अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, कोविड-19 जनित महामारी के परिपेक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर किए गए लॉक डाउन एवं इसके फलस्वरूप उत्पन्न शिक्षा जगत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों से अपना सरोकार समझते हुए परिस्थितियों का मूल्यांकन करना अपना कर्तव्य मानता है अतः इनके उचित समाधान पर चिंतन करना आवश्यक हो जाता है।
निसंदेह आज संपूर्ण विश्व इस महामारी से पीड़ित है एवं मानव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। जीवन बचाए रखने एवं गुणवत्तापूर्ण जीने की उत्कंठा वरीयता प्राप्त कर रही है साथ ही अनेकानेक दिखावटी एवं गैर जरूरी तत्व जीवन चर्या से कम हो रहे हैं। हम सभी दिन प्रतिदिन सहज एवं सरल होते जा रहे हैं, आडंबर कम हो रहे हैं और हम अधिक उत्पादक होने का सहज प्रयास भी कर रहे हैं।
समाज का प्रत्येक घटक अपने कार्यों के संपादन में सामान्य अवस्था में विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं को अपनाकर अन्यान्य उद्देश्यों को प्राप्त करता रहा है। इस दौरान अनेकों लोगों का साथ प्राप्त करके उपलब्ध संसाधनों से विभिन्न चरणों से गुजरते हुए किसी कार्य को पूरा करता रहा है ।
शिक्षा व्यवस्था भी अनेक मानकों का सामान्य परिस्थिति में अनुपालन करती रही है। किंतु हम सभी को विदित है कि अभी हम बेहद ही असामान्य परिस्थितियों मे उपस्थित हैं। अब जबकि प्रत्येक जनमानस अपने-अपने घरों तक सीमित है एवं प्रत्यक्ष रूप से समाज के अन्य घटकों से प्रत्यक्ष रूप से मिलने में असमर्थ है जिनके साथ दिन प्रतिदिन के कामों को निष्पादित किया करता था, तब जिंदगी एक तरह से रुक जाना चाहिए थी क्योंकि जिस प्रकार के सहयोगी तंत्र में कार्य करने के हम सभी अभ्यस्त थे वह सहयोगी तंत्र उस रूप में हमारे समक्ष उपलब्ध नहीं है। किंतु ऐसा है क्या? क्या जीवन वास्तव में रुक गया है? नहीं, जीवन रुका नहीं है बल्कि अपना रूप बदल रहा है। अपेक्षाएं नए रूप में हमारे सम्मुख आ रही हैं और हम महसूस कर सकते हैं कि मनुष्य की जीवटता उसे हार नहीं मानने का हौसला प्रदान कर रही है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य इतना मजबूर कभी भी नहीं हो सकता था इसीलिए लॉक डाउन-१ में प्रधानमंत्री जी ने जब *’जान है तो जहान है’* का मंत्र दिया तो भी हम जान के साथ-साथ जहान के बारे में भी फिक्रमंद थे। अब जबकि लॉक डाउन -२ में देश के नेतृत्व ने *जान भी -जहान भी* का मंत्र दिया तो हमें हमारी जीवटता को प्रदर्शित करने के लिए नेतृत्व की ओर से सीमित ही सही पर एक दिशा प्राप्त होती है।
अब जबकि यह स्पष्ट है कि वर्तमान शैक्षिक सत्र पारंपरिक रूप से स्थापित मानदंडों के आधार पर पूरा नहीं किया जा सकता है तब नीति नियंता ने इसके दूरगामी असर का अनुमान लगा लिया था और वैकल्पिक मॉडल पर काफी पहले कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। आज अध्ययन एवं अध्यापन के डिजिटल स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई है । कक्षा में आमने-सामने के संप्रेषण का स्थान इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि पर आभासी कक्षाओं ने ले ली है। जूम, सिसको वेब एक्स, गूगल क्लासरूम,टीसीएस आयन डिजिटल क्लासरूम आदि ने लोकप्रियता के आधार पर शिक्षा जगत में अपना-अपना स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया है। प्रारंभिक स्तर पर यह सब उपयोग के दौरान कठिन जान पड़ते हैं किंतु एक बार अभ्यस्त होने पर प्रक्रिया सरल प्रतीत होती है। हां उतना भय अवश्य रहता है जितना कि तकनीक को इस्तेमाल के समय होता है। साथ ही तकनीक