Monday, May 12, 2025
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
No Result
View All Result
Home लेख

राष्ट्रीय छात्र आंदोलन : पराक्रम की संभावनायें

अजीत कुमार सिंह by सुनील आंबेकर
July 9, 2022
in लेख
abvp

abvp

भारत की स्वाधीनता के लिए ‘सबकुछ’ यह मंत्र लेकर समूचा छात्र समूदाय आंदोलनरत था। कई विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों से विभिन्न प्रकार के छात्र समूह व संगठन इसी उद्देश्य से सक्रीय थे। स्वामी विवेकानंद के समय से ही युवाओं के मन में ‘भारत स्वाभीमान’ की ज्वाला पुन: प्रज्ज्वलित हुई थी, जिसकी स्वभाविक परिणती स्वाधीनता आंदोलन में उनके सक्रीय एवं निर्णायक सहभाग में होनी थी। लोकमान्य तिलक के व्यक्तित्व का प्रभाव काफी था। क्रांतिकारी आंदोलन से प्रेरित होकर कई छात्र 1940 आते-आते सक्रीय हो चुके थे। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि 1920 की रशियन कम्युनिस्ट क्रांति से प्रभावित छात्र समूह भी भारतीय संस्कृति, देशभक्ति तथा भारत की अखंडता के प्रति संकल्पबद्ध थे। 6 अप्रैल 1928 को भारतीय नौजवान सभा के लाहौर घोषणा पत्र में, जिसके महासचिव स्वयं शहीद भगतसिंह थे, लिखते है, “क्या यह तौहीन की बात नहीं है की गुरु गोविंदसिंह, शिवाजी और हरीसिंह जैसे शुरवीरों के बाद भी हमसे कहा जाए कि हम में अपनी रक्षा करने की क्षमता नही हैं?” आगे लिखते है, “उस भारत में जहाँ एक द्रौपदी के सम्मान की रक्षा में महाभारत जैस महायुद्ध लड़ा गया था, वहाँ 1919 में दर्जनों द्रौपदियों को बेइज्जत किया गया, हमने यह सब नही देखा?” एक और उल्लेख भी उसमें है, “हमें तक्षशिला विश्वविद्यालय पर गर्व है लेकिन आज हमारे पास संस्कृति का अभाव है, और संस्कृति के लिए उच्चकोटी का साहित्य चाहिए, जिसकी रचना सुविकसित भाषा के अभाव में नहीं हो सकती। दु:ख की बात है की आज हमारे पास उनमें से कुछ भी नहीं हैं।” इस घोषणापत्र के अंत मे आवाहन है, “राष्ट्रनिर्माण के लिए हजारों अज्ञात स्त्री-पुरुषों के बलिदान की आवश्यकता होती है, जो अपने आराम व हितों के मुकाबले तथा अपने प्रियजनों के प्राणों के मुकाबले देश की अधिक चिन्ता करते है। वंदे मातरम्।”

इसी प्रकार लाला लाजपत राय ने 25 दिसम्बर 1920 में अखिल भारतवर्षीय छात्र सम्मेलन नागपुर में कहा था, “मेरे विचार में सच सच है। ज्ञान, विज्ञान में हमें अपनी पद्धती जारी रखनी है। यही उद्देश्य होना चाहीए। हम युरोपियन या अमेरिकन राष्ट्र नहीं होना चाहते, बल्कि भारतीय राष्ट्र होना चाहते हैं,। इस समय प्राचीन सभ्यता के प्रकाश में आधुनिक उन्नतियों का समावेश कर हमें अपनी शिक्षा पद्धती स्थापित करनी चाहिए। वर्तमान सभ्यता में आर्थिक और सामाजिक दोनों अवस्थाएँ बुरी हैं पर इससे हमें यह न भूलना चाहिए कि ज्ञान और विज्ञान से ही 300 वर्ष में आश्चर्यजनक उन्नत्ति हुई है। ये चाहे जहाँ से आवें, भारत को स्वतंत्र करने के लिए इनका पूरा उपयोग करना चाहिए। इस कॉन्फ्रेंस को इन बातों का निश्चय करना है। छात्रों के भावों को क्रियान्वित करने के लिए एक संस्था का निर्माण करना और असहयोग पर अपने विचार प्रकट करना है। संगठन का मसौदा तैयार किया जा चुका है, पर पास होने के पहले इसमें संशोधन करना आप लोगों का काम है। यह संस्था स्थायी संस्था बने, यह विद्यार्थीयों के स्वार्थ पर पूरी दृष्टि रखे और जब आवश्यकता पड़े राजनीतिक विषयों पर अपना मत प्रकट करे। यह दल- विशेष की संस्था न हो। इसका द्वार विभिन्न मतावलम्बी छात्रों के लिए खुला रहे, इसके प्रस्ताव आदेशमूलक न हों।”

अखिल बंगाल छात्र सम्मेलन- 22 सितम्बर 1928 जवाहरलाल नेहरु का भाषण :-

“यही संसार के वर्तमान युवक आन्दोलन का आधार है। राष्ट्रीय-स्वाधीनता की अपेक्षा अधिक विस्तृत और उदार आधार है, क्योंकी वे अच्छी तरह समझ चुके हैं कि पश्चिमीय देशों का संकीर्ण राष्ट्रवाद सिद्धान्त युद्धों का बीज बोता हैं।”

