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Home लेख

अभाविप के शिल्पकार प्रा. यशवंत राव केलकर

अजीत कुमार सिंह by अजीत कुमार सिंह
April 25, 2022
in लेख
अभाविप के शिल्पकार प्रा. यशवंत राव केलकर

Yashwant rao kelkar

वर्ष 1947 में हजारों वर्षों की गुलामी के पश्चात 15 अगस्त को हमें खंडित आजादी मिली। स्वाधीन होने के पश्चात भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती युवाओं की ऊर्जा का नियोजन और भारत की आगामी दिशा तय करना था। स्वाधीनता के एक वर्ष बाद यानी 1948 में अतीत से सीख लेकर स्वर्णिम भारत की संकल्पना को केन्द्र में रखकर युवाओं के ऊर्जा का नियोजन कर उसे उचित दिशा देने के उद्देश्य अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जन्म हुआ, जिसका विधिवत पंजीयन नौ जुलाई 1949 को हुआ। 1948-49 में परिषद के रूप में जो बीज बोया गया था वह आज विशाल वट वृक्ष का आकार लेकर दुनिया के सबसे बड़े छात्र संगठन के रूप में स्थापित हो चुका है। वर्ष 1948 राष्ट्रीय पुनर्निमाण का ध्येय लेकर परिषद की यात्रा आंरभ हुई लेकिन इसका अखिल भारतीय स्तर पर धाक तक बनी जब प्रा. यशवंतराव केलकर रूप में परिषद को शिल्पकार मिला।

यूं तो विद्यार्थी परिषद को खड़ा करने में अनेकानेक कार्यकर्ताओं का योगदान है लेकिन प्रा. यशवंत राव केलकर का योगदान उल्लेखनीय है। परिषद को अखिल भारतीय स्तर ले जाने की रूपरेखा उन्होंने ही तैयार की। अपने अकथ परिश्रम से उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में एक ऐसी कार्यशैली विकसित की जिसका अनुसरण करते हुए आज सात दशक बाद भी विद्यार्थी परिषद का कार्य निरंतर प्रगति के पथ पर है। उनके साथ कार्य करने वाले परिषद के वरिष्ठ कार्यकर्ता कहते हैं कि केलकर जी से जो एक बार मिल लिये सदा के लिए उनका ही हो गये।  कार्यकर्ताओं के व्यक्तित्व का सही दिशा में विकास हो, इस दृष्टि से उन्होंने उनकी संभाल और देखभाल की। हर कार्यकर्ता को काम और हर कार्य के लिए कार्यकर्ता की संकल्पना परिषद कार्यपद्धति का आधार है। कार्यकर्ता संभाल की यशवंतराव जी की विशिष्ट पद्धति थी । कार्यकर्ता को एक मनुष्य के नाते समझना, परखना और उसकी क्षमताओं तथा गुणों का विकास करते हुए उसे प्रेरणाओं से भर देना, यह उनकी कार्यकर्ता निर्माण और कार्यकर्ता संभाल की आधारशिला थी I स्वर्गीय यशवंत राव केलकर जी की आज जन्म तिथि है। थे। आज ही के दिन 25 अप्रैल 1925 में महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पंढरपुर नामक कटवे तीर्थक्षेत्र में उनका जन्म हुआ था। प्रा. केलकर ने कहा था कि हम सब अपूर्णांक हैं और मिलकर पूर्णांक बनते हैं, इस बात पर विश्वास रखना हमारी विशेषता है। हम यह भी मानते हैं कि सभी अपूर्णांक समान महत्व के होते हैं। अधिक महत्वपूर्ण अपूर्णांक और कम महत्वपूर्ण अपूर्णांक ऐसा नहीं होता है।