का असमय फेल होना जैसे इंटरनेट की स्पीड, कनेक्टिविटी की समस्या, लॉक डाउन के समय में कोई साथ उपस्थित होकर सिखाने एवं बताने वाला नहीं होने से भी ऑनलाइन ट्यूटोरियल की सहायता से ही सीखने की मजबूरी, घर में जो साधन है उन्हीं की सहायता से लेक्चर तैयार करना उसे रिकॉर्ड करना, नोट्स बनाना उनकी डिजिटल कॉपी तैयार करना, स्टडी मटेरियल खोजना एवं पाठ्यक्रम के अनुरूप उसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड करना, छात्र-छात्राओं से संवाद करना आदि अनेकों नई प्रकार की चुनौतियां शिक्षा समुदाय के समक्ष हैं किंतु फिर भी इच्छाशक्ति, अतिरिक्त समय, एवं प्रयासों के द्वारा हमारे शिक्षक इसे कर रहे हैं, पाठ्यक्रम पूरे हो रहे हैं, छात्र-छात्राएं नए माध्यम से शिक्षण पद्धति द्वारा शिक्षा प्राप्त करने हेतु अपने को ढाल रहे हैं, यह शुभ संकेत है।
यह नए प्रकार का बदलाव है जिसने व्यापक स्तर पर परिवर्तन का आगाज किया है उसे ही *’आमूलचूल परिवर्तन’* कहते हैं । यह छोटा या सीमित दायरे में अपना प्रभाव छोड़ेगा ऐसा भी नहीं है। डिजिटल इंडिया का आगाज प्रधानमंत्री जी ने काफी पहले कर दिया था। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा जगत में भी इसे बढ़ावा दिया जा रहा था एवं इसके बारे में काफी दिनों से कहा एवं सुना जा रहा था किंतु समस्त भागीदारों का अपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा था, समग्र शिक्षा व्यवस्था के समक्ष कोविड-19 के दुष्परिणामों के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के कारणों से ही सही, डिजिटल शिक्षा के इस यथार्थ से हमारा साक्षात्कार सामूहिक रूप से कराने का कारण बन रहा है। इस दिशा में भारत सरकार द्वारा अपनी विभिन्न नियामक संस्थाओं के माध्यम से निरंतर प्रयास किया जा रहा था कि वैश्विक स्तर पर उपलब्ध ज्ञान के खुले पन एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की प्रतिस्पर्धा में हम अपने को तैयार रखें। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, एनआईआरएफ, ए नेक आदि संस्थाओं अथवा रैंकिंग एजेंसियों ने ओपन लर्निंग प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने का प्रयास किया था। शोध की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु उसे पब्लिक प्लेटफॉर्म पर शोधगंगा के माध्यम से लाने का प्रयास किया गया, विश्व की चुनिंदा एवं दुर्लभ माने जाने वाली पुस्तकें डिजिटल फॉर्म में लाखों की संख्या में छात्र छात्राओं को उपलब्ध कराई गई। एनपीटीईएल , SWAM एवं MOOCS द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई के नए अवसर प्रदान किए गए। विभिन्न पाठ्यक्रमों को डिजिटल स्वरूप में परिवर्तित करने को बढ़ावा दिया गया। डिजिटलीकरण से नए पाठ्यक्रम तैयार करने को प्रोत्साहित किया गया। विश्वविद्यालयों एवं डिग्री कॉलेजों में होने वाली प्राध्यापकों की नियुक्ति के समय आवेदन करने की अहर्ता के निर्धारण में भी इन मदों में किए गए प्रयासों को अंको के रूप में एपीआई का हिस्सा बनाया गया ताकि शिक्षक समुदाय डिजिटल अध्यापन की ओर अपनी रुचि बढ़ा सकें। इन सभी सरकारी प्रयासों के बावजूद भी ई-कंटेंट के निर्माण की गति भी धीमी थी और अधिकांश शिक्षक समुदाय उससे दूरी भी बनाए हुए था किंतु वर्तमान परिस्थितियों ने बलात ही सही पर अधिसंख्य शिक्षक समुदाय को डिजिटल माध्यम से पढ़ने एवं पढ़ाने के प्रति सहज करने के दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्माण अवश्य किया है।
