंढोरा पिट रहे थे जब ज्युनैल जस्टिस बिल में संशोधन पारित हो रहा था उन्होंने राज्यसभा में बहिष्कार कर दिया। इस आंदोलन में परिषद का कितना महत्व है यह इस बात से मालूम होता है जब पत्रकार वार्ता हुई तो स्वयं आशा देवी ने कहा कि इसमें परिषद के नेता भी रहेंगे।
आज जब यह आंदोलन और संघर्ष के कारण दोषियों को फांसी दी गई तो स्वाभाविक है देश के हर नागरिक के मन मे उत्साह है कि मानवता को तार-तार करने वालो को अपने किये की सजा मिली है। परिषद को भी यह सन्तोष है कि एक आंदोलन की सही दिशा देकर परिणाम तक पहुंचाने का गुरुतर दायित्व पूर्ण हुआ। परन्तु परिषद का संकल्प जारी रहेगा कि इस देश की हर बेटी सुरक्षित रहे फिर कोई निर्भया न बने । इसलिये केवल कठोर कानून या सजा से इसका समाधान नही होगा बल्कि समाज में जागरण करते हुई मानस बदलना पड़ेगा। साथ ही छात्राओं में महिला होने का डर निकलना पड़ेगा। इसका ही देशव्यापी व्यवहारिक प्रयोग परिषद ने शुरू किया “मिशन साहसी’। यह एक सफलतम अभियान सिद्ध हो रहा है लाखो छात्रायें ईस अभियान का हिस्सा बन रही है।
आज निर्भया और उसके न्याय की लड़ाई लड़ने वालों के लिये बहुत बड़ी जीत का दिन है। परिषद् का यही संकल्प है कि इस देश की हर बेटी पढ़े, सुरक्षित हो, उसका सम्मान हो, वह स्वस्थ रहे एवं स्वाभिमान के साथ जी सके।
अबला नही तूफान है।
बेटी भारत की शान है।
(लेखक अभाविप के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री हैं )