संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75 वें अधिवेशन में बोलते हुए चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि विस्तारवाद और अतिक्रमण कभी भी चीन की राष्ट्रीय भावना नहीं रही है। लेकिन उन्हें कोई याद दिलाता कि जब वे बोल रहे थे तब उनकी सेना भारत के लद्दाख के कई सीमावर्ती इलाकों में घुसपैठ करने की कई नाकाम कोशिश कर चुकी थी। वुहान से निकले वायरस के बाद जिस चीन को इस वैश्विक महामारी की जिम्मेदारी लेते हुए विश्व के साथ मिलकर मानव हित में काम करना चाहिए था, उस चीन ने इस आपातकाल में न सिर्फ विश्व के कई राष्ट्रों को फर्जी मेडिकल किट बेच के मुनाफा कमाया बल्कि अपनी विस्तारवाद की नीति को अपने पड़ोस के तकरीबन सभी मुल्कों पर थोपा। राष्ट्रपति जिनपिंग ने कोरोना काल के इस दौर में चीनी विस्तारवाद का उज्ज्वल भविष्य देखा। चीन ने न सिर्फ दक्षिण चीन सागर, ताइवान और भारत के इलाकों में सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कर अस्थिरता कायम करने की कोशिश की बल्कि ताजीकिस्तान और रूस के कुछ नए इलाकों पर भी अपना दावा कर दिया। इस दौरान चीनी सेना ने ना सिर्फ भारत के सैनिकों के साथ खूनी झड़पें की बल्कि सीमा पर कई नए बंकर बनाये और अप्रत्याशित ढंग से चीनी सैनिकों की तैनाती की। जैसा कि उम्मीद था भारत ने भी सीमा पर यथास्थिति बदलने के लिए चीन के किसी भी कदम को नकार दिया और बदले में अपने सैनिकों, हथियारों और वायुसेना की भी तैनाती की। भारत सरकार ने न सिर्फ भारतीय सेना का हौसला बढ़ाया बल्कि चीन से निपटने के लिए सेना को खुली छूट भी दी। इस दौरान भी भारत ने एक जिम्मेदार मुल्क की तरह न सिर्फ अपने तरफ से किस भी आक्रामक कदम की कोई पेशकश की बल्कि मामले को बातचीत से सुलझाने की भी कोशिश की। लेकिन चीनी सरकार भारत के सब्र का इन्तेहान लेती रही और चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी का अनौपचारिक अखबार ग्लोबल टाइम्स भारत के खिलाफ जहर उगलता रहा और लगातार भारत के सामरिक हितों का माखौल उड़ाता रहा। भारत के सब्र का पल तब टूट गया जब गलवान की हिफाज़त में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए। डोकलाम विवाद के बाद गलवान और पैंगोंग सो झील के इलाके में चीनी सेना के घुसपैठ की कोशिश भारत के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न ले कर आया। आखिर कब तक चीन भारत के सीमा के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करता रहेगा या यूं कहें कि भारत कब तक चीन को ऐसा करने देगा। लेकिन भारत के रुख से इस बार ये तय हो गया था कि चीनी सेना और चीनी सरकार को अपने विस्तारवादी नीतियों का कीमत चुकाने का समय आ गया हैं। इस घटना के बाद भारत सरकार के कई फैसलो ने इस बात की पुष्टि कर दी कि भारत अब चीन को उसी के भाषा में जवाब देगा।
इस पूरे प्रसंग के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने न सिर्फ लदाख जा कर वहां तैनात सैनिकों का हौसला बढ़ाया बल्कि चीन और पूरे विश्व के लिए एक साफ सन्देश भी दे दिया। प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में चीन को बता दिया कि विस्तारवाद का युग अब समाप्त हो चुका हैं। प्रधानमंत्री का लेह दौरा सुर्खियों में रहा क्योंकि सरकार ने अपने कड़े रुख की एक झलक दुनिया और खासकर चीन को दिखा दिया। इसकी शुरुआत तब हुई जब भारत ने अपने शहीदों का सम्मान किया और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने देश को दिए एक सम्बोधन में खुल कर शहीदों की वीरगाथा दुनिया के सामने रखा। वहीं चीन ने अपने शहीदों का सम्मान तो दूर उनका नाम तक दुनिया को नही बताया। जिनपिंग के पूरे नेतृत्व पर ये पहला दाग था जब चीनी लोग सरकार से ये सवाल पूछने लगे कि आखिर भारत की तरह उनके शहीदों का सम्मान क्यों नहीं हुआ।
