मनु से महारानी और फिर भारत के जन-जन की रगों में स्वतंत्रता का संकल्प भरने की यात्रा पूर्ण कर सदा सदा के लिए अमृत प्राप्त करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई प्रत्येक युवा की आदर्श हैं। मैं जब-जब उनको याद करती हूं तो एक ऐसी युवती की तस्वीर मेरी आंखों के आगे आ जाती है, जो कुछ समय की तथाकथित सभी रूढ़ियों को तोड़ते हुए एक नए समाज के निर्माण का संकल्प लेती है। एक ऐसी युवती जो ब्राह्मण परिवार में जन्म लेती है परंतु शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ क्षत्रियों की भांति शस्त्र विद्या में भी निपुण होती है। जो बचपन से ही युद्ध के मैदान में जाने को उत्सुक रहती है और इसीलिए गुड्डे गुड़ियों के साथ खेलने की उम्र में वह अपने साथियों के साथ तलवारबाजी का अभ्यास करती है, घुड़सवारी करती है और स्वयं के साथ ही अन्य को भी प्रेरित करती है।
लक्ष्मी बाई का जीवन चुनौतियों से भरा था परंतु इनसे वह घबराई नहीं अपितु चुनौतियों का डटकर सामना करते हुए समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया। एक ऐसी युवती जिसने वेदत्य को अपना भाग्य मानकर अंधकार में रहना स्वीकार नहीं किया अपितु अपनी प्रजा का पालक बनकर सिंहासन पर आरूढ़ हुई और अपने पुत्र को उसका अधिकार दिलाने हेतु दृढ़ संकल्पित होकर निरंतर प्रयास करती रही। एक ऐसी युवती जिसने ब्रिटिश राज को चुनौती देते हुए गर्जना की कि मैं अपनी झांसी किसी को नहीं दूंगी और इस संकल्प की सिद्धि होती पूरे राज्य को संगठित किया ।पुरुषों के साथ ही महिला टुकड़ी का भी गठन किया और यह मत स्थापित किया कि स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु समाज का प्रत्येक नागरिक अपना योगदान देगा। यदि बलिदान होना पड़ा तो भारत माता को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने हेतु अपना सर्वोच्च बलिदान भी देगा फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ।
आज भी जब हम झांसी के किले पर जाते हैं तो उस अतीव शांत स्थल पर महारानी लक्ष्मी बाई के संकल्प की आवाज उनके घोड़े का टापों की आवाज और अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए निरंतर दुश्मन के सर धड़ से अलग करते हुए और अपने साम्राज्य को बचाने के जज्बे का एहसास निरंतर होता रहता है ।
स्वाभिमानी संवेदनशीलता, कोमल हृदय,दृढ़ संकल्पित परम राष्ट्रभक्त, कुशल प्रशासक, बेहतरीन संगठनकर्ता और अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता हेतु अपने प्राणों का बलिदान देने हेतु तत्पर महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने मृत शरीर को भी अंग्रेजों का हाथ ना लगने पाए। यह संकल्प जो लिया वह उनके सत्य और पवित्रता की पराकाष्ठा के कारण ही पूरा हो पाया । महारानी लक्ष्मीबाई 1857 के स्वतंत्र समय की महान योद्धा थी ।आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं । आजादी का बीज जो 18 57 में रोपा गया 1947 में हम उसका फल प्राप्त कर पाए। शत-शत नमन है सभी क्रांतिवीरों को और नमन है हमें स्वतंत्रता दिलाने वाली महान वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई को, घोड़े पर सवार पीठ पर अपने पुत्र को बांधे हुए दोनों हाथों में तलवार लेकर दुश्मनों को ललकार थी । महारानी लक्ष्मीबाई की छवि हम सब युवाओं को निरंतर उद्वेलित करती है और हमें राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के के पवित्र कार्य में अनवरत लगे रहने की प्रेरणा भी देती है ।
“तेरा वैभव अमर रहे मां
हम दिन चार रहे ना रहे”
इसी भाव को हृदयगम करते हुए महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया और आने वाली पीढ़ी को यह संदेश भी दे गई कि अपने राष्ट्र के लिए जीना और सर्वस्व समर्पण करना ही हमारा कर्तव्य है । उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं और स्वातंत्रय का आनंद लेते हुए ऐसी बरांगना की आहुति को हम निरंतर स्मरण रखेंगे तो निश्चित ही हमारा राष्ट्र सर्वोच्च शिखर पर स्थापित होगा।
(लेखक, अभाविप की राष्ट्रीय छात्रा प्रमुख हैं।)