Monday, November 10, 2025
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
Rashtriya Chhatra Shakti
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो
No Result
View All Result
Rashtriya Chhatra Shakti
No Result
View All Result
Home लेख

डॉ. अंबेडकर का वामपंथी वैचारिक अपहरण

अजीत कुमार सिंह by सौरभ गर्ग
December 6, 2020
in लेख
   बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर :  एक व्यक्ति कई आयाम  

dr. bhimrao ambedkar

6 दिसंबर 1956 को डॉ. बाबासाहब भीमराव रामजी आंबेडकर अपनी भौतिक देह त्याग महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए और जैसा कि इतिहास में प्रत्येक महापुरुष के साथ होता है कि उनके जाने के बाद उनकी वैचारिक धरोहर और जीवन यात्रा लंबे समय तक समाज और राष्ट्र को आलोकित करती है वैसे ही आज भी डॉ. अंबेडकर के विचार और उनका जीवन भारतीय समाज को दीप्तिमान एवं मार्गदर्शित करते हैं।

 

डॉ अंबेडकर आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक विचारकों में से एक थे। भारतीय समाज उन्हें मुख्यता दो बातों के लिए स्मरण करता है। सर्वप्रथम ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष के रूप में भारतीय लोकतंत्र को संविधान देना एवं दूसरा भारत के शोषित वंचित और पिछड़ी जातियों के उत्थान एवं अधिकारों के संघर्ष के लिए, लेकिन डॉ. अंबेडकर केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं। वह ऐसे व्यक्ति थे जिनका ज्ञान इस्लाम, साम्यवाद, हिंदू धर्म, इतिहास, ईश्वर मीमांसा, अर्थशास्त्र, विज्ञान, राजनीति, समाज, कानून, साहित्य, विदेश नीति, शिक्षा, पत्रकारिता जैसे आदि विषयों में आधिकारिक रूप से था।

डॉ अंबेडकर की इतनी व्यापक वैचारिक संपदा का अपहरण वामपंथी, नक्सलवादी, माओवादी, कट्टर मुस्लिम एक्टिविस्ट, जातीय हिंसा और घृणा फैलाने वाले व्यक्ति और संगठनों ने कर लिया है। डॉक्टर अंबेडकर रोम – रोम से राष्ट्रवादी थे और आज जो भारत के “एक राष्ट्र” होने पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं, वही बाबा साहब के वैचारिक संघर्ष को आगे बढ़ाने वाले वकील बन कर बैठे हुए है। कोई भी वामपंथी माओवादी नक्सलवादी संगठन भारत के एक राष्ट्र स्वरूप को नहीं मानता और न ही भारत की सांस्कृतिक एकता को मानता है डॉक्टर अंबेडकर ने 1917 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के अपने व्याख्यान में कहा है –

“यह स्वीकार किया जा सकता है कि भारत के लोगों को बनाने वाले विभिन्न चीज़ों का पूरी तरह से एकीकरण नहीं हुआ है, और भारत की सीमाओं के भीतर से एक यात्री के लिए, पूर्व भौतिक रूप से एक उल्लेखनीय विपरीत छवि प्रस्तुत करता है और यहां तक कि पश्चिम के लिए रंग में भी, जैसा कि दक्षिण उत्तर में करता है। लेकिन एकीकरण किसी भी लोगों के प्रतिपादित से एकरूपता का एकमात्र मापदंड कभी नहीं हो सकता ।जातीय रूप से सभी लोग विषम हैं। यह संस्कृति की एकता है जो एकरूपता का आधार है। इसे स्वीकार करते हुए, मैं यह कहने का उपक्रम करता हूं कि ऐसा कोई देश नहीं है जो अपनी संस्कृति की एकता के संबंध में भारतीय प्रायद्वीप को प्रतिद्वंद्वी बना सके। यह न केवल एक भौगोलिक एकता है, लेकिन यह सब से अधिक गहरी और एक बहुत अधिक मौलिक एकता है- स्पष्ट सांस्कृतिक एकता है  जो  अंत से अंत तक भूमि में व्याप्त है ।”

डॉ. अंबेडकर ने अपने इन शब्दों में यह दर्शाया कि किस तरह भारत दूसरे देशों से भिन्न है, और अपने आप में अपवाद हैं। और सभी जातियों का एकीकरण इस भारतीय संस्कृति की एकात्मता को बढ़ाने वाला और मजबूत करने वाला होगा।

डॉ अंबेडकर के शब्द यह भी दर्शाते हैं किस तरह वामपंथियों ने धोखाधड़ी से उनकी वैचारिक संपदा पर कब्जा किया है और उनके झूठे मित्र बनकर बैठे हैं जबकि असल में अंबेडकर ने कम्युनिस्टों के लिए कहा है “यह पूर्ण रूप से असंभव है कि मैं कम्युनिस्टों से संबंध रखूं। मैं कम्युनिस्टों का सबसे कठोर शत्रु हूं।” (द मार्क्सिस्ट, Vol. 9, CPI (M),1991)