“युवक विचार कर सकते है, और विचारों द्वारा उत्पन्न होने वाले फल से भयभीत नहीं होते हैं। यह मत समझिये कि विचार कोई मामूली चीज अथवा उसके नतीजे तुच्छ होते हैं। विचार न तो अल्लह मियाँ के गुस्से से डरता है न नर्क की यंत्रणाओं से। यह पृथ्वी पर सबसे बढ़ी क्रान्तिकारी चीज है और चूँकी युवक विचार करने और कार्य करने की हिम्मत रखते हैं, इसीलिए वे इस योग्य समझे जाते हैं कि हमारे इस देश और इस संसार को उस कीचड़खाने में से निकाल सकें जिसमें वे डूबे हुए हैं।”

बाम्बे युथ लीग का पूना अधिवेशन- 12 दिसम्बर 1928 जवाहरलाल नेहरु का भाषण :-

“इस कारण हमें सारे साम्रज्यवाद के नाश का उपाय सोचना चाहिए और समाज का एक दूसरे के आधार पर संगठन करने का सहयोग करना चाहिए। और यह नींव सहयोग ही की होनी चाहीए, जिसे हम ‘साम्यवाद’ कहकर दूसरे नाम से पुकारते हैं। हमारा राष्ट्रीय आदर्श, अतएव, ‘सहयोगी साम्यवादी राज्य’ होना चाहिए और हमारा अन्तर्राष्ट्रीय आदर्श ‘संसार का संयुक्त साम्यवादी राज्य’ होना चाहिए।”

यशोहर-खुलना छात्र सम्मेलन- 22 जून 1929 सुभाष चन्द्र बोस का भाषण :-

“युवा-आन्दोलन का जन्म तीव्र असन्तोष से है- इसका उद्देश्य व्यक्ति का, समाज का, राष्ट्र का नये आदर्श-युक्त नये रुप मे रचना करना हैं। अर्थात् आदर्शवाद ही युवा-आन्दोलन का प्राण है।”

“मैं आज के अपने अभिभाषण में व्यक्तिगत साधना पर अधिक जोर देना नहीं चाहता। कारण, भारतवासी ने कभी भी व्यक्तिगत साधना की विस्मृती नहीं किया। हम कभी भी व्यक्तित्व विकास की साधना से अलग नहीं रहे। यह ठीक है कि पाश्चात्य या दूसरे देशों के व्यक्तित्व का आदर्श और हमारे देश के व्यक्तित्व का आदर्श एक ही नहीं रहा हैं। परन्तु वर्तमान पराधीनता और सभी प्रकार की दुर्दशा के मध्य भी हमारे देश में कितने ही महापुरुषों ने जन्म ग्रहण किया और आज भी कर रहे हैं, उसका एक मात्र कारण यही है कि हमने सही आदमी के निर्माण की चेष्टा में कभी भी शिथिलता आने नहीं दी। पर हम भूल गये थे कलेक्टिव साधना या समष्टिगत साधना। हम भूल गये थे कि राष्ट्र को काटकर जो साधना है, वह साधना सार्थक नहीं है। इसलिए समाज-संगठन विरोधी वृत्ति हमारे अन्दर घर कर गयी थी और ऐसे संगठन अमरबेल की तरह हमारे राष्ट्रीय जीवन को बोझिल और शक्तिहीन बनाते रहते थे। आज बंगाल के तरुणों को रौद्र रूप धारण कर संकल्प लेना होगा कि, राष्ट्र-समाज-संगठन विरोधी वृत्तिगत अपने कुसंस्कारपूर्ण ज्ञान का त्याग करेंगे और प्रतिकूल सभी संगठनों को निर्मूल करेंगे।”

नये आदर्श के अनुसार अगर जीवन-नियोजित करना हो तो पारम्पारिक लीक का परित्याग करना होगा। पश्चिमी राष्ट्र लीक से हट कर सदा नये के अन्वेषण में रह रहे है, इसी कारण वे इतनी उन्नति कर सके हैं। मगर हम तो अजाने के भय से सदा भयभीत रहते हैं; बाहर की अपेक्षा घर में ही पड़े रहना अच्छा समझते हैं। इसलिए हम लोगों में ‘स्पिरिट आव् एडवेंचर’ इतना कम है। परन्तु ‘स्पिरिट आव् एडवेंचर’ जिस का हम में बड़ा अभाव है-किसी भी जाति की उन्नति का एक प्रमुख कारण है। मैं बंगाल के तरुण समाज को यह बताना चाहता हूँ- ‘बाहर’ के लिए, ‘अजाना’ के लिए पागल बनो।

“यशोहर और खुलना के भाइयों! आओ, हम एक साथ कहें- ‘हम इंसान बनेंगे, निर्भिक, मुक्त, सही आदमी’। अपने त्याग, साधना और प्रयत्नों के बल पर हम नये स्वाधीन भारत का निर्माण करेंगे। हमारी भारतमाता पुन: राजराजेश्वरी होगी; उसके गौरव से हम पुन: गौरवान्वित होंगे। कोई भी बाधा हम नहीं मानेंगे; किसी भय से हम भयभीत नही होंगे। हम नूतन के सन्धान में, अजाने के पीछे-पीछे आगे बढ़ेंगे। राष्ट्र के उद्धार का जिम्मा हम श्रद्धापूर्वक, विनय के साथ ग्रहण करेंगे। यह व्रत-उद्यापन कर हम अपना जीवन धन्य समझेंगे; भारत को हम विश्व सभा में ससम्मान आसन दिलायेंगे। आओ भाई! हम अब पल भर भी देर न कर श्रद्धावनत तथा कन्धे से कन्धा मिलाकर एक स्वर में कहें – पूजा का समस्त आयोजन हो चुका है; अतएव जननी! जागो!”

