अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 65 वें अधिवेशन से पूर्व परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर सुब्बैया ने कहा कि बाहरी व्यक्तियों का बाह्य अवलोकन द्वारा अभाविप को समझना कठिन है। परिषद को उसकी कार्यपद्धती के गहन आंतरिक अन्वेषण द्वारा ही समझा जा सकता है। मेरी बोलचाल की भाषा कोई भी हो सकती है परंतु मेरी मातृभूमि की भाषा हिंदी है।
भारत एक आध्यात्मिक देश है इसके मान बिंदु पूंजीवादी देशों से भिन्न है उनके लिए देश की भूमि भोग भूमि और संसाधन मात्र हो सकती है परंतु हमारे लिए भूमि माता का स्थान रखती है। महिला सम्मान और सकारात्मक आंदोलन पद्धति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संघर्ष व विरोध के समय भी हम महिला सम्मान का ध्यान रखते हैं। जेएनयू में आंदोलनरत वामपंथियों द्वारा शिक्षिका से दुर्व्यवहार को उन्होंने निंदनीय बताया।
देश में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों का जिक्र करते हुए राम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय व अनुच्छेद 370 पर उठाए गए कदम का उनके द्वारा स्वागत किया गया। इन निर्णयों के प्रकाश में उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय पुनर्जागरण और सकारात्मक परिवर्तनों के मध्य में है जिसमें वाम विचारधारा मृतप्राय हो चुकी है।
राष्ट्रीय महामंत्री आशीष चौहान ने कहा कि कार्यकारी परिषद की पिछली और इस बैठक के मध्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति सबके समक्ष प्रस्तुत हो चुकी है इस संबंध में कुल 200000 सुझाव प्रेषित किए गए और उन सभी सुझावों को ध्यान में रखते हुए लाई जाने वाली आगामी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की चर्चा भी उनके द्वारा की गई। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अभाविप के सकारात्मक योगदान की उनके द्वारा सराहना की गई। सेमेस्टर प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था के संबंध में उन्होंने कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों में यह सफल सिद्ध हो चुकी है तथा इस संबंध में परिषद द्वारा सरकार को सुझाव दिए जाने की बात कही।
स्कूली शिक्षा के बारे में अभाविप के नव प्रयोगों के रूप में बेंगलुरु में चलाए गए “स्कूल बेल उपक्रम” का जिक्र किया और कहा कि जहां-जहां यह कार्यक्रम चलाया गया उन विद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति में इजाफा हुआ है। आशीष चौहान ने कहा कि अभाविप मात्र चर्चा से ऊपर उठकर यथार्थ में जमीन पर काम करने वाला संगठन है।