विश्व में कहीं भी शिक्षा एवं शिक्षा नीति की जब भी बात होती है तब भाषा की चर्चा होना अनिवार्य है। भाषा के बिना औपचारिक शिक्षा संभव ही नहीं है। भारत में भाषा का विषय अधिक महत्वपूर्ण एवं जटिल है। स्वतंत्र भारत में कई लोगों ने भाषा को राजनीति का एक साधन बना दिया। भारत में भाषा अधिक भावनात्मक विषय भी है।
हमारे देश में अनेक भाषाएं हैं जिनको कई विद्वान भाषा और बोलियों, दो वर्गों में भी बांटते हैं। संविधन की 8वीं अनुसूची में स्वतंत्रता के समय 14 भाषाएं थीं वह बढ़कर अभी 22 हो गयी है। इसके अतिरिक्त बोलियों को मिलाकर वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 1369 भाषाएं है जिसमें 121 भाषाएं 10 हजार से अधिक बोलने वालों की भाषाएं हैं। यूनेस्कों के अनुसार विगत 50 वर्षों में 197 भारतीय भाषाएं लुप्त प्राय हो चुकी है, अनेक लुप्त प्राय होने की कगार पर है। एक भाषा मरने से उस भाषा को बोलने वालो की सभ्यता, संस्कृति आदि समाप्त हो जाते है। ऐसी परिस्थिति में भाषा का महत्व और बढ़ जाता है। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भली-भांति स्वीकार किया है। इस दृष्टि से नीति में लिखा है ‘‘संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए, हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा।’’
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनुशंसाओं के अनुसार विद्यालयीन शिक्षा के स्तर पर कम से कम कक्षा 5 तक तथा जहां संभव है वहां कक्षा 8 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। विद्यालय से लेकर उच्च शिक्षा के स्तर पर पाठ्यक्रम द्विभाषा में उपलब्ध् कराने की बात भी कही है, यह अधिक महत्वपूर्ण है। आज पूर्व प्राथमिक शिक्षा से प्रारंभ अंग्रेजी माध्यम की दौड में यह बात जल्दी से पचना मुश्किल है, परन्तु जो बात तार्किक एवं वैज्ञानिक है उसको स्वीकार करके ही सही दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि हमारा बालक स्नातक, परास्नातक तक की पढ़ाई में छः वर्ष अंग्रेजी के पीछे बरबाद करता है, अगर यह समय उसके विषय पर खर्च होता है तो वह अपने विषय में अधिक सक्षम हो सकता है। वैश्विक स्तर पर भाषा संबंधी जितने भी अध्ययन हुए हैं, सबका एक ही निष्कर्ष है कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए।
शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्रा को लागू करने पर पुनः प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है, क्योंकि देश के कुछ राज्य अभी तक इसका अमल नहीं कर रहे हैं। साथ ही त्रिभाषा नीति की जो भावना थी कि उत्तर के राज्य अर्थात हिन्दी भाषी राज्य के छात्र दक्षिण या अन्य राज्यों की एक भाषा सीखेंगे और अहिन्दी भाषी राज्यों के छात्र हिन्दी सीखेंगे परन्तु व्यवहारिक रूप से ऐसा किया नहीं गया। इस हेतु इस नीति में भारतीय भाषाओं के शिक्षण को बढ़ावा देने हेतु राज्य परस्पर अनुबंध कर भाषा शिक्षकों का आदान-प्रदान कर सकते हैं, इस प्रकार का सुझाव भी दिया गया है। इसी प्रकार कक्षा 6 से 8 तक के बालकों को ‘‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’’ गतिविधि में भाग लेना होगा। कुछ वर्ष से केन्द्रीय विद्यालय संगठन यह गतिविधि् चला रहा है उनका परिणाम काफी अच्छा है। इस बात में त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन को लेकर और एक प्रावधन है कि छात्रों को तीन में से दो भारतीय भाषाएं चुनना अनिवार्य होगा।
