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Home संपादकीय

अक्टूबर 2024

अजीत कुमार सिंह by
October 22, 2024
in संपादकीय

संपादकीय

हाल ही में हरियाणा राज्य एवं जम्मू-कश्मीर संघ शासित क्षेत्र के चुनाव सम्पन्न हुए। अगले माह झारखंड और महाराष्ट्र राज्यों में चुनाव होने हैं। देश में लगातार चुनावों का सिलसिला चलता रहता है। अनेक गैर सरकारी संगठनों और बुद्धिजीवियों के सुझाव के बाद केंद्र केंद्र सरकार ने देश में एक साथ लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव कराने को लेकर आम जनता से राय ली और सार्वजनिक सहमति बनाने का प्रयास किया। इस सम्बंध में सरकार सदन में एक विधेयक भी लेकर आई, लेकिन विपक्ष के विरोध के कारण प्रस्ताव पर गतिरोध बना हुआ है।

यह उल्लेख इसलिए क्योंकि वर्तमान में किसी भी स्तर के चुनाव का अर्थ भारी अराजकता, अनर्गल आरोपों और हिंसक घटनाओं के घटने से लिया जाने लगा है। पहले का वाद-प्रतिवाद अब घात-प्रतिघात का रूप ले चुका है। हारने वाले दल अब विनम्रता से हार स्वीकार करने और आदर्श प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के स्थान पर प्रतिशोध की तैयारी में जुट जाते हैं। विजयी दल से भी और उन नागरिकों से भी, जिन पर उसे वोट न देने का शक हो। ऐसी परिस्थिति में किसी भी क्षेत्र में किसी भी कारण से या अकारण उत्पन्न होने वाला तनाव, हिंसा और अराजकता विपक्ष के लोगों को चिंतित नहीं करता।

जम्मू-कश्मीर में लगातार पांच वर्षों की शांति के बाद एक बार पुनः हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। जिन मार्गों से विगत एक-डेढ़ दशक में घुसपैठ की एक भी घटना दर्ज नहीं हुई थी, वहां से भी घुसपैठ की खबरें आने लगी हैं। करगिल और द्रास में तो करगिल युद्ध के बाद ही इस पर विराम लग गया था, लेकिन वहां से भी घुसपैठ की खबरें आ रही हैं। इसी तरह गुरेज घाटी भी घुसपैठियों का नया प्रवेश मार्ग बनी है।

जब तक पाकिस्तान सीमा पर है और विश्व की अनेक प्रमुख शक्तियों का समर्थन उसे हासिल है, इस पर नियंत्रण निश्चय ही एक चुनौती है। किन्तु ऐसा लगता है कि विपक्ष इसे देश के विरुद्ध चुनौती न मान कर सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चुनौती मान कर चल रहा है। ऐसी बर्बरतापूर्ण घटनाओं पर आतंकियों और उसके पीछे से कठपुतली आतंकी संगठनों का सूत्र संचालन करने वाले पाकिस्तान के विरुद्ध नागरिकों की रक्षा के लिए प्रशासन एवं सत्ता को समर्थन देने के स्थान पर विपक्षी दल इन घटनाओं के लिये केंद्र सरकार को कठघरे में खड़े करते नजर आते हैं। दुर्भाग्य से इस उलटबांसी का नेतृत्व वही लोग कर रहे हैं, जिन्हें इसी आतंकवाद के चलते अपने परिवार के सदस्यों को खोना पड़ा है।

तथाकथित मानवाधिकारवादियों और गैर-सरकारी संगठनों की एक नई खेप भी अब मैदान में है, जिनके तार उन अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों से जुड़ते प्रतीत होते हैं जो भारत को अस्थिर करने और उसके विकास में रोड़े अटकाने के षड्यंत्र रच रही हैं। इनके पास विदेशों से आने वाले धन के प्रवाह पर एक सीमा तक तो लगाम लगी है, किन्तु वह पूरी तरह रुका नहीं है।

इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच सम्पन्न होने जा रहे अभाविप के राष्ट्रीय अधिवेशन में देश की सद्य स्थिति के विषय में चिंतन होगा और इनके प्रतिकार के लिए पुण्यश्लोक राजमाता अहिल्याबाई होलकर सहित अन्य ऐसे व्यक्तित्वों के जीवन और कृतित्व को सामने रख कर रचनात्मक रूप से राष्ट्रीय एकात्मता के प्रयासों को सुदृढ़ किया जा सकेगा।

प्रकाशपर्व दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाओं सहित

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