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Home संपादकीय

छात्रशक्ति अप्रैल 2023

अजीत कुमार सिंह by
April 15, 2023
in संपादकीय

संपादकीय

यह जानना सुखद है कि अब उच्च शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थी भारतीय संदर्भ और उदाहरणों से भारत को समझने का प्रयास करेंगे। इसके लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने शिक्षकों के प्रशिक्षण की भी योजना बनायी है। निस्संदह यह बहुप्रतीक्षित और स्वागतयोग्य निर्णय है।

भारत एक जीवंत सभ्यता है और हजारों वर्षों के इतिहास में इसने अपने सामने उपस्थित हुई हर समस्या का अपने तरीके से समाधान खोजा है। शताब्दियों के इन अनुभवों ने भारतीय समाज को विषम परिस्थितियों में से विजयी होकर निकलने का सामर्थ्य दिया है। स्वाधीनता के बाद यदि देश इतिहास की तुलना में क्षुद्र स्तर की समस्याओं से उबरने में व्यथित होता रहा तो उसका कारण था कि उसने अपनी समस्याओं का समाधान अपनी ज्ञान परम्परा में खोजने के बजाय विदेशी संदर्भ और विदेशी उदाहरणों की नकल से करने की असफल कोशिश की।

भारतीय ज्ञान परम्परा में न केवल अर्थशास्त्र, कला, प्रौद्योगिकी, रसायन, खगोल विज्ञान तथा कूटनीति आदि का तर्कसिद्ध सैद्धांतिक प्रतिपादन हुआ है अपितु उसका अनुप्रयुक्त पक्ष भी पूर्णतया व्यावहारिक और उपयोगी है।   जिन  उपादानों के बल पर हमारी विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठा हुई तथा जिस व्यवसायगत उत्कृष्टता के चलते भारत सोने की चिड़िया कहलाया,  समय की कसौटी पर खरे साबित होने वाले उन मूल्यों की उपेक्षा कर हम कहीं नहीं पहुंच सके।

पश्चिम की जिन वैज्ञानिक उपलब्धियों के सामने अनेक विद्वान अपने आप को छोटा मानते हैं और आत्मग्लानि से भर जाते हैं, उनमें से कुछ को लेकर पुष्ट प्रमाण हैं कि उनका उल्लेख भारतीय ग्रंथों में है और उन ग्रंथों के अनुवाद के बाद ही यह खोजें हो सकीं। यह प्रश्न उठ सकता है कि यदि हमारे पास ऐसा अद्भुत ज्ञान था तो वे आविष्कार हमने ही क्यों नहीं कर लिये। उत्तर स्पष्ट है, कोई भी राष्ट्र सबसे पहले अपने-आपको पराधीनता से मुक्त करने के प्रयास करता है। हमने भी वही किया और स्वाधीनता प्राप्त की। दुर्भाग्य से स्वाधीनता पाने के पश्चात अपनी जड़ों की ओर लौटने के जो गंभीर प्रयास किये जाने आवश्यक थे, कतिपय कारणों से वे नहीं हो सके।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के इस निर्णय के बाद निश्चित है कि शिक्षा जगत का ध्यान उस धरोहर की ओर जायेगा जिसे हम भुला बैठे हैं। आगे चल कर इन विषयों पर अनुसंधान भी होंगे । स्वाधीनता के 75 वर्ष बाद भी यदि हम अपनी जड़ों की ओर लौट सकें तो हमें अपना स्वर्णिम इतिहास दोहराने से कोई नहीं रोक सकेगा।

यह परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता की शुभकामना के साथ,

संपादक

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