नई दिल्ली। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि कोरोनाकाल में किसी भी तरह की शैक्षणिक शुल्क वृद्धि का विद्यार्थी परिषद विरोध करती है। प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों तक जहां भी इस सत्र हेतु शुल्क वृद्धि की गई है वह पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रहे छात्रों तथा उनके परिवारजनों के लिए बेहद अमानवीय है। चूंकि वर्तमान कोरोनाकाल में विभिन्न स्तरों पर लोगों के सामने गंभीर संकट हैं, इसलिए वित्त संबंधी मामलों में इस स्थिति को अत्यंत गंभीरता से लेकर उदार निर्णय लेने की जरूरत है।
चूंकि बीते मार्च में ही देशभर के शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले अधिकतर छात्र परिसरों से अपने घर आ गए थे, इसलिए उनके छात्रावास, मेस शुल्क आदि में उन्हें राहत दी जा जाए तथा इस एवज में पूर्व में लिए गए शुल्क को छात्रों को वापस कर दिया जाए। आगामी अकादमिक सत्र में जिन सुविधाओं का उपयोग छात्र नहीं कर रहे हैं उनके लिए शुल्क बिल्कुल नहीं लिया जाना चाहिए।
सरकारी व निजी शैक्षणिक संस्थानों को इस महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि ऑनलाइन शिक्षण और पारंपरिक कक्षा शिक्षण में बुनियादी अंतर है, ऐसे में दोनों के लिए ट्यूशन फीस समान नहीं हो सकती है। अतः अभाविप इस संदर्भ में मांग करती है कि ट्यूशन फीस में शुल्क छूट तय करने के लिए शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा समिति गठित कर शुल्क छूट को शीघ्र तय किया जाए तथा छूट के साथ निर्धारित शुल्क को जमा करने हेतु लचीला रूख अपनाते हुए उन्हें किश्तो में लिया जाए।
अभाविप की राष्ट्रीय महामंत्री निधि त्रिपाठी ने कहा कि, “भारत के शैक्षिक जगत में कोविड-19 की वजह से व्यापक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। चूंकि लोगों को विभिन्न स्तरों पर मुश्किलें हो रही हैं ऐसे में विभिन्न नियामकों को वित्त संबंधी विषयों पर उदार तथा लचीला रूख अपनाते हुए लोगों की राहें आसान करने की आवश्यकता है। भारत करोड़ों की संख्या वाले छात्र समुदाय का देश है, शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों और उनके अभिभावकों की समस्याओं पर गौर करते हुए उनके लिए उदार रवैया अपनाना होगा जिससे कोई भी छात्र शैक्षणिक दुनिया से बहिष्कृत न होने पाए। हम आशा करते हैं कि छात्रों की फीस संबंधी जिन महत्वपूर्ण मुद्दों को अभाविप ने उठाया है उस पर शीघ्र कदम उठाए जाएंगे।”