इसके बाद बारी थी चीनी एप की। भारत ने दो अलग – अलग मौकों पर चीन के सैकड़ों एप्प्स की छूटी भारतीय बाजार से कर दिया। इससे चीन के इन कंपनियों को अरबों का नुकसान हुआ। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अनौपचारिक मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने जिस तरह से भारत के इस कदम पर रोज़ नए नए स्तंभ लिखे उससे ये साबित हो गया कि तीर ठीक निशाने पर लगा है। लेकिन सिर्फ चीनी एप्स को प्रतिबंध करने से सीधे तौर पर चीनी सरकार को कोई नुकसान नही होने वाला था। भारत ने आर्थिक स्तर पर और भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाया जिससे चीन को सीधे नुकसान पहुंचा। भारत सरकार ने और कई राज्य सरकारों ने अपने अपने स्तर पर कई चीनी निर्माण कंपनियों से किये गए करार को तोड़ दिया।
भारत की कार्यवाही सिर्फ यहां तक नहीं रुकने वाली थी। भारत कई ऐसे कदम उठाने वाला था जिससे चीन के कई सामरिक हितों पर सीधा प्रहार होने वाला था। भारत ने इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते घुसपैठ को देखते हुए न सिर्फ मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के शामिल होने के संकेत दिए बल्कि क्वाड समूह के देश जिसमे भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं को भी जीवंत करने की कवायद शुरू कर दिया। इसे चीन की नासमझीं नही तो और क्या कहेंगे कि जो क्वाड समूह अपने आंतरिक मतभेदों के कारण शांत पड़ा हुआ था चीन ने अपने व्यापक विस्तारवादी नीति से उसे न सिर्फ सक्रिय कर दिया बल्कि इन चारों देशों को अपने मतभेद को भुला कर एक साथ मिल कर काम करने पर मजबूर कर दिया। सामरिक दृष्टि से इंडो पैसिफिक में चीन की ये सबसे बड़ी हार है। अक्टूबर में जब क्वाड देशों के समूह के विदेश मंत्रियों की बैठक होगी तब निश्चित तौर पर ये कोई आम बैठक नही होगी। इस बात की पूर्ण सम्भावना हैं कि अपने आंतरिक मतभेदों को भूलते हुए ये चार देश एक ‘बृहद चीन नियंत्रण नीति’ पर काम करने को तैयार हो जाएं। जो भारत अभी तक इंडो-पैसिफिक को एक खुला और समावेशी क्षेत्र मानता आया था ऐसा लगता हैं कि जल्द ही वो चीन के खिलाफ इस क्षेत्र में भी मोर्चा खोल देगा। जून 15 को हुए गलवान झड़प के बाद न सिर्फ भारत ने इंडो पैसिफिक क्षेत्र में अपनी नौसेना की गतिविधि बढ़ा दी थी बल्कि विवादित दक्षिण चीन सागर में अपने एक युद्ध पोत को तैनात कर दिया था। भारत की तरफ से ये चीन को साफ संदेश था कि 2020 का ये भारत चीन के सामने झुकने वाला नहीं है बल्कि वो जरूरत पड़ने पर ऐसे तमाम कदम उठा सकता है जो इसके पहले का नेतृत्व नहीं कर पाया था।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत ने चीन को लेकर अपने रवैये में अहम बदलाव किए। भारत कुछ उन देशों में शामिल था जिसने चीन के वुहान से निकले कोरोना वायरस के स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की। हालांकि ताइवान को लेकर भारत का रुख स्प्ष्ट नहीं रहा। गलवान झड़प के बाद कई विशेषज्ञों ने ये राय स्प्ष्ट की थी कि अब समय आ गया है कि भारत ताइवान के साथ सीधे रिश्ते स्थापित करें। लेकिन अभी तक सरकारी स्तर से इस मुद्दे पर कोई साफ राय देश के सामने नहीं रखी गई है। लेकिन एक बात जिस पर गौर किया जाना चाहिए वो है चीन के हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के खिलाफ हो रहे आंदोलनों पर भारत का रुख। हांगकांग के लोग पिछले एक साल से सड़कों पर हैं और भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे पर बात करने से बचता रहा है। लेकिन 2 जुलाई 2020 को भारत ने मानवाधिकार आयोग में ये बयान दिया कि हांगकांग के घटनाक्रमों पर भारत की नज़र है। हालांकि ये चीन पर कोई सीधा प्रहार नहीं था लेकिन अपने आप मे ये एक महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि भारत ने पहली बार हांगकांग पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की थी।
