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पृथ्वी के सरंक्षण में उतनी ही गंभीरता दिखानी होगी जितनी हमने कोरोना से बचाव में दिखाई है

संदीप आजाद

विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष

ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है लेकिन हमने अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं के चलते इस जीवन को निंरतर खतरा ही पैदा किया है। वर्ष 1969 में इसी खतरे को भांपते हुए पृथ्वी पर पर्यावरणीय सुरक्षा से चिंतित संयुक्त राज्य अमेरिका के सीनेटर जेराल्ड नेलस्न ने इस दिन की परिकल्पना की थी। वर्ष 1970 में पृथ्वी पर पर्यावरण में हो रहे निंरतर परिवर्तनों से चिंतित एक बहुत बडे तबके ने 22 अप्रैल को पर्यावरणीय सुरक्षा से सबंधित गतिविधियों में भाग लिया। तब से यह एक जन आंदोलन बना और आज विश्व भर के करीब 192 देशों में हम 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मनाते है। हालांकि पृथ्वी पर लगातार बढ रहा प्रदुषण कोई नया विषय नहीं है और हममें से कोई भी इससे अनभिज्ञ हो ऐसा भी नहीं है। लगातार दूषित हो रही धरती के बारे में हम आज ही चर्चा करें ऐसा भी नहीं यह तो एक ऐसा विषय है जिस पर हमें रोज चर्चा करने व इसे सुधारने के लिए काम करने की आवश्यकता है। इस वर्ष का यह विश्व पृथ्वी दिवस धरती के लिए बडा विशेष है।

एक और जहां कोरोना जैसी वैश्विक बीमारी ने पूरी मानव जाति को खतरे में डाल दिया है तो वहीं इस महामारी के समय में प्रकृति ने भी अपने आप को संवारने में कोई कमी नहीं छोडी हैं। हर रोज कोरोना से जुडे भयावह समाचारों ने जहां हमें आतंकित किया तो वहीं पर्यावरण से जुडी कुछ खबरों ने हमें सुकून भी दिया। कोरोना की भयानक महामारी से निपटने में पूरी दुनिया को लॉकडाउन ही सबसे बेहतर रास्ता नजर आया। लॉकडाउन एक ऐसी प्रक्रिया जिसमे दुनियाभर के लोग पिछले करीब एक महीने से अपने घरों में ही कैद होकर रह गए है। धुएं का गुबार उगलते कारखानें बंद है, सडकों पर लंबी लंबी वाहनों की कतारें नहीं है, तो वहीं हवा में धूल घोलने वाले निर्माण कार्य भी पूर्णतः बंद ही है। ऐसा लग रहा है कोरोना की इस वैश्विक महामारी ने पर्यावरण को  अपने आप को संवारने के लिए अवकाश दे दिया है।

जिस पर्यावरण के संरक्षण के लिए हम इतने लंबे समय से बडे-बडे सम्मेलन कर रहे थे, अभियान चला रहे थे उनका परिणाम हम सबने देखा ही है लेकिन इस समय पर्यावरण में जो सुधार हुआ है, अकल्पनीय है। एयर क्वालिटि इंडेक्स में जबरदस्त सुधार दर्ज किया गया है। प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के आंकाडों के अनुसार प्रदूषण के स्तर में 35 से 40 प्रतिशत की कमी आई है।

गंगा नदी को निर्मल बनाने के लिए करोडों रूपए के प्रोजेक्ट चलाए जा रहें लेकिन गंगा कितनी निर्मल हुई हम जानते है। इस लॉकडाउन के दौरान जो तस्वीरें गंगा और यमुना की आई उन्होंने पर्यावरणविदों को भी आश्चर्य में डाला है क्योंकि जो कार्य हम इतने सालों में नहीं कर पाए वो आज इस वैश्विक महामारी के दौर में स्वतः ही हो गया है। जल की खुद की अपनी शोधन क्षमता होती है। लॉकडाउन के दौरान मानवीय गतिविधियां नहीं होने के कारण  उतर प्रदेश जल प्रदुषण नियंत्रण की रिर्पोट के मुताबिक गंगा और यमुना के पानी में कोलिफॉर्म के स्तर में जबरदस्त गिरावट आई है। जिसके कारण पानी की गुणवता में सुधार हुआ है।

चंडीगढ और जालंधर से हमने हिमालय के पहाडों का दीदार किया है। इस पूर्णतः शांति के समय में हमने उन पक्षियों को देखा और सुना है जिनकी आवाज हमने वर्षों से नहीं सुनी थी। हर समय धुएं से काले रहने वाले आसमान को हमने इतना नीला पहले कभी नहीं देखा होगा। इस लॉकडाउन के समय में अधिंकाश शहरों की सांसें तोडती हवा साफ हुई है। दरअसल लॉकडाउन के सहारे प्रकृति ने हमें एक सकारात्मक संदेश दिया है और इस संदेश को हमें गंभीरता से समझना होगा। विकास की चकाचैंध और पर्यावरण के बीच हमें संतुलन तो स्थापित करना होगा। आज हम  50 वां विश्व पृथ्वी दिवस मना रहें है। इस बार का यह स्वर्ण जयंती दिवस हमें कई संदेश दे रहा है। इसने हमें प्रकृति के उस स्वरूप के दर्शन करवाएं है जिसे देखने की कल्पना शायद ही हमने की थी। आज हम अपने घर की बॉलकोनी में खडे होते है या अपने घर की छत पर टहलते है तो इतनी शुद्ध हवा और नीला आसमान हमारें मन को अनायास ही आनंद से भर देता है।

कोरोना की इस वैश्विक महामारी से हमें जल्द ही मुक्ति मिलेगी। जल्द लॉकडाउन समाप्त होगा। हम अपने घरों से पुनः बाहर निकलेंगे और मेरा मानना है कि हम इस वैश्विक महामारी के बाद एक नए जीवन की शुरूआत करेंगे। क्या इस नई शुरूआत को करने से पहले आज हम यह संकल्प कर सकते है कि प्रकृति का जो यह स्वरूप हमनें देखा है उसे संजो कर रखने का हर संभव प्रयास करेंगे। हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिए उतनी ही गंभीरता दिखाएंगे जितनी हमनें इस कोरोना की महामारी से बचने के लिए दिखाई है।

(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभाग संगठन मंत्री हैं।)

 

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