हर वर्ष 9 जुलाई को जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) का स्थापना दिवस आता है, तो मन में एक अनूठी ऊर्जा, गर्व और भावुकता का संचार होता है। यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि लाखों कार्यकर्ताओं के सपनों, संघर्षों और समर्पण का प्रतीक है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सिर्फ एक संगठन नहीं, एक परिवार है—एक ऐसा परिवार जिसने मुझे गढ़ा, संवारा और मेरे जीवन को उद्देश्य दिया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद छात्र राजनीति मुख्य रूप से वामपंथी संगठनों के प्रभाव में थी। इनके द्वारा भारत की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने के प्रयास लगातार चल रहे थे। छात्रों को वर्गसंघर्ष और हिंसा आधारित आंदोलनों के लिए प्रेरित किया जा रहा था। इस वैचारिक शून्यता में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवकों ने शिक्षण संस्थानों में युवाओं से संवाद किया, तब उन्होंने महसूस किया कि यदि राष्ट्र के भावी नागरिकों — यानी छात्रों — को सही दिशा नहीं दी गई, तो स्वतंत्र भारत पुनः गुलामी की ओर बढ़ जाएगा। इसी आवश्यकता को महसूस करते हुए 1949 में “अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद” का जन्म हुआ।
1950-60 के दशक में परिषद ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में धीरे-धीरे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यह वह दौर था जब अभाविप ने कैंपस में केवल राजनीतिक मुद्दों पर नहीं, बल्कि छात्रों की समस्याओं, फीस वृद्धि, छात्रावास की स्थिति, पुस्तकालय सुविधाओं आदि जैसे जनहित मुद्दों पर संघर्ष किए। छात्र समाज का भी अंग है यह ध्यान में रखते हुए देश की भाषा, झण्डा आदि विषयों पर कार्यकर्ताओं ने गाँव-गाँव जाकर जनमत संग्रह किया। परिषद का एक विशेष दृष्टिकोण यह है कि यह केवल विरोध करने के लिए विरोध नहीं करती अपितु सकारात्मक परिवर्तन हेतु प्रस्ताव पारित कर सुझाव भी रखती है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय और मुंबई विश्वविद्यालय परिषद के शुरुआती मजबूत गढ़ बने।
उत्तर पूर्व भारत को शेष भारत से जोड़ने और समझने की आवश्यकता महसूस की गई तब वर्ष 1965 में SEIL की स्थापना हुई । उस समय उत्तर पूर्वी राज्यों में अलगाववाद, भाषाई एवं सांस्कृतिक दूरी, और संवाद की कमी थी। इन समस्याओं का समाधान सुरक्षा बलों से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मीयता से संभव था। अभाविप की इस पहल से राष्ट्रीय एकता को गहरा बल मिला और पूर्वोत्तर भारत को लेकर युवाओं के मन में अपनेपन की भावना पैदा हुई। भारतीय परंपरा में जिस बंधुत्व की भावना का वर्णन मिलता है उसे अभाविप ने यथार्थ में उतार कर दिखाया है।
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की ऐसे समय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) उन चंद संगठनों में था जिसने खुलकर विरोध किया, जबकि ज्यादातर संगठन या तो चुप थे या सरकार के साथ खड़े थे।
आपातकाल में पहली गिरफ़्तारी देने वाले अभाविप के रामबहादुर राय थे जो उस समय संगठन मंत्री के दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। आपातकाल में अरुण जेटली, उमा भारती, विनय कटियार, के.एन. गोविंदचार्य सहित हजारों विद्यार्थीयों ने अपनी गिरफ़्तारी दी और यह साबित किया कि छात्र केवल कल के नागरिक नहीं, आज के प्रहरी भी हैं।