हुगली छात्र सम्मेलन- 21 जुलाई 1929 सुभाषचन्द्र बोस का भाषण :-

“समाज और राष्ट्र के निर्माण का मूलमन्त्र है, व्यक्तित्व का विकास। इसलिए स्वामी विवेकानन्द हमेशा कहते थे, “मैन मेकिंग इज माई मिशन” – सही आदमी का निर्माण ही मेरे जीवन का उद्देश्य हैं। पर व्यक्तित्व-विकास  पर इतना जोर देते हुए स्वामी विवेकानन्द राष्ट्र को बिलकुल भूले नहीं थे। कर्मरहित सन्यास अथवा पुरुषार्थहीन भाग्यवाद पर उनकी आस्था नहीं थी। रामकृष्ण परमहंस ने अपनी साधना के द्वारा जे सर्वधर्म- समन्वय कर दिखाया था, वही स्वामी जी के जीवन का मूलमन्त्र बना और वही भविष्य के भारत के मूलमन्त्र का भी आधार हुआ। इस सर्वधर्म-समन्वय और सभी मतों में सहिष्णुता के बिना हमारे विविधतापूर्ण इस देश में राष्ट्रीय सौध स्थापित नहीं हो सकता।”

“आई शुड लाइक टु सी सम आफ् यू बिकमिंग ग्रेट; ग्रेट नाट फॉर योर ओन सेक, बट टु मेक इंडिया ग्रेट- सो दैट शी मे स्टैंड अप विद हेड इरेक्ट अमंग दि फ्री नेशन्स आफ् दि वर्ल्ड।”

मध्यप्रदेश युवा छात्र सम्मेलन- 29 नवम्बर 1929  सुभाषचन्द्र बोस का भाषण :-

“युवा आन्दोलन का दायरा जीवन की भाँति ही व्यापक है। इसलिए जीवन की जितनी भी दिशाएँ हैं, युवा-आन्दोलन की भी उतनी ही दिशाएँ होंगी।”

“राष्ट्र के इतिहास के निर्माण के लिए हमें अनेकों विरोध और अत्याचार सहन करने को प्रस्तुत रहना होगा।”

उपरोक्त विचारों की उथलपुथल के बीच डॉ. हेडगेवार के हाथों व्यक्तिगत रूप में चारित्र्यवान होते हुए राष्ट्रीय चारित्र्य से परिचीत छात्र-युवाओंका समूह संगठीत हो रहा था। काँग्रेस व क्रांतिकारीयों के साथ सक्रीय रहते हुए उन्होंने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रख दी थी। स्वाधिनता के लिए संघर्ष के साथ ही स्वाधीन भारत के उत्थान की तैयारी का शुभारंभ था। स्वाधीनता के पश्चात छात्र-युवाओंके लिए यह महत्त्वपूर्ण दिशादर्शन था एवं सामान्य छात्र-युवाओंको देश के लिए समर्पित होने के नये अवसरों का वह सृजन कर रहे थे। इसी में स्वाधीन भारत के राष्ट्रीय छात्र-आंदोलन के बीज थे।

डॉ. हेडगेवार ने कहा था, (राकेश सिन्हा की पुस्तक)

स्वाधीनता के पश्चात तत्काल 1948 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) का कार्य प्ररंभ हो गया था तथा 9 जुलाई 1949 को विधिवत पंजीकृत संगठन भी बन गया। लेकिन छात्र आंदोलनों एवं समुचे छात्र जगत पर उसका प्रभाव अभी बना नहीं था। निश्चित ही भविष्य में उसे समुचे राष्ट्रीय छात्र आंदोलन का नेतृत्व करना था,पर्याय बनना था, परंतु यह वटवृक्ष उस समय बीज रुप में या नये छोटे पौधे के रुप में उपस्थित था।

छात्र समुदाय अपनी आकांक्षाओं के अनुरुप नई सरकार, नई व्यवस्था से बदलाव की अपेक्षा कर रहा था। स्वाधीनता का जोश भी था। किसी भी मुद्दे पर छात्र आंदोलन हो रहे थे।

पुलिस प्रशासन भी अंग्रेजों के जमाने का था, जो थोड़े ही उकसाने में छात्रों पर लाठीयाँ बरसाता था, फिर छात्र भी उग्र होकर हिंसक हो रहे थे। यह बार-बार जगह-जगह हो रहा था। जिसके चलते छात्र आंदोलन तथा संगठनों के प्रति कुछ नकारात्मक धारणायें भी बन रही थी।                        स्वाधीनता के पश्चात विश्वविद्यालयों में हुई शुल्क वृद्धि ने छात्रों को निराश भी किया तथा आक्रोशित भी।

उत्तर प्रदेश में 4 अगस्त 1947 को शिक्षा मंत्री सम्पूर्णानंद से शुल्क वृद्धि को लेकर छात्रों का प्रतिनिधिमंडल मिला। परंतु कुछ न होने की स्थिति में  24 सितंबर 1947 को पुरे उत्तर प्रदेश में छात्रों का आंदोलन प्रारंभ हो गया, जो लगातार उग्र होता चला गया। परिणाम स्वरुप पुरी सरकार हिल गई, दमन चक्र चला। पंरतु अंत में आचार्य नरेंद्रदेव की मध्यस्थता में सरकार झुकी लेकिन काफी किरकिरी हुई थी, क्योंकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबधित ‘छात्र कांग्रेस संगठन’ के छात्र नेतागण भी इस में सहभागी थे। उसके पश्चात 1947 में मुंबई विश्वविद्यालय ने परिक्षा शुल्क बढ़ाया व छात्र कांग्रेस व बम्बई स्टुडेन्ट्स युनियन के आह्वान पर समस्त छात्रों ने हड़ताल की। जुलाई 1948 में दोबारा फीस बढ़ाई गई तथा मेडीकल छात्रों की 75 % फीस बढ़ाई। हजारों छात्रों का आंदोलन हुआ, पंरतु फीस नहीं घटी।