 

दुनिया भर के वामपंथियों की एक गहरी साजिश है, किसी भी समाज के मूल चिंतकों और महापुरुषों पर अपना एकाधिकार और दावा स्थापित करना और उसके जीवन और विचारों की व्याख्या अपने अनुरूप करके उस महापुरुष का अपहरण कर लेना यही डॉ अंबेडकर के साथ हुआ है।

 

भारत को लोकतंत्र हमारे संविधान ने दिया और संविधान डॉ. अंबेडकर ने दिया। वर्तमान समय में लोकतंत्र, संविधान और अंबेडकर इन तीनों के सबसे बड़े पैरोकार कम्युनिस्ट और सभी वामपंथी व्यक्ति और संगठन बने हुए हैं ।लेकिन क्या यह सत्य है या मुखौटा ? इस प्रश्न का उत्तर स्वयं डॉ अंबेडकर ने दिया है। उन्होंने कहा है “संविधान की निंदा काफी हद तक दो तरफ से आती है, कम्युनिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी । वे संविधान की भर्त्सना क्यों करते हैं? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि यह वास्तव में एक बुरा संविधान है? मैं कहता हूं ऐसा नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा की तानाशाही के सिद्धांत पर आधारित संविधान चाहती है। वे संविधान की भर्त्सना करते हैं क्योंकि यह संसदीय लोकतंत्र पर आधारित है। समाजवादी दो चीजें चाहते हैं। पहली बात वे चाहते हैं कि यदि वे सत्ता में आते हैं, तो संविधान को उन्हें मुआवजे के भुगतान के बिना सभी निजी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण या सामूहीकरण करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। दूसरी बात जो समाजवादियों को चाहिए वह यह है कि संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार निरपेक्ष और बिना किसी सीमा के होने चाहिए ताकि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आने में विफल रहती है तो उन्हें निरंकुश स्वतंत्रता केवल आलोचना करने के लिए ही नहीं, बल्कि राज्य को उखाड़ फेंकने की भी होगी।”

 

बाबा साहब के यह कठोर शब्द पूरी तरह से दर्शाते हैं की वामपंथी, कम्युनिस्ट और समाजवादी न उन्हें मानते है- न बाबा साहब उन्हें, न ही बाबा साहब को उनसे कोई सरोकार है- न ही उन्हें बाबा साहब से । वामियों द्वारा कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्टालिन , चे ग्वेरा के साथ पोस्टर में बाबा साहब की तस्वीर होना और “जय भीम” के नारे झूठे हैं और उन शोषित, वंचित , पीड़ित लोगों को मार्ग से भटकाने का जरिया है, जिनकी लड़ाई बाबा साहब ने लड़ी और जिनकी उनके प्रति श्रद्धा है, ताकि कम्युनिस्ट उन भटके हुए लोगों का उपयोग झूठी “सर्वहारा तानाशाही” स्थापित करने के लिए कर सके। जिसे अंबेडकर ने अपने इन शब्दों में कहा है “कम्युनिस्ट मजदूरों का शोषण अपनी राजनीति के लिए करते हैं।” वैसे ही दलित, पिछड़े, वंचित, वनवासी आदि जनों का शोषण और उपयोग कम्युनिस्ट आज भी अपनी राजनीति के लिए कर रहें है।

 

यह तो केवल उन विचारों का नमूना है जो बाबा साहब ने कम्युनिज्म और समाजवाद के लिए कहे हैं, लेकिन जितनी दृढ़ता से आधुनिक भारत के विचारकों में बाबा साहब ने इस्लाम के लिए कड़े शब्द कहे हैं, उतना किसी अन्य विचारक ने नहीं प्रयोग लिए, बाबा साहब का इस्लाम के प्रति पक्ष हमेशा आम जनों से छिपाया जाता रहा है, 2003 में एक प्रसिद्ध वामपंथी आनंद तेलटूमबड़े ने एक पुस्तक लिखी “अंबेडकर ऑन मुस्लिम्स” जिसमें आनंद ने कहा कि अंबेडकर इस्लाम के समानता वादी सिद्धांतों से प्रभावित थे जबकि अंबेडकर ने इस्लाम के लिए कहा है “इस्लाम एक बंद भाईचारा है और यह मुसलमानों और गैर-मुस्लिमों के बीच जो भेद करता है, वह बहुत ही वास्तविक, और स्पष्ट रूप से बहुत विमुख भेदकारी है। इस्लाम का भाईचारा मनुष्य का विश्व बंधुत्व नहीं है।यह सिर्फ मुसलमानों के लिए मुसलमानों का भाईचारा है। बिरादरी है लेकिन इसका लाभ उस निगम के भीतर के लोगों तक ही सीमित है। जो लोग निगम से बाहर हैं, उनके लिए अवमानना और दुश्मनी के अलावा कुछ नहीं है।” बाबा साहब ने सीधे तौर पर यह कहा है कि इस्लाम में किसी अन्य धर्म और मत को मानने वाले व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है।

