Friday, May 30, 2025
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
No Result
View All Result
Home लेख

पराक्रम के 50 वर्ष

अजीत कुमार सिंह by अजीत कुमार सिंह
December 16, 2021
in लेख
पराक्रम के 50 वर्ष

भारतीय सेना ने यूं तो पाकिस्तान को कई बार धूल चटाये हैं चाहे 1947 हो,1965 हो, 1971 हो या  1999 का कारगिल युद्ध। हर बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी परंतु पाकिस्तान है कि अपने नापाक इरादे से बाज नहीं आता । 16 दिसंबर को भारतवासी विजय दिवस के रूप में मनाता है। क्योंकि 16 दिसंबर 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को न केवल को शर्मनाक हार सामना करना पड़ा बल्कि युद्ध के परिणाम ने उसके भूगोल को ही बदल डाला। पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और बांग्लादेश के रूप में नया देश बना। 1971 में भारत – पाक के बीच हुआ युद्ध एक सैन्य संघर्ष था, जिसका आरंभ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संग्राम के कारण 3 दिसंबर, 1971 से हुआ जिसका समापन 16 दिसंबर 1971 को ढाका समर्पण के साथ हुआ। युद्ध का आरंभ पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले से हुआ जिसके जवाब में भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी मुक्ति संग्राम के समर्थन में कूद पड़ी। मात्र 13 दिन तक चलने वाले इस युद्ध ने इतिहास के साथ – साथ पाकिस्तान का भूगोल भी बदल दिया। युद्ध के दौरान नापाक मंसूबो वाले पाकिस्तानी सेनाओं का सामना भारत के पराक्रमी योद्धाओं के साथ एक साथ पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों छोरो पर हुआ। जल, थल और नभ तीनों तरफ से भारतीय सेना काल की तरह पाक सैनिकों पर बरस पड़े। इस युद्ध में 39 सौ भारतीय सैनिक वीरगति प्राप्त हुए एवं 9851 सैनिक घायल हुए थे लेकिन भारतीय सैनिकों के शौर्य का ही परिणाम था कि पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. नियाजी ने अपने करीब 93 हजार सैनिकों के साथ भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिये थे।

युद्ध की पृष्ठभूमि

बांग्लादेश रूपी देश के उदय की नींव 25 फरवरी 1948 को ही रख दी गई थी जब पाकिस्तानी संसद में उर्दू और अंग्रेजी के साथ बांग्ला को भी मान्यता देने की बात चली। तत्कालीन प्रधानमंत्री लिकायत अली खान ने तुरंत ही बात को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि बांग्ला को मान्यता देने की बात का मजाक भी उड़ाया। यह कोई समान्य घटना नहीं थी, बल्कि बल्कि यहीं से शुरुआत हुई एक नये देश के जन्म की…।

शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए शुरू से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए छह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन सब बातों से वह पाकिस्तानी शासन की आंख की किरकिरी बन चुके थे। साथ ही कुछ अन्य बंगाली नेता भी पाकिस्तान के निशाने पर था। इसी बीच पाकिस्तान में 1970 में चुनाव हुए। 1970 का यह चुनाव बांग्लादेश के अस्तित्व के लिए काफी अहम साबित हुआ। इस चुनाव में मुजीबुर रहमान की पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी अवामी लीग ने जबर्दस्त जीत हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान की 169 से 167 सीट मुजीब की पार्टी को मिली। 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के पास सरकार बनाने के लिए जबर्दस्त बहुमत था। लेकिन पाकिस्तान को नियंत्रित कर रहे पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं और सैन्य शासन को मुजीब को सत्ता सौंपना नागवार गुजरा। मुजीब के साथ इस धोखे से पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग तेज हो गई। लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे। आंदोलन की आवाज को दबाने एवं जनभावना को कुचलने के लिए शेख मुजीबुर रहमान और अन्य बंगाली नेताओं पर अलगाववादी आंदोलन के लिए मुकदमा चलाया गया। लेकिन पाकिस्तान की यह चाल खुद उस पर भारी पड़ गई। मुजीबुर रहमान इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की नजर में नायक बन गए। मार्च, 1971 में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक अभियान शुरू किया। मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया।