संगठन शिल्पी यशवंत राव

25 अप्रैल 1925 में महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पंढरपुर नामक कटवे तीर्थ क्षेत्र में जन्में प्रा. यशवंत वासुदेव राव केलकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। यहां के विद्यालय, मध्य विद्यालय में उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। लोकमान्य विद्यालय से एसएससी, प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। आगे स. प. महाविद्यालय पुणे से स्नातक (अंग्रेजी) भी उत्तम श्रेणी से सफल हुए। स्नातक करने के पश्चात वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। बचपन से ही स्वयंसेवक तो थे ही। 1945 से लेकर 1952 तक वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाशिक और सोलापुर जिले में प्रचारक रहे। उनके नजदीकी बताते हैं कि समाज जीवन में यशवंत जी ने अटूट संपर्क स्थापित कर लिए थे। प्रचारक जीवन से वापस आने के पश्चात उन्होंने परास्नातक (अंग्रेजी) की पढ़ाई पूर्ण की, जिसमें उन्हें स्वर्णपदक मिला। 1956 से उन्होंने नेशनल कॉलेज बांद्रा मुंबई में अंग्रेजी विषय के प्राध्यापक के नाते कार्य शुरु किया। उन्हें एक वर्ष संघ योजना से भारतीय जनसंघ का कार्यालय प्रांत प्रमुख करके दायित्व संघ योजना से दिया गया था । उनका प्रा. सौ. शशीकला जी से विवाह हुआ। वह भी अंग्रेजी की प्राध्यापक थी । केलकर दंपत्ति की तीन सुपुत्र रहे । तीनों उत्तम विद्या से विभूषित हैं। संघ की योजना के अनुसार 1958 -59 में प्रा. यशवंत राव केलकर ने विद्यार्थी परिषद का दायित्व संभाला। विद्यार्थी परिषद के दायित्व में आने के बाद समग्रता के साथ परिषद कार्य करने लगे। सन 1967-68 में वे विद्यार्थी परिषद के अखिल भारतीय अध्यक्ष रहे । 1967 में ही ‘अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन (SEIL) ‘ की स्थापना हुई और यशवंत राव केलकर उसके संस्थापक अध्यक्ष बने।  केलकर जी ने अभाविप कार्य को अखिल भारतीय स्तर पर खड़ा करने का विचार किया। स्वाभाविक रूप से संघ एवं उससे संबंधितों से बातचीत की गई। विचार – विमर्श करने के बाद प्रा. केलकर ने खुद अभाविप कार्य शुरू किया। बाद में वर्ष 1981 में स्थापित ‘विद्यार्थी निधि ‘ के भी वे संस्थापक अध्यक्ष रहे । अभाविप के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सदाशिव देवधर जी बताते हैं कि केलकर जी का आग्रह प्रथम मनुष्य ढूंढना, कार्यकर्ता तैयार करना एवं प्रत्येक कार्यकर्ताओं के लिए विविध प्रकार के आकर्षक कार्यक्रम ढूंढना उनका मूल कार्य था। पहले – पहले मुंबई पर ध्यान केद्रित किया। मुंबई में श्री पद्नाभजी आचार्य, बाल आप्टे, मदन जी, वैशंपायन, दिलीप परांजपे आदि छात्र कार्यकर्ता खड़े हुए। उन्हें फिर माह में दो – तीन बार महाराष्ट्र के विद्यापीठ केन्द्र और दो बड़े बडे स्थानों पर भेजते रहना।

महाराष्ट्र में परिषद कार्य खड़ा हो गया । इतने में नागपुर में संघ के प्रभावी प्रचारक (कै.)  दत्ता जी डिंडोलकर वापस आये थे। अत्यंत विद्वान युवा प्रिय प्राध्यापक दत्ता जी और यशवंतराव जी जैसे दो समर्थ कंधों पर आगे विद्यार्थी परिषद का अखिल भारतीय कार्य खड़ा हुआ। आपटे जी, मदन जी, राजजी, नारायण भाई, कोहली जी, प्रा. शेषगिरीराव, कृष्ण भट्ट जी का आगे वर्षोनिक इनका अमोल सहकार्य रहता था एवं यही आगे के समर्थ अभाविप के विकास अध्वर्यु बने। साथ – साथ गोविंदाचार्य, राम बहादुर राय, महेश जी आदि पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का भी योगदान रहा। केलकर जी का सर्वस्पर्शी कार्य, सामाजिक समता का अत्यधिक आग्रह रहता था। राष्ट्रीय पुननिर्माण के संदर्भ में शिक्षा क्षेत्र में कार्य दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय जागरण का कार्य, सामाजिक दंडशक्ति खड़ी करने का प्रयास, रचनात्मक कार्य एवं आवश्यक तो प्रत्यक्ष आंदोलन आदि अभाविप के आग्रह के विचार रहे ।