लेकिन परिणाम स्वरुप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1948 में ‘छात्र कांग्रेस संगठन’ को भंग करने का निर्णय लिया। फिर सौराष्ट्र में भी इसी विषय पर आंदोलन काफी उग्र हुआ जिसमें हिंसा,आगजनी की काफी घटनायें हुई। अंतत: 1 जुलाई 1950 को शिक्षा शुल्क वृद्धि वापस हुई। ग्वालियर में व पुरे मध्यभारत में आंदोलन हुआ,दो छात्र शहिद हुए, इस गोलीकांड का निषेध उत्तर प्रदेश. महाराष्ट्र, गुजरात के कई शहरों में छात्रों द्वारा किया गया। अंतत सरदार पटेल द्वारा निष्पक्ष जाँच के आश्वासन से यह हिंसक छात्र आंदोलन 13 अगस्त 1950 को समाप्त हुआ। ऐसे सभी आंदोलनों के संदर्भ श्यामकृष्ण पाण्डेय द्वारा संपादित पुस्तक भारतीय छात्र आंदोलन का इतिहास भाग 1 व 2में विस्तार से वर्णन उपलब्ध है।

वैसे 1951-52 में ही अलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मुकुन्द बिहारी लाल अध्यक्ष पद पर विजय हए तथा छात्र संघ कार्यक्रम में श्री गुरुजी गोलवलकर के आने पर साम्यवादी, समाजवादी एवं अन्य लोगों ने काफी हंगामा किया। यह परिसरों में संघ विचारों के विरोध के अलोकतांत्रिक प्रवृत्ती की झलक थी। उन दिनों छात्र संघों की रक्षा हेतु उत्तर प्रदेश में, मैसुर- बेंगलोर में युथ फेस्टीवल में (1962-64) सहभाग का आग्रह आदि आंदोलन काफी हिंसक रहे। 1965 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू हटाने का छात्रों द्वारा जबरदस्त विरोध हुआ, उसके पश्चात् प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री द्वारा इस विधेयक को वापस लिया गया।

ऐसे उग्र आंदोलनों की उपस्थिति ने 1966 में एक व्यापक छात्र आंदोलन का स्वरुप धारण कर लिया। जिसमें अव्यवस्था के संदर्भ में भरपूर आक्रोश था, परंतु संगठन एवं नेतृत्व के अभाव में वह दिशाहीन अराजक में बदल गया। दिल्ली से प्रारंभ होकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र आदि जगह फैल गया।

1966 के अगस्त में ‘बार कौंसिंल ऑफ इंडिया’ ने  कानून के छात्रों हेतु नए प्रावधान लाए जिसमें तीन वर्ष के पाठ्क्रम के साथ एक वर्ष प्रशिक्षण काल एवं पश्चात बार कौंसिंल की परिक्षा को अनिवार्य कर दिया। ‘प्रशिक्षण को तीन वर्ष में ही जोड़े’ इस आग्रह पर छात्र आंदोलन दिल्ली में  प्रारंभ हुआ जिसका स्वरुप हड़ताल, पथराव, आगजनी, लाठीचार्ज था। फिर पंजाब की भूख हड़ताल, मध्य प्रदेश में गोलीकाण्ड व मौते, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, मेरठ, गाजियाबाद आति जगह फैलता गया। गृहमंत्री, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अध्यक्ष डॉ. डी. एस. कोठारी, फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का केंद्रीय मंत्री मण्डल में 7 अक्टूबर 1966 को वक्तव्य द्वारा छात्रों से अपील की।

लेकिन दमन व प्रदर्शन जारी रहे व बिहार तक फैल गये। उत्तर प्रदेश, बिहार विधान सभा भी इससे हिल गई। 16-18 अक्टूबर 1966 को देश के सभी 30 विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों का सम्मेलन भी इसी निमित्त बुलाया गया। जम्मू-कश्मीर में भी एक छात्र की मौत हुई। इस आंदोलन के दिशाहिन स्वरुप जिसमें परिवर्तन के नाम पर केवल अराजक फैलाने की छात्रनेताओंकी मंशा देखकर कई छात्र धीरे-धीरे इस से दूर होने लगे। सरकार की दुश्मन मानकर दबाने की दमन प्रवृत्ति ने भी काँग्रेस के एवं इंदिरा गांधी के प्रति भी लोगों को काफी निराशा हुई थी। आंदोलन तो धीरे-धीरे ठण्डा पड़ गया परंतु इसी ने नए प्रकार ‘सृजनात्मक संघर्ष’ वाले आंदोलन का पुरस्कार करने वाले रचनात्मक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लिए छात्रों में एक आकर्षण तैयार किया।

अराजक से राष्ट्रशक्ति   

स्वाधीनता के पश्चात ही परिषद ने स्थापना से ही घोषणा की ‘छात्र शक्ति राष्ट्र शक्ति है’ यह दिशाहीन समुह नहीं है। छात्र कल का नहीं अपितु छात्र आज का नागरिक है। भारत को इंग्लैड, अमरिका या रूस व चीन जैसा नहीं अपितु भारत बनना है। भारत का पुनर्निर्माण इसके भूतकाल के गौरव से प्राप्त स्वाभीमान एवं आत्मविश्वास से होगा। यही हमारे युवाओंको भारत के उज्जवल भविष्य के लिए संकल्पशक्ति देगा। दीनभाव से दुसरों की ओर आस लगाकर बैठने की जगह भारत माता की शक्ति एवं भक्तिभाव से परिश्रम पूर्वक आराधना करने से भारत के करोड़ों लोगों के भविष्य सुनिश्चित होंगे।