हमारे देश में भाषा को लेकर कई भ्रम फैले हुए हैं जैसे कि अनेक राज्यों में मातृभाषा के विद्यालयों में उच्च माध्यमिक स्तर पर विज्ञान और गणित अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जा रहा है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति एवं विख्यात वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम से नागपुर के धरमपेठ महाविद्यालय के एक कार्यक्रम में व्याख्यान के बाद छात्र ने प्रश्न किया कि आप सफल वैज्ञानिक कैसे बने तब डॉ. कलाम का उत्तर था कि ‘‘मैनें 12वीं तक विज्ञान, गणित सहित सम्पूर्ण शिक्षा मातृभाषा (तमिल) में ली है।’’ इस नीति में भी गणित, विज्ञान के पाठ्यक्रम भी द्विभाषा में उपलब्ध् कराने का आग्रह किया है।
इस शिक्षा नीति में ई-लर्निग, ऑन-लाइन शिक्षण को बढ़ावा देने की बात कही है। वर्तमान में देश में साधारण धरणा बनी है कि इस प्रकार का शिक्षण अंग्रेजी में ही हो सकता है। इस गलत धरणा के विरूद्ध इस नीति में ई-लर्निग भी स्थानीय भाषा में पढ़ाने की बात कही गयी है। अभी प्रस्तुत बजट-2022 में भी इस हेतु प्रावधन किए गए है। सम्बन्धित लोगों से जानकारी प्राप्त हुई है कि केन्द्रीय स्तर पर भारतीय भाषाओं में साफ्टवेयर तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। विद्यालयीन शिक्षा के लिए शिक्षण अधिगम, ई-सामग्री आदि सभी राज्यों के साथ-साथ एन.सी.ई.आर.टी., सी.आई.ई.टी., सी.बी.एस.ई., एन.आई.ओ.एस. और अन्य निकायों / संस्थानों द्वारा भी सभी क्षेत्राय भाषाओं में विकसित करने की प्रतिबद्धता दर्शायी गई है।
इस नीति में भाषा शिक्षण को बढ़ावा देने हेतु तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाएगा। इस हेतु विकिपीडिया जैसे माध्यम के द्वारा भारतीय भाषाओं और उससे सम्बन्ध्ति कला, संस्कृति का संवर्धन किया जाएगा। साथ ही बालक भाषा का शिक्षण आनन्द से सीख सके इस हेतु ऐप्स एवं गेम्स (खेल) आदि विकसित करने की बात भी कही गई है।
भारत में भाषाओं की विविधता को ध्यान में लेकर एक अत्यंत व्यावहारिक समस्या के समाधन पर भी नीति में ध्यान दिया गया है। हमारे देश के अधिकतर राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया है परन्तु जिसको आज प्रचलित भाषा में बोली कहा जाता है वह एक राज्यों में अनेक होती हैं। कई बार अनुभव आता है, विशेषकर जनजातीय, पहाड़ी क्षेत्र के छात्र उस राज्य की राजभाषा भी ठीक प्रकार से नहीं जानते, ऐसे समय उनको वहां की स्थानीय भाषा में पढ़ाया जाए तब वह सही ढंग से सीख पायेंगे। इस हेतु इस नीति में शिक्षकों की नियुक्ति हेतु लिए जाने वाले साक्षात्कार में स्थानीय भाषा की सुगमता का भी परीक्षण किया जाएगा। साथ ही ग्रामीण भारत के उत्कृष्ट छात्रों, विशेषकर के कन्याओं हेतु बी.एड.पाठ्यक्रम के लिए विशेष छात्रावृति की व्यवस्था की जाएगी जिससे ग्रामीण क्षेत्र में क्षेत्रीय भाषा में निपुण शिक्षकों की नियुक्ति की जा सके।
समग्र भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत का स्थान भाषाओं की दृष्टि से ‘‘मां’’ के समान है। सभी भारतीय भाषाओं का आधार संस्कृत है। इस तथ्य का वैश्विक स्तर पर भी स्वीकार किया जा रहा है कि संस्कृत वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पूर्ण भाषा है। परंतु हमारे देश में कुछ लोगों ने संस्कृत को मृतभाषा तक कह दिया है। इस नीति में कहा गया है कि संस्कृत को पाठशालाओं तक सीमित न रखते हुए विद्यालयों में त्रिभाषा सूत्र के तहत एक विकल्प के रूप में स्थान दिया जाएगा। इसे पृथक नहीं परन्तु रूचिपूर्ण एवं नवाचारी तरीकों से पढ़ाया जाएगा तथा अन्य समकालीन एवं प्रासंगिक विषयों जैसे गणित, खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नाटक विद्या, योग आदि से भी जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही शिक्षा एवं संस्कृत विषयों में चार वर्षीय बहुविषयक बी.