Saturday, May 17, 2025
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
No Result
View All Result
Home लेख

#UnsungFreedomfighter : बस्तर का ‘भूमकाल’ और शहीद वीर गुण्डाधुर

अजीत कुमार सिंह by शेषमणी साहू
August 9, 2020
in लेख
#UnsungFreedomfighter : बस्तर का ‘भूमकाल’ और शहीद वीर गुण्डाधुर

राष्ट्रीय गुण्डाधुर को आज भारत के ज्ञात आदिवासी नायकों के बीच जो स्थान मिलना चाहिये था वह अभी तक अप्राप्य है। भारत के आदिवासी आन्दोलनों के इतिहास में वर्ष 1910 जैसे उदाहरण कम ही मिलते हैं जहाँ एक पूरी रियासत के आदिवासी जन अपनी जातिगत विभिन्नताओं से ऊपर उठकर, अपने बोलीगत विभेदों से आगे बढ़ कर जिस एकता के सूत्र में बँध गये थे उसका नाम था गुण्डाधुर। यह सही है कि भूमकाल की परिकल्पना दो अलग अलग समानांतर दृष्टिकोणों से चल रही थी। भूमकाल एक गुंथा हुआ आन्दोलन था जिसके स्पष्टत: दो पक्ष थे- आदिवासी तथा गैर आदिवासी। एक ओर सामंतवादी सोच के साथ लाल कालिन्द्रसिंह सत्ता को अपने पक्ष में झुकाना चाहते थे तो दूसरी ओर आदिवासी जन अपने शोषण से त्रस्त एक ऐसा बदलाव चाहते थे जहाँ उनकी मर्जी के शासक हों और उनकी चाही हुई व्यवस्था। गुण्डाधुर में एक ओजस्विता, नेतृत्व क्षमता तथा वाक पटुता थी जिसे दृष्टिगत रखते हुए भूमकाल के प्रमुख योजनाकारों में से एक लाल कालिन्द्रसिंह ने उसे नेतानार गाँव से बाहर निकाल कर विद्रोह का नेता बना दिया। गुण्डाधुर नेतानार गाँव का रहने वाला था तथा उत्साही धुरवा जनजाति का युवक था। सन 1910 में हुए बस्तर के आदिवासियों के सशक्त विद्रोह का नेतृत्व गुण्डाधुर ने किया . इसे भूमकाल अभिहित किया जाता है। सन 1910 ई. में बस्तर में इंद्रावती के तट पर हुए सशस्त्र विद्रोह की पूर्वपीठिका ब्रिटिश सरकार के दमन और उत्पीड़न ने रची । उनीसवीं सदी के अंत तक बस्तर आखेटस्थली के रूप में परिवर्तित हो गया। शोषण और छल से उपजे असंतोष ने आदिवासियों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया।

ब्रिटिश राज ने बस्तर में हस्तछेप और तदन्तर कथित भूमि सुधारो की बस्तर के आम आदिवासियों में तीव्र प्रतीकिया हुई। आदिवासी समाज अपने जीवन मूल्यों और जीवन पद्धति पर आघात और उसमें परिवर्तन की कोशिशों को सहन नहीं कर सका। वन नियम , पुलिस , स्कूल और बेगार सब कुछ उन्हें अपनी जीवन पद्धति और अपने अधिकारों में हस्तछेप प्रतीत हुआ । हस्तछेप ने उन्हें उत्तेजित किया और उनका क्रोध प्रचंड लहरों  की भांति राजसत्ता, दीवान, राजगुरु और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ उमड़ पड़ा। विद्रोहियों की योजना थी की चारो ओर ‘स्वतंत्र क्रन्तिकारी सरकार’ की स्थापना की जाये। इसी संकल्पना के साथ गुण्डाधुर को वर्ष-1910 की जनवरी में ताड़ोकी की एक जनसभा में लाल कालिन्द्र सिंह की उद्घोषणा के द्वारा सर्वमान्य नेता चुना गया, लालकालिन्द्र ने प्रमुख नायक चुनने के बाद परगना स्तर पर अलग अलग नेता नामजद किये। मंच पर बुला कर उनका भव्य सम्मान किया गया। यह सम्मान प्रेरणा स्त्रोत था जिसके बाद भूमकाल की योजना पर कार्य आरंभ हो गया। इसके साथ ही गुण्डाधुर ने अपने भीतर छिपी अद्भुत संगठन क्षमता का परिचय दिया। गुण्डाधुर ने सम्पूर्ण रियासत की यात्रा की। वह एक घोटुल से दूसरे घोटुल भूमकाल का संदेश प्रसारित करता घूमता रहा। उत्साही युवकों का संगठन तैयार करने में लग गया था। गुण्डाधुर का कुशल प्रबंधन देखने योग्य था। राज्य के दक्षिण पूर्वी हिस्से में विद्रोही कई दलों में विभाजित थे और एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध हो रहा था। गुण्डाधुर तक हर परिस्थिति की सूचना निरंतर पहुँचायी जा रही थी। जब और जहाँ विद्रोही कमजोर होते वह स्वयं वहाँ उत्साह बढ़ाने के लिये उपस्थित हो जाता। यह युद्ध केवल अंग्रेज अधिकारियों, पुलिस या कि राजा के सैनिकों के बीच ही तो नहीं था। यह दो प्रतिबद्धताओं के बीच का युद्ध हो गया था। एक ओर राजा और उसके समर्थक आदिवासी और दूसरी ओर मुरिया राज के लिये प्रतिबद्ध आदिवासी। हर बीतते दिन के साथ विद्रोही अधिक मजबूत होते जा रहे थे। दु:खद पहलू यह भी है कि कई स्थलों पर युद्ध में अपने ही अपनों का खून निर्दयता से बहा रहे थे। इन्द्रावती नदी घाटी के अधिकांश हिस्सों पर दस दिनों में मुरियाराज का परचम बुलन्द हो गया।