भारत के उत्थान के लिए पराक्रम पुरुषार्थ एवं संकल्प की जरुरत है। देशभक्ति एवं समाज के प्रति आत्मीयता से ओतप्रोत छात्र – युवा समुदाय ही सभी समस्याओंके समाधान हो सकते है। जैसे विचारों से प्रेरित होकर अभाविप का कार्य प्रारंभ हुआ।

कार्य विस्तार होने में समय लग रहा था लेकीन स्वाधीन भारत के राष्ट्रीय छात्र आंदोलन की नींव मजबूत हो यह प्रयास विद्यार्थी परिषद के प्रारंभ काल से ही किया गया। भारत के गौरवशाली इतिहास से प्राप्त ज्ञान चारित्र्य एवं एकता को परिषद ने अपना मूलमंत्र बनाया तथा इसी परंपरागत नींव पर राष्ट्रीय पुननिर्माण को अपना मुख्य जीवन उद्देश्य घोषित किया। इसी उद्देश्य पूर्ति हेतु आवश्यक संगठन व व्यक्ति निर्माण का कार्य हाथ में लिया। अराजक नहीं रचनात्मक को अपने कार्य का आधार बनाया। वर्ग संघर्ष के स्थान पर छात्र, शिक्षक एवं शिक्षाविद ऐसे शैक्षिक परिवार की कल्पना की। दलगत राजनीति के प्रभाव से उपर उठकर व्यापक हितों के लिये संकल्पबद्ध होने का निर्णय लिया। स्वाधीनता आंदोलन के शुद्ध देशभक्ति से नाता जोड़कर वैसा ही पराक्रमी छात्र आंदोलन अपने परिश्रम से खड़ा करने का निश्चय किया। इस तरह भारतवासियों का भाग्य बदलने हेतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के इस व्यापक छात्र आंदोलन का प्रारंभ हुआ।

विद्यार्थी परिषद के प्रारंभ के लगभग 15 वर्ष नए-नए प्रांतों में विस्तार एवं विभिन्न कार्यक्रमों जैसे प्रौढ़ शिक्षा/ प्राथमिक शिक्षा अभियान, छात्रों की सहायता, संविधान की प्रक्रीया में राष्ट्र नाम, गान, भाषा के स्वदेशी होने व स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े होने पर आग्रह से हुआ। इस दौरान हुए 62 के युद्ध में हर नागरीक सहायता के प्रयास में छात्रों को जोड़ने के प्रयास भी किये गये।

                        1967 के बाद परिषद के विस्तार को गति मिलना प्रारंभ हुआ। बांग्लादेश मुक्ति के युद्ध के समय सैनिकों की सहायता में शिविर  लगाने में भी परिषद आगे रही। 1971 में दिल्ली छात्र संघ में परिषद का झंडा अध्यक्ष पद पर लहराया। यह छात्रों द्वारा प्राप्त स्वीकृति का संकेत था। परिषद के रजत जयंती वर्ष 1974 में मुम्बई में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में 326 जिलों से 550 प्रतिनिधि उपस्थित थे। 1973 गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन में परिषद मुख्य भूमिका में थे, जिसमें छात्राओं के योजनाबद्ध आंदोलन ने सत्ता को हिला दिया था।

अगस्त 1973 में ही विद्यार्थी परिषद के श्री रामबहादुर राय, सुशील कुमार मोदी आदि के नेतृत्व में सभी अन्य  संगठनों के साथ बैठक के पश्चात ‘छात्र नेता सम्मेलन’ का दिल्ली में नवम्बर में आयोजन हुआ। जिसमें ‘गुजरात की जीत हमारी है, अब बिहार की बारी है’ का नारा लगा। तत्पश्चात यह व्यापक छात्र आंदोलन जेपी आंदोलन नामक जनआंदोलन बन गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जून 1975 में लागू आपातकाल में सभी राजनैतिक नेताओंको कारागृह में बंदी होने के पश्चात भी विद्यार्थी परिषद की अग्रणी भूमिका में छात्र आंदोलन ने ऐतिहासिक संघर्ष का उदाहरण प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से अंतत: आपातकाल का अंत हुआ। इस आंदोलन ने छात्र संगठन एवं आंदोलन से छात्रों की भूमिका को प्रतिष्ठा एवं प्रासंगिकता प्रदान की। पश्चात हुए राजनैतिक परिवर्तन में जहाँ लगभग सभी छात्र संगठन दलगत राजनीति का हिस्सा बने, परिषद ने दलगत राज नीति से उपर उठकर कार्य करने की अपनी रीति बनाये रखी। परिषद की इस भूमिका ने राष्ट्रीय छात्र आंदोलन को एक नया रचनात्मक चरित्र प्रदान किया। 1977 के पश्चात देशभर में विद्यार्थी परिषद को छात्रों का समर्थन प्राप्त हो रहा था। कई जगह छात्र संघों में विजय मिली थी।

एक जिम्मेदार संगठन के रुप में परिषद की यात्रा प्रारंभ हुई थी। परिषद के नेतृत्व में भी इस विशेष दायित्व की अनुभुति थी। इसी के परिणाम स्वरुप 1982 में प्रथम विचार बैठक का आयोजन हुआ, जिसका उद्देश्य छात्र संगठन के सिद्धांत, दायित्व एवं दिशा के संदर्भ में पुन: चिंतन था। 1982,1986,1990,1994,1999,2003,2010,2015 में हुए विचार बैठकों के क्रम में लगातार पिछले 4-5 वर्षों की समीक्षा, परिस्थिति का विश्लेषण, छात्र आंदोलन स्थिति एवं समय की मांग तथा उस पर आधारित आगामी दिशा निश्चित करने की प्रक्रीया लगातार चल रही है।

