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Home लेख

व्यक्ति निर्माण की कार्यशाला विद्यार्थी परिषद

अजीत कुमार सिंह by चेतस सुखाड़िया
July 9, 2022
in लेख
व्यक्ति निर्माण की कार्यशाला विद्यार्थी परिषद

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यक्रम, बैठक, अभ्यास मंडल, अभ्यास वर्ग, अधिवेशन आदि उपक्रमों से एक दिशा में चलने वाले कार्यकर्ताओं की श्रृंखला खड़ी होती है। जिसके आधार पर लाखों छात्र परिषद से जुड़ते है। ऐसे ही विद्यार्थी परिषद एक कार्यकर्ता अधिष्ठित जन आंदोलन की तरह विकसित हुआ। हमारे यहां कार्यकर्ता एक सामान्य विद्यार्थी के रूप में आता है, वही धीरे-धीरे कार्यकर्ता के स्वरूप में कार्यकर्ता विकास की प्रक्रिया में जुड़ जाता है।

कार्यकर्ता विकास का आशय है उसकी विवेक बुद्धि का विकास। सही जीवन दृष्टि कार्यकर्ता को प्रदान करना यही हमारे कार्य की सफलता है। अपने प्रमुख कार्यकर्ता को किसी एक युवा ने कहा आप लड़ाई झगड़ा, मारपीट या अन्य कोई शारीरिक काम मुझे बताइए परंतु यह कंधे के ऊपर के हिस्से का काम मत बताईये, बहुत तकलीफ होती है। मन में बड़ी अस्वस्थता होती है। तो अपने प्रमुख कार्यकर्ता ने उस युवा से कहा देखो भाई, हमारा काम ही युवा विद्यार्थियों को सामाजिक स्थिति के बारे में अस्वस्थ करने का है, समाज की विषम परिस्थितियों के बारे में उसके मन में पीड़ा उत्पन्न करने का है। सामाजिक वेदना से जोड़ने का है। समाज की परिस्थितियों के बारे में उनके मन में पीड़ा होगी तभी आगे चलकर सामाजिक उत्थान के किसी कार्य में स्वयं को लगाएगा। आचार्य चाणक्य कहते थे कि जब हम अपने स्वयं की पीड़ा सहते है तो हमारा बल बढ़ता है और जब किसी और की पीड़ा सहते है तो हमारा आत्मबल बढ़ता है। विद्यार्थी परिषद का कार्य यही है।

एक छात्रा कार्यकर्ता से किसी परिचित ने पूछा कि विद्यार्थी परिषद में काम करने से तुम्हें क्या मिला?  तो उसने कहा पहले भिखारी सामने आता था तो थोड़ा असहजता और घृणा होती थी लेकिन आज मन में प्रश्न उठता है  कि इसकी स्थिति ऐसी क्यों है? पहले मैला बच्चा देखती थी तो मुझे मन में तिरस्कार उत्पन्न होता था। आज उस बच्चे को गोद में उठा सकती हूं, उठाती भी हूं। यह परिवर्तन विद्यार्थी परिषद के कारण हुआ।

पिछले दिनों हमने अखिल भारतीय स्तर पर सामाजिक अनुभूति नाम का कार्यक्रम पूरे देश भर में किया। इस कार्यक्रम के द्वारा विद्यार्थी परिषद के हजारों कार्यकर्ता देश के ग्रामीण व वनांचल क्षेत्र में जाते हुए समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ संवाद करते हुए उनकी समस्या, उनके प्रश्नों, उनके जीवन को समझने का प्रयास किया। साथ ही भारत के जनजीवन को एक सामान्य व्यक्ति के रूप में अनुभव करने का भी प्रयास किया।

सबसे बड़ी बात है कि जिस सामाजिक संवेदना की अनुभूति हम हमारे कार्यकर्ताओं को करना चाहते थे उसमें अत्यंत सफल भी हुए। समाज के प्रति उनके मन में संवेदना के भाव जागृति के साथ समाज के पीड़ित, शोषित व वंचित तथा हमारे समाज के जनजाति बंधुओं के साथ स्वाभाविक ही मिलना हुआ।

