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Home लेख

कोरोना महामारी के विरुद्ध सवा सौ करोड़ भारतीयों की संगठित शक्ति का प्रतीक दीप

अजीत कुमार सिंह by निधि त्रिपाठी
April 7, 2020
in लेख
कोरोना महामारी के विरुद्ध सवा सौ करोड़ भारतीयों की संगठित शक्ति का प्रतीक दीप

वर्ष 2019 के अन्त में चीन के वुहान से उत्पन्न हुए चाइना वायरस अर्थात् कोरोना वायरस ने सम्पूर्ण विश्व को आतंकित कर दिया है तथा मानव द्वारा किये गए आविष्कारों और प्रयोगों को धता साबित कर दिया है। आज कोरोना से विश्व के 200 से भी अधिक देश प्रताड़ित हैं, जिसमें विश्व के शक्तिशाली तथा सभी प्रकार की सुविधाओं से सम्पन्न देश चीन, इटली, स्पेन तथा अमेरिका भी बुरी तरह से प्रभावित हैं। इटली और स्पेन में कोरोना से हो रहा मृत्यु का ताण्डव आज किसी से छिपा नहीं है तथा वैश्विक महाशक्ति अमेरिका में आज 3 लाख से अधिक लोग कोरोना से प्रभावित हैं तथा 10 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

COVID-19 महामारी से आज हमारा प्यारा भारत देश भी अछूता नहीं है। कोरोना वायरस की पुष्टि भारत में 30 जनवरी 2020 को केरल में हुई। आज लगभग सम्पूर्ण भारत  कोरोना वायरस की चपेट में है, जिससे सबसे अधिक पीड़ित राज्य महाराष्ट्र है। सवा सौ करोड की आबादी और सघन जनसंख्या घनत्व के बावजूद भी हमने अभी तक इस महामारी को रोकने के सार्थक प्रयास किए हैं और आज भी प्रयास निरन्तर जारी है। भारत की केन्द्र सरकार के द्वारा भारवासियों की सहायता हेतु हेल्पलाइन नम्बर जारी करने, आरम्भ से ही भारतीयों को जागरूक करने हेतु टेलीकाम कम्पनी के द्वारा फोन के माध्यम, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि प्रकार से जागरूक किया जा रहा है। वर्तमान में कोरोना वायरस से भारतवासियों को बचाने हेतु की गई 21 दिनों की तालबन्दी के दौरान केन्द्र सरकार भारत के विद्यार्थी, किसान, निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले सभी का ध्यान रखते हुए उचित कार्य कर रही है और साथ ही राज्य सरकारों के द्वारा भी निरन्तर सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं।

इस विपदा के काल में अपने प्राणों को संकट में डाल कर समस्त भारतीयों की रक्षा के लिए अहर्निश कार्य करने वाले स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी, स्वच्छताकर्मी, मीडियाकर्मी, बैंककर्मी सब्जी विक्रेता तथा वे समस्त योद्धा जो राष्ट्र को इस महामारी से बचाने हेतु कटिबद्ध है, उन्हें  एवं उनके पारिवरिक जनों के प्रति यह राष्ट्र सदा कृतज्ञ रहेगा। आज इस आपदा के दौर में सर्वदा की भाँति राष्ट्सेवा को अपना कर्तव्य मानकर कार्य करने वाले संघ के स्वयंसेवक एवं विविध संगठन सम्पूर्ण भारत में रक्तदान, भोजन वितरण आदि के माध्यम से नर सेवा नारायण सेवा का भाव मन में लेकर निरन्तर सेवाकार्य कर रहे हैं।

कोरोना वायरस का इलाज अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है। ऐसी परिस्थिति में समाज के सहयोग और सामूहिक प्रयास से ही इस लड़ाई को जीता जा सकता है। इतिहास साक्षी है कि जब- जब समाज बंटा है, तब-तब शत्रु को लाभ मिला है। संगठित समाज में बड़ी से बड़ी  आपदा को टालने का साहस होता है। हमारी संस्कृति हमें संगठित समाज का सूत्र बताती है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब वनवासी के रूप में अपनी भार्या एवं अपने कनिष्ठ भ्राता के साथ वनवास पर आए तो सीतामाता के हरण के पश्चात हुए राम-रावण युद्ध में भगवान राम की सेना स्वर्गलोक से आए देवताओं की सेना नहीं थी अपितु संगठित समाज से बनी सेना थी।भगवान् राम ने असंगठित वनवासी समाज को संगठित किया। तत्पश्चात् नल, नील, निषादराज, जटायु, अंगद, जामवंत तथा भगवान हनुमान आदि के सामूहिक प्रयास से रावण के दर्प का शमन हुआ।

