संपादकीय
यह यशोगाथा है एक छात्र संगठन की, जिसने न केवल अपनी स्थापना के पच्चीस वर्षों की यात्रा में अखिल भारतीय व्याप पाया, अपितु सत्ता की निरंकुशता को चुनौती देने का सत्साहस भी प्रकट किया।
आपातकाल की घटना को पचास वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। लोग इसे स्वतंत्रता का दूसरा आन्दोलन कह कर पुकारते हैं। इस आन्दोलन से उपजा नेतृत्व राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर उभरा और खो गया। मुठ्ठी भर लोग ही बचे जो अवसर पाने पर अपने आपको सत्ता और धन के आकर्षण से बचा सके। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़कर सत्ता पाने वाले अधिकांश लोग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे और काल के प्रवाह में विलीन हो गए।
स्वतंत्र भारत में जब-जब कोई भ्रष्टाचार और अपराध के विरुद्ध खड़ा हुआ, समाज ने उसे सिर-आंखों पर बिठाया है। दुर्भाग्य से ऐसा हर आन्दोलन अपने पीछे कड़वी स्मृतियां छोड़ गया। इस अंधकार में उजाले की किरण के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) और कुछ समविचारी संगठनों ने अपनी साख बनाए रखी। यही कारण है कि अभाविप को समाज का विश्वास प्राप्त हुआ, जिसका प्रमाण कुछ ही दशकों में उसका विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन बन जाना है।
भारत और भारतीयता के जिस विचार को लेकर अभाविप ने अपनी यात्रा प्रारंभ की थी, उसे यथेष्ट प्रतिसाद मिला है। स्वर्ण जयन्ती वर्ष में हमने भारत को विश्वमालिका में यथोचित स्थान दिलाने तथा सशक्त, समृद्ध और स्वाभिमानी भारत गढ़ने का संकल्प लिया था। अमृत महोत्सवी वर्ष में हम भारत को उस दिशा में बढ़ते हुए देख रहे हैं। समाज में जिस प्रकार का सकारात्मक वातावरण निर्माण होने का विश्वास व्यक्त किया गया था, वह आज साक्षात है। इस प्रयत्न में अनेक पीढ़ियों का जीवन खपा है।
इस माह आपातकाल में तानाशाही को चुनौती देने वाले अभाविप कार्यकर्ताओं में से एक प्रमुख व्यक्तित्व सुशील मोदी हमारे बीच नहीं रहे। आपातकाल के बाद वह परिषद के पूर्णकालिक बने तथा तीन वर्ष तक राष्ट्रीय महामंत्री के दायित्व का निर्वहन किया। बिहार से भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रारंभ हुए छात्र आन्दोलन ने देशव्यापी स्वरूप धारण किया, जिसकी परिणति आपातकाल की समाप्ति तथा सत्ता परिवर्तन के रूप में हुई। इससे ठीक पहले 1973 में गुजरात में भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन हुआ था। मोरबी से प्रारंभ इस स्वतःस्फूर्त आन्दोलन को संगठनात्मक एवं रणनीतिक आधार अभाविप ने ही दिया। गुजरात में भी आन्दोलन के परिणामस्वरूप राज्य सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा।
नवनिर्माण आन्दोलन की भूमि पर सम्पन्न होने जा रही इस वर्ष की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद की बैठक में निस्संदेह जहां उस यशस्वी आन्दोलन की स्मृतियां पुनः जीवंत हो उठेगी, वहीं अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष पद्मनाभ आचार्य और पूर्व महामंत्री सुशील मोदी की स्मृति व्यथित भी करेगी। यह स्मृतियां हमारी धरोहर हैं। ऐसे कार्यकर्ताओं की स्मृति, हमें निरंतर कर्तव्य-पथ पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
सत्रावसान का समय है। सभी विद्यार्थी नए सत्र में अपने भविष्य के सपनों को साकार करने के उपक्रम में संलग्न हैं। सभी को उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामनाओं सहित
हार्दिक शुभकामना सहित,
आपका
संपादक