1980 के दौर में परिषद ने अनेक राष्ट्रवादी आंदोलनों में भागीदारी की। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में परिषद के हजारों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इसके साथ ही परिषद ने शिक्षा में सुधार, नई शिक्षा नीति, रोजगार के अवसर, और तकनीकी शिक्षा के विस्तार जैसे मुद्दों पर भी काम करना शुरू किया। साथ ही साथ परिषद ने इस दशक में विकासार्थ विद्यार्थी (पर्यावरण सम्बधी) और WOSY (भारत में पढ़ रहे विदेशी विद्यार्थीयों को साथ लेकर) जैसे प्रकल्पों के माध्यम से समाज तथा राष्ट्रहित को भी ऊपर रख कार्य को गति दी। वर्ष 2002 में शिक्षा के मुद्दों पर दिल्ली का विशाल आंदोलन हो या 2008 में बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध चिकननेक पर प्रदर्शन, यह सब अभाविप के सक्रियता का परिणाम है।
मैं 2010 के उत्तरार्ध में अभाविप के संपर्क में आया। यह वह दौर था जब अखबार उठाते ही किसी न किसी घोटाले की खबर पहले पन्ने पर होती थी। इसी के खिलाफ अभाविप ने YAC आंदोलन की शुरुआत की, ताकि युवाओं की चेतना को भ्रष्टाचार विरोध की दिशा में सक्रिय किया जा सके। इस आंदोलन में 2G घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, कोयला घोटाला जैसे बड़े मामलों पर YAC ने ज़ोरदार जन आंदोलन चलाया। RTI कार्यशालाओं के माध्यम से हजारों छात्रों ने भ्रष्टाचार से संबंधित सूचनाएँ निकालीं। कई राज्यों में परीक्षा पेपर लीक, फर्जी डिग्री, और नौकरी घोटालों के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए। इन प्रयासों के बाद वर्ष 2014 में वोट की चोट से सत्ता का परिवर्तन हुआ। अभाविप ने अपने आप को इतने में ही शिथिल नहीं किया अपितु द्रुत गति से अपने कार्य को आगे बढ़ाया इसलिए राष्ट्रीय कला मंच, शोध, सेवार्थ विद्यार्थी, खेलो भारत, फार्मविजन, अग्रीविजन आदि प्रकल्पों का निर्माण किया।
भारत की राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया कांड (2012) ने पूरे देश की चेतना को झकझोर कर रख दिया था। अभाविप ने इस रेप कांड के बाद निर्भया के दोषियों को कठोर सजा की मांग करते हुए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपालों को सिर्फ ज्ञापन ही नहीं सौंपे बल्कि “मिशन साहसी” जैसे अभियान को बड़े स्तर पर शुरू किया, जिसके तहत छात्राओं को आत्मरक्षा प्रशिक्षण दिया गया, कॉलेजों में सुरक्षा संबंधित कार्यशालाएँ आयोजित की गईं। आज जब छात्राएं ऑनलाइन बुली की जा रही है ऐसे में अभाविप ने मिशन साहसी 2.0 शुरू किया जिसमें साइबर अपराधियों से सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
अभाविप ने समय समय पर स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अनेक कार्यक्रमों की रचना की है। वर्तमान में बिहार के दरभंगा जिले में अभाविप छात्राओं के लिए पिछले 18 वर्षों से सर्जना निखार कार्यक्रम का संचालन कर रहा है। इस कार्यक्रम में कक्षा 9वीं और उससे ऊपर की सभी छात्राएं भाग लेती हैं। शिविर में कंप्यूटर, अंग्रेजी भाषा, डिजिटल मार्केटिंग, सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर, फाइन आर्ट, मेहंदी, ब्यूटीशियन जैसे व्यावसायिक कोर्स कराए जाते हैं। साथ ही आत्मरक्षा के लिए बेसिक मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी दी जाती है। आज अभाविप का यह स्थापना दिवस सिर्फ उत्सव नहीं, आत्मनिरीक्षण और नवसंकल्प का अवसर है। परिषद आज भी कहती है —”कैंपस से लेकर संसद तक, राष्ट्रहित सर्वोपरि है।” और यही सोच, यही कार्यशैली, और यही समर्पण इसे विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन बनाते हैं।
(लेखक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के सहायक क्षेत्रीय निदेशक हैं।)