 

वामपंथी हमेशा यह बात उछालते रहते हैं कि बाबा साहब हिंदू समाज में जातिवाद को अमानवीय एवं समाजिक बुराई मानते थे। लेकिन अंबेडकर ने मुस्लिम समाज में व्याप्त अति अमानवीय जाति व्यवस्था, जो अशरफ़-अजलाफ और अलजोर व्यवस्था के भी विरोधी थे, बाबा साहब ने लिखा है “इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि भारत में मुस्लिम समाज हिंदू समाज को पीड़ित करने के समान सामाजिक बुराइयों से पीड़ित है। वाकई मुसलमानों में हिन्दुओं की तमाम सामाजिक बुराइयां हैं और कुछ और अधिक भी हैं जैसे मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा की अनिवार्य प्रणाली है।”

 

इस्लाम में व्याप्त कट्टरता के विषय में बाबा साहब ने यह बताते हुए की मुस्लिम समाज और इस्लाम बदल ही नहीं सकता, लिखा है कि “हिंदुओं की सामाजिक बुराइयां हैं । लेकिन उनके बारे में एक राहत सुविधा है – अर्थात् उनमें से कुछ अपने अस्तित्व के प्रति सचेत हैं और उनमें से कुछ सक्रिय रूप से उन्हें हटाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। दूसरी ओर, मुसलमानों को यह बात स्वीकार नहीं है कि वे बुराइयां हैं और इसके परिणामस्वरूप उन्हें हटाने के लिए आंदोलन नहीं करते हैं।”

 

डॉ अंबेडकर ने इस्लाम का विरोध इसलिए भी किया है क्योंकि वह मानते थे इस्लाम ने बुद्ध धर्म को हिंसक रूप से बहुत ही क्षति पहुंचाई है। और भारत में बुद्ध धर्म को मानने वाले कम इसलिए हुए क्योंकि इस्लाम में बहुत ही ज्यादा मात्रा में बौद्धों का नरसंहार किया।

 

तत्कालीन समय में वह व्यक्ति जो हिन्दू समाज से सामाजिक बुराइयों को दूर करने हेतु प्रयास और संघर्ष कर रहे थे, बाबा साहब ने उन व्यक्तियों को बहुत सराहा है, वह स्वामी विवेकानंद हो, सावरकर हो या स्वामी श्रद्धानंद हो। 1933 में बाबा साहब द्वारा प्रकाशित जनता पत्रिका ने सावरकर द्वारा दलित उत्थान के लिए किए गए कार्यों की तुलना भगवान बुद्ध के कार्यों से की और सावरकर के प्रति सम्मान व्यक्त किया है।

वामपंथियों ने यह भी भ्रामक दुष्प्रचार फैलाया है कि बाबा साहब अंबेडकर हिंदुत्व विरोधी थे जब की बाबा साहब अंबेडकर ने हिंदुत्व के प्रति जो विचार व्यक्त किए है। वह विचार सभी हिंदुत्ववादी संगठनों के लिए ध्येय वाक्य है और हिंदुत्व विचारधारा की नींव और आत्मा है। बाबा साहब अम्बेकर ने लिखा है “सबसे महत्वपूर्ण बात हम इस पर जोर देना चाहते है संतुष्टि भगवान की मूर्ति पूजा से नहीं मिलती है। हिंदुत्व अछूत हिंदुओं के लिए उतना ही है जितना छूत हिंदुओं का। इस हिंदुत्व के विकास और गौरव के लिए अछूतों द्वारा  जैसे वाल्मीक, व्याधागीता के दृष्टाओं द्वारा, चोखामेला और रोहिदास जैसे शूद्रों द्वारा उतना ही योगदान दिया गया है जितना कृष्ण और हर्ष जैसे क्षत्रियों द्वारा, तुकाराम जैसे ब्राह्मणों द्वारा किया गया है। हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए लड़ने वाले सिदनक महार जैसे नायक असंख्य थे। हिंदुत्व के नाम पर बनाया गया मंदिर, जिसका विकास और समृद्धि धीरे-धीरे स्पर्शयोग्य और अछूत हिंदुओं के बलिदान से हासिल की गई, सभी हिंदुओं के लिए खुला होना चाहिए वह किसी भी जाति का हो।” (बहिष्कृत भारत 27 नवंबर 1927, धनंजय कीर, डॉ अंबेडकर जीवन एवं ध्येय, 1990)