एक गांव में अपने कार्यकर्ता एक वृद्ध महिला से मिले। उनके दो बेटे में से एक बेटे की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। दूसरे बेटे की शादी हो गयी थी, वह अलग रहता था। वह महिला लोगों के कपड़े प्रेस करके अपना गुजरान चला रही है। बड़े बेटे की विधवा पत्नी बीमा योजना और विधवा पेंशन के सारे पैसे लेकर घर छोड़कर चली गई थी। उसी बूढ़ी मां ने सर्वे में गए कार्यकर्ताओं को पूछा आप इतनी धूप में आए हैं, आप लोग कुछ खाना खाए हैं कि नहीं? अपने कार्यकर्ताओं को उन्होंने खाना खिलाया, जब उनके घर की स्थिति व गरीबी देखकर एक रोटी खाकर वह कार्यकर्ता खड़े हो रहे थे तो बूढ़ी मां ने जबरदस्ती उनको बिठाकर ठीक से भोजन करवाया और कहा आप आराम से भोजन करो मैं किसी आशा अपेक्षा से आपको यह भोजन नहीं करवा रही हूँ।

ऐसे ही सामाजिक अनुभूति के दौरान एक और अनुभव – एक गांव में अपने ही बेटे ने अपनी बूढ़ी मां को घर के बाहर निकाल दिया था आज भी वह बूढ़ी मां गांव के चौराहे के पास एक टूटी फूटी झोपड़ी में रहती है और भीख मांग कर अपना जीवन यापन करती थी। अनुभूति सर्वे के दौरान अपनी एक छात्रा कार्यकर्ता उनको मिलने के लिए गई तब अपनी आपबीती सुनाते हुए वह वृद्ध मां देर तक रोती रही। छात्रा ने अपने पर्स से निकालकर कुछ पैसे देने का आग्रह किया तो बड़े ही आग्रह के बाद उन्होंने उसे स्वीकृत किया। छात्रा कार्यकर्ताओं को भरपूर आशीर्वाद दिया और कहा तुम मेरी इस छोटी सी टूटी फूटी सी कुटिया में आई तेरा और मेरा कोई भी संबंध नहीं है, न कोई परिचय है, न खून का कोई रिश्ता है फिर भी मेरी वेदना को आपने समझा।

अनुभूति के दौरान ऐसे ही कई अनुभवों के कारण अपनी एक छात्रा कार्यकर्ता जिसकी पॉकेट मनी करीबन 4000 मासिक थी और मां को समझा-बुझाकर जो मिल जाते थे वह अलग। ऐसी छात्रा ने जब सामाजिक अनुभूति में गांव की व्यवस्था देखी, गांव की शिक्षा देखी, गांव के बच्चे देखे, गांव में चल रही नशावृत्ति देखी और व्यथित हो गई। मेरे देश में, मेरे शहर के नजदीक के किसी एक गांव में ऐसी स्थिति है तो दूरदराज क्षेत्र में रहने वाले लोगों की स्थिति क्या होगी? उसी समय मन ही मन उस छात्रा ने संकल्प लिया कि मेरे पॉकेट मनी से कम से कम 50% राशि लोगों के बीच में कार्य करने के लिए, उनके उत्थान के लिए, खर्च करूंगी और आज वह कार्यकर्ता उस दिशा में कार्यरत भी है।

विद्यार्थी परिषद का कार्य ही विजन देने का है। विद्यार्थी कार्यकर्ताओं के विजन को व्यापक बनाने का है। विद्यार्थी परिषद में हमें सामूहिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से विजन तो मिलता ही है और वही विजन हमारे अंदर संक्रमित होते हुए हमारा मिशन बनता है, जिसके आधार पर हमारा व्यवहार और एक्शन बनता है।

महिला विषयक दृष्टिकोण आज भी सहज रूप से समानता का नहीं है। विद्यार्थी परिषद में हमने छात्र-छात्रा कार्यकर्ता को समान समझा सभी का व्यक्ति और कार्यकर्ता के इस रूप में विचार किया। इसका एक उदाहरण अगर समझना है तो राष्ट्रीय अधिवेशन में मंच पर से जब छात्रा नियंत्रक सूचना देती है और पूरे अधिवेशन में उपस्थित हजारों छात्र प्रतिनिधि सूचना का अक्षरश: पालन करते है, यह एक विशेषता है। परिषद में हर स्तर पर छात्राओं को बड़ी संख्या में तथा महत्वपूर्ण दायित्वों पर सहभागी करते हुए सामाजिक जीवन मे अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

