अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कहा है कि विगत 20 दिसंबर को बाड़मेर स्थित एम.बी.सी. महिला महाविद्यालय में परीक्षा आवेदन शुल्क में की गई अत्यधिक एवं अव्यवहारिक वृद्धि के विरोध में छात्राओं द्वारा शांतिपूर्ण एवं लोकतांत्रिक प्रदर्शन किया जा रहा था। घंटों चले इस प्रदर्शन में छात्राओं ने अपनी जायज मांगों को प्रशासन के सम्मुख रखा और विद्यार्थियों पर थोपे जाने वाले अत्यधिक आर्थिक बोझ का पुरजोर विरोध किया। यह आंदोलन पूर्णतः अनुशासित था, जिसका उद्देश्य केवल छात्र हितों की रक्षा तथा शोषणकारी नीतियों का विरोध करना था। आंदोलन के दौरान संवाद के क्रम में जब छात्राओं ने यह प्रश्न उठाया कि प्रशासनिक तंत्र सामान्य आयोजनों में तो सक्रिय दिखाई देता है परंतु छात्राओं के भविष्य से जुड़े इतने गंभीर विषय पर संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई जा रही, तो वहां मौजूद अधिकारियों द्वारा बाड़मेर जिलाधिकारी को छात्राओं का ‘रोल मॉडल’ बताते हुए उनकी आवाज को दबाने का प्रयास किया गया।
प्रदर्शनकारी छात्राओं एवं अभाविप कार्यकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि उनकी प्रेरणा रानी अबक्का, रानी दुर्गावती और रानी अहिल्याबाई होलकर जैसी वे ऐतिहासिक विभूतियाँ हैं, जिन्होंने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया न कि वह जिला प्रशासन जो उनकी जायज मांगों की अनदेखी कर उन्हें दबाने का प्रयास करे। इस वैचारिक अभिव्यक्ति को जिलाधिकारी द्वारा अनावश्यक रूप से व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय बना लिया गया। परिणामस्वरूप, छात्राओं एवं कार्यकर्ताओं को बिना किसी ठोस आधार के हिरासत में लिया गया और घंटों थाने में बैठाया गया। जब छात्राओं ने इस दमनकारी कृत्य का थाने के भीतर भी कड़ा विरोध किया, तो पुलिस प्रशासन द्वारा यह स्वीकार किया गया कि यह कार्रवाई एक त्रुटि थी और इसके लिए खेद भी प्रकट किया गया। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि जिला प्रशासन छात्र आंदोलन के मूल कारणों को समझने के बजाय उसे कुचलने में अधिक रुचि ले रहा है। शुल्क वृद्धि जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को दरकिनार कर व्यक्तिगत अहम् को ऊपर रखना बाड़मेर प्रशासन की उस औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल भावना के विपरीत है।
अभाविप के राष्ट्रीय मंत्री हर्षित ननोमा ने कहा कि बाड़मेर प्रशासन द्वारा छात्र चेतना को कुचलने का प्रयास अत्यंत निंदनीय है। अभाविप मानती है कि छात्र हितों के लिए संघर्ष करना और प्रशासन से प्रश्न पूछना लोकतंत्र की आत्मा है। हम जिला प्रशासन से अपेक्षा करते हैं कि वह ‘लाठ-साहबी’ छोड़कर संवेदनशील और न्यायोचित रवैया अपनाए। किसी अधिकारी के कहने मात्र से कोई प्रेरणादायी नहीं हो जाता। हमारी प्रेरणा अहिल्याबाई होलकर, रानी अब्बक्का और रानी दुर्गावती जैसी महान विभूतियाँ हैं। जिला प्रशासन और विश्वविद्यालय की दमनकारी नीतियों से यह छात्राएं डरने वाली नहीं है।विद्यार्थियों के हित में अभाविप का संघर्ष निरंतर जारी रहेगा।
अभाविप बाड़मेर की जिला संयोजिका दीपू चौहान ने कहा कि,”महाविद्यालय में अनैतिक शुल्क वृद्धि के खिलाफ हमारा विरोध प्रदर्शन पूर्णतः शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक था। महाविद्यालय प्रशासन ने स्वयं वार्ता के दौरान यह स्वीकार किया कि हमारी माँगें न्यायसंगत हैं। इसके बावजूद यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है कि शुल्क वृद्धि जैसी मूल समस्या के समाधान पर ध्यान देने के बजाय केवल व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को आहत होने का विषय बनाकर हमें चार घंटे से अधिक थाने में बैठाया गया और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। एक जिला प्रशासनिक अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह विद्यार्थियों के बीच संवाद, संवेदनशीलता और समाधान का उदाहरण प्रस्तुत करे, न कि अपनी व्यक्तिगत छवि के नाम पर लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने का प्रयास करे। जो अधिकारी छात्रों की जायज़ समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर दमनात्मक रवैया अपनाता है, वह किसी भी रूप में युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत या आदर्श नहीं हो सकता। जब तक इस अनैतिक शुल्क वृद्धि को वापस नहीं लिया जाता तब तक हमारा हम शांतिपूर्ण ढंग से अपनी आवाज उठाते रहेंगे।