मुक्ति वाहिनी

पश्चिमी पाकिस्तान की बर्बरता और रक्तपात से जन्म हुआ मुक्ति वाहिनी का। 1969 में पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जनरल अयूब के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया था और बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान के आंदोलन के दौरान 1970 में यह अपने चरम पर था। मुक्तिवाहिनी दरअसल पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक शामिल थे, जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा था। पाकिस्तान की अस्थिरता का असर भारत पर भी पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से लोग भागकर भारत आने लगे। माना जाता है कि उसी दौर में लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत आए। ज्यादातर शरणार्थी हिंदू थे। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस मामले को वैश्विक पटल पर उठाया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। पूर्वी पाकिस्तान में जनसंहार जारी था। लगातार विस्थापन और क्रूरता को देखते हुए 29 जुलाई, 1971 को भारतीय संसद में सार्वजनिक रूप से मुक्तिवाहिनी की मदद करने की घोषणा की गयी। तीन दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की वायुसेना ने भारत पर हमला कर दिया। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। इसके साथ ही 1971 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत हो गयी।

पाक सेना के बर्बरता की अनकही दास्तां

अपने उचित मांग को लेकर सड़कों पर उतरे लोगों को शांत कराने के बजाय पाक सरकार जनसंहार पर उतर आई। पूर्वी पाक के लोगों को भारत का एजेंट कहा जाने लगा और ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ चलाकर उन्हें मारने का अभियान चल पड़ गया। बेबस, लाचार और निहत्थे मासूम लोगों को उनके घर से निकाल – निकालकर मारा जाने लगा। हत्या और बलात्कार की इंतहा हो गई। महिलाओं की अस्मत को सरेआम लूटी गई। बड़ी  संख्या में ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों को गोलियों से भून दिया गया। आज भी ढाका मस्जिद के पास एक बड़ी सी कब्र है जिसमें दफ्न हजारों लाशें उस दौर का स्मारक है। पूर्वी पाकिस्तान की गलियां चीख, चित्कार से कराह उठी। जानकार बताते हैं कि 1971 के मुक्ति संग्राम के समय पूर्वी पाकिस्तान के महिलाओं के साथ बलात्कार, अत्याचार किया गया और हत्या की गईं। एक अनुमान के मुताबिक लगभग चार लाख महिलाओं के साथ बलात् यौन संबंधों को बनाना, सैनिक कैण्ट में महिलाओं को सेक्स वर्कर के रूप में रखना आदि सामूहिक बलात्कार जैसी हरकतें थीं। 563 बंगाली महिलाओं को पहले दिन से डिंगी मिलिट्री कैंट में कैद कर दिया गया था। इन महिलाओं के साथ पाकिस्तानी सेना के जवान ज्यादतियां करते थे। अत्याचारों से परेशान होकर लगभग एक  साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब एक करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत में शरण ले ली।

भारत पर हमला युद्ध की शुरूआत

पूर्वी पाकिस्तान के संकट ने विस्फोटक रूप ले लिया, पाकिस्तानी हुकूमत की हालत खराब होने लगीं। नवंबर 1971 के माह भर पाकिस्तानी रूढ़िवादी – कट्टरपंथियों  के द्वारा पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े – बड़े मार्च होने लगे और भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग की जाने लगी। 23 नवंबर 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने पूरे पाकिस्तान में आपातकाल की घोषणा कर दी और अपने लोगों को को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। वहीं दूसरी तरफ भारतीय सेना भी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर चौकसी बरते हुए थे। 3 दिसंबर (1971) की शाम लगभग 05:40 बजे, पाकिस्तान वायुसेना ने भारत – पाक सीमा से 300 मील दूर बसे आगरा समेत उत्तर – पश्चिमी भारत के 11 वायुसेना स्टेशन पर अप्रत्याशित रिक्ति – पूर्व हमले कर दिये। उसी शाम, राष्ट्र के नाम संदेश में भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि ये हवाई हवाई हमले पाकिस्तान की ओर से भारत पर युद्ध की घोषणा हैं और उसी रात को भारतीय वायुसेना ने पहली जवाबी कार्रवाई भी कर दी। अगले दिन ही इन जवाबी हमलों को बड़े स्तर पर आक्रमण में बदल दिया गया। पाकिस्तान के हवाई हमले के साथ ही युद्ध की शुरूआत हो गई। भारत सरकार ने सेना की टुकड़ियों को सीमा की कूच करने के आदेश दिये तथा इस अभियान में समन्यवय बनाकर जल, थल और नभ से पाकिस्तान पर सभी मोर्चों पर हमले बोल दिये गए।