अपनी पुस्तक बस्तर: एक अध्ययन में डॉ. रामकुमार बेहार तथा निर्मला बेहार ने तिथिवार कुछ जानकारियों का संग्रहण किया है जिन्हें मैं उद्धरित कर रहा हूँ- “25 जनवरी को यह तय हुआ कि विद्रोह करना है और 2 फरवरी 1910 को पुसपाल बाजार की लूट से विद्रोह आरंभ हो गया। इस प्रकार केवल आठ दिनों में गुण्डाधुर और उसके साथियों ने इतना बड़ा संघर्ष प्रारंभ कर के एक चमत्कार कर दिखलाया। 7 फरवरी 1910 को बस्तर के तत्कालीन राजा रुद्रप्रताप देव ने सेंट्रल प्राविंस के चीफ कमिश्नर को तार भेज कर विद्रोह प्रारंभ होने और तत्काल सहायता भेजने की माँग की। विद्रोह इतना प्रबल था कि उसे दबाने के लिये सेंट्रल प्रोविंस, मद्रास प्रेसिडेंसी एवं पंजाब बटालियन के सिपाही भेजे गये। 16 फरवरी से 3 मई 1910 तक ये टुकड़ियाँ विद्रोह के दमन में लगी रहीं। ये 75 दिन बस्तर के विद्रोही आदिवासियों के लिये तो भारी थे ही, जन साधारण को भी दमन का शिकार होना पड़ा। अंग्रेज टुकड़ी विद्रोह दबाने के लिये आयी, उसने सबसे पहला लक्ष्य जगदलपुर को घेरे से मुक्ति दिलाना निर्धारित किया। नेतानार के आसपास के 65 गाँवों से आये बलवाइयों के शिविर को 26 फरवरी को प्रात: 4:45 बजे घेरा गया, 511 आदिवासी पकड़े गये जिन्हें बेंतों की सजा दी गयी । नेतानार के पास स्थित अलनार के वन में हुए 26 मार्च के संघर्ष में 21 आदिवासी मारे गये। यहाँ आदिवासियों ने अंग्रेजी टुकड़ी पर इतने तीर चलाये कि सुबह देखा तो चारो ओर तीर ही तीर नज़र आये । अलनार की इस लड़ाई के दौरान ही आदिवासियों ने अपने जननायक गुण्डाधुर को युद्ध क्षेत्र से हटा दिया, जिससे वह जीवित रह सके और भविष्य में पुन: विद्रोह का संगठन कर सके। ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि 1912 के आसपास फिर सांकेतिक भाषा में संघर्ष के लिये तैयार करने का प्रयास किया गया । उल्लेखनीय है कि 1910 के विद्रोही नेताओं में गुण्डाधुर न तो मारा जा सका और न ही अंग्रेजों की पकड़ में आया। गुण्डाधुर के बारे में अंग्रेजी फाईल इस टिप्पणी के साथ बंद हो गयी कि “कोई यह बताने में समर्थ नहीं है कि गुण्डाधुर कौन था? कुछ के अनुसार पुचल परजा और कुछ के अनुसार कालिन्द्र सिंह ही गुण्डाधुर थे बस्तर का यह जन नायक अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण इतिहास में सदैव महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता रहेगा”।

