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समरस समाज के सूत्रधार थे बाबा साहब भीम राव अंबेडकर

सुनील भारद्वाज

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जीवन निश्चित रूप से हर क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति के लिए प्रेरणादाई है  ।आज उनकी पुण्यतिथि है इस नाते से उनका पुण्य स्मरण कर रहे हैं । बाबा साहब भीमराव अंबेडकर यानी  एक संविधान निर्माता, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर – समाज के निचले पायदान पर रहने वालों का मसीहा,  बाबा साहब भीमराव अंबेडकर- एक संघर्ष पुरुष, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर -एक सामाजिक योद्धा, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर – एक धर्म पुरुष, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर -एक लोकतंत्र रक्षक,  बाबा साहब भीमराव अंबेडकर-एक शिक्षाविद,  बाबा साहब भीमराव अंबेडकर -एक अर्थशास्त्री, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर- एक कानूनी ज्ञाता, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर-एक मजदूर नेता और उससे भी आगे मैं कहूँ तो बाबा साहब  समरस समाज के सूत्रधार थे । सारा जीवन संघर्षों में कटने के बाद भी किस प्रकार से यह भारत समरस बन सकता है इसके लिए पूज्य बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने अपना सारा जीवन लगा दिया । इसकी शुरुआत कुछ इस प्रकार से हुई, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर महात्मा ज्योतिबा फुले को अपना आदर्श मानते थे ऐसे तो पूजनीय बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के तीन गुरु थे ।  संत कबीर, महात्मा गौतम बुद्ध और महात्मा ज्योतिबा फुले । ज्योतिबा फुले कहते थे समाज में परिवर्तन शिक्षा से आएगा । इसलिए समाज को बदलना है तो उसके लिए पिछड़े समाज को शिक्षित होना पड़ेगा ।

