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Home साक्षात्कार

देश के अंदर न्यायालय के फैसले को हार और जीत के रूप में न लिया जाय : चंपत राय

राष्ट्रीय छात्रशक्ति by
November 22, 2019
in साक्षात्कार
देश के अंदर न्यायालय के फैसले को हार और जीत के रूप में न लिया जाय : चंपत राय

9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर ही भव्य मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है । अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बनवाने के लिए कई पीढ़ियां खप गई । रामजन्मभूमि आंदोलन में वैसे अनगिनत लोगों का योगदान रहा लेकिन कुछ ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनका नाम हमेशा चर्चा में रहा, उनमें अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर, कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, चंपत राय, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार और उमा भारती प्रमुख हैं । श्रीराम जन्मभूमि का यह आंदोलन सामाजिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर लड़ा गया । विश्व हिंदू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय की इस आंदोलन में महत्ती भूमिका रही है,जो वर्ष 1985 से हर मोर्चे पर सक्रिय रहे । राम जन्मभूमि के स्वामित्व को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद चंपत राय से ‘राष्ट्रीय छात्रशक्ति’ के स. संपादक अजीत कुमार सिंह ने बातचीत की । प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश :

आप श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को किस रूप में देखते हैं ?

सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की बेंच ने राममंदिर के पक्ष में जो फैसला सुनाया है । इस पर मैं कह सकता हूं कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में हिन्दू संस्कृति, मूल्य और भावनाओं को न्यायालय ने स्वीकार किया है ।  मैं आंतरिक रूप से संतुष्ट हूं कि माननीय न्यायाधीशों ने पूर्ण न्याय दिया है ।

सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया है वह बातचीत के जरिये भी हल किया जा सकता था । वार्ता हमेशा विफल क्यों रही ?

मुझे नहीं पता कि मध्यस्थता का सुझाव किसने दिया और क्यों दिया ? यह अधिक गंभीर है कि पैनल के सदस्यों ने हमसे बेजोड़ सुझावों के बारे में सवाल पूछे । कोई भी समझदार व्यक्ति समाधान की पेशकश नहीं कर सकता है जो समस्याओं के पेंडोरा बॉक्स खोलता हो । लेकिन, उस पैनल ने ऐसा किया । वह वार्ता विफल होने के लिए बाध्य थी और ऐसा हुआ । इस मुद्दे पर मेरा बोलना ठीक नहीं है ।

न्यायालय के फैसले से आप कितना संतुष्ट हैं ?

मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं । हम चाहते हैं कि देश के अंदर इस फैसले को हार और जीत के रूप में न लें । ये राष्ट्र गौरव के सम्मान की पुनर्प्रतिष्ठा का विषय है । यह राष्ट्र सभी पंथ को मानने वालों का है । एक जिम्मेवार देश  के नागरिक होने के नाते इसको स्वीकारना चाहिए कि आखिर पांच शताब्दी के बाद एक समस्या का हल सामने आ गया ।

राम मंदिर आंदोलन के बारे में बताएं ।

1528 में विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम के मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद का ढ़ांचा खड़ा कर दिया । तब से श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति की लड़ाई चल रही है । अयोध्या के स्थानीय रामभक्तों, पड़ोसी राजाओं और संतो के माध्यम से संघर्ष जारी रहा ।  1934 में हिंदुओं के द्वारा ढ़ांचे को तोड़ा गया, देश उस समय अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेजों ने इस पर दंडात्मक कार्रवाई करते हुए 84 हजार हर्जाना भरने का आदेश दिया । फैजाबाद/अयोध्या के राजा ने सभी नागरिकों के बदले खुद ही उस हर्जाने की राशि को चुका दी । 1947 में देश आजाद हो गया। सन 1949 में दो साधुओं के नेतृत्व में 50 युवाओं की टोली ने उस पर कब्जा कर लिया और वहां पर कीर्तन करना शुरू कर दिया, जो अब तक जारी है । विश्व हिंदू परिषद् का प्रवेश 1984 में हुआ ।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक के स्वयंसेवकों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदू जागरण मंच नाम की संस्था बना ली । हिंदू जागरण मंच के बैनर तले 1983 में कार्यक्रम का आयोजन किया गया, उसमें उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना और गुलजारी लाल नंदा भी पधारे । खन्ना ने अपने भाषण में हिंदुओं से आह्वान किया कि देश आजाद हुए इतने वर्ष हो गये हैं । अब अयोध्या, मथुरा और काशी को मुक्त कराना चाहिए । उनके इस बात को अशोक सिंघल जी ने समझने का प्रयास किया फिर यह तय हुआ कि इस बात को हमसे ज्यादा साधुओं को समझनी चाहिए । इसके बाद दिल्ली के विज्ञान भवन में 7-8 अप्रैल 1984 के देश भर के संतो का दो दिवसीय अधिवेशन हुआ । इसको विश्व हिंदू परिषद ने धर्म संसद नाम दिया । यहां भी दाऊ लाल खन्ना ने अपनी बात दोहराई । संतो को उनकी बात पसंद आई और यहीं से विश्व हिंदू परिषद् का राममंदिर आंदोलन में प्रवेश हुआ । धर्म संसद में ही श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ । निर्णय हुआ कि प्रभु श्रीराम ताले के अंदर बंद हैं, उसे खोलवाना जरूरी है । आंदोलन शुरू हुए, 1985 में ताला खुलवा दिये लेकिन पूजा की तब भी मनाही थी । भगवान की इच्छा से वकील उमेश चंद्र पांडेय ने पूजा के लिए अदालत में मुकदमा दर्ज करवाया । एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी । 1989 में अध्ययन के बाद पता चला कि सारे मुकदमें व्यक्तिगत हैं । विचार – विर्मश के बाद नये मुकदमे दायर हुए । हमलोंगों अदालती और सामाजिक दोनों स्तर पर अपना काम करना शुरू कर दिया । 1989 में रामशिला पूजन की शुरूआत की गई, जिसके माध्यम से 2 लाख 75 हजार परिवारों तक सीधे पहुंच हुई । 1990 में कारसेवा की घोषणा हुई तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कारसेवकों पर गोली चलवा दी । सत्ता परिवर्तन हुए दोबारा कारसेवा शुरू हुआ, जिसकी जिस तरह भावना थी प्रतिक्रियाएं देनी शुरू कर दी, फलस्वरूप विवादित ढ़ांचा ढह गया । मुकदमेंबाजी हुई, पहले जिला फिर हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मामला आया और आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्य और तर्क के आधार पर राममंदिर के पक्ष में फैसला अभूतपूर्व फैसला सुनाया जिसे सुनकर दिल गदगद है ।

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