पूरे आन्दोलन को समग्रता से देखा जाये तो नेतानार का एक साधारण धुरवा, अद्धभुत संगठनकर्ता सिद्ध हुआ था। दंतेवाड़ा से ले कर कोण्डागाँव तक लड़ी गयी हर बड़ी लड़ाई में गुण्डाधुर स्वयं उपस्थित था। कितनी ही लड़ाइयों के बाद विजय के जश्न पिछले पंद्रह दिनों में मनाये गये। अपनी जय जयकार के बीच मुरियाराज की स्थापना का पल निकट आता महसूस हो रहा था। एक ओर विद्रोही राजधानी को घेर कर बैठे थे और दूसरी ओर गेयर, दि ब्रेट और उसने साथ पहुँची अंग्रेज सैन्य टुकड़ियों के कारण तनाव की स्थिति निर्मित हो गयी थी। गेयर को यह अनुमान था कि जब तक अतिरिक्त मदद उसे प्राप्त नहीं हो जाती है किसी भी तरह सीधे संघर्ष को रोक कर रखने में ही लाभ है। वही चिर परिचित चालाकी से काम लिया गया जिसके लिये कायर अंग्रेज जाने जाते रहे हैं।

जैसे ही अंग्रेज शक्ति सम्पन्न हुए तुरंत ही राजधानी से विद्रोहियों को खदेडने की कार्यवाही प्रारंभ कर दी गयी। विद्रोही हतप्रभ थे; मिट्टी की कसम खा कर भी धोखा? क्या गेयर के अपने देश में मिट्टी का कोई मान नहीं होता? झूठ और साजिश से मिली जीत से भी अंग्रेजों को कोई ग्लानि नहीं होगी? फौज की अपराजेय ताकत और आग उगलने वाले हथियारों वाली सेना को नंग-धडंग, कुल्हाड़-फरसा धारियों से युद्ध जीतने में षडयंत्र करना पड़ता है? इसके लिये वे शार्मिन्दा भी नहीं होते? गोलियाँ चलने लगीं। यह विद्रोहियों के लिये अनअपेक्षित था, वे तैयार भी नहीं थे। गुण्डाधुर ने पीछे हटने का निर्णय लिया। सरकारी सेना आगे बढ़ती जा रही थी और विद्रोही जगदलपुर की भूमि से खदेड़े जा रहे थे। कई विद्रोही गिरफ्तार कर लिये गये और कई बस्तर की माटी के लिये शहीद हो गये।

यह बहुत भी भयानक रात थी। पराजित, थके हुए तथा मनोबलहीन विद्रोही जगदलपुर से आठ किलोमीटर दूर स्थित अलनार गाँव में एकत्रित हुए। किसी तरह गेयर तक खबर पहुँच गयी कि विद्रोही अलनार में एकत्रित हो गये हैं। गुण्डाधुर के नेतृत्व में सुबह होते ही महल पर हमला किया जायेगा। यद्यपि यह अत्यंत साहसिक हमला ही सिद्ध होता चूँकि मशीनगनों से सज्जित अंगरेजी सेना महल की सुरक्षा में थी। तथापि जिनके मस्तक पर कफन बँधे हों वे दुःसाहसी हो ही जाते हैं। गेयर ने आधीरात को सोते हुए जनसमूह पर हमला करना श्रेयस्कर समझा। बस्तर को हमेशा अपने वीर माटी पुरुषों पर गर्व रहेगा जो इस आपातकाल में भी सहमें नहीं। लड़ कर जान देंगे की भावना के साथ आधी रात को हुए कायराना-अंग्रेज आक्रमण का उत्तर दिया गया। भोर की पहली किरण के साथ ही युद्ध समाप्त हो सका। अलनार गाँव से विद्रोही पलायन कर गये। गुण्डाधुर एक बार फिर गेयर की पकड़ में नहीं आया। गेयर को गुण्डाधुर के प्रमुख विद्रोही साथी डेबरीधूर को पकड़ने में भी नाकामयाबी मिली। गुप्त सूचना के आधार पर कुछ घुड़सवारों को नेतानार भेजा गया। एक सिपाही डेबरीधुर की झोपड़ी के भीतर घुसा किंतु आहट से सचेत हो चुके इस विद्रोही ने बिजली की फुर्ती के साथ हमला कर उस की हत्या कर दी। इसके बाद डेबरीधुर अँधेरे का फायदा उठा कर जंगल में गायब हो गया और सिपाही असहाय से देखते रह गये थे। गेयर ने गुण्डाधुर को पकड़ने के लिये दस हजार और डेबरीधुर पर पाँच हजार रुपयों के इनाम की घोषणा की थी।