निःस्वार्थ स्नेह और मित्रता की गंगोत्री प्रा. केलकर

अभाविप के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शिक्षाविद प्रा. मिलिंद मराठे अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि प्रा. यशवंत राव केलकर जी का हर व्यक्ति में बसने वाली अच्छाई पर उनका अटूट विश्वास था I यही अच्छाई पर श्रद्धा व्यक्ति को पूर्ण रूप से बदलने की क्षमता रखती है I यशवंतराव जी ने इसी श्रद्धा के साथ हजारों कार्यकर्ताओं को संभाला, बदला I यशवंतराव जी द्वारा दिखाए गए इसी विश्वास पर खरा उतरने के लिए अनेक कार्यकर्ताओं ने अपने स्वभाव को परिवर्तित किया I वे जीवन में संभल गए I स्नेह और आत्मीयता से भरे हुए आपसी व्यवहार के माध्यम से कार्यकर्ता एक- दूसरे को अपने- अपने व्यक्तित्व विकास की यात्रा में सहायता करते रहें, स्वयं विकसित होते रहें और संगठन में एक उत्तम कार्यकर्ता के नाते अपना योगदान देते- देते पूरे जीवन के लिए सार्थक जीवन दृष्टि पाएं, ऐसा मार्गदर्शन यशवंतराव जी का था, वे स्वयं भी इसी मार्ग का अनुसरण करते थे। निःस्वार्थ स्नेह और मित्रता की वे मानो गंगोत्री थे। आगे प्रा. मराठे बताते हैं कि  मैं 1984 में कोल्हापुर जिला संगठन मंत्री के नाते पूर्णकालिक बना । उस समय उनके साथ हुआ संवाद मुझे हमेशा याद आता है । कार्यक्षेत्र का मेरा आकलन, वहां की चुनौतियाँ, अपने कार्य की वर्तमान स्थिति आदि बातों के बारे में पूछताछ करते- करते आपने सहजता से पूछा, “आपका कैसा चल रहा है? मन स्वस्थ है ना? ‘पालक’ के साथ आपकी बात होती है ?, बातचीत करते रहना, मन में जो आता है उसके बारे में मनमुक्त संवाद, चर्चा होनी चाहिए….। ” संगठन का प्रमुख पितृतुल्य भाव से आत्मीयता से, सच्चे मन से मेरे जैसे एक जिला संगठन मंत्री से व्यक्तिगत पूछताछ कर रहा था। मेरे लिए यह अनुभव जीवन भर के लिए एक भरोसा देने वाला था ।

केन्द्रीय सड़क, परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं कि मैं उन सौभाग्यशाली कार्यकर्ताओं में हूं जिसे प्रा. यशवंत राव केलकर जी के साथ काम करने का मौका मिला। उन्होंने अपने छात्र जीवन की चर्चा करते हुए कहा मैं अपने कॉलेज में मारपीट करने वाले छात्रों में गिना जाता था लेकिन विद्यार्थी परिषद में कार्य करने के कारण मेरे अंदर अनेक सकारात्मक बदलाव आये। मैंने विद्यार्थी परिषद में यशवंत राव जी के साथ एक कार्यकर्ता के रूप में काम किया है और मेरे जीवन में जो भी सकारात्मक परिवर्तन आये है वो सभी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने से ही आए है।  यशवंत राव जी के साथ कार्य करने के कारण मुझे अनेक चीजें सीखने को मिली। उनकी दूरदृष्टि और प्रबंधन को दुनिया के सामने और अधिक अच्छे तरीके से ले जाने की जरूरत है।