द्वापरयुग में हुआ महाभारत का युद्ध केवल पाण्डवों और कौरवों के बीच का युद्ध नहीं था। पाण्डव अकेले 5 थे और सामने 100 भाइयों वाले कौरव एवं उनकी अठारह अक्षौहिणी। वह युद्ध नीति और अनीति, सत्य और असत्य तथा धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध था। जिसमें पाण्डवों ने समाज को जागृत कर उनके सहयोग से कौरवों की 18 अक्षौहिणी सेना को परास्त किया। मुगलकाल में छत्रपति शिवाजी महाराज के पास शस्त्रों का अभाव था। वो जानते थे कि मुगलों के विरुद्ध यह लड़ाई अकेली नहीं जीती जा सकती है। इस हेतु शिवाजी महाराज ने सुषुप्त तथा स्वाभिमानहीन पड़े हुए हिंदू समाज के भीतर चेतना तथा आत्म स्वाभिमान जगाया और समाज को एकत्रित कर क्रूर शासक औरंगजेब के विरुद्ध और अधिक उत्साह से खडे हुए और दक्खन पर कब्जा करने का औरंगजेब का स्वप्न स्वप्न ही रह गया।

अंग्रेजों के विरुद्ध चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन में तिलक जी ने गणेश अर्चना तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के उत्सव आदि के माध्यम से समाज में चेतना जगाई और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए समाज को एकजुट किया। महात्मा गाँधी जी के द्वारा विदेशी वस्त्रों का परित्याग करने तथा एक छोटी सी वस्तु नमक के लिए आरम्भ किए गए आन्दोलन से एकत्रित हुए समाज के सहयोग ने एक जनान्दोलन का रूप धारण किया तथा अंग्रेजों को भारतीयों की एकता की ताकत का भान कराया। हिन्दू समाज में फैले हुए छुआ-छूत जैसे महापाप के विरुद्ध बाबासाहब भीमराव रामजी अम्बेडकर ने आवाज उठाई, समाज में चेतना जागृत की तथा समाज को अत्याचार के विरुद्ध संगठित किया। उस सामाजिक जनचेतना का उत्साह आज भी प्रज्ज्वलित है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना काल से आजतक बाबा साहब के समरस समाज के स्वप्न को साकार करने हेतु कटिबद्ध है।

स्वतंत्रता के पश्चात् 1965 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब भारत पर अन्न का संकट आया तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी ने एक समय का भोजन त्यागने का आह्वान किया। भारतवासियों ने अपने नेतृत्व पर विश्वास दिखाया और देश उस संकट से बाहर आ गया। इतिहास के पन्नों में अंकित ये सभी प्रसंग बताते हैं कि समाज की एकजुटता से बड़े से बड़े संकट को भी टाला जा सकता है तथा बड़े से बड़े शत्रु को भी हराया जा सकता है।

कोरोना के विरुद्ध चल रही इस लड़ाई के योद्धाओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने हेतु देश के प्रधानमन्त्री जी के आह्वान पर सवा सौ करोड भारतवासियों ने थाली, घण्टी, शंख तथा करतल ध्वनि आदि के माध्यम से योद्धाओं के प्रति आभार प्रकट किया। इसी प्रकार से पुनः हमारे प्रधानमंत्री जी ने देश को एक सूत्र में पिरोने तथा इस अन्धकार एवं नकारात्मकता के काल में देशवासियों में सकारात्मकता का भाव भरने हेतु 5 अप्रैल को रात्रि 9 बजे 9 मिनट के  लिए अपने घरों की लाइट को बन्द कर दीप, मोमबत्ती, टार्च आदि के माध्यम से प्रकाश करने का आह्वान किया था। 5 अप्रैल को जब रात्रि के  9 बजे 9 मिनट के लिए देश की सीमा पर खडे जवान, धनवान व्यक्ति, झोपडी में रहने वाले व्यक्ति, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तथा इसाई ने जब दीप जलाया तो वह दिया किसी और ने नहीं अपितु भारतवासियों की संगठित शक्ति  ने जलाया था। रात्रि को 9 बजे 9 मिनट के लिए जला वह दीप भारवासियों की एकता का साक्षी बना। सात्विकता के प्रतीक उस दिये ने भारतीयों की एक मनः स्थिति को प्रकट किया। घनघोर तिमिस्त्रा के बीच आशा की एक किरण के रूप में उस दीप ने एकस्तथा सर्वभूतांतरात्मा रूपं -रूपं प्रतिरूपो बहिश्च जैसे उपनिषद वाक्य को साकार किया। जिसमें प्रत्येक हाथ में दीपक ज़रूर अलग अलग थे किंतु उसमें निहित अग्नि हम भारतीयों की एकता की परिचायक थी। । 9 बजे जले उस दीपक ने चाइना वायरस के खिलाफ हमारी लड़ाई के विजय संकल्प को और दृढ किया। ”हम सब भारतीय एक हैं” इस संकल्प को साकार करते हुए माँ भारती के चरणों मे हमारी प्रणति को निवेदित किया । यह लड़ाई मानवता और कोरोना के मध्य की लड़ाई है। आज भी हम सभी भारतीयों की संगठित शक्ति के सामूहिक प्रयास से निश्चित ही कोरोना पर हमारा देश विजय हासिल करने में सफल रहेगा। कोरोना हारेगा, मानवता जीतेगी।

(लेखक अभाविप की राष्ट्रीय महामंत्री हैं।)

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