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Home पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा : अयोध्या-आंदोलन का रामचरितमानस

अजीत कुमार सिंह by डॉ. जयप्रकाश सिंह
April 1, 2020
in पुस्तक समीक्षा
युद्ध में अयोध्य पुस्तक का आवरण पृष्ठ

युद्ध में अयोध्य पुस्तक का आवरण पृष्ठ

अयोध्या धर्मपालन की सतत आकांक्षा का रामचरितमानस है। दुर्भाग्य से हमारी स्मृति से अयोध्या की यह छवि छीन ली गई है। राजनीति ने अयोध्या के चहुंओर सीमित दायरे का पहरा खड़ा कर दिया है। इसलिए हमारी अयोध्या-यात्रा 1990 के उस पार जाने का तैयार नहीं है, और 1990 के पहले जाए बगैर हम उस अयोध्या-परम्परा से जुड़ नहीं सकते, जो मर्यादा और धर्मपालन के लिए सदैव सजग रहती है।

हेमंत शर्मा की पुस्तक ’युद्ध में अयोध्या’ इस काल अवरोध को तोड़ने का बौद्धिक अनुष्ठान है। अयोध्या के मर्म से परिचित होने समसामयिक प्रयास है। पुस्तक को पढ़ने के बाद अयोध्या यकायक बहुत बड़ी हो जाती है और हमारे अस्तित्व का अहम हिस्सा भी बन जाती है। लेखक ने भी संभवतः अयोध्या को इसी रूप में लिया है – ’अयोध्या एक लक्षण है, मजहबी असहिष्णुता के विरुद्ध प्रतिकार का। अयोध्या प्रतीक है, भारत राष्ट्र के आहत स्वाभिमान का। अयोध्या एक संकल्प है, अपनी प्राचीन सांस्कृतिक से हर कीमत पर जुड़े रहने का। अयोध्या शमशीर से निकली उस विचारधार का प्रतिकार है, जो सर्वपंथ समादर, सर्वग्राही और उदार सहिष्णुता के भारतीय आदर्शों को स्वीकार नहीं करती। उसे कुचलती जाती है।’ ( पृष्ठ 9)

पुस्तक अयोध्या को राजनीति के दायरे से बाहर निकालकर सभ्यतागत विषय बना देती है। और इसीलिए अयोध्या का संघर्ष, सभ्यता का संघर्ष बन जाता है। वास्तविकता भी यही है कि अयोध्या का आकलन सभ्यतागत संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में किए बगैर उसकी महत्ता से परिचित नहीं हुआ जा सकता । ’इन गुम्बदों को लेकर आक्रोश हर काल में था। पर किसी ने उसे समझने और सुलझाने की कोशिश नहीं की। दरअसल, यह चुनाव की राजनीति नहीं, दो विचारधाराओं का टकराव था, जिसमें एक-विचारधारा, उपासना स्वातंत्र्य,सर्वपंथ समभाव, पंथनिरपेक्षता पर टिकी थी। तो दूसरी-मजहबी एकरुपता, धार्मिक विस्तारवाद और असहिष्णुता पर टिकी थी।’ ( पृष्ठ 10)

लेखक अयोध्या और भगवान राम के संदर्भों में डाॅ. राम मनोहर लोहिया के निष्कर्षों से सहमत है। राजनीति संघर्षों को दरकिनार कर ही अयोध्या को सप्तपुरी और श्रीराम को मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। ’डाॅ. राममनोहर लोहिया को अपने जमाने का सबसे बड़ा ’सेकुलर’ मानता हूं।  उनका जन्म फैजाबाद में हुआ था। वे कहते थे ’ राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है, कृष्ण की उन्मुक्त और शिव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी हैं। मैं जानता हूं, इस देश का मानस गढ़ने में राम, कृष्ण और शिव की भूमिका रही है।………..राम हिन्दुस्तान की उत्तर-दक्षिण की एकता के देवता थे।’ लेकिन दुर्भाग्य देखिए, लोहिया के चेले यह नहीं समझ पाए और वे आडवाणी से लड़ते-लड़ते राम से लड़ने लगे। अगर वामपंथी मित्रों ने भी लोहिया और गांधी की नजर से राम को देखा होता तो वे अयोध्या आंदोलन के मर्म को आसानी से समझ लेते।’ ( पृष्ठ 10)

एक वैचारिकी के प्रतीक रहे नामवर सिंह अयोध्या पर लिखी किसी पुस्तक को पढ़कर यह कह उठें कि जीवन सार्थक हुआ तो यह बहुतों के लिए आश्चर्य का विषय बन जाता है। आलोचना करते समय शायद ही किसी किताब में उन्होंने जीवन की सार्थकता ढूंढी हो। युद्ध में अयोध्या किताब में सच इतने सारे आयाम इतनी तीव्रता के साथ आए हैं कि झुठलाने कि स्थिति बचती ही नहीं।

यह किताब पढ़ने के बाद आपको यह आभास होता है कि क्यों अयोध्या पांच सौ सालों का संघर्ष है। कैसै अनेकों पीढ़ियां इसके लिए संघर्षरत रहीं। कैसै करपात्री जी महाराज, महंत दिग्विजय नाथ, हनुमान प्रसाद पोद्दार और पटेश्वरी प्रसाद सिंह ने 1949 में रामजन्म भूमि आंदोलन की नींव रखी। क्यों नेहरू के चाहने के बावजूद तत्कालीन जिलाधिकारी के.के.के.नायर के चातुर्य के कारण रामलला वहीं पर विराजमान रहे। उत्खनन से निकले सच ने कैसे माक्र्सवादी इतिहास का कब्रिस्तान तैयार किया, ऐसा बहुत कुछ है जो इस किताब को महत्वपूर्ण दस्तावेज बना देता है। और सब कुछ समेटने के बावजूद किताब एकदम सहज है। यह काम कोई पत्रकार ही कर सकता है। यह पुस्तक सभी सजग युवाओं के पास होनी ही चाहिए। पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए तो यह तथ्य,कथ्य और भाषा तीनों के लिहाज से एक जरुरी पुस्तक बन जाती है।

किताब का नाम: युद्ध में अयोध्या

लेखक: हेमंत शर्मा

प्रकाशन: प्रभात प्रकाशन

मूल्य: 900 रुपए ( हार्डकवर), अमेजन पर 450 रुपए में उपलब्ध।

 

Tags: abvpAKHIL BHARATIYA VIDYARTHI PARISHADayodhyabajran dalBJPhemant sharmarssvhpyudh main ayodhyaअयोध्यायुद्ध में अयोध्याराममंदिर आंदोलनरामायणश्रीराम
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