कुछ कहानियाँ ऐसी होती है जो आपके सोचने की दिशा को परिवर्तित कर देती है सर्वेश तिवारी “श्रीमुख” द्वारा रचित उपन्यास “परत” एक एसा ही कथानक है जो लव जिहाद पर केंद्रित है । कहानी पर अंत तक कथाकार ने पकड बनाये रखी है लेखन शैली ऐसी है आप कहानी के पात्रों व संवादों के साथ स्वयं को जुडा अनुभव करते हैं कथानक में लवजिहाद के अतिरिक्त अन्य विषयों पर भी वन लाईनर अत्यंत प्रभावी है ।
“मनुष्य में यदि बडा कहलाने की हवस न हो तो वह विपन्नता में भी मुस्कुरा सकता है “
“व्यक्ति की अतृप्त इच्छाएं बताती है कि बजार ने उसे किस हद तक मूर्ख बनाया है “
इन पंक्तियों को पढने के बाद आप स्वयं अपना आकलन करने पर विवश हो जाते हैं
एक बेटी के पिता की पीडा को इतने प्रभावी शब्दों में उकेरा गया है कि आप उस पिता के समकक्ष आकर खडे हो जाते हैं।
“हम अभी तक ऐसा समाज नहीं बना पाये हैं जहां एक दरिद्र पिता बेटी के जन्म लेने पर मुस्कुरा सके । उसे बेटी के चेहरे में बेटी से अधिक ‘दहेज’ दिखता है। वह बेटी के जन्म के दिन से ही दामाद खरीदने की राशि एकत्र करने लगता है “
बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर भी लेखक ने कडा प्रहार किया है । मोबाईल क्रांति पर किया गया कटाक्ष युवामन पर मोबाईल व इंटरनेट के असर को प्रभावी रूप से कह पाये हैं ।
‘अंग्रेजो ने किसी जमाने में अपना साम्राज्य बचाने के लिये चीन के लोगों को अफीम की लत लगाई थी, आज कथित मोबईल क्रांति ने भारत के लडकों को ब्लू फिल्म की लत लगाई है । 10-15 वर्ष पूर्व तक गांव की हर लडकी बहन होती थी आज लडकों के लिये बहन छोड “माल” हो गयी है I
भारत में गांवों के चुनावों का इतना सजीव वर्णन कि यदि आपने गांवों के चुनाव देखे हैं तो आपके सामने चलचित्र की भांति दृश्य चलने लगेंगे लोकतंत्र की गंदी राजनीति कुछ लाईनें तो बहुत कडा प्रहार करती है ।
श्रीमुख जी ग्रामीण चुनावों को सनद रखते हुए कहते हैं की “एक दूसरे को बेहूदा बनाने का नाम लोकतंत्र है” तथा “लोकतंत्र में हीजडो की भी माँग भरी जाती है ।”
साथ ही कहते हैं की लोकतंत्र की एक खूबी यह भी है कि “कुछ दिन के लिये ही सही भेडिया भेड बन जाता है और गधा शेर” व “लोकतंत्र में आदमी, आदमी नहीं वोट होता है I”
जैसे जैसे कहानी आगे बढती है लव जिहाद के नंगे सच से आप रूबरू होते हैं एक एक शब्द ह्र्दय के भीतर सहजता से उतरता है ,प्रेम में पड़ी लडकी की मनोदशा ( प्रेम कुछ और सिखाये न सिखाये सबसे पहले झूठ बोलना और छल करना सिखाता है , प्रेम संसार का सबसे तेज नशा है जब व्यक्ति नशे में हो तो सही राह दिखाने वाले मित्र को भी शत्रु समझता है) इस प्रकार के पाश में फंसी लडकी को जब उसकी मित्र समझाती है कि एक लडका रोज सडक पर खडा होकर आती-जाती बीसियों लडकियों पर डोरे डालता है । यदि उनमें से कोई फंस गयी तो इसे प्रेम नहीं “पटाना” कहते है ।
“प्रेम के आगे संसार हारता है” सिनेमा के इस वाक्य को नई पीढी के अंदर जैसे ब्रह्मसत्य के तरह स्थापित कर चुका है जबकि माता-पिता अपने वात्सल्य के आगे हारते हैं इश्क के आगे नहीं I
लव जिहाद में फंसी लडकी को मुर्गी कहने पर पिता के दर्द ” मुर्गी नहीं है रे सूअर ! वह मेरी बेटी है… कलेजे से लगा कर पाला है मैंने खुद फटे हुए पैजामें और पुराने कुर्ते में रहकर पोसा है उसे .. अरे ले जा रहे हो उसे तो कम से कम बहू बनाकर ले जाओ दुष्टों मुर्गी नहीं मेरी लडकी है वह” ऐसे – ऐसे कथानक गढे हैं वे पिता के स्थान पर ला खडा करता है ।
आगे बढते बढते एक एक दृष्य मानो आपको पीडिता के दुख की मनोदशा के साथ खडा कर देता है । यदि आप जरा से भी संवेदनशील है जो कथानक पढते समय आपकी आंखों से अश्रु सहज ही निकलने लगते हैं ।
पुरस्कारों की चाह और कट्टरपंथियों के डर ने लेखकों सामयिक विषयों मुख्यतः इस्लाम के दुष्कृत्यों पर लिखने से रोक रखा था लेकिन “परत” के लेखक सर्वेश कुमार तिवारी जी की हिम्मत की प्रशंसा करनी होगी जो लव जिहाद जैसे ज्वलंत मुद्दे पर कहानी बिना किसी पूर्वाग्रह व चीजों को छिपाये स्पष्ट व सत्य लिख पाये यह निश्चित मानिये इसे पढने के बाद हमारे कोई भी बहन लव जिहाद के दानव का शिकार नहीं बनेगी । मेरा स्वयं का अनुभव है मैंने परत को स्वयं पढने के बाद 5 प्रतियाँ और मंगवायी और अपने उन जानकारों को दी जिनके घर बहन व बेटियां हैं उन्होंने स्वयं पढा फिर स्वयं ऑनलाईन मँगवा कर वितरण की है । यह एक एसा मास्टरपीस है जिसे हम घर में अवश्य होना चाहिये ।
(समीक्षक, अभाविप बुलंदशहर(ऊ.प्र.) के जिला संयोजक हैं।)