डॉ. हेडगेवार कुलोत्पन्न केलकर

विद्यार्थी परिषद का शायद ही ऐसा कार्यकर्ता कोई होगा जो प्राध्यापक यशवंतराव केलकर के नाम से परिचित न हो। प्रा. केलकर का व्यक्तित्व का प्रभाव ही है उन्हें गुजरने तीन दशक बात भी कार्यकर्ता उन्हें खुद के बीच पाते हैं। लाखों कार्यकर्ता ऐसे हैं जिन्होंने केलकर जी के साथ कार्य नहीं किया है लेकिन उनके विचारों का प्रभाव उनपर इतना है कि हमेशा उनके करीब पाते हैं। केलकर जी ने एक दृष्टि से अपना जीवन उद्देश्य अभाविप रखा था । अत्यंत बुद्धिमान होते हुए भी अभाविप से कार्यमग्नता के कारण उन्होंने पीएचडी नहीं की । “कार्यमग्नता जीवन हो, मृत्यु यही विश्रांति यह उनके बारे में सच है ।” सकारात्मक दृष्टिकोण यह उनकी विशेषता रही । किसी बात के लिए किसी पर दबाव नहीं रहता था परंतु उनका छोटी – छोटी बातों का व्यवहार देखकर की, कोई भी व्यक्ति आदर्श अपेक्षा की कल्पना कर सकता है। (स्व.) प. पू. देवरस जी ने उनके बारे में कहा था कि “केलकर जी प. पू. हेडगेवार कुलोत्पन्न है, इतना कहना ही उनके लिए पर्याप्त है ।” इससे स्व. केलकर जी का  महान कृतित्व ध्यान में आता है

विद्यार्थी परिषद और केलकर जी एक दूसरे के पर्याय हैं। विद्यार्थी परिषद में प्रा. यशवंत राव केलकर जी के योगदान पर अगर हम विचार करें तो हमें पता चलता है कि उनके द्वारा संभाले गए ये पद जितना महत्व रखते हैं उससे अधिक महत्व की बात यह है कि उन्होंने परिषद में कार्यकर्ता -निर्माण, कार्यकर्ता -विकास की प्रक्रिया तथा संगठन की अनूठी कार्य पद्धति स्थिर कीI आज विद्यार्थी परिषद के जिस कार्य पद्धति की सराहना सभी लोग करते हैं उस कार्य पद्धति के वे अद्भुत शिल्पकार थे I अपने परिश्रम से उन्होंने विद्यार्थी परिषद में एक ऐसी कार्यशैली विकसित की जिसका अनुसरण करते हुए आज सात दशक बाद भी परिषद का कार्य निरंतर प्रगति के पथ पर हैI अगणित परिषद कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों के लिए प्रा. यशवंत राव जी सच्चे मित्र अनुपम तत्व वेत्ता और मार्गदर्शक थे। विभिन्न प्रतिभाओं एवं क्षमताओं के तरूणाईयों के मन में भारतभूमि और समाज की स्थिति के प्रति सजगता उत्पन्न करते हुए उन्हें राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के कार्य हेतु तैयार करने के लिए केलकर जी जीवन भर कृतसंकल्पित रहे। दैहिक रूप से यशवंतराव जी को गुजरे हुए 34 साल बीत गए हैं I 2023-24 में विद्यार्थी परिषद अपने कार्यकाल के 75 वर्ष पूरे करेगीI आज भी परिषद कार्यकर्ता केलकर जी के कार्यपद्धति एवं कार्यकर्ता निर्माण के सिद्धांतों पर ही चल रहे हैं I उन सिद्धांतों के कारण ही आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। स्वर्गीय यशवंतराव केलकर एक आदर्श सामाजिक कार्यकर्ता का जीता जागता उदाहरण थे। विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले अनेक व्यक्तियों के लिए वे प्रकाश स्तंभ जैसे थे।

(लेखक राष्ट्रीय छात्रशक्ति पत्रिका के सह संपादक हैं।)

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