                        शिक्षा सभी के लिए, सुलभ, गुणवत्तापूर्ण हो इस आग्रह को लेकर सत्त रुप से देश के हर कोने में परिषद ने संघर्ष चलाया है। समाज के हर वर्ग तक यह अवसर पहुँचे, उस में उत्पन्न बाधाएँ समाप्त करें, इस हेतु लगातार छोटे-बड़े आंदोलन को परिषद ने जन्म दिया है।

शिक्षा का भारतीय करण अर्थात भारत को भारत की शिक्षा  जो भारत के प्रति सम्मान बढ़ाएं, भारतीय ज्ञान से अवगत कराये तथा दुनियाभर के आधुनिकतम ज्ञान- विज्ञान को अवगत करते हुए लोक सुलभ बनाकर देश की प्रगति हेतु उपयोग लाने का सामर्थ प्रदान करें, ऐसी शिक्षा। इस प्रक्रिया में छात्र निरंतर भाग लें, महत्वपूर्ण भूमिका निभाये, सरकारें छात्रों को सहभागी करें ऐसे कई प्रयास एवं अवसर तैयार करते हुए परिषद ने शिक्षा परिवर्तन हेतु छात्र आंदोलन को नई दिशा प्रदान की।

                        ‘ग्रामोत्थान हेतु छात्र’ अभियान आपातकाल के संघर्ष के पश्चात समस्त छात्रशक्ति का ग्रमविकास से जुड़ने एवं अपने समाज के प्रित आत्मीयता जगाने के उद्देश्य से यह अभियान प्रारंभ हुआ। छात्र आंदोलन की सफलता से व्यापक राजनैतिक वातावरण में समूचे छात्रशक्ति को उनके महत्वपूर्ण दायित्व से अवगत कराने की विद्यार्थी परिषद इस पहल का कई लोगों ने क्रांतिकारी कदम माना। दूसरी तरफ दुनिया के देशों से संपर्क स्थापित करते हुए पूरे वैश्विक छात्र आंदोलन में महत्वपूर्ण एवं दिशादर्शक भूमिका अदा करने में भी परिषद ने पहल की थी। वाराणसी के राष्ट्रीय अधिवेशन में पड़ोसी देश, अप्रÀीका, युरोप आदि देशों के ५२ प्रतिनिधियों ने ‘मानवाधिकार सम्मेलन’ भाग लिया। साथ में राष्ट्रीय एकात्मता को मजबूत करने में छात्रों की भूमिका को सामने रखकर पूर्वोत्तर भारत के छात्रों की देश के अन्य प्रांतों में यात्रा ‘अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन’ (SEIL) प्रकल्प का प्रारंभ 1966 में ही किया। यह एक ऐतिहासिक कदम था। इस का प्रभाव पूर्वोतर में छात्र आंदोलनों की दिशा बदलने में हुआ तथा इसने देशभर में व्याप्त जानकारीयों का अभाव दूर करते हुए राष्ट्रीय एकात्मता को भावनिक संबधों का आधार प्रदान किया।

अब विद्यार्थी परिषद के माध्यम से छात्रों की नागरीक भूमिका को नये-नये आयाम जुड़ना प्रारंभ हुआ। यह वहीं समय था जब काँग्रेस से जुड़े छात्र संगठन पूरी तरह दलीय राजनीति में फंस गये थे तथा उनसे निकलकर बने राजनैतिक छात्र संगठन जातीय राजनीति को हवा देने में व्यस्त थे। वामपंथी आंदोलन प.बंगाल, केरल, त्रिपुरा तक ही अपना झुठे सपनों का षड्यंत्रकारी मायाजाल सिमित कर चुका था।

                        असम में बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ ‘असम बचाव’ हेतु छात्र आंदोलन प्रारंभ हुआ था। ऑल असम स्टूडेंट युनियन (आसू) के साथ खड़े होकर समस्त छात्र इसे भारत की राष्ट्रीय समस्या माने तथा असम के छात्रों का साथ दें, इसी बात को लेकर परिषद मैदान उतरी तथा इसे राष्ट्रीय आंदोलन बनाया। अपने संकीर्ण प्रादेशिक हितों से उपर उठकर व्यापक राष्ट्रीय सक्रीयता का यह आह्वान छात्रों ने स्वीकार किया। बाद में असम में बनी सरकार के असफलता के बाबजूद परिषद ने इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाया। व्यापक समीक्षा एवं सर्वे के पश्चात 2008 में चलो चिकननेक अभियान में छात्रों का आह्वान किया। परिणाम स्वरुप व्यापक जागरण हुआ,40 हजार से अधिक छात्र आंदोलन में पहुँचे सरकार को पहल करनी पड़ी।

‘ग्रामोत्थान हेतु छात्र’ अभियान में कई वास्तविकताएं स्वरुप भी स्पष्ट हुआ। जिससे इस पर छात्रों की पहल आवश्यक अनुभव हुई। 1980 से सामाजिक समता दिवस घोषित करते हुए समता- समरसता हेतु विशेष प्रयास प्रारंभ किये। संगठन को भी सर्वस्पर्शी बनाने का संकल्प किया। जहाँ जातीगत संगठन बनाकर राजनीति की होड़ लगी हुई थी, परिषद सर्वसमावेशक समरसतायुक्त छात्र संगठन की पहल करते हुए छात्र आंदोलन को एक रचनात्मक पर्याय उपलब्ध किया। परिषद का आग्रह रहा कि यह छात्रों की जीवननिष्ठा का विषय बने, इसी ने छात्रों के बीच परिसर में एक नई सकारात्मक दिशा प्रदान की। फिर स्त्री भ्रुण हत्या, दहेज, महीला उत्पीड़न, जैसे विषयों पर छात्रों में जागृती के अभियान चलाते हुए रक्तदान, नेत्रदान जैसे उपक्रमों को गति प्रदान की।

