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Home लेख

मिशन साहसी : आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देना परिषद का कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि संकल्प है

शालिनी वर्मा by शालिनी वर्मा
September 24, 2024
in लेख
मिशन साहसी : आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देना परिषद का कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि संकल्प है

आज चाहे निर्भया की घटना हो या बंगाल के आरजी. कर मेडिकल कॉलेज की घटना, नित्य दिन महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों ने समाज में महिला सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है। जिस बंगाल को हम देवी आराधना की पुण्य भूमि के रूप में जानते हैं, जहां कभी रवींद्र संगीत गूंजता था, आज वहां हर कोने से महिलाओं की चीखें सुनाई दे रही हैं। इस घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि बंगाल का नेतृत्व संवेदनहीन है और उसने न्याय का दिखावटी मुखौटा पहन रखा है। उनकी मंशा न्याय देना नहीं बल्कि अपराधियों को संरक्षण देना है। संदेशखाली भी उसी मंशा का एक उदाहरण है। किंतु समाज के जिम्मेदार अग्रणी छात्र संगठन के रूप में स्थापित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ‘समस्या नहीं समाधान’ को केन्द्र में रखकर ‘मिशन साहसी’ अभियान की शुरुआत की है। ‘मिशन साहसी’ के माध्यम से अभाविप पिछले 6 वर्षों में लाखों छात्राओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दे चुकी है। अभाविप का यह प्रशिक्षण अभियान अब भी जारी है ताकि छात्राएं स्वयं की रक्षा करते हुए दुराचारियों को सबक सीखा सके। गत 14-15 सितंबर को बंगाल की राजधानी कोलकाता में अभाविप ने छात्राओं को आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से ‘मिशन साहसी’ का आयोजन किया था। प्रतिकूल परिस्थिति के बावजूद भी बंगाल के विभिन्न मेडिकल, पैरा मेडिकल और अन्य महाविद्यालयों से 300 से अधिक छात्राएं आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेने आईं जो इस बात का प्रमाण है कि इन छात्राओं के हृदय में आज भी मां दुर्गा और मां काली का वास है। यह साहस स्पष्ट करता है कि अब न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश की महिलाएं अत्याचार और दुराचार से लड़ने के लिए तैयार है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सिर्फ समस्याएं नहीं गिनवाती है बल्कि समाधान तक पहुंचाती भी है। अभाविप द्वारा वर्ष 2018 से छात्राओं को भयमुक्त कर, किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देने हेतु एक राष्ट्रव्यापी अभियान ‘मिशन साहसी’ प्रारंभ किया गया है। मार्च 2018 में मुंबई में ग्रैंडमास्टर शिफुजी शौर्य भारद्वाज और उनकी संस्था मिशन प्रहार के साथ मिलकर अभाविप ने ‘मिशन साहसी’ अभियान की नींव रखी जिसके अंतर्गत प्रथम चरण में 10,000 से अधिक छात्राओं को आत्मनिर्भर बनने हेतु प्रशिक्षित किया गया। इस अभियान की सफलता और उपयोगिता को देखते हुए अभाविप ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रारंभ किया। ‘मिशन साहसी’ नामक मशाल तेजी से आगे बढ़ी और जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बंगाल, तमिलनाडु, अरुणाचल समेत देशभर के विभिन्न प्रांतों के जिलों में 30 अक्तूबर से 02 नवंबर 2018 के मध्य 8 लाख से अधिक छात्राओं ने एक समयावधि में प्रशिक्षण लेकर अपनी क्षमताओं का विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किया। अभाविप का यह अभियान दुष्यंत कुमार की “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए” – पंक्ति को चरितार्थ कर रही है।

छात्राओं में निहित शक्ति को उजागर कर सशक्त बनाना है ‘मिशन साहसी’ का उद्देश्य

आज अभाविप द्वारा देशभर में लाखों छात्राओं को ‘मिशन साहसी’ से सशक्त बनाया जा रहा है। ‘मिशन साहसी’ का उद्देश्य सभी छात्राओं में निहित शक्ति को उजागर करना तथा उनमें स्वयं पर विश्वास और आत्मबल पैदा करना है, ताकि वे सशक्त होकर न केवल अपनी रक्षा कर सकें, बल्कि निर्भय होकर देश और समाज की सेवा भी कर सकें। अभाविप के ‘मिशन साहसी’ में ‘साहसी’ शब्द नया नहीं है हो सकता है कि मिशन नया हो, किंतु साहसी शब्द से हमारा पुराना नाता है। जिस धरती पर हम जन्मे हैं, जब बुराई ने हदें पार की, तो मां दुर्गा अवतरित हुईं और बुराई का अंत किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती, और हम सभी उसी शक्ति की वंशज हैं। यह ‘साहसी’ शब्द वहीं से आया है। परिषद का यह मिशन अब परिसरों में पहुंच चुका है। आज कड़े कानून और पुलिस व्यवस्था के साथ-साथ छात्राओं को आत्मरक्षा के लिए भयमुक्त और सक्षम बनाना आवश्यक है। पूरे समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को बदलना ही ‘मिशन साहसी’ है।