1990 के दशक में देश में आरक्षण विरोधी आंदोलन से माहौल बिगड़ रहा था परिषद ने सामंजस्य बनाने का आह्वान किया। उस समय प्रमुख नेताओं ने कहा कि यह आंदोलन काफी प्रयास के बाद बढ़ नहीं पाया, क्योंकि भारत के अधिकतम परिसरों में परिषद का मजबूत संगठन है तथा परिषद द्वारा सद्भाव बढ़ाने की भूमिका के कारण यह विवाद धीरे-धीरे शांत हो गया। यही नहीं जाति, भाषा, प्रांत से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकात्मता के लिए विद्यार्थी परिषद निरंतर प्रयास किए। परिषद कार्यकर्ताओं ने समरसता के भाव के साथ अपनी सामाजिक निष्ठा को परिश्रम पूर्वक व्यवहार में लाकर कईं बार ऐसे विघटनकारी व जातिवादी शक्तियों को परास्त किया है।

हम विद्यार्थी परिषद में एक गीत गुनगुनाते हैं सबको शिक्षा सुलभ हो शिक्षा यह संकल्प हमारा, भारत को भारत की शिक्षा का अधिकार हमारा और और इसी संकल्पना के साथ अगर हम विद्यार्थी परिषद की ओर देखते हैं तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी चले साक्षरता अभियान में विद्यार्थी परिषद ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। यहां तक कि हमारे कार्यकर्ताओं ने प्रौढ़ शिक्षा के लिए भी कार्य किया। आज भी विद्यार्थी परिषद से निकले असंख्य कार्यकर्ता शिक्षा के अंदर नवाचार करने का प्रयास कर रहे हैं।

विद्यार्थी परिषद से मिले हुए संस्कार व्यक्तिगत जीवन मे भी कैसे चरितार्थ होते है उसके लाखों उदाहरण हैं। सितम्बर 2017 में एक दिन मुम्बई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर फुट ओवर ब्रिज पर अफरा तफरी मच गई थी। ब्रिज टूटने की अफवाह ने लोगों को जान बचाने के लिये के नीचे पटरी पर कूदने पर मजबूर किया। भीड़ में परिषद का एक कार्यकर्ता आकाश भी था। उसका ध्यान एक महिला की ओर गया जो अपनी छोटी सी मासूम बच्ची को बचाने का प्रयास कर रही थी। आकाश ने उस बच्ची को बचाने की ठानी और लगातार कुछ समय तक अपने एक हाथ से उसे उठाकर भीड़ से दबने से बचाया। जब मैंने बाद में उससे पूछा कि ऐसी स्थिति में आपको यह विचार कैसे आया तो जवाब मिला यही तो परिषद ने सिखाया है।

विद्यार्थी परिषद में कार्य करने वाले कार्यकर्ता को केवल संस्कार ही नहीं अपितु जीवनदृष्टि मिल जाती है। समाज में आज हर क्षेत्र में ऐसे लोग नेतृत्व दे रहे हैं जिन्होंने परिषद से संस्कार ग्रहण किया। डॉ. प्रसाद देवधर, डॉ. गिरीश कुलकर्णी हों अशोक भगत। डॉ देवधर विद्यार्थी परिषद के स्टूडेंट फ़ॉर डेवलपमेंट के महाराष्ट्र प्रांत के संयोजक रहे और आज महाराष्ट्र के कोंकण में कुदाल क्षेत्र में अपनी धर्मपत्नी के साथ मिलकर ग्रामीण विकास कार्य में लगे हुए हैं। ऐसे ही महराष्ट्र के अहमदनगर में रेडलाइट एरिया की महिला व उनके बच्चों के पुनर्वास का कार्य करने वाले गिरीश कुलकर्णी ने इस कार्य मे अपना जीवन लगा दिया  है। पद्मश्री अशोक भगत ने विकास भारती नाम की संस्था बनाकर झारखंड के वनांचल क्षेत्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों के उत्थान के कार्य में लगे हैं।  शिक्षा, स्वास्थ्य, पुनर्वास सहित सभी कार्यों में शीर्ष पर कार्यकर्ता पहुंचे हैं जो मानते हैं कि वे आज देश व समाज के लिए जो कुछ भी कर रहे हैं उसके पीछे अभाविप द्वारा दी गई जीवनदृष्टि है। यही विद्यार्थी परिषद की देशभक्ति के संस्कार है।

(लेखक अभाविप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हैं।)

 

Tags: abvpabvp foundation dayabvp voicenational student dayअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्अभाविप
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