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दिसंबर 2024

संपादकीय

वर्ष 2024 देश में अनेक विपर्ययों का वर्ष रहा है। परस्पर विरोधी गतिविधियां, आगे बढ़ने के संकल्प और पीछे खींचती चुनौतियां एक साथ सक्रिय दिखती हैं। गत वर्षों में एक ओर शैक्षिक परिसरों में भारत विरोधी गतिविधियों में तेजी आई, समाज को अनेक वास्तविक और काल्पनिक मुद्दों पर विभाजित करने के कुत्सित प्रयास हुए, सामाजिक आर्थिक मोर्चे पर समाज जिन पड़ावों और जिन आन्तरिक संघर्षों को पीछे छोड़ नित नए प्रतिमान गढ़ रहा है, उन्हीं विभाजनकारी मुद्दों को सामने लाने और विभेदों को हवा देने के प्रयास हो रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर देश के छात्र-युवा अभाविप के साथ कदम से कदम और कंधे से कंधा मिला कर अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों से देश की झोली भर रहे हैं, अपने सामाजिक सरोकारों को रचनात्मक दिशा देकर विभिन्न वर्गों और समूहों के जीवन को सरल बनाने में योगदान कर रहे हैं। श्रवण बाधितों के लिए प्रशिक्षण और शैक्षणिक केंद्र (टीच) के सह-संस्थापक दीपेश नायर का उदाहरण हमारे सामने है, जिन्होंने श्रवण दिव्यांगजनों में कौशल विकास एवं शिक्षा के माध्यम से उनके जीवन में उद्देश्य और उत्साह उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अधिवेशन में दीपेश को प्रा. यशवंतराव केलकर युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उन जैसे अन्य अनेक युवाओं को सामाजिक क्षेत्र में और अधिक बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वबोध और नागरिक कर्तव्यों के प्रति सजगता जैसे परिवर्तन के पांच सूत्रों को लेकर अभाविप ने परिसरों और परिवारों तक जाने का निश्चय किया है। छात्र-युवाओं के जीवन में इन मूल्यों के ढालने के बाद ही आनंदमयी सार्थक विद्यार्थी जीवन की कल्पना की जा सकती है, जो परिसर चलो अभियान का मूलमंत्र है।

भारत में आध्यात्मिक, दार्शनिक चेतना के शिखरपुरुष गुरु गोरखनाथ जी की साधनाभूमि पर आयोजित 70वां राष्ट्रीय अधिवेशन दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय में अस्थायी रूप से बनाए गए पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर नगर में सम्पन्न हुआ। सामाजिक समरसता के अग्रदूत गोरक्षपीठ के महन्त अवेद्यनाथ की स्मृति में प्रदर्शनी पंडाल तथा प्रसिद्ध बलिदानी क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की स्मृति में सभागार का निर्माण किया गया था। स्मरण रहे कि भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में गोरखपुर का महत्वपूर्ण स्थान है। विशेष रूप से यह क्रांतिकारी गतिविधियों का गढ़ रहा। नगर को यह गौरव भी प्राप्त है कि यहां के एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल संभवतः एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें आन्दोलनकारी गतिविधियों के चलते दो बार अंडमान में कालेपानी का दंड भुगतना पड़ा और वहां से वह अपने आत्मविश्वास के बल पर जीवित लौट सके।

अभाविप आज 55 लाख सदस्यता के साथ विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन तो है ही, अन्य छात्र संगठन इस मापदण्ड पर अभाविप से कोसों पीछे हैं। इसका श्रेय संगठन की विशिष्ट कार्यपद्धति, जिसके कारण यह प्रवाही सदस्यों वाला स्थायी संगठन निरंतर जीवंत और वर्धमान रहता है, को जाता है। इस कार्यपद्धति और संगठनशास्त्र के शिल्पकार स्व. प्रा. यशवंतराव केलकर का जन्म शताब्दी वर्ष आगामी 25 अप्रैल को प्रारंभ होगा। विश्वास है कि यह अवसर संगठन को और अधिक विस्तारित तथा अधिक सुगठित बनाने के ध्येय में मील-पत्थर सिद्ध होगा। राष्ट्रीय युवा दिवस एवं मकर संक्राति की हार्दिक शुभकामना सहित

आपका

संपादक

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