शीघ्र ही गुण्डाधुर ने विद्रोहियों का संगठन पुनर्जीवित कर लिया। नेतानार में ही गोपनीय तरीके से तैयार किया गया सात सौ क्रांतिकारियों का समूह पुन: उस ब्रिटिश सत्ता से टकराने के लिये तत्पर था, जिनके साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता है। 25 मार्च 1910; उलनार भाठा के निकट सरकारी सेना का पड़ाव था। गुण्डाधुर को जानकारी दी गयी कि गेयर भी उलनार के इस कैम्प में ठहरा हुआ है। डेबरीधुर, सोनू माझी, मुस्मी हड़मा, मुण्डी कलार, धानू धाकड, बुधरू, बुटलू जैसे राज्य के कोने कोने से आये गुण्डाधुर के विश्वस्त क्रांतिकारी साथियों ने अचानक हमला करने की योजना बनायी। विद्रोहियों ने भीषण आक्रमण किया। गेयर के होश उड़ गये। वह चारों ओर से घिरा हुआ था। बाणों की बैछारों से घायल होते उसके सैनिकों में भगदड़ मच गयी। सैनिकों के पास हमले का प्रत्युत्तर देने का समय नहीं था। गेयर जानता था कि यदि वह पकड़ लिया गया तो विद्रोही जीवित नहीं छोडेंगे। बुरी तरह अपमानित महसूस करता हुआ वह युद्धभूमि से पलायन कर गया। एक घंटे भी सरकारी सेना विद्रोहियों के सामने नहीं टिक सकी और भाग खड़ी हुई। उलनार भाठा पर अब गुण्डाधुर के विजयी वीर अपने हथियारों को लहराते उत्सव मना रहे थे। नगाडों ने आसमान गुंजायित कर दिया। मुरियाराज की कल्पना ने फिर पंख पहन लिये।

इस विजयोन्माद में सबसे प्रसन्न सोनू माझी ही लग रहा था। कोई संदेह भी नहीं कर सकता था कि उनका यह साथी अंग्रेजों से मिल गया है। महीने भर बाद मिली इस बड़ी जीत से सभी विद्रोही उत्साहित थे। सोनू माझी ने स्वयं आगे बढ़ बढ़ कर शराब परोसी। सभी ने छक कर शराब और लाँदा पिया। रात गहराती जा रही थी। निद्रा और नशा विद्रोही दल पर हावी होने लगा। सोनू माझी दबे पाँव बाहर निकला। वह जानता था कि इस समय गेयर कहाँ हो सकता है। उलनार से लगभग तीन किलोमीटर दूर एक खुली सी जगह पर गेयर सैन्यदल को एकत्रित करने में लगा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह दि ब्रेट से क्या कहेगा? उसे इस अपमानजनक पराजय का कोई स्पष्टीकरण गढ़ते नहीं बन रहा था। सोनू माझी को सामने देख कर तिनके को सहारा मिलता प्रतीत हुआ। सोनू माझी के यब बताते ही कि विद्रोही इस समय अचेत अवस्था में हैं तथा यही उनपर आक्रमण करने का सही समय है, गेयर को अपनी कायरता दिखाने का भरपूर मौका मिल गया। पौ फटने में अभी देर थी। गेयर ने संगठित आक्रमण किया। सोनू माझी आगे आगे चल कर मार्गदर्शन कर रहा था। गोलियों की आवाज ने अचेत गुण्डाधुर में चेतना का संचार किया। वह सँभला और आवाज़ें दे-दे कर विद्रोहीदल को सचेत करने लगा। नशा हर एक पर हावी था। कुछ अर्ध-अचेत विद्रोहियों में हलचल हुई भी किंतु उनमें धनुष बाण को उठाने की ताकत शेष नहीं थी। हर बीतते पल के साथ गेयर के सैनिक कदमताल करते हुए नज़दीक आ रहे थे। गुण्डाधुर ने कमर में अपनी तलवार खोंसी और भारी मन तथा कदमों से घने जंगलों की ओर बढ़ गया। वह जानता था कि उसके पकड़े जाने से यह महान भूमकाल समाप्त हो जायेगा। अभी उम्मीद तो शेष है।