वायु हमला

पाकिस्तान द्वारा भारत पर किये हवाई हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने रौद्र रूप ले लिया और पूर्वी पाकिस्तान पर जबरदस्त पकड़ बना लिया। पूर्वी पाकिस्तान पर पकड़ मजबूत होने के बाद भी भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान पर अपने हमले को जारी रखा। यह हमला अब दिन में विमान भेदी तोपों, रडार भेदी विमानों एवं लड़ाकू जेट विमानों के पास – पास से निकलने वाले हमलों की श्रेणी तथा रात के समय में विमानक्षेत्रों हवाई पट्टियों, हवाई  स्टेशनों पर हमलों तथा पाकिस्तानी बी – 57 व सी – 130 और भारतीय कॉनबर व एएन – 12 के बीच भिड़तों की शृखंला में बदलता जा रहा था। पाकिस्तान के एयर फोर्स ने अपने वायु बेसेज की आंतरिक सुरक्षा एवं रक्षात्मक गश्ती दल हेतु एफ – 6 तैनात करने शुरू किये परंतु बेहतर एयर क्वालिटी के अभाव के कारण वह प्रभावी आक्रामक अभियान नहीं चला पा रहा था। भारतीय वायुसेना ने एक संयुक्त राज्य वायुसेना एवं एक संयुक्त राष्ट्र विमान को डाका में नष्ट कर दिया एवं इस्लामाबाद में कनाडा के रॉयल कनाडा वायुसेना के डीएचसी-4 कॅरिबोउ के साथ खड़े हुए सं.राज्य मिलिट्री के सम्पर्क प्रमुख ब्रिगेडियर-जनरल चुक यीगर के निजी सं.राज्य वायुसेना से लिये हुए बीच यू-8 सहित दोनों को उड़ा डाला। हमलों में बुरी तरह मात खाने एवं भारतीय हमलों में हानि के बाद पाकिस्तान ने रक्षात्मक रुख अपना लिया। भारतीय वायुसेना ने लगभग 4000 से अधिक उड़ानें भरीं जबकि पाक वायुसेना ने उसकी जवाबी कार्रवाई नामलेवा ही की। भारत के मुकाबले पाक वायुसेना युद्ध के प्रथम सप्ताह तक महाद्वीपीय आकाश से विलुप्त हो चली थी। अगर कुछ पाक सेना विमान बचे भी थे, उन्होंने या तो ईरानी एयरबेस में शरण ली या कंक्रीट के बंकरों में जा छिपे एवं आगे कोई हमला करने का हिम्मत नहीं जुटा पाया।

कश्मीर को पंजाब से काटने की नापाक साजिश पर फिरा पानी

पाकिस्तान ने कश्मीर को पंजाब से काटने की गहरी साजिश रची थी। बताया जाता है कि पाकिस्तान ने कश्मीर को पंजाब से अलग करने के लिए शकरपुर में बसंतर नदी पर अपने सैन्य बलों का अभेद्य किले जैसा जमावड़ा कर लिया था। भारतीय सेना के पास एक ही रास्ता बच गया था कि वह बसंतर नदी को पार करके पाकिस्तान की सीमा में सेंध मार दुश्मनों के हौसलों को पस्त करे। पाकिस्तान ने अपने 10 टैंक तैनात किये थे और उसके 10 टैंकों के सामने भारत तीन टैंक दीवार बन कर खड़े थे। एक टैंक पर लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल थे। भारत ने पाकिस्तान के 7 टैंक नष्ट कर दिए थे, लेकिन दो टैंकों को लीड करने वाले घायल हो चुके थे। सारी जिम्मेदारी अरुण क्षेत्रपाल के कंधो पर आ गई थी। क्षेत्रपाल के टैंक में भी आग लगी हुई थी। उन्हें आदेश मिला कि वे वापस आ जाएं। अरुण क्षेत्रपाल ने वायरलेस बंद किया और अकेले ही मुकाबला करने का फैसला किया और बहादूरीपूर्वक  दुश्मन के दो टैंक उड़ा दिए, लेकिन तभी एक गोला उनके टैंक पर आकर गिरा और वे बुरी तरह घायल हो गए। पाकिस्तान का आखिरी टैंक उनसे कुछ ही दूरी पर था। आमने-सामने के हमले में वीर सपूत अरुण क्षेत्रपाल ने  दुश्मन के टैंक को ध्वस्त करते हुए अपनी आंखें सदा के लिए मूंद लीं।