इन सबके बावजूद भारत ने वो किया जिसने न सिर्फ चीन के सामरिक हितों को नुकसान पहुचाया बल्कि चीन के राष्ट्रीय गौरव पर भी कठोर कुठाराघात था। भारत ने एक रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए न सिर्फ चीनी सेना के एक नए घुसपैठ को रोका बल्कि कुछ महत्वपूर्ण ऊंचाई वाले पोस्ट जैसे काला टॉप पर कब्जा जमा लिया। इससे चीन के कई महत्वपूर्ण रणनीतिक पोस्ट भारत के सीधे निगरानी में आ गए। ये पहली बार हुआ था जब भारत ने आगे बढ़ के चीनी सेना के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाया। लेकिन चीनी अस्मिता को धक्का तब लगा जब भारत ने इस ऑपरेशन के लिए स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स को चुना जिसके जवान मूलतः तिब्बती शरणार्थी होते हैं। भारत के इस कदम का अंदाज़ा चीन को बिल्कुल नहीं था।
भारत सरकार पर विपक्ष शुरू से ही हमलावर रहा। एक आरोप जो सरकार पर बार – बार लगाया गया वो ये था कि भारत सरकार और खासकर प्रधानमंत्री मोदी चीन का नाम लेने से कतरा रहे हैं। लेकिन संसद को सम्बोधित करते हुए रक्षा मंत्री ने न सिर्फ चीन का नाम लिया बल्कि खुले तौर पर चीनी अतिक्रमण और विस्तारवादी नीतियों की निंदा की।
सीमा पर स्थिति अभी भी तनावपूर्ण हैं और दोनों तरफ से लगभग बराबर संख्या में सैनिक और हथियारों की तैनाती की गई है। भारतीय सेना जानती है कि 2020-21 की सर्दियां उसके लिए सामान्य नहीं होने वाली हैं। इसलिए सेना ने सर्दियों की तैयारी शुरू कर दिया हैं। भारत सरकार ने न सिर्फ भारतीय सेना को खुली छूट दी है बल्कि नए सैन्य उपकरण और सैनिकों के लिए जरूरी साजो सामान में कोई कमी न हो इसके लिए खास इंतजाम किए हैं। सरकार ने चीन के दावों को खुलेआम नज़रंदाज़ करते हुए सीमा इलाको में हो रहे पुल और रोड निर्माण को न सिर्फ जारी रखा है बल्कि जब पूरे देश मे लॉकडाउन लगा था उस समय भारत ने लद्दाख में निर्माण कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया। दरअसल पिछले 6 सालों में सिमा निर्माण में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई हैं और चीन को ये बात कभी पसन्द नही आई। पिछली सरकारों ने भी सीमा पर निर्माण कार्यों को शुरू किया था लेकिन कई मौको पर चीन इन निर्माण कार्यों को रोकने में कामयाब रहा था। लेकिन इस बार ऐसा नही हुआ। भारत ने न सिर्फ निर्माण कार्यो को जारी रखा बल्कि कार्यों की गति को और तेज़ कर दिया। चीन ने भारत के इस रवैये की उम्मीद नहीं की थी।
दक्षिण चीन सागर में अपनी सफलता और कोरोना महामारी देने के बाद भी चीन वैश्विक स्तर पर जिस तरह से किसी भी जवाबदेही से बच गया उससे चीन के हौसलों को नई उड़ान मिली थी। इसका ही असर था की चीन ने भारत और उसके दृढनिश्चय का कम आकलन किया और महामारी के इस दौर में वो भारत से टकरा गया। लेकिन 2020 के भारत ने न सिर्फ अपने सम्प्रभुता की रक्षा की बल्कि चीन के विस्तारवादी रवैये के लिए एक कीमत तय कर दी। भारत चीन के सामने मजबूती से इस कदर खड़ा है कि आज पूरी दुनिया को भारत में चीन के आक्रमक कदमों का जवाब दिखने लगा है। दुनिया ने भारत की क्षमता का न सिर्फ सम्मान किया है बल्कि भारत को चीन के विकल्प के रूप में देख रही हैं। अमेरिकी सामरिक मामलों के विशेषज्ञ माइकल पिल्सबरी ने 2017 में सिनेट को दिए गए एक सम्बोधन में कहा था कि अभी तक प्रधानमंत्री मोदी अकेले ऐसे राजनेता हैं जो चीन की चालबाजी और कारस्तानियों के खिलाफ मजबूती से पेश आये हैं। आज तीन साल बाद पिल्सबरी का ये कथन और अधिक प्रासंगिक दिख रहा हैं।
(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविवद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र के छात्र हैं।)