एड. डिग्री के द्वारा मिशन मोड में पूरे देश के संस्कृत शिक्षकों को बड़ी संख्या में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी। इस नीति में एकल विश्वविद्यालयों की संकल्पना को खारिज किया है। इस दृष्टि से संस्कृत विश्वविद्यालय भी बहुविषयक विश्वविद्यालय बनेंगे जिससे सभी विषयों के साथ संस्कृत का जुड़ाव सहज हो सकता है।
हमारे देश में अनुवाद कभी प्राथमिकता का विषय नहीं बना है। कई बार अनुभव आते हैं कि अनुवाद कोई गलत कार्य है। उदाहरण के लिए आप दक्षिण के किसी राज्य में व्याख्यान के लिए गए हैं तब अंग्रेजी में बोलने का आग्रह रहता है, हममें से अध्कितर लोगों ने भी इसको स्वीकार कर लिया है। दक्षिण के राज्यों में बड़ी संख्या में लोग ऐसे है जो हिन्दी या अंग्रेजी दोनों भाषा नहीं जानते हैं उस समय देश की राजभाषा हिन्दी में व्याख्यान दें और आवश्यकतानुसार उसका स्थानीय भाषा में अनुवाद किया जाए, यह प्रयास बहुत कम जगह किया जाता है। अनुवाद स्वाभाविक भाषा का विकल्प नहीं है परन्तु हमारा देश बहुत विशाल है, भाषाओं की विविधता हैं, ऐसे समय में अनुवाद आवश्यक कार्य हो जाता है, परन्तु इसकी कमी से अपने ही देश के विभिन्न राज्यों के अच्छे साहित्य से वंचित रहते हैं। इसी प्रकार धारणा बन गई है कि ज्ञान की भाषा अर्थात अंग्रेजी यह अर्धसत्या तो हो सकता है परन्तु पूर्ण नहीं। विभिन्न विषयों का उत्कृष्ट ज्ञान अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध है। उदाहरण के लिए विज्ञान का अधिक ज्ञान रूसी भाषा में है, दर्शन का ज्ञान जर्मन भाषा में इसी प्रकार पुरातत्व, साहित्य का अधिक अच्छा ज्ञान फ्रांसीसी भाषा में है। इन सब प्रकार का ज्ञान हमको चाहिये तो इसका अनुवाद ही विकल्प है। वैश्विक स्तर पर अच्छे ज्ञान की पुस्तक किसी भी भाषा में छपती है तब जापान एक मास के भीतर उसका जापानी भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाता है। हमें भारत को ज्ञानवान समाज बनाना है तो अपनी भाषाओं में ज्ञान उपलब्ध कराने से ही यह संभव हो पायेगा। इस नीति में राष्ट्रीय अनुवाद संस्थान की स्थापना तथा अनुवाद के उच्च गुणवत्ता वाले पाठ्यक्रम चलाने का प्रावधन किया गया है।
इस शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों के संस्कृत सहित भारतीय भाषा के विभागों को सुदृढ़ करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इसी तरह सभी शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य का अध्ययन करने वाले संस्थानों और विश्वविद्यालयों के विस्तार की बात कही गई है और देशभर में बिखरी हुई लाखों पांडुलिपियों को एकत्रित और संरक्षित करके उनके अनुवाद तथा अध्ययन करने के प्रयास की प्रतिबद्धता दर्शायी गई है।
यह वैज्ञानिक तथ्य है कि रचनात्मकता, सृजनात्मकता, नवाचार एवं शोध – अनुसंधान मातृभाषा में ही संभव है। भारतीय वैज्ञानिक सी.