भूमि आक्रमण

पूर्वी पाकिस्तान की संकट को देखते हुए युद्ध के पूर्व ही भारत की सेनाएं दोनों मोर्चों पर सुव्यवस्थित थीं साथ ही पाक सेना की तुलना में भारतीय सैनिकों की संख्या भी अधिक थी। भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान की सीमाओं में घुस कर मुक्ति वाहिनी का साथ दिया। भारत की 9 पैदल सेना टुकड़ियों के साथ बख्तरबंद इकाइयों एवं इनके सहायक वायु हमलों के साथ भारतीय सेनाओं ने शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी ढाका तक पहुंच बनायी। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पूर्वी पाकिस्तान पर पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया, जिनकी सहायता में भारतीय वायुसेना ने तेज गति से पाकिस्तानी पूर्वी कमान के उपस्थित छोटे-छोटे हवाई दलों को नष्ट कर डाला जिससे ढाका वायुक्षेत्र का प्रचालन एकदम प्रभावित हो गया। भारतीय सेना पाकिस्तान में घुसकर अधिकार जमाने में सफल हुए तथा शीघ्र ही लगभग 5,795 वर्ग मील (15,010 कि.मी.) पाक भूमि अधीन पर ली जिनमें आजाद कश्मीर, पंजाब एवं सिंध के क्षेत्र आते हैं, किन्तु बाद में 1972 के शिमला समझौते के अन्तर्गत्त सद्भावना के रूप में वापस कर दिये गए। भारत ने इस युद्ध में “ब्लिट्ज़क्रीग” तकनीकें अपनायी, जिसके अन्तर्गत्त शत्रु के स्थानों में कमजोरी व्याप्त कर, उनके विरोध से बचते हुए शीघ्रता से विजय प्राप्त की गयीं।

जब काल बनकर पाक सैनिकों पर बरस पड़े भारतीय नौसैनिक

पाकिस्तान के हमले के बाद भारतीय नौसेना की तरफ से चार दिसंबर को ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरू किया गया। नौसेना ने दोनों मोर्चे पूर्वी पाकिस्तान(बंगाल की खाड़ी) और पश्चिमी पाकिस्तान(अरब सागर) पर अपनी मजबूत तैयारी के साथ मैदान में था। पश्चमी मोर्चे का नेतृत्व नौसेना पोत मैसूर से एडमिरल कुरुविल्ला और वाइस एडमिरल एस.एन. कोहली कर रहे थे। तीन – चार दिसंबर की रात में भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट पर हमला कर दिया। पाकिस्तान के पीएनएस खैबर को डूबो दिया इसके अलावा माइंस स्वीपर पीएनएस मुहाफिज, पीएनएस शाहजहां को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया जिसमें मरने और जख्मी होने वाले पाकिस्तानी नौसेनिकों की संख्या करीब 720 थीं। नौ दिसंबर को भारत को सबसे बड़ा झटका लगा जब पाकिस्तानी सबमरीन पीएनएस हंगोर ने भारत के आईएनएस खुकरी को अरब सागर में डूबो दिया, जिसमें 194 भारतीय हताहत हुए। इसके जवाब में  ऑपरेशन ट्राइडेंट के बाद भारत ने आठ – नौ दिसंबर को ऑपरेशन पायथन शुरू किया,जिसके तहत भारत के मिसाइल जहाजों ने पुनः कराचीं पोर्ट पर हमला किया और पाकिस्तान के रिजर्व फ्यूल टैंक के साथ – साथ पाकिस्तानी नौसेना हेडक्वार्टर को तहस – नहस कर दिया। इस हमले में उसके तीन मर्चेंट जहाज डूब गए । कराची पोर्ट भी कई दिनों तक जलता रहा।