आज प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा सहित शिक्षा के प्रत्येक घटक को न केवल डिजिटल शिक्षण व्यवस्था ने छुआ है बल्कि इनमें बड़े बदलाव की ओर अग्रसर किया है समानांतर शिक्षा तंत्र के रूप में चल रहे कोचिंग सेंटर एवं व्यक्तिगत ट्यूटर भी इन माध्यमों का इस्तेमाल करने को उत्सुक हुए हैं एवं इसे अपनाया है। इसके साथ ही पहले से डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में अपना स्थान बनाने का प्रयास करने वाले स्वतंत्र निकाय जैसे बाईजू, अनअकैडमी, वेदांतू, ग्रेड अप, फुल मार्क्स एवं स्टेप लर्निंग जैसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों को भी बड़ा बाजार मिलने का रास्ता प्रशस्त हो चुका है। व्यवसायिक ढंग से रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए तकनीकी के बेहतर प्रयोग से ऑडियो- विजुअल प्रभाव के साथ 3डी माध्यम को अपनाकर सैकड़ों गुना बेहतर एवं प्रभावोत्पादक सीखने एवम सिखाने का यह नए प्रकार का अनुभव आज का छात्र कर रहा है।
एक निश्चित समय पर निश्चित स्थान पर जाकर एक निश्चित संस्थान में एक निश्चित शिक्षक से निश्चित विषय में संस्थान की समय सारणी के अनुसार पढ़ने की सीमितता से स्वतंत्र होकर आज के छात्र-छात्रा के पास अपने पसंद के संस्थान,टीचर, टॉपिक एवं पाठ्यक्रम को अपनी सुविधानुसार समय एवं स्थान पर पड़ने की स्वतंत्रता शिक्षा जगत में नए आयाम खुलने की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है ।
यह मुहिम आगे बढ़ेगी और तेजी से आगे बढ़ेगी, भले ही लॉक डाउन समाप्त होने के बाद इसकी बाध्यता नहीं रह जाएगी क्योंकि यही तकनीकी के युग में एवं व्यस्तता के दौर में, सुविधा परस्त विद्यार्थी को एक सरल एवं बेहतर विकल्प प्रदान करती है।
हम छात्र हों या शिक्षक, हमें पसंद हो या ना हो, हमने सीखा हो या नहीं सीखा हो, अभ्यस्त हों या नहीं हो, फिर भी हम सबको इसका हिस्सा बनने के लिए अपने को तैयार करना पड़ेगा अन्यथा हम मुख्यधारा से अलग-थलग होकर अप्रासंगिक होने के लिए तैयार रहें।
डिजिटल शिक्षा को पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था के पूरक के रूप में अपनाने का मॉडल तो स्वीकार्य रूप में हमारे समक्ष आ चुका है किंतु समग्र शिक्षा व्यवस्था जैसे प्रवेश, पढ़ाई, परीक्षा एवं मूल्यांकन डिजिटल माध्यम से पूरा करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। वास्तव में यही वह तत्व है जो पारंपरिक शिक्षा मॉडल को दूरस्थ शिक्षा मॉडल एवं पत्राचार शिक्षा मॉडल से पृथक करती है।
डिजिटल शिक्षा के संभावित दोषों से बचने की भी आवश्यकता है। पाठ्यक्रमों का प्रयोगात्मक एवं अनुप्रयुक्त ज्ञान का हिस्सा पूर्णतः छोड़ना उचित नहीं है जो डिजिटल किचन के माध्यम से प्रभावी ढंग से कराया जाना संभव नहीं है। सिर्फ कंटेंट डिलीवरी, प्रश्न बैंक एवं नोट्स का प्रेषण करना मात्र ही अध्यापन की इति श्री समझ लेना ठीक नहीं होगा। स्टूडेंट्स फ्रेंडली प्रणाली को अपनाकर परस्पर संप्रेषण का अवसर भी प्रदान करने की चुनौती डिजिटल शिक्षा प्रणाली में व्यवहारिक रूप में दिखाई पड़ती है। इन प्रश्नों के उत्तर खोजना अभी भी शेष है।
विशेष परिस्थितियां सदैव ही अति विशिष्ट निर्णयों की मांग करती रही हैं। व्यापक छात्र हित में आने वाले समय में हम कुछ ऐसे ही निर्णयों के साक्षी बनेंगे।
इस समय सामान्य परीक्षा प्रणाली एवं नई कक्षा में प्रोन्नत किए जाने के नियमों में शिथिलता प्रदान किए जाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। ऐसे तमाम अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्त में छुपे हैं जिनका उत्तर मिलना अभी शेष है।
(लेखक चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के व्यावसायिक शिक्षक संस्थान के उपनिदेशक व विभागाध्यक्ष हैं।