डॉ अंबेडकर न ही वामपंथी है, न ही कम्युनिस्ट और न ही मुसलमानों के प्रबल हितैषी, वह ऐसे व्यक्ति है जो हिन्दू समाज की बुराईयों को हटा कर इसे और एकीकृत और एकात्म बनाना चाहते हैं। वह राष्ट्रवादी है जो की हिंदुत्व है, जिसमें बौद्ध, सिख, जैन मत समाहित है,  और वही हिंदुत्व उनके लिए राष्ट्रीयत्व है। इस हिंदुत्व को छोड़ कर इस्लाम या ईसाईयत को स्वीकार करना उनके लिए भारत की राष्ट्रीयता को कमजोर करना है।

(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सोशल मीडिया कार्य के राष्ट्रीय सह संयोजक हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

Tags: abvpambedkardrMhaparinirwa diwassamarstaअभाविपछात्रशक्तिडॉ. अबेडकरडॉ. भीमराव आंबेडकर
No Result
View All Result

Archives

Recent Posts

  • #JNUSUElection : मतदान संपन्न, अभाविप का दावा छात्रों ने किया बदलाव के लिए मतदान
  • Controversial affidavit at Panjab University to be withdrawn; ABVP delegation meets Secretary, Higher Education, Government of India
  • ABVP Sets the Agenda of Development and Transparency in JNU, Focuses on Real Student Issues Amid Leftist Noise
  • अभाविप ने जेएनयू में निकाली मशाल यात्रा, उमड़ा छात्रों का सैलाब
  • अभाविप पंजाब का 57वां प्रांत प्रदेश अधिवेशन 14 नवंबर से, 300 से अधिक प्रतिनिधि लेंगे भाग

rashtriya chhatrashakti

About ChhatraShakti

  • About Us
  • संपादक मंडल
  • राष्ट्रीय अधिवेशन
  • कवर स्टोरी
  • प्रस्ताव
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

Our Work

  • Girls
  • State University Works
  • Central University Works
  • Private University Work

आयाम

  • Think India
  • WOSY
  • Jignasa
  • SHODH
  • SFS
  • Student Experience Interstate Living (SEIL)
  • FarmVision
  • MediVision
  • Student for Development (SFD)
  • AgriVision

ABVP विशेष

  • आंदोलनात्मक
  • प्रतिनिधित्वात्मक
  • रचनात्मक
  • संगठनात्मक
  • सृजनात्मक

अभाविप सार

  • ABVP
  • ABVP Voice
  • अभाविप
  • DUSU
  • JNU
  • RSS
  • विद्यार्थी परिषद

Privacy Policy | Terms & Conditions

Copyright © 2025 Chhatrashakti. All Rights Reserved.

Connect with us:

Facebook X-twitter Instagram Youtube
No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • कवर स्टोरी
  • ABVP विशेष
    • आंदोलनात्मक
    • प्रतिनिधित्वात्मक
    • रचनात्मक
    • संगठनात्मक
    • सृजनात्मक
  • लेख
  • पत्रिका
  • सब्सक्रिप्शन
  • आयाम
    • Think India
    • WOSY
    • Jignasa
    • SHODH
    • SFS
    • Student Experience Interstate Living (SEIL)
    • FarmaVision
    • MediVision
    • Student for Development (SFD)
    • AgriVision
  • WORK
    • Girls
    • State University Works
    • Central University Works
    • Private University Work
  • खबर
  • परिचर्चा
  • फोटो

© 2025 Chhatra Shakti| All Rights Reserved.


Warning: PHP Startup: Unable to load dynamic library 'imagick.so' (tried: /usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/imagick.so (/usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/imagick.so: cannot open shared object file: No such file or directory), /usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/imagick.so.so (/usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/imagick.so.so: cannot open shared object file: No such file or directory)) in Unknown on line 0

Warning: PHP Startup: Unable to load dynamic library 'mongodb.so' (tried: /usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/mongodb.so (/usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/mongodb.so: cannot open shared object file: No such file or directory), /usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/mongodb.so.so (/usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/mongodb.so.so: cannot open shared object file: No such file or directory)) in Unknown on line 0

Warning: PHP Startup: Unable to load dynamic library 'ssh2.so' (tried: /usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/ssh2.so (/usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/ssh2.so: cannot open shared object file: No such file or directory), /usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/ssh2.so.so (/usr/local/lib/php/extensions/no-debug-non-zts-20200930/ssh2.so.so: cannot open shared object file: No such file or directory)) in Unknown on line 0