वहीं पूर्वी तट का मोर्चा वाइस एडमिरल कृष्णन ने संभाल रखा था, जिन्होंने बंगाल की खाड़ी में एक नौसैनिक अवरोध बनाकर पश्चिमी पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान से काट दिया। जिस कारण पूर्वी पाकिस्तानी नौसेना एवं आठ विदेशी व्यापारिक जहाज भी वहीं पर फंसकर रह गये। आईएनएस विक्रांत की मदद से सी – हॉक फाइटर बॉम्बर ने पूर्वी पाकिस्तान के तटीय इलाकों में हमले किये। इसके जवाब में पाकिस्तान ने अपना सबमरीन गाजी को भेजा जो विशाखापत्तनम कोस्ट के पास डूब गया, जिसमें 96 पाकिस्तानी सैनिक थे। भारत के आईएनएस राजपूत ने इसे नष्ट कर दिया जिससे पाकिस्तान की कमर टूट गई। हालांकि इस तट पर भारत को भी नुकसान हुआ।

जनरल नियाज़ी का आत्मसमर्पण और बाग्लादेश का उदय

16 दिसंबर 1971 ही वह स्वर्णिम दिन था जिस दिन भारत ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की और पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में उदय हुआ। आधिकारिक रूप से 16 दिसंबर को पूर्वी पाकिस्तान के पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने भारतीय सेना के कमांडर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने रेसकोर्स, ढाका में समर्पण अभिलेख पर हस्ताक्षर किया। दरअसल पूर्वी तट पर मजबूत पकड़ के बाद भारतीय सेना ढाका कूच कर गई थी। जगजीत सिंह अरोड़ा भारतीय सेना के कमांडर थे। ढाका में तीस हजार पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे और जनरल अरोड़ा के पास करीब चार हजार सैनिक, दूसरे सैन्य दलों का पहुंचना अभी बाकी था। भारतीय कमांडर जगजीत सिंह अरोड़ा पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी से मिलने पहुंचे और ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाब डाला कि नियाजी को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य होना पड़ा। समर्पण होने के बाद भारतीय सेना ने लगभग 93 हजार सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया। यह द्वितीय विश्व युद्ध से अब तक का सबसे बड़ा समर्पण था। 16 दिसंबर 2021 को भारतीय सेना के पराक्रम के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं और इसे स्वर्णिम विजय वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।

स्वर्णिम विजय के अमिट हस्ताक्षर

हर युद्ध की तरह 1971 के युद्ध में भी सेना के हजारों जवानों ने वीरता का परिचय दिया लेकिन इनमें कुछ ऐसे नाम थे जो स्वर्णिम विजय के अमिट हस्ताक्षर बन गए। इन पराक्रमी योद्धाओं में सबसे पहला नाम अलबर्ट एक्का का आता है जिन्होंने अपनी क्षमता  से बाहर जाकर देश को विजय दिलाई। अल्बर्ट एक्का ने अपनी बटालियन ‘द ब्रिगेड ऑफ द गार्डस’ के साथ ईस्टन फ्रंट डिफेंस के दौरान गंगासार में दुश्मनों पर हमला किया। अल्बर्ट ने देखा कि बंकर से एक दुश्मन एमएमजी की मदद से उनकी टीम को नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने उस बंकर पर हमला बोल दिया और अकेली सैनिक की जान ले ली, पाक के कई सैनिक घायल। इस दौरान एक्का बुरी तरह जख्मी हो गये। एक अन्य दुश्मन ने इनकी टीम पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। अल्बर्ट एक्का खून से लथपथ थे फिर हाथ ग्रेनेड लेकर उस दुश्मन पर हमला बोल दिया। तीन दिसंबर को उन्होंने अपने प्राण गंवा दिये। वीरगति के बाद सरकार ने सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा।  दूसरा नाम था मेजर होशियार सिंह का जिन्होंने तीन ग्रेनिडियर्स की अगुवाई करते हुए अपना अद्भुत पराक्रम दिखाया, उन्होंने जम्मू – कश्मीर की दूसरी ओर शकरगड के पसारी क्षेत्र में जरवाल का मोर्चा फतह भी किया, उन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया था। तीसरा नाम हैं मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी जिन्हें 4 दिसंबर की शाम को सूचना मिली की बड़ी संख्या में दुश्मन की फौज लोंगवाला चौकी की तरफ बढ़ रही है। उस समय लोंगेवाला पोस्ट पर मात्र 90 भारतीय जवान थे। 29 जवान और लेफ्टिनेंट पेट्रोलिंग कर रहे थे. आदेश मिला कि या तो दुश्मन का सामन करें या फिर पैदल रामगढ़ के लिए रवाना हो जाएं। मेजर चांदपुरी ने दुश्मन के साथ दो-दो हाथ करने की ठानी। उनका लक्ष्य था कि किसी तरह पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से रोका जाए। अंधेरा घिर आने पर पाकिस्तानी टैंकों ने लोंगेवाला पोस्ट को घेर लिया। भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई इतनी दमदार थी कि पाकिस्तान सेना कुछ दूरी पर जाकर रुक गई। चांदपुरी के नेतृत्व में चंद जवानों ने पाकिस्तान के हजारों जवानों के हौसले पस्त कर दिए थे।