वी. श्रीनाथ शास्त्री ने कहा है कि मेरे अनुभव के अनुसार अंग्रेजी के माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की तुलना में भारतीय भाषाओं में पढ़े छात्र, अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान करते हैं। इस नीति ने इस तथ्य को स्वीकार करते हुए प्रस्तावित ‘‘राष्ट्रीय शोध संस्थान’’ में भारतीय भाषाओं में शोध हेतु आवश्यक निधि का प्रावधान किया जाएगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पालि, प्राकृत, एवं फारसी भाषा हेतु राष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने की बात कही गई है (फारसी का इसमें समावेश का क्या औचित्य है, वह समझ से परे है।) साथ ही आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं की अकादमी स्थापित करने का आश्वासन दिया गया है। भारतीय भाषा, संस्कृति एवं कला के अध्ययन हेतु किसी भी उम्र के व्यक्ति हेतु छात्रवृति की व्यवस्था करने का प्रावधान भी किया जाएगा। साथ ही नीति में वर्तमान में भारतीय भाषाओं की वास्तविक स्थिति की स्वीकारोक्ति भी की है कि देश में गुणवत्ता वाले शिक्षकों की कमी है एवं भारतीय भाषाओ में उच्च गुणवता वाली सामग्री, पाठ्यक्रम आदि का अभाव है। इस हेतु भाषा शिक्षण में सुधार करने हेतु अनुशंसा दी गई है।
इस प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास विस्तार के संदर्भ में आवश्यक अधिकतर बातों का समावेश किया गया है। परन्तु सबसे बड़ा प्रश्न इसके क्रियान्वयन का है। इस दृष्टि से केन्द्र, राज्य तथा विभिन्न शैक्षिक संस्थानों एवं सामाजिक स्तर पर इसके क्रियान्वयन की उचित दिशा एवं व्यवस्था खड़ी करनी होगी। इसी प्रकार समाज के मानस को परिवर्तित करने की भी ठोस योजना आवश्यक है इस हेतुः-
- केन्द्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय के पाठ्यक्रम आदि स्तर पर कक्षा 8 तक की पढ़ाई अनिवार्य रूप से मातृभाषा में होनी चाहिए।
- राज्य सरकारों को भी इसी दिशा में कदम बढ़ाने की योजना पर कार्य करना होगा।
- उच्च शिक्षा के सभी संस्थानों, विश्वविद्यालयों आदि के पाठ्यक्रमों को द्विभाषी करने की तैयारी प्रारंभ करनी चाहिए।
- सरकारी विद्यालयों में जहां भी प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम है वहां परिवर्तन करके मातृभाषा का माध्यम लागू करना चाहिए।
- शिक्षा के सभी स्तर के पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषा का विकल्प एक निश्चित समय मर्यादा में देने हेतु योजना पर शीघ्रता से कार्य होना चाहिए।
इस प्रकार की ओर भी अनेक बातें क्रियान्वयन हेतु सुनिश्चित करनी होगी।
इस नीति में अनेक विषयों के क्रियान्वयन हेतु समय मर्यादा सुनिश्चित की गई है। इस प्रकार भारतीय भाषाओं के संदर्भ में क्रियान्वयन की सुनिश्चित योजना नहीं दिखाई दे रही है। इस हेतु नीति में भारतीय भाषाओं के संदर्भ में जो प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है उसका क्रमबद्ध समय – पत्रक सुनिश्चित करने से ही वास्तविक क्रियान्वयन संभव हो पायेगा।
यह आनंद का विषय है कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम आठ भाषा में तैयार करके इसके क्रियान्वयन पर ठोस कार्य प्रारम्भ किया है। इसी प्रकार कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आईआईटी) तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) तथा मध्यप्रदेश सरकार ने चिकित्सा शिक्षा के पाठ्यक्रम को मातृभाषा में पढ़ाने की तैयारी प्रारंभ की हैं। इस प्रकार के सारे प्रयास अभिनंदन के पात्र एवं अनुकरणीय है।
जिस देश के नागरिकों में अपनी भाषा का स्वाभिमान नहीं होता है उनको विश्व में कहीं सम्मान नहीं मिल सकता। इस हेतु सामाजिक संस्थाओं, संगठनों एवं विशेष करके शिक्षा जगत के लोगों का प्रमुख दायित्व बनता है कि इस दिशा में देशव्यापी जन जागरण अभियान चलाकर अपनी भाषाओं का स्वाभिमान जगाने हेतु संकल्पबद्ध हों।
(लेखक, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव हैं।)