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने खूब पढ़ाई की हम सब जानते हैं कि उनके पास 32 डिग्रियां थी और वह 9 भाषाओं के ज्ञाता थे । हम यह भी जानते हैं कि अगर उन्हें पैसा कमाना होता तो वह विदेश में बहुत अच्छी नौकरी कर सकते थे और खूब पैसा भी कमा सकते थे लेकिन उनके लिए हमेशा राष्ट्र प्रथम रहा इसलिए वो पढाई के उपरांत भारत वापस आ गए और उन्होंने 1917 में बड़ोदरा में सेना के सचिव पद पर नौकरी करनी प्रारंभ की लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि वहां के चपरासी तक भी उनका अपमान करते थे वह फाइलें भी उनके हाथ में न देकर, ऊपर से ही छोड़ देते थे कि कहीं उनका स्पर्श ना हो जाए । पीने के लिए पानी तक भी नही देते थे । अंततः वह सब सहन न कर सके और अंत में उन्होंने नौकरी छोड़ दी । यहां से एक विचार उनके मन में आया की इस महार जाति में पैदा होने के अपराध कि मुझे और कितनी सजा मिलेगी ? वो आगे कहते हैं की मैं सोचता था कि पढ़-लिखकर कुछ काबिल बनूंगा तो लोगों के व्यवहार में अंतर आएगा लेकिन यहां तो एक सामान्य चपरासी भी मेरे स्पर्श को सहन करने के लिए तैयार नहीं तो उन्होंने सोचा की मेरे जैसा व्यक्ति जो इतना पढ़ा-लिखा है यदि उस व्यक्ति के साथ समाज में इस प्रकार का भाव है तो मेरी जाति के जो अनपढ़ लोग हैं उनके साथ कैसा व्यवहार होता होगा ? आखिर अभी हमें और कितने कष्ट उठाने होंगे ? जहां जानवर भी पानी पी सकते हैं वहां धर्म के नाम पर अपने ही धर्म बंधुओं को पानी पीने से रोकना सही है क्या? भगवान के मंदिर में भक्तों का ही प्रवेश वर्जित किस काम का है ऐसा भगवान? किस काम का है ऐसा धर्म? किस काम का है ऐसा समाज ? यदि अत्याचार नहीं रुका तो मेरे दलित बंधु साम्यवादी, ईसाई और मुसलमान बनकर अपनी महान भारतीय संस्कृति से नाता तोड़ देंगें । यह चिंता उनके मन में थी । लेकिन क्या किया जाए यह भी चिंता थी । उन्होंने जातिवाद को समाप्त करने व समाज में समरसता स्थापित करने का लक्ष्य अपने सामने रखा और फिर निकल पड़े समरस समाज का संकल्प लेकर के सबसे पहले उन्होंने 1924 में “बहिष्कृत हितकारिणी सभा”  नामक संस्था प्रारंभ की जो अनुसूचित जाति के शैक्षणिक और आर्थिक उत्थान के लिए काम करती थी ।  इसके अंतर्गत सोलापुर में उस समाज के छात्रों के लिए विद्यार्थी लिए और मुंबई में पुस्तकालय शुरू किया गया । उनका मानना था कि इस समाज को किसी की दया की भीख नहीं अपितु स्वाभिमान के साथ जीवन जीएं ऐसी उनकी हार्दिक इच्छा थी।  2 मार्च 1930 को नासिक के कालाराम मंदिर में अनुसूचित जाति के प्रवेश हेतु अहिंसक सत्याग्रह शुरू किया जिसके परिणाम स्वरूप 8 अप्रैल 1930 को राम नवमी के अवसर पर स्वर्ण- अ. जाति के लोग मिलकर राम रथ को खीचंगे ऐसा समझौता हुआ फिर अंत समय में बात बिगड़ गई लेकिन अंततः 1935 में काला राम मंदिर उनलोगों के लिए खुला । 1930 में गोलमेज परिषद में बाबा साहब ने एक अ. जाति के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया अंग्रेज अनुसूचितों को कुछ कानूनी अधिकार तो देना चाहते थे लेकिन साथ ही वह “फूट डालो-राज करो” इस नीति के अनुसार अनुसूचितों को शेष हिंदुओं से अलग करने की कोशिश में भी थे लेकिन बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने उनके मंसूबों को सफल नहीं होने दिया । बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने 1932 में महात्मा गांधी जी से मिलकर जहां अनुसूचित समाज के मतदाताओं को वोट डालने का अधिकार नहीं था वहीं बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने महात्मा गांधी से मुलाकात की और उसका नाम दिया गया “पुणे-समझौता” जिसके अंतर्गत 148 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचितों के लिए आरक्षित किए गए । 1941 में “बौद्ध जन पंचायत समिति ” 1942 में “ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन” और 1945 में “पीपल एजुकेशन सोसाइटी” नामक विभिन्न संस्थाएं बनाई जो यह दर्शाती है कि राजनीति के अलावा सामाजिक समरसता पूज्य बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के लिए एक  जीवन का ध्येय था और यह बात भी हम सब को ध्यान में आती है की पूजनीय बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने संविधान बनाते हुए स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व इस सिद्धांत को आधार बनाया उनका मानना था कि अपरिमित स्वतंत्रता से समता को खतरा होता है और अत्यधिक समता से स्वतंत्रता को खतरा होता है इन दोनों के विरुद्ध संरक्षण की गारंटी केवल बंधुता में ही है । बंधुता याने हम सब भाई-भाई हैं यह विचार इसी को एकात्मता कहा जाता है और यही समरसता इस तरह उनके तत्वज्ञान में बंधुता याने समरसता का स्थान बहुत ऊंचा है अतः उन्हें हम समरसता के पुजारी कहते हैं। क्योंकि जब अंबेडकर जी कानून मंत्री के रूप में थे तो उन्होंने हिंदू कोड बिल प्रस्तुत किया उसमें हिंदू के अंतर्गत हिंदू, बोद्ध, जैन, प्रार्थना समाजी, आर्य समाज इत्यादि यह सब थे ऐसी उनके जीवन को पढ़ने से ध्यान में आता है कि उनका जीवन निश्चित रूप से बहुत ही संघर्षशील रहा उनके संघर्ष की कहानी हम सब जानते हैं लेकिन उनके संघर्ष का परिणाम यह है की जब 1927 में महात्मा ज्योतिबा फुले की जन्म शताब्दी मनाई गई तो उनका पुण्य स्मरण करना तो दूर रहा तालाब के पानी के लिए भी सत्याग्रह करना पड़ा ऐसा वातावरण समाज में था । लेकिन वहीं जब पूजनीय बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जन्म शताब्दी का समय आया तब भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से अलंकृत किया । यही उनकी साधना और तपस्या का परिणाम है । आज उनके संघर्ष के परिणाम समाज जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में नजर आते हैं हम देखते हैं कि जब महाकुंभ होता है तो भारत के माननीय प्रधानमंत्री उसी अनुसूचित समाज के पैर धोते हुए नजर आते हैं । आज एक बहुत बड़ा समाज समरसता की ओर बढ़ता हुआ नजर आता है हम सब जानते हैं की वर्ष 2020 कोरोना संक्रमण का काल रहा है और इस संक्रमण काल से जिन योद्धाओं ने इस समाज को सुरक्षित रखा है उसमें हमारा अनुसूचित समाज भी है लेकिन आज कहते हुए गर्व होता है की जिस अनुसूचित समाज के लोग बड़े-बड़े मंचों की सफाई करते हुए नजर आते थे आज उन्हें मंचों से उन्हें सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ है ।

जात-पात पूछे ना कोई ।।

हरि को भजे-सो हरि को होई ।।

आइए इन पंक्तियों को आत्मसात करते हुए समतायुक्त समाज का निर्माण करे ।।

(लेखक अभाविप हरियाणा के रोहतक विभाग के संगठन मंत्री हैं एवं ये उनके निजी विचार हैं।)

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