कैप्टन महेन्द्र नाथ मुल्ला ने तो देश की रक्षा करते – करते जल समाधि ले ली। बात 6 दिसंबर 1971 की है। 6 दिसंबर को भारतीय नौसेना को संकेत मिले कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी ‘हंगोर’ भारतीय सीमा में आ गई है। नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को भेजा गया। पाकिस्तानी ‘हंगोर’ ने पहला टॉरपीडो कृपाण पर चलाया, लेकिन फट नहीं पाया। इसके बाद खुखरी पर हमला किया गया। खुखरी पर दूसरा धमाका होते ही पूरे पोत की बत्ती चली गई। कैप्टन मुल्ला ने देखा कि खुखरी में दो छेद हो चुके हैं और उसमें तेजी से पानी भर रहा है। फनल से लपटें निकल रही थीं। जहाज पर सवार अन्य जवान जान बचाने के लिए पानी में कूद पड़े, लेकिन कैप्टन मुल्ला ने वहीं डटे रहने का फैसला किया। खुखरी के डूबते समय जहाज टूट गया। कैप्टन मुल्ला जहाज के इस मलबे के साथ जल समाधि में लीन हो गए।

1971 के स्वर्णिम विजय गाथा के नायकों की सूची लंबी है। इस कड़ी में लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ, कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, निर्मलजीत सिंह सेखों, चेवांग रिनचैन जैसे कुछ और प्रमुख नाम हैं जिन्होंने इस युद्ध में पाक को करारी हार देकर विजय की नई परिभाषा गढ़ी।

 

Tags: abvpAjit kumar Singhbangladeshvijay diwasअजीत कुमार सिंहअभाविप
No Result
View All Result

Archives

Recent Posts

  • अभाविप की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद बैठक का रायपुर में हुआ शुभारंभ
  • युवाओं की ऊर्जा और राष्ट्रभक्ति को दिशा देने का कार्य कर रही है विद्यार्थी परिषद: विष्णुदेव साय
  • विधि संकाय की अधिष्ठाता के इस पक्षपातपूर्ण कृत्य से सैकड़ों छात्र परेशान, विधि संकाय की अधिष्ठाता तत्काल इस्तीफा दें : अभाविप
  • डूसू कार्यालय में राहुल गांधी के अनधिकृत आगमन के दौरान एनएसयूआई द्वारा फैलाया गया अराजक वातावरण एवं छात्रसंघ सचिव मित्रविंदा को प्रवेश से रोकना निंदनीय व दुर्भाग्यपूर्ण : अभाविप
  • Ashoka university Vice Chancellor’s response and remarks on Operation Sindoor undermine National Interest and Academic Integrity: ABVP

rashtriya chhatrashakti

About ChhatraShakti

  • About Us
  • संपादक मंडल
  • राष्ट्रीय अधिवेशन
  • कवर स्टोरी
  • प्रस्ताव
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

Our Work

  • Girls
  • State University Works
  • Central University Works
  • Private University Work

आयाम

  • Think India
  • WOSY
  • Jignasa
  • SHODH
  • SFS
  • Student Experience Interstate Living (SEIL)
  • FarmVision
  • MediVision
  • Student for Development (SFD)
  • AgriVision

ABVP विशेष

  • आंदोलनात्मक
  • प्रतिनिधित्वात्मक
  • रचनात्मक
  • संगठनात्मक
  • सृजनात्मक

अभाविप सार

  • ABVP
  • ABVP Voice
  • अभाविप
  • DUSU
  • JNU
  • RSS
  • विद्यार्थी परिषद

Privacy Policy | Terms & Conditions

Copyright © 2025 Chhatrashakti. All Rights Reserved.

Connect with us:

Facebook X-twitter Instagram Youtube
No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

© 2025 Chhatra Shakti| All Rights Reserved.