अभाविप ने ‘मिशन साहसी’ के अंतर्गत अब तक सैकड़ों प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए हैं। कुछ बाहरी लोगों को लग सकता है कि परिषद कम समय में क्या सिखाती होगी, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि जब कुछ बाहर से लाना होता है, तो समय लगता है। किंतु इस मिशन से हमारा भीतर का साहस बाहर आ रहा है। भयमुक्त बनाना, अर्थात ‘मेकिंग ऑफ द फियरलेस,’ ही ‘मिशन साहसी’ का उद्देश्य है। आज जब भी छात्राओं की सुरक्षा का सवाल उठेगा तब तब समाधान के रूप में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का नाम सामने आएगा। जब ‘मिशन साहसी’ की चर्चा होगी, तो कहा जाएगा कि परिषद न केवल छात्रा सुरक्षा की बात करता है, बल्कि उन्हें निर्भीक भी बनाता है।

कुछ लोग सोशल मीडिया पर कुछ दिन से यह भी लिख रहे हैं कि “उठो द्रौपदी, शस्त्र उठा लो, अब न श्रीकृष्ण आएंगे,” लेकिन अब छात्राओं को लगता है कि अभाविप की ‘मिशन साहसी’, श्रीकृष्ण की भांति किसी न किसी शक्ति के रूप में हमारे साथ हैं जो साधारण वस्त्र, पेन, कड़ा, आईडी कार्ड, कांटा-चम्मच आदि से भी दुराचारियों से स्वयं की रक्षा करने के गुर सिखा रहा है। इन सामान्य साधनों से ‘मिशन साहसी’ ने हमारा माइंडसेट ऐसा बना दिया है कि अब यदि कोई मनचला तंग करेगा, तो हमारे हाथ में रखा पेन भी उसके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। मिशन साहसी के तहत आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेने के बाद छात्राओं की आंखों में साहस जाग उठा है। किंतु अब भी देश में कुछ लोग हैं जो महिलाओं की पीड़ा को प्रोपगैंडा समझते हैं। आप उनसे न्याय की उम्मीद न करें। भारत की महिलाएं एक दौर में पूरे राज्य का डिफेंस संभालती थीं, और आज वे गली-मोहल्लों और परिसरों में अपना डिफेंस खुद कर सकती हैं । एक आईडी कार्ड से भी किसी दरिंदे को लहूलुहान करने का साहस अब ‘मिशन साहसी’ ने लाखों छात्राओं में पैदा कर दिया है ।

हमारा नाम जन्म के बाद अलग अलग है, किंतु हम नारी हैं तो  जन्म से ही हमारा नाम शक्ति, रानी लक्ष्मीबाई, रानी चेन्नम्मा, रानी दुर्गावती तय हो जाता है। अब इन नामों के पीछे छिपे शौर्य को समझाना भी ‘मिशन साहसी’ है। अभाविप ने मिशन साहसी के तहत न केवल लाखों छात्राओं को आत्मरक्षा के गुर सिखायें हैं बल्कि उनके मन में डर के आगे जीत का जज्बा पैदा किया है।

आज आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देना विद्यार्थी परिषद का कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक संकल्प है जिसके तहत पिछले 6 वर्षों में परिषद ने 14 लाख से अधिक छात्राओं को ‘मिशन साहसी’ का प्रशिक्षण दिया है।

जब तक यह संकल्प पूरा नहीं होता, तब तक हम ऊंची आवाज़ में ये पंक्तियां दोहराएंगे –

“शिक्षा, सेना, खेल सब में बाजी मारी है,

रानी लक्ष्मी की गाथाएं सारी दुनिया पर भारी हैं।

कहें गर्व से, मिशन साहसी से अब न कोई लाचारी है।

फूल नहीं, चिंगारी है, यह भारत की नारी है।”

(लेखिका, अभाविप की राष्ट्रीय मंत्री हैं ।)

Tags: abvpmission sahasi
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