परिणाम स्वरुप पूरा देश जब मंडल आयोग के पश्चात विरोधी छात्र आंदोलन से भयभीत था, परिषद की परिसरों में प्रभावी उपस्थिति ने इस समाज विघातक आग को ठण्डा कर दिया। आज भी परिषद पिछड़े वर्ग की सुविधाओंको लेकर छात्रावास सर्वे एवं व्यापक संघर्ष कर रही है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर

राष्ट्रीय सुरक्षा यह छात्र आंदोलनों का प्रमुख विषय होना चाहिए। परिसर इस हेतु सतर्कता एवं संकल्प के केंद्र बने यह परिषद का आग्रह रहा। 1990 आते-आते परिषद ने इस राष्ट्रीय मुद्दे पर अर्थात राष्ट्रीय भूमिका से ओतप्रोत व राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता न करने वाले छात्र आंदोलन को व्यापक छात्र सहभाग से संगठन से बढ़कर एक जनआंदोलन का स्वरुप प्रदान किया कश्मीर से हिंदुओंका पलायन, आंतकवाद तथा एकात्मता को खतरा, इन्हें छात्रों द्वारा चुनौती दी तथा कश्मीर आंदोलन शैक्षिक परिसरों में व्यापक प्रसारित करते हुए इसे छात्र आंदोलन बना दिया। राष्ट्रीय अस्मिता के अयोध्या राम मंदिर आंदोलन से भी छात्रों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

                        80 का दशक दक्षिण के आंध्र में व्यापक नक्सली हिंसा से व्याप्त रहा। जनजातीयों के अधिकार, गरीबी से मुक्ति, अन्याय के विरोध में संघर्ष, मानवाधिकार जैसे कई झूठे वादों पर अपनी राष्ट्रविरोधी हिंसक राजनीति से छात्रों को प्रभावित करने की नक्सली-माओवादी शक्तियों के षड्यंत्र का परिषद ने कडा मुकाबला किया। परिणाम स्वरुप कई बलिदानों ले पश्चात छात्रों की राष्ट्रीय भावना ने अराष्ट्रीय ताकतों को आंध्र के परिसरों में प्रभावहीन बनाया।

पिछले दिनों 9 फरवरी 2016 को जेएनयू में लगे देशविरोधी नारों का जब परिषद ने विरोध किया, तब कई राजनैतिक दलों के राष्ट्रविरोधी शक्तियों के समर्थन बावजूद छात्र समुदाय के साथ देश राष्ट्रीयता के भारत की जय के नारों से गुंज उठा। इस ने यह सिद्ध कर दिया कि राष्ट्रीय छात्र आंदोलन को अब कोई देशिवरोधी, अराजकवादी या संकीर्ण राजनैतिक ताकतें भ्रिमत नहीं कर सकती।

पिछले दिनों 2011 के पश्चात हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में परिषद के नेतृत्व में छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ संकीर्ण नेताओंने छात्रों के इस आक्रोश को अपनी इच्छानुरुप चलाने का प्रयास किया। पंरतु परिषद के प्रयास से इस का स्वरुप व्यापक राष्ट्र हित में ही बना रहा तथा नेताओंके उथलपुथल से दिशाहिन या निराश न होते हुए गंभीरतापूर्वक अपेक्षित बदलाव की दिशा में चल पड़ा है।

निर्भया प्रकरण से महिला सम्मान तक इस आंदोलन को ले जाने में छात्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। वैश्वीकरण, सोशल मीडिया, तकनिकी के जमाने में प्राप्त विशेष अवसरों को राष्ट्रीय सम्मान व विकास को गति देने में छात्र उपयोग कर रहा है। परिषद के पिछले दस वर्षों के अपने विविध आयाम व कार्यों ने कई प्रकार से छात्र समुदाय की समझ एवं सक्रीयता को आगे बढ़ाया है।

राष्ट्रीय छात्र आंदोलन ‘देश के लिए’ यह मंत्र अब आई.आई.टी. जैसे संस्थानो से लेकर मेडिकल, आयुर्वेद, फार्मा, खिलाडी, कवी, राष्ट्रीय सेवा योजना सभी प्रकार के छात्रों मे गुंज रहा है। परिषद के बढ़ते व्याप के साथ अब यह आवाजें अरुणाचल से लेकर अंडमान-निकोबार, लद्दाख, काश्मीर या फिर कम्युनिस्ट प्रभाव से मूक्त होकर प.बंग, केरल, त्रिपूरा मे भी प्रभावी रुप से उठ रही है।

अब समय विवेकानंद से प्रेरित भारत भक्ति से ओतप्रोत राष्ट्रीय छात्र आंदोलन का है। परिषद की इतने वर्षों की साधना के उपरांत ऐसा वातावरण होना स्वाभाविक ही था।