कोई विरोध या प्रत्याक्रमण न होने के बाद भी क्रोध से भरे गेयर ने देखते ही गोली मार देने के आदेश दिये थे। सुबह इक्क्सीस लाशें माटी में शहीद होने के गर्व के साथ पड़ी हुई थी। डेबरीधूर और अनेक प्रमुख क्रांतिकारी पकड़ लिये गये। नगाड़ा पीट पीट कर जगदलपुर शहर और आस पास के गाँवों में डेबरीधूर के पकड़े जाने की मुनादी की गयी। उसपर कोई मुकदमा नहीं चलाया गया और कोई सुनवायी भी नहीं। नगर के बीचों-बीच इमली के पेड़ में डेबरीधूर और माड़िया माझी को लटका कर फाँसी दी गयी। नम आँखों से बस्तर की माटी ने अपने वीर सपूतों की शहादत को नमन किया और फिर आत्मसात कर लिया।

आदिवासियों के सशत्र विद्रोह में ब्रिटिश प्रशासन स्तब्ध रह गया। गुण्डाधुर के अंतिम पराक्रम का वर्णन बस्तर के भूमकाल गीतों में मिलता है। ये गीत बस्तर में आज भी प्रचलित है। इन गीतों में महान भूमकाल के अर्थ से इति तक वृंतात मिलता है । व्यक्तियों एवं स्थानों के नाम आदि इन गीतों की ऐतिहासिक सत्यता की पुष्टि करते है। भूमकाल के गीतों के अनुसार गुण्डाधुर ने नेतानार में पुनः शक्ति संचित की और उलनार में आ डटा। यहाँ उसका गेयर के नेतृत्व में सरकारी फ़ौजों से लोमहर्षक युद्ध हुआ । गुण्डाधुर ने अपनी शौर्य से अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए ।

यह विडम्बना है कि छतीसगढ़ राज्य निर्माण के पूर्व गुण्डाधुर का नाम बस्तर के बाहर एक अज्ञात नाम था , जबकि उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास तथा शहीदों की सूचि में दर्ज होना चाहिए था।

बस्तर में जन-जागृति  के प्रणेता गुण्डाधुर सदैव स्मरणीय रहेंगे। वे एक वीर एवं सम्माननीय व्यक्ति थे। बस्तर के अरण्यांचाल में जन जागृति का श्रेय निःसंदेह इन्हें हैं। गुण्डाधुर का अभियान तांत्या टोपे की तरह त्वरित चकित कर देने वाला होता था। वे द्रुत गति से एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचकर लोगों को जाग्रत करते रहे। परिणामतः भविष्य में अंग्रेज प्रशासको को संभलकर, विचार कर बस्तर के प्रति नीति निर्धारण करना पड़ा। निः संदेह वे अंचल के इतिहास पुरुष थे।

अंग्रेजों से कई बार युद्ध करके और हर बार उन्हें चकमा देकर गुंडाधुर और उनके साथियों ने भारत की आदिम जातियों के संघर्षशीलता का लोहा मनवाया।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोध छात्र हैं एवं ये उनके निजी विचार हैं।)

 

Tags: #unsungfreedomfighterabvp jnubalmiki study circle
No Result
View All Result

Archives

Recent Posts

  • ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारतीय सेना द्वारा आतंकियों के ठिकानों पर हमला सराहनीय व वंदनीय: अभाविप
  • अभाविप ने ‘सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल’ में सहभागिता करने के लिए युवाओं-विद्यार्थियों को किया आह्वान
  • अभाविप नीत डूसू का संघर्ष लाया रंग,दिल्ली विश्वविद्यालय ने छात्रों को चौथे वर्ष में प्रवेश देने का लिया निर्णय
  • Another Suicide of a Nepali Student at KIIT is Deeply Distressing: ABVP
  • ABVP creates history in JNUSU Elections: Landslide victory in Joint Secretary post and secures 24 out of 46 councillor posts

rashtriya chhatrashakti

About ChhatraShakti

  • About Us
  • संपादक मंडल
  • राष्ट्रीय अधिवेशन
  • कवर स्टोरी
  • प्रस्ताव
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

Our Work

  • Girls
  • State University Works
  • Central University Works
  • Private University Work

आयाम

  • Think India
  • WOSY
  • Jignasa
  • SHODH
  • SFS
  • Student Experience Interstate Living (SEIL)
  • FarmVision
  • MediVision
  • Student for Development (SFD)
  • AgriVision

ABVP विशेष

  • आंदोलनात्मक
  • प्रतिनिधित्वात्मक
  • रचनात्मक
  • संगठनात्मक
  • सृजनात्मक

अभाविप सार

  • ABVP
  • ABVP Voice
  • अभाविप
  • DUSU
  • JNU
  • RSS
  • विद्यार्थी परिषद

Privacy Policy | Terms & Conditions

Copyright © 2025 Chhatrashakti. All Rights Reserved.

Connect with us:

Facebook X-twitter Instagram Youtube
No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

© 2025 Chhatra Shakti| All Rights Reserved.