चुनौतीयाँ एवं दिशा:-

लंबे समय तक ब्रिटीश-वामपंथी-अज्ञानी लोगों के कारण भारत ‘भारत’ के वास्तविक परिचय से वंचित रखने का प्रयास जारी रहा। सबसे प्रमुख चुनौती हमारी वर्तमान एवं भावी पिढ़ीयों को हमारे वास्तविक ज्ञान, संस्कृति, गौरवपूर्ण इतिहास, विश्व को योगदान तथा हमारी क्षमताओंसे अवगत करानेवाली शिक्षा शैक्षिक संस्थानो एवं अन्य माध्यमों से प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था बनाना है। इसी से हमारे वर्तमान समस्याअोंका समाधान एवं भविष्य का स्वरूप संभव होगा, जिस हेतू ऐसे समझ रखनेवाले लाखो युवाओ की पहल आवश्यक होगी। ऐसे नेतृत्व की हमें प्रत्येक क्षेत्र में जरुरत है, जैसे स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि झुग्गी-झोपडी से, खेतो से, गाँवो से, हर जाती से, पुरूषों से, स्त्रीयों से, सभी तरफ से लोग आयेंगे परिषद के शिल्पकार यशवंतराव केलकर कहते थे कि जीवन के हर क्षेत्र में नया राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदान करना परिषद की जिम्मेदारी है।

छात्रों को संकल्प लेना होगा कि, वह महिला सम्मान सुनीश्चित करेंगे, जातीगत भेदभाव को समाप्त करते हुऐ ‘समरस भारत’ बनायेंगे, समृद्ध, सशक्त एवं सुरक्षित भारत के निर्माण हेतु अपनी बुध्दी, शक्ति, क्षमता लगाकर इसे ही अपना करीयर बनायेंगे, नये अनुसंधान के द्वारा भारत को स्वयंपूर्ण बनायेंगे।

भ्रष्टाचार, अन्याय, अत्याचार से हिम्मत से संघर्ष करेंगे। योग व कला के क्षेत्र में सृजन व सुंदरता से पूरी मानवता के लिए आनंद एवं स्वस्थ जीवन लेकर आयेंगे।

भारत को बिना किसी पूर्वाग्रहों से या किसी से प्रितस्पर्धा अथवा बदला लेने की भावना से जीतना नहीं है। बल्कि हमारा पुरुषार्थ धर्म की स्थापना से सभी के जीवन सुखी करने के लिए होगा।

हमारे युवाओंको हर क्षेत्र जैसे विज्ञान-तकनिकी में आगे बढ़ना होगा; नीतियाँ व व्यवस्थाएँ पुनर्गठित करनी होगी। हमारी खेती, पर्यावरण, नदीयाँ सब पर सोचना होगा। जीवनशैली के बारे में विचार करना होगा। भाषाओंको विकसित है। पुरे देश में भाषा जाती प्रदेश हर प्रकार के समन्वय बनाने होंगे। हमारी व्यवस्थाओंको लोक सुलभ करने हेतु मंथन की पहल करनी होगी। भ्रम तोड़कर परिवर्तन का एक स्पष्ट चित्र युवाओंके सामने रखना होगा। यह व्यापक है परंतु एक प्रवाह की तरह है, एक बार प्रवाहित बस करना है।

भारत से अब पूरी दुनिया को दिशा प्रदान करने का समाय आया है। इस अवसर पर छात्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। परिवर्तन के आंदोलन का केन्द्र विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय परिसर होंगे। इन्हे दिशा देते हुए राष्ट्रहित में सक्रिय करने में परिषद निश्चित ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी। तथा पूरी दुनिया राष्ट्रीय छात्र आंदोलन के इस संघर्ष-सृजन एवं संकल्प का दर्शन करेगी। यही भारत की नीयति है, यही भारत के छात्र आंदोलन की नीयति है।

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख हैं पूर्व में आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे हैं।)

Tags: abvpabvp foundation dayabvp voicersssunil ambekarअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्अभाविपएबीवीपीराष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस
No Result
View All Result

Archives

Recent Posts

  • ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारतीय सेना द्वारा आतंकियों के ठिकानों पर हमला सराहनीय व वंदनीय: अभाविप
  • अभाविप ने ‘सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल’ में सहभागिता करने के लिए युवाओं-विद्यार्थियों को किया आह्वान
  • अभाविप नीत डूसू का संघर्ष लाया रंग,दिल्ली विश्वविद्यालय ने छात्रों को चौथे वर्ष में प्रवेश देने का लिया निर्णय
  • Another Suicide of a Nepali Student at KIIT is Deeply Distressing: ABVP
  • ABVP creates history in JNUSU Elections: Landslide victory in Joint Secretary post and secures 24 out of 46 councillor posts

rashtriya chhatrashakti

About ChhatraShakti

  • About Us
  • संपादक मंडल
  • राष्ट्रीय अधिवेशन
  • कवर स्टोरी
  • प्रस्ताव
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

Our Work

  • Girls
  • State University Works
  • Central University Works
  • Private University Work

आयाम

  • Think India
  • WOSY
  • Jignasa
  • SHODH
  • SFS
  • Student Experience Interstate Living (SEIL)
  • FarmVision
  • MediVision
  • Student for Development (SFD)
  • AgriVision

ABVP विशेष

  • आंदोलनात्मक
  • प्रतिनिधित्वात्मक
  • रचनात्मक
  • संगठनात्मक
  • सृजनात्मक

अभाविप सार

  • ABVP
  • ABVP Voice
  • अभाविप
  • DUSU
  • JNU
  • RSS
  • विद्यार्थी परिषद

Privacy Policy | Terms & Conditions

Copyright © 2025 Chhatrashakti. All Rights Reserved.

Connect with us:

Facebook X-twitter Instagram Youtube
No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

© 2025 Chhatra Shakti| All Rights Reserved.